बुधवार, 16 नवंबर 2011

हमारे विष्वास , हमारी आस्थाएँ हमें चलाती हैं ....




ज़िन्दगी को गति देने के लिये मन को कोई न कोई बात चाहिए होती है । हमारी परवरिश , माहौल , हमारे सम्पर्क में आने वाले लोग , हमारी प्रतिक्रियाएँ लगातार हमें गढ़ते जाते हैं । बचपन तो कच्ची मिट्टी की तरह होता है , कोई रँग डालो या किसी भी आकार में ढाल लो । मन के साफ़ सफ्हे पर कुछ भी लिखने की गुँजाइश रहती है , बहुत कुछ लिखा हो तो सब गड्ड मड्ड हो जाता है । अगर हर बात व्यवस्थित रखी हो तो मन तनाव रहित हो कर नये को ...हर गुजरते बदलाव को बड़े प्यार से स्वीकार कर लेता है ।




इक आशा की किरण झाड़ पर खड़ा कर देती है और इक छोटी सी निराशा ढहा देती है । मन कहाँ दुख में रहना चाहता है , फिर भी दुख का ही सौदा कर लेता है । मैं अपनी एक अजीज दोस्त के साथ मन्दिर में देवी जी के दर्शन करने गई , वहाँ पास की ही दुकानों से हमने नारियल व चढ़ावे की अन्य सामाग्री खरीदी । प्रशाद चढ़ाया , पहले पण्डित जी नारियल माँ को छुआ कर वापिस हमें दे दिया करते थे । इस बार उन्हों ने वापिस नहीं दिया और वहाँ पर कई सारे चढ़े हुए नारियल रखे हुए थे। मेरी दोस्त ने नारियल वापिस माँग लिया कि हम प्रशाद में चाहते हैं , मैंने भी माँग लिया । घर जा कर फोड़ने पर दोनों के नारियल खराब निकले । मेरी दोस्त ने फोन पर बताया कि शायद माँ ने मेरा नारियल स्वीकार नहीं किया । हम ऐसी बातों से भी परेशान हो जाते हैं , जबकि ऐसा समझ में आ रहा है कि पूरी संभावना है कि पण्डित जी चढ़ावे के नारियलों को वापिस पास की दुकानों में बेच देते होंगे । और वही नारियल रोटेट हो कर चढ़ रहे होंगे । बहुत पुराने होने पर खराब तो निकलेंगे ही । अब भगवान के बन्दे ही जब यही कुछ करेंगे तो आस्था कहाँ बची ? हमारे यहाँ जब मेड ने नारियल तोड़ा तो कहने लगी कि जब नारियल खराब निकलता है तो समझो कि भगवान ने स्वीकार कर लिया । मैंने अपनी दोस्त से कहा कि अब मन तगड़ा कर लो , हमारी कामना पूरी हो जायेगी । मन टके टके की बात में हिलने लग जाता है । मन को विष्वास का पानी चाहिए होता है बस । बिल्ली का रास्ता काटना , तेल गिरना , आँख फड़कना , ऐसे कितने ही शकुनों अपशकुनों में हमारे विष्वास जड़ पकड़ लेते हैं और हम डोलते ही रहते हैं ।




ब्रह्मा कुमारी सिस्टर शिवानी ने कहा कि हमारा विष्वास का ताना-बाना बिलकुल वैसा ही है जैसे कि कम्प्युटर पर प्रोग्राम का होना । जैसी प्रोग्रामिंग होती है वैसे ही हमारा सिस्टम ऑपरेट करता है । और अगर प्रोग्राम ही न किया गया हो तो फिर क्या काम करेंगे , आप जान ही न पायेंगे कि और क्या क्या काम हो सकता था । और उँगलियाँ चला चला कर यानि बेवजह टक्करें मार मार कर आप सिस्टम को ही क्रैश कर लेंगे ।




ये बहुत बड़ा सच है कि मन ही अगुआ है हमारी प्रवृत्तियों का । हमारे विचार ही एक सृष्टि रच लेते हैं , हर सम्भव बुराई को हर आयाम से देख लेते हैं । यहीं से हमारे विष्वासों और आस्थाओं का जन्म होना शुरू होता है । अब ये हमारी मर्जी होती है कि हम उस प्रबल विचार को कितना पानी पिलाते हैं या उसको महज़ गुजरता हुआ देखते हैं और अपनी स्वयम की अडोल स्थिति को कायम रखते हैं ।




आस्था विष्वास ...मानवता को बल देने वाले होने चाहियें । जैसा कि श्री श्री रवि शंकर जी भी कहते हैं कि हम स्वयम एक बड़ी ताकत हैं तो किसी भी नकारात्मकता का हम पर असर क्यों पडेगा ; पर इसे महसूस किये बिना हम जान नहीं पायेंगे । सारी मैली विद्याएँ उस आदमी के लिये बेअसर हैं जो अपनी ऊर्जा को भगवान से जुड़ी पाता है । सिर्फ यही रास्ता है जो हमारे अंतर्मन को शांत स्थिति में रख सकता है , आनन्द की अनुभूति दे सकता हैआस्था , विष्वास पालो तो ऐसा पालो , ऐसा नहीं कि ज़र्रे ज़र्रे में तिनके की तरह हिलते रहो

