शनिवार, 13 दिसंबर 2014

जितनी ज्यादा नकारात्मकता ,उतनी ज्यादा सकरात्मकता

क़ैद में है बुलबुल , सैय्याद मुस्कुराये 
फँसी है जान पिंजरे में , हाय कोई तो बचाये 

कोई तो हाथ-पैर छोड़ कर दुबक कर बैठ जाता है और कोई सारी रात टुक-टुक कर पिंजरे की तारों को या हाथ आई हुई लकड़ी की सतह या कपड़े को सारी रात कुतर-कुतर कर काटता रहता है ;जिस रोटी के टुकड़े के लिये वो इस पिंजरे में फँसा था , वो अब यूँ ही लटका मुँह चिढ़ाता हुआ नजर आता है।  जाहिर है अब चूहे की सारी कवायदें इस मुसीबत से स्वतन्त्र होने के लिये हैं।  ठीक ऐसा ही तो आदमी का हाल है।  कोई तो मुश्किलों से हार मान कर हथियार डाल देता है और कोई सारी ताकत उससे लड़ने में लगा देता है।  जितनी ज्यादा नकारात्मकता हो उतने ज्यादा सकारात्मक बनो , तभी नकारात्मकता अपना असर खो देगी।  ये सच है कि मन शरीर से भी ज्यादा शक्तिवान है और मन से भी ज्यादा शक्ति बुद्धि के पास है।  बुद्धि यानि विवेक , विवेक-पूर्ण मन क्या नहीं कर सकता , बाहरी उपद्रव हमारे मन का सन्तुलन भंग नहीं कर सकते , इतनी शक्ति हमारे अन्दर ही विद्यमान है।  

अगर जीवन में संघर्ष नहीं होगा तो यकीन मानिये विकास का कार्य भी रुक जायेगा। ......फ्रेडरिक डकलस 

यदि आप विफल हो रहे हों , तो समझिये कि सफलता के बीज बोने का सर्वश्रेष्ठ समय आ गया है...... परमहँस योगानंद 

दबाव और चुनौतियाँ आगे बढ़ने के अवसर की तरह होते हैं।  इन्हें रूकावट मानने की भूल न करें।... कोबे ब्रायंट 

बहुत सारे तरीके हैं मन को समझाने के , मेरे साथ कुछ भी नया नहीं हुआ है , Nothing is new under the sun.असफलताएँ ही आदमी को माँजती हैं।  बेशक तुम्हारी उमंगें टुकड़ा-टुकड़ा हो जायें , जीने के सारे मक्सद खो जायें , खुद को चुनौती दें कि मैं अन्दर से नहीं हिलूँगा। ये मुझ पर है कि अपने हाथों की लकीरों में मैं कौन सा रँग भरता हूँ। मुझे तो खुश होना चाहिये कि तनाव मेरी बर्दाश्त के अन्दर ही है। ये अनुभव बहुत कुछ सिखा के जायेगा। अपनी कामनाओं की नकेल अपने हाथ रखें।  ज़िन्दगी का उद्देश्य शान्ति प्राप्त करना है , पैसे या दुख में अटकना नहीं।  इसीलिये हमें अपने कर्तव्य प्रसन्नता-पूर्वक निभाने चाहिये , ये पृथ्वी स्वर्ग नजर आयेगी। 

बुधवार, 29 अक्तूबर 2014

विष्वास करना कला है , साथ ही विज्ञानं भी...

