शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

अण्डमान , एक यादगार यात्रा

आठ साल पहले अन्डमान से वापिसी पर ये जरुर सोचा था कि जगह बड़ी सुन्दर है , हो सका तो कभी दुबारा यहाँ आयेंगे । मगर इतनी जल्दी आयेंगे , ये मालूम न था । हमारी व् बच्चों की छुट्टियाँ स्वीकृत हो चुकीं थीं , लक्ष-दीप जाने की योजना थी , एजेंट ने कहा सरकार और रिसौर्ट मालिकों के बीच एग्रीमेंट के झगड़े की वजह से अगाति की बुकिंग नहीं मिल पा रही , जैसे ही दिसंबर में कोर्ट का फैसला आएगा , बुकिंग कर ली जायेगी । हमारी छुट्टियाँ शुरू होने के दस दिन पहले एजेंट ने कहा कि इन तारीखों की टिकटें नहीं मिल सकतीं । अब सोचा कि चलो किसी और जगह घूम आया जाए । बच्चे साउथ में जाने के लिये बिल्कुल तैय्यार न थे । साउथ , गोवा , मुम्बई , कोलकाता , राजस्थान आदि जगहों के देशाटन का लुत्फ़ हम पहले ही उठा चुके थे । हिमालय दर्शन के बारे में सर्दियों में सोचा भी नहीं जा सकता । रह गया गुजरात , तो बच्चों को मंदिरों के दर्शन में कोई दिलचस्पी नहीं होती , ध्यान आया कि क्यों न अन्डमान ही चलें ; हैवलॉक आयलैंड और जारवा ट्राइब देखने के लिये जंगल की सैर , पिछली बार हमसे छूट गए थे । बच्चों से पूछा , खैर चाही हुई तारीखों की सारी व्यवस्थाएँ हो गईं ।
बेंगलोर से बेटियाँ , मुम्बई से बेटा , नैनीताल से हम लोग , सब चेन्नई में इकट्ठे हुए । इक्कतीस दिसम्बर की सुबह चार बजे पोर्ट ब्लेयर की फ्लाईट थी ।हमारी इकॉनोमी क्लास
की फ़्लाइट्स बहुत इकोनौमिकल हो गईं हैं । अरे ये क्या , फ्लाईट स्टीवर्ड्स तो दुकान ही लगाये खड़े हैं , पैसे ले कर चाय कॉफी नाश्ता पेश करते हैं ।
दुनिया के नक़्शे में भारत के नक़्शे के ठीक नीचे बँगाल की खाड़ी वाले सागर में उतर जाइए , तो करीब ३५८ छोटे छोटे टापू नजर आयेंगे , बस वही अण्डमान निकोबार द्वीपों का समूह है । यहाँ पहुँचने का रास्ता सिर्फ समुद्री व हवाई हो सकता है । चेन्नई व कोलकाता से सीधी उड़ानें हैं । पोर्ट ब्लेयर पर हवाई अड्डा है और यही यहाँ का सबसे ज्यादा क्षेत्रफल वाला व विकसित दीप है । थोड़ा पहाड़ी सा इलाका , ढलवाँ छतों वाले दूर दूर बिखरे से घर , सारे साल गर्म मौसम , ऊँचे ऊँचे नारियल व सुपारी के पेड़ , चारों तरफ समुद्री तट पर चलतीं ठण्डी हवाएँ यहाँ की खासियत है । यहाँ बसने वाले अधिकाँश दक्षिण भारत के व बँगाल के लोग हैं । यूनियन टेरिटरी होने की वजह से यहाँ दारु सस्ती है । खाद्यान्न से ले कर कारों तक सब चीजें समुद्री जहाज़ों में लाद कर यहाँ लाई जाती हैं , इसीलिए महंगी हैं । यहाँ कोई भिखारी नहीं पायेंगे ।
अण्डमान क़ी रफ्तार मुझे उतनी ही लगी जितनी आठ साल पहले लगी थी । अपने मेट्रो सिटीज की रफ्तार जिस अनुपात से बढ़ी है ....यहाँ सब शान्त सा लगा । कार्बाइन कोव बीच पर ' पियर लेस ' होटल , ' वेव 'रेस्टो रेंट आज भी उसी अन्दाज़ में खड़े थे जैसे आठ साल पहले देखे थे । हाँ यातायात के लिये जो सड़क समुद्री तट और इनके मध्य थी , उसे जरुर इनके पीछे की तरफ निकाल दिया गया है । शायद इस बीच सुनामी की वजह से ये सड़क कुछ क्षतिग्रस्त सी हो गई होगी । और हाँ इस बीच पर अब उतनी भीड़ भी नहीं दिखी ।
इस बार के ट्रिप में हमने पहले देखे हुए गाँधी पार्क , एक्वेरियम म्युजियम , एग्रीकल्चरल फ़ार्म , चिड़िया टापू , वाइपर आयलैंड , रॉस आयलैंड , नॉर्थ एंड बीच , चाथम सा मिल ( जो की ब्रिटिश राज्य के वक्त की सबसे बड़ी लकड़ी क़ी फैक्ट्री है व जो पास वाले आयलैंड पर बनी है और एक पुल से पोर्ट ब्लेयर से जुडी है ) और जॉली बाय आयलैंड को छोड़ दिया ।
