शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

परीक्षा में हार

अवसाद-ग्रस्त होते ही पहला काम है , अपने शरीर और मन की देखभाल करना | ये शरीर परम पिता परमात्मा ने किसी उद्देश्य से दिया है , इसे मैं समाज की भलाई में अर्पित करुँ न कि अपनी हार में उलझ कर वक़्त बरबाद करुँ | हर ठोकर मेरी सीढ़ी है , अनुभव है मन को जीतने का |
बहुत सारी युक्तियाँ हैं मन की हलचल मिटाने की | मेरा भाग्योदय परमपिता के हुक्म से वक़्त से पहले नहीं होगा | मुझे तो सिर्फ़ ये देखना है कि हर दिन मेरे पिता ने मेरे लिए क्या-क्या काम निर्धारित किए हैं | क्या पता कौन सा कर्म , कौन सा दिन मेरे पिता का उपहार संजोये है | मुझे तो वही सब करना है जो उसे अच्छा लगता है | लय मिला कर उससे जो चलेंगे तो संसार अलग ही दिखने लगेगा |
परीक्षा का एक दिन परिणाम लेकर आता है , अगर अच्छा न कर पाये ,तो क्या हुआ | क्या एक दिन ही काफी है हमारी सारी सामर्थ्य का आँकलन करने के लिए | सीख ये लेनी है कि अगली बार उससे भी ज्यादा मेहनत करनी है या हो सकता है कि ईश्वर ने मेरे लिए कोई दूसरा उससे भी अच्छा रास्ता तय कर रखा होगा | वो परम-पिता मेरी मेहनत के बारे में सब जानता है | परिश्रम करना और हार को खुशी से सह सकने का साहस भी तो जीत है , मन पर राज करने जैसी | हमें कोई हक़ नहीं है कि ईश्वर प्रदत्त इस आत्मा और शरीर का अपमान करें | अपने मन को फ़ौरन कोई अच्छा विचार दो | क्रोध , दुःख , जलन ये भी हिंसा है , अपने ऊपर रहम करो |
ऐसे वक़्त को गुजर जाने दो , अपने आपको किसी ऐसे काम में लगाओ जो पहले भी आपको अच्छा लगता था | वक्त गुजरने के साथ न वो सोच रहेगी न परेशानी | रास्ते कभी बन्द नहीं होते , कोई न कोई रास्ता जरुर मिलेगा , कदम बढ़ाओ , मन में दिया जलाओ , प्रकाश ख़ुद रास्ता दिखाने लगेगा |

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

गुलाब बन जाइये


तनाव चाहे खालीपन के कारण हो या व्यस्तता वश हो , धकेलता अन्ततः अवसाद की तरफ़ ही है | तनाव के कारण एक तो आप वर्तमान में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते , दूसरा नए विचार या योजनायें आपके मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर पाते | दिमाग की तनी हुई नसें आपको वर्तमान में ध्यान केंद्रित रखने से वंचित रखती हैं | आपसे अगर कोई कुछ पूछता है आप थोड़ी देर लगाते हैं प्रश्न को समझने में और सही उत्तर देने में ; अगर आप वर्तमान में होते तो सही सटीक उत्तर देने में देरी नहीं लगाते | नये विचार , नई योजनायें , सृजन की संभावनाएँ तो तभी बनेंगीं , जब आप मस्तिष्क में इनके लिए जगह रखेंगे | नई संभावनाओं की बात छोडिये , ऐसे में तो कई बार आवश्यक कार्य भी करने से छूट जाते हैं | आप व्यवस्थित तभी रह सकेंगे जब आप तनावमुक्त होकर वर्तमान में रहेंगे |