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

कुछ नमूने ये भी

शैलजा बरामदे में बैठी अपनी बेटी की फ्रॉक सिल रही थी , माँ जी-पिता जी आज किसी को मिलने चले गए थे और बेटी स्कूल गई थी । बाहर खुला अहाता था , कुछ पेड़-पौधे उगे हुए थे और सड़क की ओर आठ दस खुली सीढ़ियाँ चढ़ कर घर तक पहुंचा जा सकता था । एक आठ दस साल का लड़का ऊपर चढ़ आया और अपने झोले से एक पिताम्बरी का पैकेट निकाल कर , उस पाउडर को हाथ में लेकर शैलजा के हाथों में पहने हुए कंगनों की तरफ इशारा करके कहने लगा ....आंटी जी ये पैकेट खरीद लो इससे चूड़ी चमक जायेंगी । शैलजा के मना करने पर भी कई बार मिन्नत कर के कहने लगा कि मैं लगा के दिखाता हूँ , उसका कोई पैसा नहीं लगेगा । बस हाथों में पहने हुए कंगनों पर ही उसने वो पाउडर लगा दिया । अब कंगनों को उतारना जरुरी हो गया । उस बच्चे ने पाउडर को कंगनों के ऊपर रगड़ना शुरू किया , कंगन अजीब लाल लाल से हो गए । अब पांच -सात मिनट बाद ही २२, २४ साल के दो और युवक ऊपर चढ़ आए , ये दोनों भी इस लड़के के साथी थे । बस अब शैलजा को लगा वो इन के काबू में आ गई है , कैसे पीछा छुड़ाया जाए । पड़ोस वाले घर से आवाज लगा कर आंटी और उनकी बेटी को बुलाया । इन लोगों ने अब कंगन धोने के लिये पानी माँगा । जितना सोना उतार सके होंगे उतार लिया होगा । कंगन चमके भी नहीं , हाँ दो चार दिन बाद कंगन टेढ़े -मेढ़े हो गए । नुक्सान कर बैठने और ठगे जाने का दर्द बहुत समय तक शैलजा पर हावी रहा ।
लखनऊ में अक्सर सेल्स गर्ल्ज और सेल्स मैनज नकली सामान बाज़ार से कम कीमत पर घरों में बेच जाते थे । दो चार बार धोखा खाने के बाद नीमा ने सोचा , घंटी बजते ही इन लोगों को सीधा मना कर देना है । फिर एक दिन घंटी बजी , एक सेल्स मैन दो लाइटर और एक चाकू का पैकेट उठाए खडा था , कहने लगा ....११० रूपये में है कम्पनी की स्कीम में है , आपका नाम लिख लिया है , बारह लोगों को कम्पनी ने लिस्ट में रखा है , मैं खुद इसी महीने की तेरह तारीख को एक प्लास्टिक का फ़िल्टर आपके पास पहुंचा कर जाऊँगा । एक बार तो नीमा ने सोचा कि पड़ोसियों की घंटी बजा कर सलाह ले लूँ , फिर सोचा दोपहर का वक्त है , गर्मी में तंग न करूँ । एक लाइटर की कीमत कम से कम ६० रूपये तो होगी ही , घाटे का सौदा नहीं है , खरीद लिये । मगर ये क्या लुभावनी पैकिंग वाला लाइटर महीना डेढ़ महीना मुश्किल से चला । चाकू भी पतले टिन का निकला , और फ़िल्टर तो कभी पहुंचा ही नहीं । बाद में नीमा को पता चला कि लाइटर तो दस दस रूपये में भी बिकते हैं ।
रश्मि ने दरवाजा खोला , एक युवक गुरुद्वारे के लंगर के लिये दान राशि एकत्र करने के लिये कह रहा था । वाहेगुरु में अगाध श्रद्धा होने की वजह से और दरवाजे पर आए को खाली न मोडूँ ... सोचते हुए रश्मि ने कुछ रूपये दे दिए । अब इस युवक ने कहना शुरू किया ..वाहे गुरु आपके सब दुःख दूर कर देगा , आपका प्रोमोशन होने वाला है ...सुखमनी का पाठ करवाओ , लंगर कराओ , ११०० रूपये का खर्चा होगा । इस तरह के लोग सामने वाले को अच्छी तरह पढ़ लेते हैं , फिर कमजोर रग पर हाथ रख कर फायदा उठाना चाहते हैं । इस युवक को टरकाने में रश्मि को बड़ा दम लगाना पड़ा । गुरूद्वारे मंदिर आदि धर्म-स्थलों के लोग कभी मांगने नहीं जाते , उन के नाम से कुछ लोग अपना उल्लू साधते हैं ।
निम्मी , रीमा अपनी माँ के साथ घर में ही थीं । घंटी बजी , रीमा ने दरवाजा खोला । दो आदमी हाथ में काला बैग लिये और एक विजिटिंग कार्ड लिये ...दिखाते हुए बोले , हम गैस ऑफिस से आए हैं , चेक करने आए हैं गैस की लीकेज वगैरह । जब तक रीमा मुड़ कर मम्मी से पूछने पहुंची : उनमे से एक आदमी पीछे पीछे ड्राइंग रूम पार कर के किचन के पास आ खडा हुआ । अब लगा कि अगर आदमी जेनुइन है तो देख ले , दिखाने में क्या जा रहा है , मगर गैस की तो कोई समस्या है ही नहीं । इस आदमी ने सख्त लहजे में कहा ...आप लोग रेग्युलेटर बंद नहीं रखते हो । फिर रेग्युलेटर बंद किया , गैस का पाइप बर्नर की साइड घुमाते हुए कहने लगा कि लीक हो रही है ...पाइप ढीला है ..और फिर पाइप को चूल्हे से अलग कर दिया । फिर बोला चाकू लाओ , चाकू से काटने लगा । ये पाइप काटने वाला था ही नहीं क्योंकि उसमें अन्दर से स्टील की लेयर लगी होती है । ये बात वो भी जानता था , क्योंकि फिर उसने अपना ग्रीन पाइप निकाल कर दिखाया कि देखो ये तो कट जाता है । अब माँ को समझ आने लगा कि ये आदमी या तो अपना पाइप बेचने के इरादे से आया है या किसी और उद्देश्य से । बेटियों ने तो पहले ही उसकी नेक नीयती समझ ली थी और माँ को इशारे से समझा रहीं थीं कि उसे किसी भी तरह घर से बाहर करो । माँ किचन से बाहर आ गईं और कहने लगी ....अगर आप पाइप बेचते हैं तो उसकी कीमत बताइये , बाहर आइये और अपना विजिटिंग कार्ड दिखाइए । किसी तरह दरवाजे तक बुला कर , घर से बाहर किया । एक बड़ा आम सा फोटो वाला विजिटिंग कार्ड लैमिनेट करा कर ये दुनिया को ठगने निकले थे । ऐसे लोगों की वजह से ही आज जन गणना करने वालों या किसी भी तरह का सर्वे करने वालों को लोग सहयोग नहीं करते ।
बार बार धोखा खाने के बाद भी मन इतना भोला और आस्थावान होता है ये तो किसी तगड़े धोखे के बाद ही समझ आता है । रश्मि ए.टी.एम से दो हजार रूपये निकाल कर बाहर निकली ही थी कि सामने एक आदमी एक नाग टोकरी में रख कर खडा था ...तेरे सारे काम बन जायेंगे , बेटी , सोमवार का दिन है , नाग देवता आशीष देगा । रश्मि सोमवार का व्रत रखती थी , झट से जितनी चेंज पर्स में थी व् एक दस रूपये का नोट , उसको दे दिया । अब इस आदमी ने पर्स में दो करारे नोट हजार हजार के देख लिए थे । बोला कि अपने नोट नाग देवता को छुआ दो , तुम्हारे सारे दुःख दूर हो जायेंगे । जाने क्या हुआ कि जैसे ही नोट छुआए गए , नाग वाले ने नोट सर्र से नाग को निगलवा दिए ...अब ? रश्मि कहे कि मेरे नोट निकालो ; सांप वाला कहे ..वो तो इसने क़ुबूल लिए हैं , अब सब भला होगा । रश्मि को लगा ..वो तो ठगी गई है , जोर जबरदस्ती करती है तो ये नाग वाला नाग से कटवा भी सकता है ...नाग तो इसका शस्त्र है ...इतना वक्त नहीं है कि चिल्ला कर लोगों को इक्कट्ठा किया जा सके ...ऑफिस के लिए देर हो रही है । तनी हुईं दिमाग की नसें और कुछ न कर पा सकने की मजबूरी की मानसिक यंत्रणा लिए वो इतना ही बोल पाई ...बाबा इसका फल तुम्हें अच्छा नहीं मिलेगा । ऑफिस में जा कर साथियों से बात की तो पता चला कि किसी एक के साथ और ऐसा ही घटा था , मगर वो भीड़ वाली जगह था तो उसने शोर मचा कर लोग इकठ्ठा कर लिए थे तो सांप वाले ने मुड़े तुड़े नोट नाग से उगलवा कर वापिस दिए थे । अब इसे क्या कहेंगे , लोगों ने आस्था को भी भुनाना शुरू कर दिया है । सबकी नजर आपकी जेब पर है , किस तरह और कितनी चालाकी से खाली कराई जाए । सारे दुःख दूर करने की बात करते हैं , क्योंकि जानते हैं कि कोई अपने आपको सुखी समझता ही नहीं है ...मन जब तक हिलता रहेगा , दुःख का भान कराता रहेगा । दुःख तो कहीं होता ही नहीं , हमारा मन ही उसे पैदा किये रखता है ..लोगों ने इस से फायदा उठाने में भी रोजगार तलाश लिया है ...अपना तापमान नियंत्रित होगा तभी दूसरे के क्रिया-कलापों के पीछे छिपे उसके उद्देश्य को पढ़ सकेंगे ...मन का भोलापन एक न्यामत होता है , मगर हमारे अनुभव हमें सिखाते हैं ...कि जब कोई इसका नाजायज फायदा उठाने लगे तो अपना बचाव भी करें ...सुरक्षा हमेशा निदान से बेहतर होती है ...।