सेल्युलर जेल का लाईट एंड साउंड शो हमने इस बार भी देखा । जॉली बॉय बीच जैसा बीच तो हम सिर्फ डिस्कवरी चैनल पर ही देख सकते हैं । नीला पानी , सफ़ेद रेत , सफ़ेद कोरल , पिंक , पीच स्टार फिश , पर्पल नीली पीली मछलियाँ , और कुछ भी मडी नहीं ; जैसे किसी और ही दुनिया में आ गए हों । स्नौर्क्लिंग , जिसमें तीस मीटर दूर की चीज भी बहुत करीब दिखती है , यहाँ का असली आकर्षण है । कहते हैं कि छः महीने के लिये जॉली बाय बीच खुलता है और छः महीने के लिये रेड स्किन आयलैंड पर जाना परमिट किया जाता है ।
पहले दिन यानि ३१ दिसंबर , बच्चे पार्टी चाहते थे । हमारे होटल में कोई पार्टी नहीं थी , कुछ और जगह पता किया , वहां सिर्फ वहीँ रुके हुए लोगों के लिये पार्टी थी । एक जगह कुछ म्यूजिकल शो था , , ड्राइवर ने कहा कि यहाँ फैमिली के साथ आना ठीक नहीं रहेगा । इसी शाम हमारे एक मित्र का बेटा हमसे मिलने आया , वो और उसकी पत्नी पोर्ट ब्लेयर में ही एविएशन में ख़ास ओहदों पर हैं । " क्या कर रहे हैं , अँकल हमारे यहाँ इन्फौर्मल पार्टी है , आइयेगा " उसने कहा । बस हमें क्या चाहिए था । बच्चों के मन की मुराद पूरी हो गई , झटपट तैय्यार । बच्चों ने नए साल का आगाज़ पोर्ट ब्लेयर के मिनी बे की पार्टी के डांस फ्लोर पर नाचते हुए किया ।
दूसरे दिन हम लोग कॉनवाय में जँगल में जारवा ट्राइब देखने निकले । तकरीबन दो घंटे जँगल में ड्राइव , हमारे आगे आगे डिगली पुर वाली बस जा रही थी , ढेरों गाड़ियाँ काफिले में ।कहीं कहीं हमें आदिवासी सड़क पर खड़े मिले । ऐसा लगा हम इन्हें देखने आए हैं या ये लोग पिंजरों में घूमते हम लोगों को देखने आए हैं । उनके चेहरों पर कोई भाव नहीं था , हमारी सभ्यता से कोसों दूर , सचमुच ऐसा लगा कि हम आदि मानव के युग में पहुँच गए हैं , उनके लिये हम अजूबा और हमारे लिये वो अजूबा । हम सोच भी नहीं सकते , आज के इतने विकसित युग में अन्डमान के कई द्वीपों पर अब भी मनुष्य उसी आदिम युग में जी रहा है ; जहाँ न भाषा का कोई मतलब है , न हमारे इतने सारे अविष्कारों का ।
एक बच्चा कबूतर मार कर उल्टा लटकाए खड़ा था , कुछ के पास तीर कमान थे , औरतों के पास कुछ खुरदरी सी टोकरियाँ पीठ पर लदी थीं । कुछ पुलिस वाले इन लोगों के बीच आते जाते हैं , जो इनकी भाषा समझते हैं । एक जगह तो दो पुलिस वाले और दो जारवा खड़े थे ,
जैसे पुलिस वाले इन्हें हमें दिखाने के लिये सड़क पर ले आए हों । ये अपनी पारम्परिक वेशभूषा में थे , कमर के गिर्द लाल लटकती कतरनों का बैन्ड निसंदेह वो कपड़े का बना नहीं था । यहाँ खाने पीने की चीजें व् कपड़े देना अब पर्यटकों को मना कर दिया गया है । पहले कुछ लोग कपड़े खाना छोड़ जाते रहे होंगे , इसीलिए कुछ औरतें व बच्चे शौर्ट्स ( निक्करें ) पहने दिखे । एक तेरह चौदह साल का बच्चा तो गांधी टोपी लगाए खड़ा था , भाव शून्य चेहरा , कंधे से आधी नीचे उतारी टी शर्ट पहने ...हमारे हाथ हिलाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की उसने । एक पच्चीस तीस साल की युवती चलती गाड़ी के पास से गुजरी तो बच्चों के हाथ हिलाने पर मुस्कराई भी और होंठों के पास हाथ ले जाकर फ़्लाइंग किस भी दे मारी । ' अरे बेब , बेब ' बच्चे चिल्लाये , खूब हँसे ।