बड़ी कोशिशों से पासपोर्ट रिन्यू करवाने के लिए अपोइन्टमेंट मिला था। सारी औपचारिकताएँ पूरी हुईं तो एक एफ़िडेबिट बनवाने की क्वैरी निकल ही आई।  टीना काउन्टर से एफ़िडेबिट कहाँ से और कैसे बनेगा पूछ कर जैसे ही मुड़ी , ऑफिसर पास ही खड़ी दूसरी लड़की के लिए कह रहा था कि इन मैडम को भी एफ़िडेबिट बनवाना है। जिसे सुनकर वो लड़की मायूस हो गयी थी ,कि अब फिर लटक गया , दुबारा से अपोइन्टमेंट लेना पड़ेगा।  टीना ने उसका उतरा चेहरा देख कर बात करने की पहल की। कहा " टेन्शन मत लो ,मुझे भी बनवाना है , मैं यहाँ नई हूँ , चलो दोनों साथ चलते हैं ,एक ऑटो करते हैं , इससे पहले कि ऑफिस बन्द होने का वक्त हो जाए ? जल्दी करते हैं। " खैर दोनों जल्दी-जल्दी काम करवा कर लाये। अब इस ऑफिस में आखिरी काउन्टर पर दो हजार रूपये देने थे।  रूबी ने पैसे गिनने शुरू किये , अरे ये क्या १९०० रूपये यानि १०० रूपये कम.... अब क्या करे ,यहाँ तो कोई उसे जानता भी न था।  और आसपास कहीं A.T.M.भी नहीं था। एक बार फिर उसका मुहँ उतर गया।  टीना ने दूर से उसे पशो-पेश में देखा , पास जा कर पूछा कि क्या बात है।  टीना को १०० रूपये का नोट निकाल कर रूबी को देने में देर नहीं लगी।  रूबी का काम हो गया और वो रसीद ले कर बाहर चली गई।  टीना अभी क्लीयरेंस का इन्तज़ार कर रही थी , सोच रही थी कि सौ रूपये तो यूँ ही खर्च हो जाते हैं , कितना तो हम अपने खाने-पीने पर मौज-मस्ती पर खर्च करते हैं ,कपड़ों पर न जाने कितना प्रॉफिट दुकानदार हमसे ऐंठते हैं।  रूबी को सिर्फ सौ रूपये की वजह से वो सारी औपचारिकताएँ दुबारा करनी पड़तीं।  पैसे वापिस आयेँ या न आयेँ ,क्या फर्क पड़ता है।  छह बजते न बजते टीना का काम भी हो चुका था। जैसे ही वो ऑफिस से बाहर निकली , रूबी उसका इन्तज़ार कर रही थी , रूबी दोनों बाहें बढ़ा कर उसके गले लगी। उसके दिल की नमी उसकी आँखों से ज़ाहिर हो रही थी।  उसने बताया कि तीन महीने पहले ही उसकी शादी हुई है और उसका नौशा दुबई में उसका इन्तज़ार कर रहा है।  पासपोर्ट बनने के बाद ही वीज़ा की औपचारिकताएँ पूरी हो सकेंगी।  उस वक्त सौ रूपये की कमी से काम रुक जाना था।  दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर एक्सचेंज किये।  टीना को रात की ट्रेन से अपने शहर वापिस जाना था। अब उसे अपना काम पूरा होने के साथ-साथ रूबी के काम पूरा करने में थोड़ी सी मदद-गार बन पाने की भी ख़ुशी थी।  

विष्वास करना एक कला है।  हम अपने आपको किस तरह समझाते हैं कि आँखें खुली रखते हुए हमें दूसरे पर विष्वास करना है।बिना ऐतबार के आप दो कदम भी नहीं चल सकते। ये दुनिया आपको काँटों की बाड़ी ही नजर आयेगी।  लोगों की आँखों में सन्देह और अविष्वास ही तैरता नजर आयेगा। काँटों पर चल कर भी आपको फूल उगाने हैं।  विष्वास ही वो शय है जो हर विपरीत परिस्थिति में भी फल-फूल सकती है , आश्चर्य जनक नतीजे ला कर असम्भव को सम्भव कर सकती है। सभी लोग अगर स्वार्थी हो जायेंगे तो सामाजिकता के सारे दावे खोखले साबित हो जायेंगे। किसी की भी आँखें अविष्वास को बड़ी आसानी से पढ़ लेती हैं।  हमें अपने मन को समझाने का आर्ट आना चाहिए ताकि हम थोड़े बहुत नुक्सान पर भी किसी बड़ी चीज को कमा सकें। 