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

बस छलक ही छलक



भौतिकता की अँधी दौड़ में हम दिलों को क़दमों तले मसलते जा रहे हैंहमारे जीवन मूल्य लगातार गिरते जा रहे हैंकिसी को परवाह ही नहीं है कि नैतिकता भी कोई चीज हैएक छलाँग लगा कर सबसे ऊपर पहुँचने की चाह , बिना मेहनत सारी सुख -सुविधाएँ पा लेने के जुगाड़ और इस सब में नैतिक मूल्य किनारे रख दिए जाते हैंआदमी ये भूल गया है कि जो दूसरों को दे रहा है वही पलट कर , शायद दुगना हो कर उसके पास वापिस आना हैआदर देंगे तो आदर पायेंगे झूठ-फरेब देंगे तो वही पायेंगेफिर इस झूठ के सँसार में मन बोझ से लदा तनाव तनाव चिल्लाता हैजो ऊर्जा जोड़-तोड़ करने में लगाई वो अगर सृजन में लगाते तो कहाँ पहुँचतेजितना होशियार दिमाग हो उतनी ही तीव्र गति से प्रगति कर सकता हैजितना ज्यादा अपवित्र , अनैतिक , झूठ से भरे होंगे उतना ही ऊर्जा रहित होते जायेंगेपरिस्थितियों का सामना कर सकेंगेछोटी छोटी बात पर गुस्से , क्षोभ और दुःख से असंतुलित हो कर तीव्र प्रतिक्रियाएँ देंगे



हम अपने बच्चों को क्या देंगे अगर हम ही प्राण-शक्ति में कमजोर हैंअपने बच्चों को विरासत में प्राण-शक्ति संरक्षित करने का तोहफा दीजियेकोई भी बच्चा बड़े बड़े व्याख्यान या पाठ सुनना नहीं चाहेगा , हम खुद भी कहाँ सुनते हैं ; हाँ तगड़ी ठोकर लगे तो सीधे रास्ते पर चल कर सब कुछ करने को तैय्यार हो जाते हैंअपने आचरण और व्यवहार से अपने बच्चों के शिक्षक या रोल-मॉडल बनिएकहने की जरुरत नहीं है , आपकी प्रतिक्रियाएँ चाहते हुए भी जाने कब बच्चों में उतर आती हैंआप हर वक्त अपने बच्चों के साथ साया बन कर नहीं चल सकते , उन्हें अपने क़दमों चल कर ये दुनिया देखनी हैंअगर एक मजबूत बचपन उन्हें दिया जाए तो समझो कि उनकी नींव मजबूत हैआंधी पानी तूफ़ान वो हौसले से जीत लेंगेजमीन जायदाद बनाते बनाते असली धन को नजर अंदाज़ करेंप्राण-शक्ति है तो सब सार्थक है वर्ना क्या करेंगे जो भोक्ता ही तड़प रहा हो