खाना कपडे देने पर रोक सरकार ने इसलिए भी लगाई होगी कि उनके शान्त और पारम्परिक जीवन में खलबली न मच जाए । विकास धीरे धीरे क्रम वार हो तो बर्दाश्त के अन्दर होता है । विकसित दुनिया का छल प्रपँच उन्हें किसी भी कगार पर ले जा सकता है । एक और कारण भी है जारवा के पर्यटन में ही सरकार लाखों रुपये एक दिन में ही कमा रही होगी ।
ये लोग बिलकुल अफ्रीकियों जैसे थे , बस बाल घुंघराले नहीं थे , बाल छोटे छोटे कटे हुए , पता नहीं किस चीज से ये उन्हें काटते होंगे । हो सकता है यहाँ की गर्म जलवायु के सीधे सम्पर्क में रहने की वजह से जारवा काले हो गए हों ।
जल्दी ही हम समुद्र तट पर पहुँच गए , जहाँ एक जहाज हमें बारा टाँग द्वीप ले जाने का इंतज़ार कर रहा था । सब गाड़ियों से उतरे और जहाज में चढ़ गए , हमारे आगे आगे चल रही बस भी शिप में चढ़ गई । करीब करीब आधे घन्टे बाद बारा टाँग के तट पर पहुंचे , यहाँ से छोटी नौकाओं द्वारा हमें लाइम स्टोन केवज दिखाने ले जाया गया । अगले तट पर उतर कर कुछ चल कर चूने की जो गुफाएं हमने देखीं वो पानी के जमने से बनी हुईं थीं , विभिन्न आकृतियों के रूप में सफ़ेद पत्थर सीं । हम नौका से ही वापिस बारा टाँग लौटे । यहाँ जीप से ' मड वौल्कैनो ' देखने गए । रह रह कर थोड़े बुलबुले उठते और थोडा कीचड़ बहता हुआ दिखता । वापिस तट की ओर गए । ये आयलैंड रिहाइशी था , जो बस पोर्ट ब्लेयर से आई थी वो यहाँ चल रही थी , शायद शाम तक वापिस लौट जाती होगी । तट पर दस बारह दुकानें थीं , भूख लग आई थी , यहीं दोपहर का खाना खाया ।
कुछ देर बाद शिप आ गया , हमारा ड्राइवर और सब पोर्ट ब्लेयर के उसी तट की ओर बढे जहाँ गाड़ियाँ छोड़ कर आए थे । दूर से देखा कुछ जारवा बच्चे समुद्र में नहा रहे थे । हम अपनी अपनी गाड़ियों में सवार हो कर फिर काफिले में जँगल के बीच से गुजरे । फिर कुछ और जारवा बच्चे आदमी औरतें देखे । कुछ बच्चे तो हमसे आगे चल रही गाडी को रोकने की कोशिश कर रहे थे , और इशारे से खाने की चीज मांग रहे थे ।
खैर रात तक हम वापिस होटल पहुंचे । लगा कि जारवा देखे बिना हमारी अंडमान यात्रा अधूरी ही रहती । आदि मानव और हमारे बीच युगों के फासले हैं । कुछ देर के लिये जैसे हम उसी युग में पहुँच गए थे , जहाँ न दिन न तारीखें होती हैं , जहाँ न मखमली बिछौने होते हैं , न कोई चोंचले होते हैं । उफ़ , जैसे समय की रील रिवाइंड कर दी गई हो । यकीन नहीं होता , मगर ये सच है कि आदि मानव आज भी अपने उस कच्चे खालिस रूप में उन द्वीपों पर उपस्थित है , जहाँ दुनिया की हवा ने उसे अपने से दूर रक्खा है ।
तीसरे दिन सुबह मैक्रूज़ से हैव्लौक आयलैंड के लिये रवाना हुए । रास्ते के दृश्यों में समुद्र में एक आयलैंड खत्म होता तो दूसरा शुरू हो जाता । हैव लॉक का क्षेत्रफल केवल पन्द्रह किलोमीटर है । मैक्रूज़ में ही हमें अण्डमान के विभिन्न द्वीपों पर बसे आदिवासियों के बारे में डॉक्युमेंट्री दिखाई गई । कुछ द्वीपों पर जाना मना है , ताकि उन पर बसे आदिवासियों के जीवन में खलल न पड़े । निकोबार आयलैंड के निकोबारी जाती के लोगों के लिये भारत की फोर्मर प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने घर व् पाठ शालाएं खुल्वाईं , उन्हीं के बीच के लोगों को शिक्षित कर के वहीँ नियुक्त किया और ग्रामोद्योग को विकसित किया । ओंगी जाति भी किसी द्वीप पर है ।
हैवलॉक से सिंगापुर की समुद्री दूरी केवल १५०किलोमीटर है । अंग्रेजों के भारत छोड़ कर जाने के बाद जल्दी ही जापानियों ने अण्डमान पर कब्ज़ा कर लिया था , कहते हैं बहुत खून खराबा हुआ था । खैर जल्दी ही कमान भारत के हाथ आ गई थी ।


