रविवार, 25 जुलाई 2010

ख्वाहिशों की ख्वाहिश


चलो आज अनर्गल अलाप करते हैं ...ब्लोगवाणी तो अटक गई ख्वाहिशें ब्लॉग की राम रावण पोस्ट पर ...राम रावण तो सबकी नस-नस में फैले हैं ...हम कितने प्रतिशत राम हैं और कितने प्रतिशत रावण ...ये खुद ही तय कर लें ..अपनी ख्वाहिशों के दम परबात ख्वाहिशों की चली तो हर ख्वाहिश पे दम निकले , बहुत निकले मेरे अरमाँ , लेकिन फिर भी कम निकले

आदमी की तुलना केकड़े से की जाती है , कहते हैं केकड़ों को किसी खुले बर्तन में भी डाल दें तो वो उससे बाहर निकल ही नहीं पाते , क्योंकि जो भी केकड़ा ऊपर उठने की कोशिश करता है ..बाकि सारे केकड़े उसकी टाँग पकड़ कर नीचे खींच लेते हैंतो क्या आदमी भी यही काम करता है ? खुद ऊपर उठ पाए या उठ पाए दूसरे को ऊपर नहीं उठने देताइतने खुशनसीब हम भी नहीं रहे कि किसी ने कोई सीढ़ी चढ़ने दी होघबरा कर ख्वाहिशों ने ही मुँह फेर लियाजानती हूँ ये जिन्दगी से पलायन होता है , मगर आज यही मेरी ताकत हैमैं ये बाट नहीं जोहती कि कोई मुझे मौका दे , यहाँ तक कि टिप्पणी की राह भी नहीं देखती , आने वाले का स्वागत है , कोई दो शब्द भी लिखे तो मन से लिखेइसी लिए ब्लॉग विजिट का गैजेट भी नहीं लगाया , उन दीवारों को कान क्यों लगाऊँ जो मुझे हिला कर जा सकतीं हैंहाँ , ये दुआ हमेशा करती हूँ कि अगर मैं किसी के काम पाऊँ तो ये मेरी खुशनसीबी हो

रचनाकार बहुत संवेदन-शील होता है , वो अपनी परिस्थितियाँ क्या दूसरे की परिस्थितियाँ भी जी लेता है , पर उसका लेखन तो उसके अपने व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता हैहम किसी को बिना मिले उसके लेखन से उसके जीवन के प्रति दृष्टिकोण के बारे में बहुत हद तक सटीक घोषणा कर सकते हैंजैसे ही व्यक्ति विशेष की सोच बदलती है वैसे ही उसकी रचनाएं बदल जाती हैं

दूसरों को पढ़ते पढ़ते खुद किताब हो गया हूँ मैं
मसला कोई भी हो बेहिसाब हो गया हूँ मैं

किसी को बात ने मारा किसी को रात ने मारा
गमे रात का चिराग बन कर सुरखाब हो गया हूँ मैं

गुजरा तो उसके साथ है शोर में जला हूँ मैं
खुद अपने लिए जाने क्यूँ अजाब हो गया हूँ मैं

ताकत भी है कमजोरी और चाहत भी है वही
परत-दर-परत खुलते खुलते , बेनकाब हो गया हूँ मैं

जिन्दगी तेरा देना , तेरा लेना
दिखा दिखा के कभी छुपा लेना
न मैं चूहा , न तू बिल्ली
तेरी आँख मिचौली है ये कैसी !

तूने लिक्खी होगी हार हमारी किस्मत में ,
जब मिलेंगे तुझसे तो पूछेंगे , है ये किस चिड़िया का नाम ।
तैरने की ख्वाहिश नहीं आसान समँदर में ,
ख्वाहिशों की ख्वाहिश है क्या जिन्दगी का नाम ....