आज छोटे छोटे बच्चों की भी तीव्र प्रतिक्रियाएँ देखने सुनने में रही हैंजिसका सारा श्रेय हमारे सभ्य समाज को जाता हैजब हम ही अपने जीवन का मूल्य नहीं समझते तो नई पीढी के सामने क्या उदाहरण छोड़ेंगे । सारी उम्र एक कंधा तलाशते रहते हैं जिस पर सर रख कर सुकून पाने की ख्वाहिश रखते हैं ; पर खुद किसी के लिये भी कभी ऐसा कन्धा नहीं बन पातेक्योंकि जो खोज रहा है वो अधूरा है , तो सभी खोज रहे हैं , सभी अपनी क्षमताओं से अनभिज्ञ । भौतिक जगत में इतने उलझे हैं कि हर छोटी बात पर अहम् सर उठा लेता है झगड़ा होते देर लगती है ही सब्र का बाँध टूटते देर लगती हैतीव्र प्रतिक्रिया फल-स्वरूप दिल-दिमाग का कांच भरभरा कर ढह जाता है । जैसे कोई भूत सवार हो कर सब तहस-नहस कर गया हो , फिर हाथ कुछ नहीं आतालाख चाहें , कई बार उस हानि की भरपाई नहीं हो पाती । दुनिया की सारी पढाई व्यवहारिक और अध्यात्मिक ज्ञान के सामने गौण है , क्योंकि अगर आप दूसरों की परवाह नहीं करते तो किसी मजबूरी वश भले ही कोई आपको सहन कर ले , वरना उसके दिल से ...नजर से उतरते कुछ मिनट भी नहीं लगते . .. .



हम जो यूँ ही चले जा रहे हैं ढेरों सामान इक्कट्ठा करते हुए , भौतिक जगत का भी और मन प्राण पर दुःख क्षोभ की जटिल गुत्थियों का भी ; साथ तो एक सुई भी नहीं जायेगी ; हाँ ये मन प्राण के सारे बोझ हमारे साथ जरुर जायेंगे । कई बार हम कहते हैं कि छोटे छोटे बच्चे क्यों अवसाद ग्रस्त हो जाते हैंये आत्माएं तो पिछले जन्मों से ही ऊर्जा रहित हो कर आई हैंकभी न कभी ये ख्याल जरुर उठता है कि हमारा जन्म किस कारण हुआ है और हम किस दौड़ में शामिल हैंशुद्ध विचार , नैतिकता का पालन ही जीवन को सही दिशा , सही गति और सही उद्देश्य दे सकता है । हमें मन वचन और कर्म से सदा सच्चे रहना चाहिए , भले ही कोई हमें जाने या न जाने , ये संतुलन हमारी दुनियावी प्रगति में भी सहायक होगा ।



मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा , पूजा जप-तप कर्म काण्ड से थोड़ी देर तक आस्था का दिया जगमगा जरुर सकता है मगर स्थाई शांति , स्थाई ख़ुशी वहां भी नहीं मिलेगी । हर धर्म हमें मानवता ही सिखाना चाहता है मगर हम ही बाहरी ताने-बाने में उलझ कर रह जाते हैं और असली तत्व नजर से ओझल हो जाता है ।



मन का प्याला तो सदा रहेगा प्यासा
इसलिए तू सदा बस छलक ही छलक

प्यासे रहने से होता है अधूरेपन का अहसास
भरा ही तो छलकता है ये खुद ही परख

बाँटता ही जो रहता है चारों तरफ
वो खुद ही उगा लेता है प्यार का इक चमन

तली में हो जो छेद मन की गागर के
पा कर भी नहीं भरता फिर कैसा अमन

जो बोता है बीज सब्र के मन की धरती में
वही काटे फसल तू छलक ही छलक

बुधवार, 10 अगस्त 2011

पहाड़ में मॉस हिस्टीरिया



जो मन चाहे तो जर्रे को खुदा कर ले , जो मन चाहे तो भ्रम को भूत बना डाले । और भूत की कोई शक्ल नहीं होती , जितना रो ये उतना ही हावी होता जाता है । पहाड़ी स्थलों में आजकल स्कूलों में बहुत सारे बच्चे अजीब अजीब सी हरकतें करते हुए , चीख कर बेहोश होते हुए , अनर्गल प्रलाप करते हुए पाए गए । किसी एक को ऐसा करते हुए देख कर थोड़े और बच्चे भी वैसा ही करने लगे । अभिभावकों और शिक्षकों की चिंता स्वाभाविक है । डॉक्टरों और झाड़-फूँक करने वालों को बुलवाया गया । डाक्टरों ने इसे मॉस हिस्टीरिया नाम दिया । कुछ शिक्षकों व् अभिभावकों ने माना कि बच्चे तनाव में थे ।
ज़रा ध्यान दें कि ऐसा हर साल नए सत्र की शुरुवाद में ही क्यों होता है और पहाड़ में ही क्यों होता है । बच्चे जब लम्बी छुट्टियों के बाद स्कूल जाना शुरू करते हैं तो कुछ तो पढाई का तनाव , कुछ छुट्टियों की मौज-मस्ती खत्म होने का अवसाद और सबसे बड़ा कारण पहाड़ में फैले हुए अन्धविश्वासों पर आँख मूँद कर विशवास कर लेने का है । पहाड़ों में रतजगा करके , जागर लगा कर , ढोल बजाते और गाते हुए देवता बुलाने का रिवाज है । जिसके सामने लोग अपनी अपनी समस्याएं रखते हैं । इसमें कितनी सच्चाई है ये तो पता नहीं मगर इलाज करते हुए आस्था और विश्वास से कई लोग खुद को चंगा होते हुए महसूस करते हैं , इसका उल्टा भी हो सकता है ...जब किसी व्यक्ति को किसी भूत-प्रेत का साया बता दिया जाए या किसी का टोना टोटका बता दिया जाए तो उसका वहम किसी सीमा तक भी जा सकता है । भूत प्रेत अगर आत्मा होते हैं तो उन्हें शरीर धारी कैसे देख सकते हैं ?