यहाँ तट की ओर बनी कौटेजेज में हमें ठहराया गया , अद्भुत दृश्य था , सफ़ेद रेत के किनारे समुद्र में बंधी नाव , लहरों में हिचकोले खाती । जल क्रीडा और फोटो खिचवाने के लिये अद्भुत संयोग थे । दोपहर से शाम हमने ' राधा नगर बीच ' पर गुजारी । समुद्र में उठती लहरें , सूर्यास्त का नजारा , यहाँ की खुशनुमा यादें हैं ।
चौथे दिन सुबह ही हम स्पीड बोट से ' एलिफैन्टा आयलैंड ' की ओर गए । यहाँ स्नौर्क्लिंग , ग्लास बोट में ले जा कर मछलियाँ दिखाना , स्कूटर ड्राइविंग व् अन्य वाटर स्पोर्ट्स करवाए जाते हैं । यहाँ काफी हद तक जॉली बॉय बीच जैसा लगा । स्पीड
बोट से ही हम वापिस लौटेनाश्ता पैक करवाया , ग्यारह बजे हमें मैक्रूज से वापिस जाना थापोर्ट ब्लेयर पहुंचे , अब सिटी टूअर के नाम पर हमने मार्केट से कुछ खरीदाएक मंदिर में प्रवचन चल रहा था , सुना । ' पुलिस गुरु द्वारे ' गए , ये गुरुद्वारा एक मात्र ऐसा गुरुद्वारा है जिसका प्रबंधन पुलिस करती हैफिर पहुंचे हम अपनी चहेती कार्बाइन कोव बीच , जहाँ हम पहले दिन भी गए थे और अपनी आठ साल पहले वाली विजिट में जब हम ' हौर्न बिल नेस्ट ' में रुके थे , हर दिन गए थेपांचवे दिन सुबह ही हमारी वापिसी थी


