मंगलवार, 15 अगस्त 2017

नशा , ड्रग्स और एडिक्शन

वो बज़ आने तलक ग्लास पर ग्लास चढ़ाता जा रहा था। आज की युवा पीढ़ी या किशोरावस्था के बच्चे एल्कोहल , ड्रग्स या नशे के लिए प्रयोग की जाने वाली दूसरी वस्तुओं को बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। उसे सब्जबाग दिखाये जाते हैं कि पार्टी करना , मौज-मस्ती करना ही जीवन का ध्येय है।  और इस तरह वो इनके चँगुल फँसता है। गम गलत करने को यानि दुनिया से भागने को भी उसे यही इलाज दिखता है। दो चार बार लेकर ये जरुरत बनने लगता है और फिर इन्सान को एडिक्ट कर देता है यानि नकारा बना देता है। जैसे उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लिया हो उसने। अब वो किसी भी कीमत पर उसे पाना चाहता है। नशे के लिए चोरी ,सीना-जोरी सब सीखता है। 

ड्रग्स यानि नशा शारीरिक सेहत , मानसिक सेहत ही नहीं सोशल आस्पेक्ट्स पर भी असर करते हैं। शरीर के पोषक तत्व नष्ट होते जाते हैं। इम्युनिटी कम होती जाती है। गर्म तासीर की वजह से बिलरुबिन काउन्ट बढ़ता है तो लिवर को नुक्सान पहुंचने लगता है। मानसिक तौर पर शुरुआत में कन्सन्ट्रेशन की कमी होती है , सर दर्द ,पढ़ने में या किसी भी काम में मन नहीं लगता ; हर वक़्त वही धुन समाई रहती है।  अपनों से , सामाजिक कृत्यों से वो जी चुराने लगता है।  जिनके साथ ड्रग्स लेता है बस उनकी ही सँगत करता है।  समाज में लोग ड्रग्स लेने वालों का बहिष्कार करते हैं। बात-बात पर गुस्सा आता है , चिड़चिड़ाहट होने लगती है।  स्वाभाविक तौर पर अपनी जिम्मेदारियों से भागता है। 

युवा पीढ़ी की दलील होगी कि उसे इसमें ही ख़ुशी मिलती है। इस भ्रम से निकालना आसान तो नहीं , मगर नामुमकिन भी नहीं। जिस पार्टी मौजमस्ती की बात वो करते हैं वो तो कोई जूस पार्टी , फ्रूट पार्टी , भुट्टा पार्टी या पूल लन्च या डिनर मना कर भी पाई जा सकती है। ख़ुशी तो हमारे ख्यालों में होती है एल्कोहल या नशे में नहीं। इससे पहले कि बहुत देर हो जाये अपनी सेहत , अपने मन-प्राण सँरक्षित कर लो। अपने लिये नहीं तो अपने परिवार , अपने साथी और समाज के लिये खुद को और खुद की इमेज को बचा लो। दिल में कोई उदासी , फ्रस्ट्रेशन , नाउम्मीदी है तो उसे अपने परिवार के साथ शेयर करो।  हर डर का सामना करो वो भाग जायेगा।  ड्रग्स की खोज बीमारी में दवा की तरह प्रयोग करने के लिये हुई थी। ड्रग्स का व्यापार करने वालों ने अपने नफे की खातिर युवा पीढ़ी और कमजोर मानसिकता वालों को निशाना बनाया , क्योंकि वो ही आसानी से फँस सकते हैं। यानि आपका इस्तेमाल किया जा रहा है। ये जानलेवा भी हो सकता है।

जागो युवा पीढ़ी , इस भ्रम से बाहर निकलो। होशो-हवास खो कर भी कोई खुश कैसे रह सकता है।  ऐसी हालत में कुछ भी उन्नीस इक्कीस हो सकता है ; जिसका बाद में पछतावा हो और जीवन भर शर्म आये। अपनी क्षमता को पहचानो। अच्छे आचरण की मिसाल बनो। भविष्य इन्तिज़ार कर रहा है , अपनी नींव खोखली मत करो। 

इक अदद सूरज की तलाश है 
कर दे उजियारा जो मलिन बस्ती में भी