कुछ लोगों ने जोर दे कर कहा कि भूत प्रेत होते हैं और कभी कभी जिसकी बर्बादी पर आ जाएँ सारा तहस नहस कर डालते हैं । विद्या कला संगम ग्रुप की अध्यक्षा बच्चों को लेकर प्रोग्राम करने चाँपी ओखल कांडा गईं । चाँपी से ये लोग ओखल कांडा पहुंचे , यहाँ पहुँच कर एक लड़की कुछ ज्यादा चीखने लगी ...उसके साथ साथ दो और लड़कियां एब्नोर्मल सा व्यवहार करने लगीं । हालत बेकाबू होते देख कर डॉक्टर को बुलवाया गया , डॉक्टर ने शारीरिक तौर पर उन्हें स्वस्थ्य बताया । अब इतनी छोटी और पिछड़ी जगह ...लोगों ने भूत उतारने वाले को बुलवाया और कहा कि चाँपी में जिस स्कूल में आप रुके थे वो तो है ही अंग्रेजों के कब्रिस्तान के ऊपर ...वहाँ तो आए दिन बच्चों के साथ ऐसा होता रहता है । अब उस ओझा ने आकर जो कुछ भी किया उस का सार ये है कि एक आत्मा इसके ऊपर आई है क्योंकि ये सज धज कर दो अन्य लड़कियों के साथ गधेरे में घूमने गई थी । मुर्गे की बलि व् कुछ अन्य सामान चढ़ा कर मुक्ति मिलेगी । खैर राम राम करते हुए अपना आगे का दौरा कैंसल करते हुए ये लोग वापिस लौट आये ।




यहाँ हमें कुछ और संभावनाओं पर गौर कर लेना चाहिए । एक सम्भावना ये कि हो सकता है कि इन लड़कियों ने गधेरे में घूमते वक्त लोगों से ये सुन लिया होगा कि ये स्कूल कब्रिस्तान के ऊपर बना है या ये कि आत्माएं यहाँ पढने वाले बच्चों के ऊपर आतीं हैं । हमारा अपना मन किसी भूत से कम नहीं है ; ज़रा सा भी ऐसा वहम हल्की सी आहट को भी भूत समझ लेता है । दूसरी सम्भावना ये है कि इस के साथ साथ ओझा हिप्नोटिज्म जानता हो , आपके मन की बात के साथ साथ कहानी गढ़ कर कहलवा ले । मनोविज्ञान के पास हैल्यूसिनेशन के कितने ही किस्से मौजूद हैं । उम्र दराज लोग काले इल्म के बारे में भी बहुत कुछ बताते हैं ।




सँगीत ऐसी शय है जिसमें मन प्राण झूमने लगते हैं । एक पूजा में मैंने पहली बार कीर्तन आरती के वक्त चार औरतों को झूमते हुए देखा , बाकी औरतों ने झुक झुक कर आशीर्वाद लेना शुरू किया और अपनी समस्याएं कहीं । वो उत्तर भी दे रहीं थीं । जो दो औरतें पास पास थीं , उनमें से एक ने दूसरी से कहा ' तू नाटक मत कर तू देवी नहीं है ' , उसके गुस्से से ये औरत सहम गई और माफी मांगने लगी ...अब इसे क्या कहें ? अगर किसी की भावनाएं आहत होती हों तो मुझे माफ़ करें , मेरा उद्देश्य आँखें खुलवाने का है । जब भी लोग ज्योतिषियों , ओझाओं , झाड़-फूँक वालों के पास जाते हैं ...ज़रा ध्यान से देखें ...वो तरह तरह की बातें करके आपकी दुखती रगें छेड़ कर आपकी समस्या आपके ही मुंह से उगलवाते हैं ; तरह तरह की पूजाओं के बहाने आपकी जेब ही खाली करवाना चाहते हैं । उनका तो ये व्यवसाय है और आप नाहक अपनी भावनाओं से खिलवाड़ कर अपना वक्त और ऊर्जा गँवा रहे हैं ।
खुदा सबसे बड़ा है , जब उसका प्रकाश हमारे अन्दर है , तो कोई नकारत्मक ऊर्जा हम पर असर नहीं कर सकती , न किसी दूसरे आदमी की नकारात्मकता और न ही कोई अदृश्य शक्ति ...मैं आप परमानन्द मैनूं ब्रह्म गवंदा ...यानि मैं खुद परम आनंद हूँ , मेरी महिमा ब्रह्म भी गाता है ....सिर्फ अहसास करने भर की देरी है ।




धार्मिक होने की जगह अध्यात्मिक बनें ...हर धर्म वैसे भी यही सिखाता है ...ठोकरें तो हमारे कर्मों के परिणाम स्वरूप हैं या फिर हमें सिखाने के लिए हैं । जहाँ ऐसा विश्वास आने लगता है ,आदमी विवेक से काम लेने लगता है , डर भागने लगता है , डर है ही विश्वास का अभाव । आध्यात्मिकता एक हद तक निडरता लाती है ।
जब तक अभिभावक खुद मजबूत नहीं होंगे , बच्चों के कोमल मन को उनके ही अंतर्मन का आधार नहीं दे सकेंगे । संवेदनाओं को सही दिशा देनी चाहिए । बच्चों को प्रेरणा दायक , सृजनात्मक कार्यों में संलग्न रखना चाहिए ; क्योंकि मन को लुढकने में देर ही नहीं लगती चढ़ाई पर ऊपर लाने में कठिन प्रयत्न करना पड़ता है । हमारे विचार ही हमारी दुनिया रचते हैं । कभी तो इंसान ठोकर से भी प्रेरणा ले लेता है और कभी छोटी सी बात से भी मन गिरा कर बैठ जाता है . ये मन की ही महिमा है जो इंसान को सफलता के उच्चतम शिखर पर ले जा सकती है । सबसे बड़ी बात ...बाहरी उन्नति किस काम की , जो अन्दर दिल ही बैठा जा रहा हो ।

रविवार, 10 जुलाई 2011

कुछ संवारा या बिगाड़ा ?