अण्डमान का महत्व सिर्फ खूबसूरत और शांत होने की वजह से नहीं है , अपितु ऐतिहासिक दृष्टि से भी हैवाइपर और रॉस आयलैंड पर ब्रिटिश राज के वक्त की चर्च , क्लब और जेल के अवशेष , पोर्ट ब्लेयर पर सात विंग्स वाली , छोटी छोटी कोठरियों वाली , लम्बे मजबूत कुण्डों वाली तीन मन्जिली सेल्युलर जेल , जहाँ हमारे देश भक्त क्रांति कारियों को भेज कर उन से कड़ी मेहनत कराई जाती थी , मसलन नारियल से तेल निकलवाने के लिये कोल्हू पर बै की जगह आदमी को चलानाऔर जहाँ से कैदियों के लौटने की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि चारों तरफ था समुद्र , कड़ा पहरा और सख्त अनुशासनहमारे वीरों की यादें , खूबसूरत जलचरों की दुनिया के अलावा हमारे आदिम युग की झलकियाँ हमें सिर्फ यहाँ मिल सकतीं हैं


बुधवार, 18 जनवरी 2012

अण्डमान , काला पानी या नीला पानी

३१-दिसंबर-२०११

नीचे गहरे स्लेटी बादल जल्दी ही बर्फ के रँग में बदल गए , जैसे किसी ने मक्खन या क्रीम फेंट कर ऊँची-नीची सी चारों तरफ बिखरा दी होसामने हल्की पीली और नारंगी दो रँगों की लकीर सी सूर्योदय की तरफ अग्रसर होती हुई सुबह की सूचना दे रही थीप्लेन की खिड़की से दिखता अदभुत दृश्य थासुबह साढ़े पाँच से पौने छः के बीच का वक्त ....जल्दी ही बादलों के ऊपर धूप निखर आई थीपीली नारंगी रँग की लकीर अब गायब हो गई थीबस पन्द्रह मिनट बाद ही बादलों की मोटी परत को चीरता हुआ प्लेन अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के ऊपर चक्कर काट रहा थाएक एक टापू हरा भरा चारों तरफ पानी से घिरा हुआ नजर रहा थायहाँ तक कि तट के किनारों की तरफ उठती हुईं समुद्र की लहरों को भी साफ़ साफ़ देख पा रहे थे हम

पोर्ट ब्लेयर यहाँ का एकमात्र ऐसा टापू है जिस पर हवाई अड्डा हैवीर सावरकर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा , ये नाम इसे इसलिए दिया गया कि वीर सावरकर महान देश भक्त और क्रांतिकारी यहीं सेल्युलर जेल में बंद रहेजेल की अँधेरी कोठरी पल पल आगे बढ़ती काल की आहट किसी का भी मन विचलित करने के लिये काफी होती हैकिस जज्बे से वो हर सख्ती का सामना कर सके और अपने साथियों के लिये जोश का एक उदाहरण बन सकेपोर्ट ब्लेयर की धरती ये कहाँ जानती थी कि इसी वीर सावरकर के नाम से हवाई अड्डा बनेगा और ये नाम हमेशा के लिये अमर हो जाएगा

जेल के प्रांगण में यहाँ आने वाले पर्यटकों की जानकारी के लिये रोज .३०बजे शाम एक लाईट एंड साउंड शो दिखाया जाता हैजिसमें बाईं तरफ उगे पेड़ की नजर से उस वक्त की आँखों देखी कहानी कही गई है , जो कि पुरी की आवाज में हैप्रस्तुति मार्मिक है , हमारी राष्ट्रीय धरोहर सेल्युलर जेल के निर्माण , ब्रिटिश राज और कैदियों पर सख्ती व् बर्बरता की कहानी के बारे में है

अण्डमान का कोना कोना खूबसूरत , जिस एंगल से भी फोटो खीचो , अदभुत ही होती है । इतनी खूबसूरत जगह और नाम दिया गया था काला पानीसच ही है अपने घर से दूर , अपनी धरती से दूर , जहाँ से कभी वापसी की उम्मीद ही न हो , जहाँ का नीला पानी कैदियों के लाल खून से काला नजर आता हो , उस जगह को और क्या नाम दिया जा सकता था

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मिटने वालों का , यही बस आखिरी निशाँ होगा

दूर दूर से आने वाले पर्यटक जब यहाँ इकट्ठा होते हैं तो किसी मेले से कम नहीं लगतामन जैसे द्रवित हो कर देश भक्ति से ओत प्रोत हो जाता है