मानव मस्तिष्क जिसने कंप्यूटर बनाया है , कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज है | वैज्ञानिक कहते हैं कि हम मस्तिष्क का कुछ ही हिस्सा इस्तेमाल करते हैं , अगर कुछ और प्रतिशत इस्तेमाल करें तो कितना आगे निकल जाएँ | अगर हम अपनी शक्तियों का सही मूल्यांकन न करके , तनावग्रस्त होकर अपने आप को नुक्सान पहुँचा रहे हैं तो ये बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे एक बिच्छू अपनी ही पूँछ काट काट कर अपने आप को नुक्सान पहुँचाता रहता है | विध्वंस की तरफ़ मत जाइये , संरचनात्मक बनिये | अपने आप से प्यार कीजिये , मानवता से प्रेम कीजिये | भौतिक उन्नति बहुत कुछ अवसर व भाग्य पर निर्भर करती है , पर आत्मिक उन्नति पूरी तरह आपकी है व आपके प्रयत्नों पर निर्भर करती है | मानवता से प्रेम आपको तनावग्रस्त होने ही नहीं देगा |


किसी से ईर्ष्या-द्वेष या प्रेम पहले आपके मन में पैदा होता है , फ़िर वो प्रत्युत्तर में आपको मिलता है | जब एक दिल में पैदा हुआ , नजरों से संवादित हुआ , तभी तो वापिस होकर मिला | जब हमारे दिल में नाराजगी पैदा हो हम उसे उसी वक्त रोक दें , कहें कि ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि मेरा चैन ख़त्म कर दे | ईशवर जब सब में मौजूद है , बस इन्सान अहंकार का आवरण चढ़ने की वजह से इन्सान इंसान में फर्क करता है ; फ़िर ईशवर की ये कृति इसी में खुश है तो ठीक है ना | जब ईशवर उसे सच्ची खुशी देना चाहेंगें तब देंगे न | मुझे अपने अन्दर आनन्द को ही महसूस करना है और वही बांटना है | गुलाब बन जाइये , खुशबू अपने आप आयेगी |


सोमवार, 12 जनवरी 2009

मन का सुख

आत्मा का असली स्वरूप है सतचित आनन्द स्वरूप , उसे आनन्द में ही रहना अच्छा लगता है | आनन्द में रहने में उत्तेजना नहीं होती , चित्त हल्का-फुल्का होने का अनुभव करता है | दुःख मन को भारी कर देता है , इसीलिये दुःख बर्दाश्त नहीं होते | मन दुःख से दूर रहना चाहता है | सुख दुःख प्रारब्धानुसार आयेंगे ही ; अगर हम इन्हें आत्मा पर या मन पर असर न करने दें , तभी ये हमें व्यापेंगें नहीं | दुखों को हम एक परिस्थिति की तरह लें , जो बीत जाने वाली है , हम दर्शक हैं | जीवन एक नाटक है , कई बार हम दर्शक बनते हैं और अक्सर हम नाटक के पात्र बनते हैं , तो अपना अभिनय , अपना पात्र हम बखूबी निभायें | जीवन एक चुनौती है , इसे स्वीकार करें | विषम से विषम परिस्थिति भी आपके मन का कुछ न बिगाड़ सकेगी , अगर आप साक्षी भाव से जीवन को देखें | जो बीत रहा है बाहर बीत रहा है , मनस्थिति पर न बीतने दें | नकारात्मक विचार से कहें सौरी (माफ़ करना )मेरे पास इस विचार के लिए कोई जगह नहीं है | मन बेकाबू होने लगे तो उसे शुभ कर्मों की तरफ़ लगाओ और जीतो अपने मन को ;अपने आपको कर्म करते हुए , कर्म ही जीवन का आधार है |
दुःख की तरफ़ भागने की जो मन को आदत पड़ चुकी है , इसे काटो , तर्क से समझाओ | अन्तर्मन में सुखद अनुभूतियों को , आशा को , आनन्द को जगह दो | It is darkest before the dawn . सुबह से पहले अँधेरा बहुत गहरा होता है | दुःख को बीत जाना है , दुःख की रात कितनी भी लम्बी क्यों न हो , बीत जाने वाली है | सिर्फ़ दुःख की रात ही पूरा जीवन नहीं है | बहुत सारे उजाले आपके जीवन में आए हैं | सुख दुःख मिल कर जीवन बना है | इसे चुनौती के रूप में स्वीकारें | जीतें या हारें , बस मुस्करायें |
जीवन ये आनन्द भरा है , सबमें आनन्द घोल दो
चुन लो कोई सच का मोती , बाकी सारा छोड़ दो