हम इसे साइन्स इस लिए कह सकते हैं कि साइन्स तो प्रयोग का नाम है। विष्वास का प्रयोग कर के देखें ,अपना मन ठण्डा ,रिश्तों में प्रगाढ़ता और अपने आस पास खुशिओं का वातावरण इसी का नतीजा है। सहजता , सरलता ,सरसता इसी का नाम है।  हाँ , सजगता अपने आप आ जाएगी। दुनिया चाहे इसे भावनात्मक बेवकूफी कहे मगर मेरी नजर में इसे भावनात्मक समझदारी या अक्लमन्दी कहा जाना चाहिये। 

बेशक आदमी ही आदमी की काट करता है और उसका दिमाग इस राह पर इतनी तेज चलता है कि वो हर मुमकिन तरीके से दूसरे को छलता नजर आता है मगर ....
वो बन सकता था खुदा 
अपनी कीमत उसने खुद ही कमतर आँक ली होगी ....

रविवार, 7 सितंबर 2014

सबला है नारी

नारी अबला नहीं है।  वहशी दिमागों का जोर किसी पर भी उतना ही कारगर है , चाहे वो नर हो या नारी हो ; क्योंकि वो तो उनका सुनियोजित मकड़जाल होता है , बिना तैय्यारी जिसमें कोई भी फंस सकता है।  नारी उपभोग की वस्तु नहीं है।  पुरुष अपने अहम पर चोट बर्दाश्त नहीं करता , इसे ताकत नहीं कमजोरी कहेंगे।  नारी अगर पुरुष के अहम को सन्तुष्ट करती नजर आती है तो ये नारी की सहनशक्ति है।  नारी की सहन-शीलता को गलत अर्थों में उठा लिया गया।  उसने अपने घर की शान्ति को बरकरार रखना चाहा , इसे तो समझ-दारी कहना चाहिए। वो भी हाड़-माँस की बनी है , दिल-दिमाग रखती है।  

जहाँ-तहाँ नारी को अश्लील सामाग्री की तरह परोस दिया गया , जबकि नारी के सम्मोहक रूप से इन्कार नहीं किया जा सकता।  ज़िन्दगी को , परिवार को पूरा करने के साथ-साथ ,परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने में नारी की अहम भूमिका होती है। परिवार के सदस्य अगर तृप्त नहीं हैं तो उनके व्यक्तित्व पर उसका असर दिखता है। ये कुण्ठाएँ आदमी को अवन्नति की ओर धकेलतीं हैं। यौन-शोषण ,किशोरों की अपराधिक मानसिकता ,धोखा-धड़ी ,आँखों में तिरते अविष्वास के उदाहरण हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं।  ये अतृप्त भटके हुए मन और कमजोर जड़ों के नतीजे हैं।  पौधे की जड़ें जितनी मजबूत होतीं है वो उतना ही ज्यादा फलता-फूलता है।  व्यक्ति का मन जितना सुन्दर होता है व्यक्ति उतना ही सहज,सरल और दमदार होता है। अन्तर्मन की खूबसूरती के बिना बाहरी सुन्दरता ज्यादा देर टिकती नहीं।  और ये खूबसूरती तो अर्जित की जा सकती है। 

बुद्धि-बल के सामने शरीर-बल गौण है।  आज बुद्धि-जीवी ही बड़े ओहदों पर बैठे हैं ,बड़ी-बड़ी नौकरियां कर रहे हैं।  नारी भी पुरुष से कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है।  नारी तो दोहरी जिम्मेदारी निभाती है। गृहस्थी की गाड़ी को ढोने में नारी की महत्त्व-पूर्ण भूमिका होती है। 

बाहरी उपद्रव जब आक्रमण करेंगे तो आँच सीने तक तो पहुँचेगी ही , मगर नारी के पास वो कला है जो उस आँच को ऊर्जा में तब्दील कर लेती है जो उसे हर हाल में कभी मुड़ना-तुड़ना सिखाती है , कभी बिखरती इकाइयों को अपने पँखों में समेट लेना सिखाती है तो कभी टूटते विष्वास को श्रद्धा का पानी पिला कर सर का ताज बना लेने की ताकत देती है।  अपने घर की सारी व्यवस्था की देख-रेख नारी के हाथ है , वो चाहे तो अपने परिवार के सदस्यों के दिलों पर राज करे , यहाँ तक कि वो तो सारी उम्र अपने बच्चों के व्यक्तित्व के जरिये दुनिया से सँवाद करती रहती है , उदाहरण बन सकती है , तो फिर नारी अबला कैसे हुई।  नारी तो सबला है। 