अभी चार दिन पहले तो प्रेजेंटेशन दिया था सारे ट्रेनरज के सामने , और अचानक ये खबर ; कल रात खुद ही इहलीला समाप्त कर ली । कौन जाने उसके मन में क्या क्या चल रहा था , कितना तन्हा था वो । अगरचे मन ही अगुआ है हमारी प्रवृत्तियों का । बहुत आसान है नीचे लुढकना ...मन को जो मालिक बनाया , तो ये अपना काम कर दिखायेगा । बैठा है कोई अपने अन्दर ही ...अपना ही दुश्मन सरीखा ।
किसे दोष दें , उसके ग्रह नक्षत्रों को , उसे या उसके अपनों सहित सारे समाज को । दोष देने से काम नहीं चलता । जब दहाड़ें मार कर रोयेगी उसकी माँ ...क्या बीतेगी उस पर ...किसने देखा , जब गाहे-बगाहे ज्वार उठेंगे उसके सीने में , जिसका इकलौता चिराग था वो । न जाने उस से जुड़े हुए कितने ही लोगों के सीने में तूफ़ान उठेंगे ।
क्या होता है अकेलापन ! खुद ही इक कैद बना कर बैठे होते हैं हम । और ये इक दिन का नतीजा नहीं होता ...धीरे धीरे हम दुनिया से कटते जाते हैं । मन ने न जाने कितना निराशाजनक उठा लिया होता है । हमें पता ही नहीं चलता कि हम किस कोप भवन में जा कर बैठ गए हैं । ऐसा इसलिए भी होता है कि हम अपनी ही ऊर्जा से परिचित नहीं होते , जैसे बैटरी डिस्चार्ज हो जाती है तो प्रकाश खत्म । जबकि हम हैं ही एक प्रकाश , शरीर तो ओढ़नी की तरह मिला है । परिस्थितियां महज एक रास्ता ..एक स्टेज । और हम अपनी आंतरिक ख़ूबसूरती , अपनी क्षमताओं से अनजान होते हैं । जरा उठ कर जिन्दगी का स्वागत कर लें ।
क्या होता है धोखा वोखा ? एक मुसाफिर खाना है ये दुनिया ...सफ़र में संगी-साथी बहुत हैं मिलते ...साथ है चार दिन का ...लेना देना उतना ही बदा था ...मन पे शिकन क्यूं डाल के बैठें । जिन्दगी का पलड़ा हमेशा भारी होना चाहिए ...हालातों से , संघर्षों से , तेरे मन के अंतर्द्वंदों से ।
मन परिस्थितियों में उलझ कर कितना बड़ा नुक्सान कर बैठता है ; जबकि न वक्त ने ठहरना होता है और न परिस्थितियों ने । मन की कमांड अपने हाथ में होनी चाहिए । ये सिर्फ तब होगी जब हम नादानियाँ छोड़ कर सबकी ख़ुशी में अपनी ख़ुशी पायें ...उसका उतना ही भला चाहें जितना अपना चाहते हैं ।
आशा और उमंग ही वो चीज है जो क़दमों में दम भरती है । जो अँधेरा हमने अपने चारों तरफ बुन लिया होता है , वो होता ही प्रकाश का अभाव है । कोई क्षीण सी आशा भी अंधियारे को काट देती है , आँखें साफ़ साफ़ देखने लगतीं हैं । गुजरा हुआ तकलीफ का वक्त भी प्राण शक्ति को मजबूत करके जाता है । मगर उस वक्त को पार तो खुद के बल पर करना पड़ता है । वो कभी जीवन का अंत नहीं हो सकता , और न होना चाहिए । वो तो इक नई शुरुवाद है ..हौसले की , उमंग के अनवरत प्रयास की और अपनी क्षमताओं को पहचान पाने की । हर दिन ये देखना चाहिए कि आज के पन्ने पर हमारे लिए किस्मत ने क्या क्या लिखा है और हमने अपनी तरफ से क्या क्या लिखा ....कुछ संवारा या बिगाड़ा ?
जब हम जीने लगते हैं , सिर्फ अपने लिए
अपने सुख दुःख ही रखते हैं मायने
संकुचित होने लगते हैं दायरे
सड़ांध उट्ठेगी अभी
धुआं धुंआ जमीर से
बहुत आसान है नीचे लुढकना
मन को जो मालिक बनाया
तो ये अपना काम कर दिखायेगा
बैठा है कोई अपने अन्दर ही
अपना ही दुश्मन सरीखा
फूल होने चाहियें खिले
खुशबू-ऐ-आम होनी चाहिए
उठ ज़रा मशाल ले
पहले ही संभाल ले
कीमती है जिन्दगी
इक नई उड़ान ले ...

शुक्रवार, 17 जून 2011

क़दमों तले दुनिया सारी


५-जून-११
छोटी बेटी के बेंगलोर जाने का दिन आ गया । घर से निकलते ही वो नम आँखों से इधर-उधर देख रही थी । भाई का अगले दिन इम्तिहान था , इसलिए एयरपोर्ट तक छोड़ने न आ सका , गाड़ी तक आया और एक दम पलट कर चला गया , जैसे आँखें मन की चुगली कर देंगीं ..इस बात से बच रहा हो । रास्ते में मैंने कहा , आज ये दूसरी चिड़िया भी पहली बार उड़ने जा रही है । बड़ी बेटी ने कहा ' और वो आपका चिड़ा ! , वो तो पंख उगने से पहले ही उड़ गया है , प्रीमैच्योर बेबी है न ' ( उसका इशारा बेटे की तरफ था , जो आधा सी.ए.आधा बी .कोंम.करके ही , इन्डसट्रिअल ट्रेनिंग में मुम्बई में अच्छी खासी सैलरी ले रहा है )। हम सब हँस पड़े । माहौल को हल्का करने की कोशिश जैसी लग रही थी ।
छोटी बेटी ने सुबह से कुछ खाया न था । चाकलेट मिल्क भी लिया तो दो घूँट भर कर रख दिया , कहा कि मन नहीं है । एयरपोर्ट पर उसके बोर्डिंग पास लेने तक ग्लास के पार से हम देखते खड़े रहे । जब मोबाइल पर अलविदा कहने लगे तो बेटी ने मुँह दूसरी तरफ कर के बात की , जैसे छलछलाती हुई आँखों को छिपा रही हो । सबकी जिन्दगी में ये दिन जरुर आता है , जब छात्र जीवन को , माँ-बाप के साथ को और न जाने कितनी यादों को अलविदा कहनी पड़ती है । ये जंक्शन कभी बड़ा सुहाना लगता है , फिर भी डर सा लगता है । ये भी लगता है कि हम क्यों बड़े हो गए ।