रविवार, 11 जनवरी 2009

सन्तुलन बना कर चलिये

सारा खेल सन्तुलन का ही है सन्तुलन बिगड़ते ही जीवन गड़बड़ा जाता है ।आपको सन्तुलन बना कर चलना है , कथनी और करनी में , धर्म अर्थ काम और मोक्ष में , धन संचित करने और खर्च करने में , अन्तर्मन व बाहरी जगत में ।आप वही कहें जो आपको करना है वरना कोई आपकी बात का विशवास नहीं करेगा ।धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष का अपना-अपना स्थान है ; इनमें सामंजस्य बिठाना , अपनी मर्यादाओं को कायम रखना है ।धन संचित करने के लिए कहा जाता है कि बूँद बूँद से घट भरे , भविष्य के लिये थोड़ा थोड़ा नियमित रूप से धन अलग से जरुर रखें ।खर्च अपनी चादर के अन्दर ही करें ।अगर आपके पास पर्याप्त मात्रा में धन है तो आपको धन से दूसरों की मदद अवश्य करनी चाहिये ।  धन होने का फायदा उठायें ; शिक्षा पर , मित्रों का सम्मान करने में , जरुरतमन्दो की जरूरतें पूरी करने में खर्च करें ।अन्तर्मन और बाहरी जगत का सन्तुलन सबसे आवश्यक है ।आपका मन कुछ कहता है , बुद्धि कुछ और करवा डालती है ; विवेक कुछ कहता है , मन कुछ और करवा डालता है ।आप परेशान हैं किसी के व्यवहार से , गलाकाट प्रतियोगिता से , जिंदगी के अभावों से , मजबूरियों से ।अपना वश कहीं नहीं चलता ऐसे में अगर आप अन्दर के जगत का बाहरी जगत के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाते तो सन्तुलन बिगड़ जाता है ।अन्तर्मन को शांत रखना जरुरी है ।ईश्वर सबसे प्यार करते हैं , उनसे भी जो आपके आस पास इन परिस्थितियों के कारण स्वरूप हैं । उनके इस व्यवहार के पीछे भी कोई कारण होगा , जब कारण जानने वाली दृष्टि पैदा कर लेंगें तो माफ़ करना भी सीख लेंगें । हमारे सपने कितने भी बड़े-बड़े क्यों न हों , उनमें सबसे बड़ा सपना मानवीय मूल्यों पर खरा उतरने का ही होना चाहिये ।इस रास्ते पर चलने वाले का साथ ईश्वर देता है , उसका मन शांत रहता है क्योंकि वो सबसे प्यार करता है ।मन के शांत रहने से बाहरी जगत के साथ तालमेल बैठाना आसान रहता है ।हर दिन एक नया दिन है , जिसे आप पूरी जीवन्तता से जियें कि देखें आज ईश्वर ने क्या-क्या उपहार संजोये हैं । हमेशा सब कुछ अच्छा ही हो ऐसा जरुरी नहीं होता , पर हर हालत में जीवन्तता बनाए रखने से हालात बोझ नहीं लगते ।और कौन जानता है कि असीमित जीवनी शक्ति के साथ आपका कोई छोटा सा निर्णय भी किसी महान कर्म का जन्मदाता हो ।खुशी से चलना एक अर्थ रखता है उम्र त्यौहार है और खुशी सौगात ।