बुधवार, 9 जुलाई 2014

ये बन्दूकें क्यूँ बोते हैं '

किसी शायर ने सटीक कहा है।  

' हम अपने-अपने खेतों में ,
गेहूँ की जगह , चावल की जगह ,
ये बन्दूकें क्यूँ बोते हैं '

नफ़रत की चिन्गारी को हवा देते ही शोले भड़क उठते हैं।  चन्द लोगों के सीने की नफ़रत व्यवसाय का रूप क्यों ले लेती है ? कम उम्र का युवा मन जिसे कच्ची मिट्टी की तरह जिधर चाहे मोड़ लो , चोट खाये हुए दिल को और उकसा कर विध्वंसक गतिविधियों में उलझा दिया जाता है।  उसे पता ही  नहीं चलता कि उसका इस्तेमाल किया जा रहा है।  उसका रिमोट तो आकाओं के पास है , जिन्होंने उस चिन्गारी को बारूद में ढाला है।
इन्सान का दिल हमेशा पुरानी चीजों को याद करता है।  बचपन , माँ , सँगी-साथी क्या कभी भूले से भूलते हैं।  अतीत क्या कभी यादों से मिटाया जा सका है।  उनसे आँख चुराने का मतलब ही यादें कड़वी हैं।  जिस दिन 'कसाब' को उसके गाँव के लोगों ने पहचानने से इन्कार कर दिया था , उसके माँ-बाप भी वो गाँव छोड़ कर कहीं चले गये थे।कलम ने लिखा था.…… 

वो गलियाँ , वो दीवारें
बेज़ुबान बोलें कैसे
पहचानतीं हैं तेरी आहटें
मगर भेद खोलें कैसे

नक़्शे में है तेरा वतन
जैसे है वो तेरी यादों में
लाख कर ले तू जतन
वक़्त के मोहरे को वो अपना बोलें कैसे

तेरे वतन के लोग
जिनके लिये तूने दाँव खेले
साथ देती नहीं परछाईं भी
मुसीबत में ,वो ये बात खोलें कैसे

आतँक-वाद की दुनिया ही अलग होती है।  जिस काम को दुनिया से छिपा कर किया जाये , निसन्देह वो गलत होता है।  अपने ही वतन से जैसे जला वतन कर दिये गये हों।  दुखद बात ये है कि फिर लौटा नहीं जा सकता।न जमीं बचती है पैरों तले , न आसमाँ ही शेष रहता है। जमीं मतलब ज़मीर , इन्सान का खून देख कर भी जो न पसीजे, उसे क्या कहेंगे। उसने ज़मीर के मायने ही गलत उठा लिये हैं।  आसमाँ मायने स्वछन्दता , निडरता ... जहाँ तू आराम से उड़ सके।  निश्छलता के बिना ये आसमान तेरा नहीं।  खौफ के साथ निडर कभी रहा ही नहीं जा सकता।  

हम दुनिया में ये सब तो नहीं करने आये थे।
हर ज़र्रा चमकता है नूरे-इलाही से 
हर साँस ये कहती है के हम हैं तो खुदा भी है 

बस कोई नूर वाली आँख ही उसे देख सकेगी , महसूस कर सकेगी। जो किसान हमें गेहूँ चावल देता है , आम आदमी जो कपड़ा छत मुहैय्या कराता है , जिसके दम पर हमारा जीवन और वैभव आश्रित है , हम उस पर ही अन्याय कर बैठते हैं।  जैसे अपनी ही जड़ें खोद रहे हों।  बन्दूकें बोयेंगे तो बन्दूकों की फसल ही काटेंगे।  जिस तकलीफ ने उकसाया हो , रुक कर जरा सोचें कि इस तड़प को…इस उनींदी को सार्थक कर लें।  कोई सुबह होने को है।  मन को भी वो दिशा दें कि फिर ये हादसे न घट पाएं।  अपने जैसों को भी उबार लाएं।  