एक बार फिर जा रही हो , दूर तुम अपनों के साथ से
तन्हा चलना नहीं जिन्दगी का नाम
सितारे हिलने लगे
किस्मत के नज़ारे मिलने लगे
मिलती है जिन्दगी अपनी शर्तों पर
नर्म पड़ने लगा है खुदा , इशारे मिलने लगे


वो कुवैत की लड़की सा धूप में , स्टोल से चेहरे गर्दन को लपेटे तुम
प्यूमा की चप्पलें पहन हवाई उड़ान को तैयार तुम
नन्ही चिड़िया कब बड़ी हो गई
बाहें फैलाए हुए , बुलाते हुए आसमान लगे



वो मैंगो-शेक की दुकान पर मुझे ले जातीं हुईं तुम
 
वो बैग-पैक लिये मुझे घर की खरीद-दारी करातीं हुईं तुम
भाई से गुप-चुप बातें करतीं हुईं तुम
अपनी दीदी के लिये फ़्लैट ढूँढतीं हुईं तुम
और दीदी का नेट पर तुम्हारे लिये परदेस में आसरा तलाशना
किस किस को करें याद

याद आयेंगे जब जब गुजरे लम्हे
आँखें हो जायेंगी नम
मेरी बिटिया , गम नहीं करना
होता है सबके साथ यही
ये तो जंक्शन है नए पुराने का
वो खजाना है तुम्हारी यादों का
और ये है आगे चलने की डगर

घर लौटी तो याद आया
कान दर्द करते हैं तुम्हारे हवाई उड़ानों में
तय करने होंगे अब ऊंचाई के सफ़र ,
आगे है तुम्हारा सुनहरा भविष्य

और क़दमों तले दुनिया सारी
सजदे में खड़ी हैं दुनिया की न्यामतें
बारिश हो तुम पर मेहरबानियों की
रौशनी ही रौशनी से भरा ये जहान लगे 

तुम्हे अपने दम पर

रविवार, 12 जून 2011

खुला आसमान चाहिए



पन्द्रह मई २०११


एक मुट्ठी में गोटियों को शफल करके डिस्पर्स कर देगा खुदा ...यानि ये पच्चीस तीस दिन मिले हैं हमें न्यामत से , हम सब साथ हैं । बड़ी बेटी ने कहा कि हम सबको एक साथ जैसे मुट्ठी में ले कर बस अब डिस्पर्स कर देगा ऊपर वाला । एक बैंगलोर , एक मुम्बई , एक दिल्ली और हम नैनीताल में ...छोटी बेटी ऍम.ए.इकोनोमिक्स के एग्जाम दे चुकी है , बेंगलोर पहली पोस्टिंग मिली है , इस बीच एक महीने की छुट्टियाँ हैं ..बेटा भी मुम्बई से इन्डसट्रिअल ट्रेनिंग के दौरान बी कॉम ऑनर्स के इम्तिहान देने दिल्ली आया हुआ हैमेरे पति भी एक महीने के लिये डेप्युटेशन पर दिल्ली में हैं ...इस तरह हम सब इक्कठे हुए और अलग होंगे तो दिल्ली में बड़ी बेटी अकेली रह जायेगीपहले दिन ही उसने इस मिलन से परे होकर कुछ सूँघ लिया हैमुझे मालूम है , इक दिन उसे भी लेखनी चलानी है ...वरना वो इस गन्ध को शब्द दे पाती

मेरे बच्चों , संजों लें ये यादें
इक दिन ये उग आयेंगी
मन की मिट्टी में नज्मों की तरह
मुझे मालूम है , खुदा इक हाथ से लेता है तो
दूसरी मुट्ठी में न्यामत सी कोई रख देता है
आगे चलने को बहाने चाहियें
उम्मीद पे दुनिया कायम है
हम भी कोई अपवाद नहीं हैं
कोई सूरज है , कोई तारा है
आसमाँ पे चमका अपना भी सितारा है
मेरे घर के जुगनू बड़े हो गए हैं
इनकी रौशनी से आँखें चौंधियाने लगी हैं
मेरे घर का आँगन छोटा पड़ गया है
इन्हें अब खुला आसमान चाहिए

खुला आसमान चाहिए

रविवार, 10 अप्रैल 2011

शब्द के हाथ न पाँव रे


सँसार ये कहता है कि जो आज दोस्त है वो कल दुश्मन भी हो सकता है , इसलिए भरोसा मत रखो ; और अध्यात्म ये कहता है कि जो आज दुश्मन है वो कल दोस्त भी हो सकता है , इसलिए भरोसा रखो , ईश्वर पर भी और इस बात पर भी कि आदमी के मन को बदलने में देर नहीं लगती । ऐसा न हो कि कल जब वो दोस्ती का हाथ बढ़ाये तो हमें बगलें झाँकनी पड़ें । अध्यात्म के हिसाब से तो कोई दुश्मन है ही नहीं , जब तक एक भी लकीर मन पर रहेगी , न परमात्मा के दर्शन होंगे न ही चित्त शान्त रह सकेगा ।
तो हम ऐसी फसलें क्यों बोयें जो काटते वक्त विष स्वरूप हों , और हमें खुद पर शर्म आये । किसी ने सच ही कहा है ...
एक शब्द मरहम बने
एक शब्द करे घाव रे
शब्द के हाथ न पाँव रे
मन में पैदा हुए भावों की अभिव्यक्ति फलस्वरूप शब्द तो जुबान से निकलते हैं । यानि अपने भावों को ही सही दिशा देना सीख लिया जाए । न्याय की सृष्टि में मेरे साथ जो हो रहा है , सब ठीक है । भरोसा मन की खुराक है , बेशक आदमी की जुबान पर मिलता है , यानि आदमी की जुबान करोड़ों की है ...सुकून देने वाली ...अभिव्यक्ति का माध्यम । प्रेम की ताकत सबसे बड़ी ताकत है , जिसके सामने तलवारें भी झुक जातीं हैं । इस ताकत के सामने इंसान तो क्या खुदा को भी झुकना पड़ता है ।

