मंगलवार, 5 मई 2009

हम आकर्षित क्यों होते हैं

हमारे सम्पर्क में आने वाले लोगों की बाहय खूबसूरती , व्यवहार की कोई बात या आचरण का कोई भाव हमें उनकी तरफ खींचता है | बाहरी खूबसूरती हमें सिर्फ तब तक बाँधती है , जब तक कि अन्तर्मन में भी खूबसूरती का भाव हो , व्यवहार का तालमेल बिगड़ते ही वही खूबसूरती सहन करना तक मुश्किल हो जाता है | यानि टिकाऊ तो अन्तर्मन की खूबसूरती ही है | और अन्तर्मन की खूबसूरती की थाह पाना आसान नहीं है |

हम जब किसी की तरफ भी आकर्षित होते हैं , आत्मा की खुशबू के कारण होते हैं , असली वजह भूल कर हम बाहरी वजहों को सच समझने लगते हैं , और फिर सिलसिला शुरू होता है कि कैसे उसे अपना बनायें , इस होड़ में कर्तव्य , मर्यादा सब किनारे रख दिए जाते हैं | रूप सम्मान की चीज है , सम्मान दूरी माँगता है | इस दुनिया में कितनी ही चीजें सिलसिलेवार सजीं हैं , हर चीज को अपना तो नहीं बनाया जा सकता | जिसका सम्मान करते हैं , उसी का भला समझते हुए चलना चाहिए | कुछ पंक्तियाँ कभी लिखी थीं -


खड़ा है तू दुनिया की कलाकृतियों के गलिआरे में
देखने की चीज़ है , रंग बड़े चमकीले हैं
दम थोड़ा ज्यादा लगा
सुरूर नीलाम हो
अपने रंगों का सुरूर बनाये रखना


सूरज ,चाँद ,तारे , नदियाँ , मौसम …क्या क्या नहीं बनाया ईश्वर ने हमारे लिए , हम आये हैं मौज करने , इन चीजों पर हक़ नहीं जमा सकते , इसी तरह ईश्वर ने हमारे रिश्ते-नाते भी तय कर रक्खे हैं , उन पर भी तो एक सीमा तक ही हक़ है , अगर कर्तव्य भूल जाते हैं तो अधिकार की बात ही करें तो अच्छा है | सारी कायनात सुन्दर-सुन्दर दृश्यों , लुभावनी आत्माओं से भरी पड़ीं है और हम बाराती की तरह गायें , मौज करें कि बाहरी दृश्यों में उलझ कर अपनी खुशबू भी गँवा बैठें |

कुछ और पंक्तियाँ खुदा के लिए


मेरे पिता का परिवार है कितना बड़ा
किससे है शिकवा और क्यों गिला
गहरा कहीं रिश्ता बड़ा
सँस्कार उसके सुखद हैं
रास्ता है ये लंबा बड़ा