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

भाषा का गिरता स्तर

सड़क पर गुजरते हुए कुछ अठारह-बीस साल के लड़कों को बातें करते सुना।  वो अपनी भाषा में गालियों का प्रयोग बड़ी हेकड़ी के साथ कर रहे थे ; जैसे ये उनकी शान बढ़ा रही हों।  कम पढ़े-लिखे लोगों के साथ-साथ सभ्य बुद्धि-जीवी कहे जाने वाले लोग भी कम उद्दण्ड नहीं हैं।  हमारे फिल्म-जगत ने ऐसे किरदारों को भी पर्दे पर उतारा है। व्याकरण की त्रुटियाँ या भाषा की समृद्धि की बात तो दूर रही ; गालिओं का इस तरह धड़ल्ले से प्रयोग समाज को क्या सन्देश दे रहा है। भाषा का गिरता स्तर चिन्ता का विषय है।

आये दिन अखबारों में किशोरों की बढ़ती नशे की लत के बारे में , छोटी-छोटी बात पर तू-तड़ाका करने पर उतारू , हत्या-आत्म-हत्या करने तक से बाज नहीं आने के बारे में ख़बरें छपती हैं।  हमारे नैतिक मूल्यों का गिरना और दिशा भ्रमित होना ही इन सारी समस्याओं का कारण है।  आज हर कोई साम ,दाम, दण्ड ,भेद किसी भी जोर पर सबसे ऊपर खड़ा होना चाहता है।  बिना मेहनत किये जीवन के अर्थ ही गलत लगा लिए गए हैं।व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि उसकी कुण्ठायें उसे कहाँ ला के छोड़ने वाली हैं।  ख़ुशी क्या ज्यादा पैसा पाने से मिल सकती है ? पार्टी करना , मौज मस्ती करना ही जीवन का ध्येय नहीं है। मौज-मस्ती में भी आप हर किसी का ख़्याल नहीं रख सकते , और एक जरा सा खलल और सब मस्ती गुड़-गोबर हो जाती है।  

ये मायने नहीं रखता कि आपने ज़िन्दगी से क्या पाया ,कितना पाया या कितनी लम्बी ज़िन्दगी जी ; वरन ये मायने रखता है कि आपने कैसी ज़िन्दगी जी।  भाषा ज्ञान को अगर बाहरी आडम्बर मान भी लें , तब भी आन्तरिक गुणों को अभिव्यक्ति तो भाषा के माध्यम से ही मिलती है। कहते हैं कि किसी व्यक्ति की मात्र-भाषा या असली स्वभाव के बारे में जानना हो तो उसे थोड़ा सा क्रोध दिलाओ और फिर उसकी प्रतिक्रिया देखो।  अगर वो गालिओं में पला-बढ़ा है तो वो अपनी भाषा में गालिओं की बौछार कर देगा।  ये मत भूलें कि स्कूल से भी पहले की पाठशाला घर होता है।  घर व आस-पास का वातावरण ताउम्र प्रभावी रहता है। जो व्यवहार हम दूसरों से अपने लिये नहीं चाहते , वो व्यवहार हम दूसरों के साथ न करें।  

धरती पर जीव-जन्तुओं में मनुष्य ही अकेला ऐसा प्राणी है , जो बुद्धि-जीवी है।  सदियों से मनुष्य ने लम्बी विकास की राह तय की है। सभ्य-सुसंस्कृत समाज ने अपने माप-दण्ड तय किये हैं।  उन्हें निभाते हुए हमें आगे बढ़ना है।  भाषा शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार भी है और व्यक्तित्व का सच्चा श्रृंगार भी है।  

शिक्षा सिर्फ पुस्तकीय ज्ञान नहीं है ; हमारे अन्दर विवेक , उत्तर-दायित्वों , कर्तव्यों ,आचार-व्यवहार के प्रति जागरूकता पैदा करना भी शिक्षा का ध्येय है।  मनुष्यता के मौलिक गुणों के विकास में शिक्षा सोने पे सुहागे काम करती है। इसमें सन्देह नहीं कि भाषा हमारे जीवन मूल्यों का आईना है। शिक्षा , सँस्कार , ज्ञान के सामने ही दुनिया सिर झुकाती है।  

गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

ढल जाती है जब उम्मीद

 अपने एक ब्लॉग का अवलोकन कर रही थी कि ट्रैफिक स्त्रोत देखा , कि किस किस जरिये से कोई उस ब्लॉग तक पहुँचा था ; गूगल सर्च पर की-वर्ड ' आत्महत्या कैसे करूँ ' लिख कर कोई मेरे उस ब्लॉग तक पहुँचा था , हालाँकि  मेरे ब्लॉग पर उसे मन को उठाने वाली सामाग्री ही मिली होगी।  बहुत दुख हुआ कि इस प्रवृत्ति पर अँकुश कैसे लगेगा। दुनिया से छुपा कर जो उसने नेट से शेयर  किया था , अगर किसी साथी से पूछता तो वो शायद उसे ज़िन्दगी का महत्व समझाता , उसके दुख को हल्का करता।  नेट और इन्सान में बहुत फर्क होता है।  नेट आपके खाली वक्त का साथी जरुर है , गूगल पर विषय से सम्बन्धित सारे ऑप्शन्स आ जायेंगे ;मगर सही गलत का निर्णय वो आपको नहीं करा सकेगा , वहाँ गर्मजोशी नहीं मिलेगी , वो जो दुनिया मिलेगी वो आभासी दुनिया है , आँख मूँद कर आप विष्वास नहीं कर सकते।  और हम अपनी जीती-जागती दुनिया से मुँह मोड़ कर सिर्फ वहीँ तक सीमित रह गये , तो क्या पायेंगे ? 

आत्महत्या का निर्णय लेना क्या आसान है ? ये तो अपनी परिस्थितियों से भागने का निर्णय है।  दुख में आकण्ठ डूबा हुआ मन ये नहीं देख पाता कि किन कारणों से वो इस स्थिति तक पहुँचा है।  आकाक्षाएँ या अपनी छवि से मोह हम छोड़ नहीं पाते हैं ; वही मोह जब ज़ख्मी होता है तो मन बगावत कर देता है।  जबकि जान है तो जहान है , न वक्त बदलते देर लगती है न ही मन की स्थिति बदलते देर लगती है।  इतना शक्ति-शाली शरीर मिला है , उस पर मस्तिष्क जो नेट पर बैठ कर सब कुछ खोज लेता है , उसे सिर्फ सही दिशा देने की जरुरत है। वो अपनी ही शक्तियों से अन्जान है।  अपना रिमोट उसने हालात के हवाले कर दिया है ; वो चाहे उसे जैसे चाहे नचा लें।  

एक खुला दिल लेकर ही वह अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी हो सकता है।  खुले मन से सबका स्वागत ,दिनचर्या का अनुसरण करते हुए , सबको स्वीकार करते हुए , माहौल का हिस्सा बन कर रहने से.…… धीरे से मन उसी सब में वापिस रम जाएगा।  

कब ढलता है सूरज , दिन के ढल जाने पर 
ढल जाती है जब उम्मीद , समझो के शब हुई 

माना कि दुख की रात बहुत लम्बी होती है। मगर सबेरा तो हर रात का होता है।  अगर तुम सूरज के खो जाने पर आँसू बहाओगे तो अपने चाँद-तारों को भी खो बैठोगे।  इसलिये झिलमिलाते हुए अपने चाँद तारों को सहेजिये।  बहुत कुछ होगा जो आपकी तरफ आस से निहार रहा होगा , उसे ज़िन्दगी से भरपूर कर दीजिये।  

हो सकता है आप अपने गंतव्य तक पहुँचने में विफल रहे हों , या कुछ भी कैसा भी गम हो , सारी दुनिया वीरान सी नज़र आती हो ; ऐसे पलों में आपने जान लिया होगा कि ज़िन्दगी से भरपूर रहने के मायने क्या होते हैं।  कितनी भी विषम परिस्थितियों से गुजरे हों ,एक बार फिर से अपने शौक , अपनी प्राथमिकताएँ अपनी खासयितें तय कीजिये।  अपनी सौ प्रतिशत कोशिश इनमें लगा दीजिये।भटके हुए मन को दिशा मिलते ही दशा सुधर जायेगी।  