यहाँ मैं खुदा से मुखातिब हूँ ....
इतना ठोका , खोल अलग कर दिया गिरी से
मालिक तुझको हर ठोकर पे सलाम

देख सकें हम तेरी माया और कर्मों का लेखा-जोखा
काँटों में भी फूल खिलाएँ , तेरे हर मन्जर को सलाम

बैठे थे जिस डाल पे हम
काट रहे थे उसी डाल को , लेकर तेरा तेरा नाम

हर दिल में तेरा डेरा है , स्याही तो सब तेरी है
कलम चलाता है इन्सां , लेकर अपना अपना नाम

हाथ सधे हैं चोट भी सँभली
भर जायेंगी सारी दरारें , मरहम है तेरे हाथों में तमाम

बुधवार, 23 मार्च 2011

विष्वास कहाँ खो आए



पहले ' ज़र , जोरू और जमीन ' इन तीनों को गुनाह के लिये जिम्मेदार ठहराया जाता था । मगर आज आन और शान और जुड़ गए हैं इन कारणों में । ज़र यानि धन , जोरू यानि पत्नी और जमीन यानि जायदाद ; अवैध सम्बंधों और इश्क को पत्नी से सम्बंधित कारणों में गिना जाएगा । कितने शातिराना ढंग से गुनाह को अन्जाम दिया जाता है । मुझे याद आ रहा है जब एक लड़की गाँव से दूर रेलवे स्टेशन छोड़ने आए अपने माता पिता के सामने तो ट्रेन में बैठ कर चली गई । मगर जब वो रात में ही गाँव वापिस जा रहे थे , अपने प्रेमी के साथ वापिस आई , रास्ते में ही उन्हें मार डाला और एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की । दूसरे या तीसरे स्टेशन पर जहाँ गाड़ी ज्यादा देर रूकती थी , मोटर साइकिल से अपने प्रेमी के साथ जाकर उसी ट्रेन में बैठ कर चली गई , अगली सुबह हॉस्टल पहुँच गई । कितनी भी होशियारी बरती जाए , गुनाह एक न एक निशान जरुर छोड़ता है ।
इसी तरह उत्तर प्रदेश का ही कोई क़स्बा था जहाँ शबनम नाम की लड़की रात को अपने परिवार के आठ
या नौ लोगों को रात के खाने में कुछ नशा खिला कर छत पर सोने चली गईआधी रात में छत से नीचे उतर कर आई , वो एक एक की गर्दन पर टॉर्च दिखाती थी और उसका प्रेमी एक एक का गला रेतता थामरने वालों में शबनम का छोटा भांजा भी थाटेलीविजन पर बताया गया था कि पहले तो उस पर शक नहीं गया था मगर जब कॉल डिटेल खंगाली गई तो छत्तीस कॉल्स प्रेमी को उन दो चार दिनों में की गईं थींसारा राज खुल गयाइश्क और मुश्क क्या छिपाए से छिपे ? इश्क आँखों से सारे राज खोल देता है और क़त्ल तो सौ पर्दों से भी बाहर आता हैकातिल कोई कोई भूल कर बैठता है , सालों बाद भी निशान बोल उठते हैंजिस इश्क के लिये इतने गुनाह किये वो तो क्षणिक उन्माद भर हैआँखों पर पड़ा पर्दा ये भुला देता है कि वो बचपन जिसे उम्र से अलग नहीं किया जा सकता , वो कैसे पीछा छोड़ेगावो माँ बाप , वो रिश्ते नाते जिनकी गोद में खेले , उन अपनों के बिना जिन्दगी की खुशियाँ बेमायने हैंअतीत कभी काट कर अलग नहीं किया जा सकता


आन और शान के लिये जान लेने वाले , समाज में (संकुचित सोच वाले ) खुद को हीरो समझ लेते हैं , ये झूठी शान हुईजब बच्चे बड़े हो रहे थे तो बड़े उनके साथी हमराज नहीं बन पातेबच्चों की कच्ची उम्र में विपरीत सैक्स के प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण होता है , इसे समझ कर जब उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया जाए , दबाया जाए तो वो खुद ही सही रास्ता पकड़ेंगे


मुहब्बत को तो इबादत से जोड़ा जाता है , क्योंकि इसमें दूसरा अपने से अलग नहीं नजर आताबस उसका मतलब गलत उठाया जाएमुहब्बत अगर गुनाह है तो क्या क़त्ल करना उस से भी बड़ा गुनाह नहीं हैखून सने हाथों से लोग सोते कैसे हैं ?


डॉक्टर तलवार और उनकी पत्नी पर ये इल्जाम है कि उन्हों ने अपनी बेटी के क़त्ल के साक्ष्यों को मिटायाइस से सीधा सीधा इल्जाम उन पर ही लगता हैहाँ ये सवाल भी उठता है कि क्यों उनकी आँखों में वो तड़प नजर नहीं आती जो जानना चाहे कि उनकी बेटी का कातिल कौन है जाने कौन सा कारण निकल कर आए इस डबल मर्डर की मिस्ट्री का


इतनी बेरहमी की फसलें बो
कि तेरे चलने को पगडण्डी भी न बचे
तेरे सीने की गुपचुप , चौराहे पर नीलाम हो जाए
तू चला है किसको मजा चखाने , कि अपनी दुनिया ही उजाड़ हो जाए
उसने अपना न समझा , तो क्या तुम खुद को समझा पाए ?
अपना-पराया मिटा , पराई दुनिया में पहुँचा आए
साजिश बुनने में तू माहिर है , किस्मत की साजिश न पहचान पाये
अपने ही अतीत के हिस्से थे , खन्जर से जिनको अलग कर आए
न्यामतें संभालीं न गईं , ये क्या अन्जाम दे आए
ये क्या लिख डाला जिन्दा मुर्दा रूहों पर ,
रिश्ते जख्मीं हैं , विष्वास कहाँ खो आए