दरअसल ये तो अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी होने की कोशिश है।  अगर आप फिर कभी ऐसी निराशाजनक स्थिति से गुजरना नहीं चाहते तो धीरे से अध्यात्मिक बदलाव से जुड़ जाइये ; जो आपको आपके अन्तर्मन और बाहरी दुनिया के बीच सामन्जस्य पैदा करना सिखा देगा।  

हर ज़र्रा चमकता है अनवारे-इलाही से 
हर साँस ये कहती है के हम हैं तो खुदा भी है 

कुछ पंक्तियाँ पेश हैं........ 

ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये 
मन का दीप जला , रात के सँग-सँग बहिये 
हौसला , ज़िन्दादिली ,उम्मीद का रँग देखो 
उग आता है सूरज , इनकी बदौलत कहिये 

गुरुवार, 27 मार्च 2014

आदमी का नट शैल

वो दोनों प्रिन्टर्स बुक-फेयर में एक ही स्टॉल शेयर कर रहे थे , मगर एक-दूसरे को कितना सहयोग दे रहे थे , इस बात से जाहिर है कि जब एक को दूसरे की किताब के विमोचन के अवसर पर किसी एक मेहमान के आने पर हॉल न. बताने के लिये कहा गया तो उसने साफ़ इन्कार कर दिया कि उसे याद नहीं रहेगा।  और ये दूसरे महाशय जिनसे किताब छपवाने का खर्च पूछा गया तो कहते हैं कि वे ऐसी वैसी कवितायें नहीं छापते ; जबकि पूछने वाले की कवितायेँ हाल में ही उन्हों ने ही छापीं थीं। अकेले तो कोई भी नहीं चल सकता , स्वार्थ-परता की हद है , जब अपना काम होगा तो दुनिया गधे को भी बाप बना लेने से नहीं हिचकती।  काम निकल जाने के बाद तू कौन मैं कौन हो जाता है। पहली ही नजर में अविष्वास , आदमी अपने नट शैल से बाहर ही नहीं आना चाहता। ऐसी कोरी-करारी दुनिया में कैसे चलिए।

जब भी हम किसी विषय-वस्तु पर बात करने से बचते हैं या कहते हैं कि अमुक विषय पर बात न की जाए ; दरअसल तभी हम दूसरे व्यक्ति से एक दूरी बना लेते हैं।  समस्या या सवाल जो अन्दर उबाल खा  रहे हैं , उन्हें रोकने का  मतलब अपने और उसके बीच एक दीवार खड़ी कर लेना है।  अब कोई भी सँवाद किसी भी नतीजे पर पहुँच नहीं सकता। दोनों के बीच रिश्ते अपना अर्थ खोने लगते हैं।  पता नहीं लोग कैसे कहते हैं कि we can agree to disagree . जबकि असहमति पर सहमति रख कर साथ चलना सम्भव ही नहीं हो पाता।  वो तो बस मजबूरी को ढोना मात्र होता है।  सँवाद-हीनता से भ्रम पनपते हैं… समस्याएँ खड़ी होती हैं।  फिर एक दिन ज्वालामुखी फूटता है।  

वो बात कर लेता तो…वो ऐसा न कहता तो........ जब हमारा रिश्ता इन बातों का मोहताज हो जाता है तो स्नेह-बेल पल्ल्वित होने से पहले ही अपने अस्तित्व के लिए हालात से जूझने लग जाती है।  रिश्ते की मजबूती के लिए स्नेह , विष्वास , स्वीकार-भाव और शौक का होना जरुरी है ; या यूँ कहिये कि प्यार और प्रेरणा ही रिश्तों का सम्बल है।  

मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014

कोहरा कफ़न नहीं होता

मौसम में छाया कोहरा और अस्पतालों में डिप्रेशन के मरीजों की बढ़ती सँख्या , चिन्ता का विषय है।  आज आदमी बाहर के मौसमों को अपने अन्दर उतार बैठा है।  बाहर खराब मौसम तो उदास , बाहर खिली धूप तो चेहरे पर भी मुस्कान , अहम् को पुष्ट करने वाला सामान तो आदमी खुश , नीचा दिखाने वाली ज़रा सी बात में भी झगड़ा करने , मरने-मारने पर उतारू।  दूसरों पर व्यँग कसने में आनन्दित , खुद व्यँग-बाणों का शिकार होने पर दुखी , मन चाहे का साथ मिले तो प्रसन्न , न मिले तो खिन्न। हमारी ज़िन्दगी के आधार कितने छोटे और ओछे हो गये हैं।  दुःख तो तब होता है जब हमारी नई पीढ़ी बच्चे युवा भी इसी राह पर चलने लगते हैं।

अन्धेरे में चलना किसे रास आता, कुछ ऐसी रोशनी मुहैय्या करा दो

अँगने में खड़ा सूरज , अँखियों पे पड़ा पर्दा हटा दो

अँधेरा नहीं है जीवन की डोरी ,उजली किरण ही है आशा की लोरी

ठण्डी हवाओं को आने की दावत , सावन की पेंगें बढ़ा दो

बेलगाम पानी क्यों बहे नालियों में ,मेढ़ों को बाँधो खेतों को सजा दो

जड़ों में पानी डालो,सूखी टहनिओं पे भी हरे पत्ते सजा लो

सावन-भादों के आने की देरी, फूलों के खिलने में फ़िर क्या है देरी

देखा है फूलों को टकटकी लगाये ,सूरज सँग सोते सूरज सँग जगते

क्या है ये नाता धरती और सूरज का ,जीवन और किरण का , मन को समझा दो

सुनहरी रँग किसे नहीं भाता ,खप जाता है हर रँग सँग ,सबसे मुखर होकरये ख़ुद को सिखा दो

आदमी जब खुद भटका हुआ है तो अपने बच्चों को सही दिशा कैसे दिखा पायेगा।  उद्देश्य सामने रख कर प्रयत्न करने में लग्न दिखती है , मगर जोश के साथ होश रखना बहुत जरुरी है।पहले अपनी प्राथमिकताएं तय कर लें , आपके लिए क्या क्या जरुरी है ,जिसे आप किसी कीमत पर खो नहीं सकते।  कुछ किस्मत माथे पर लिखी होती है , कुछ हम अपने हाथों से लिखा करते हैं।  परिश्रम व व्यवहार दोनों बहुत मायने रखते हैं।  जब आपका भाव शुभ है तो बाकी बातें छोड़ दीजिये , यही हमारी तृप्ति के लिए काफी होना चाहिए।

मनुष्य सब के बीच रह कर ही खुश रह सकता है , इसीलिये उत्सव मनुष्य का स्वभाव है।  मगर ये ध्यान रखना चाहिए कि सबको सहृदयता से मिलें वरना ख़ुशी काफूर होते देर न लगेगी।  हर दिन आप पार्टी तो नहीं मना सकते , इसलिए हर घड़ी ईश्वर ने आपके लिए क्या रचा , उसे ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार कीजिये।  सबसे बढ़िया तरीका है निष्काम सेवा भाव से जुड़ जाइये।  सबसे पहले घर , घर के लोग आपसे तृप्त होने चाहिये।  बाकी निष्काम सेवा के मौके खुद-ब-खुद आयेंगे।  आपका ये भाव ही आपको खुश रखेगा।  अन्दर अगर तापमान नियंत्रित होगा तो मौसम का कोहरा अन्दर क्यों उतरेगा ; ये अन्धेरा भी सार्थक होगा … यूँ समझिये के किसी नई सुबह से परिचय होने को है।  


कोहरा कफ़न नहीं होता 
सूरज दफ़न नहीं होता 

किसी की कही हुई ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं ,आगे की पंक्तियाँ मेरी कलम ने रच लीं ……


कोहरा कफ़न नहीं होता 
सूरज दफ़न नहीं होता 
क़ैद तो तेरी अपनी है 
बचना कभी अमन नहीं होता 

ढलना नमन नहीं होता 
हौसला तपन नहीं होता 
बढ़ , गले लग ज़िन्दगी के 
दूर कभी सजन नहीं होता