रविवार, 22 मार्च 2009

सकारात्मक ऊर्जा


फेंगशुई की चीजें लाफिंग बुदधा,कछुआ ,विंड-चाइम आदि घरों में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के लिए रखने का खूब प्रचलन हो गया है | इसमें कोई बुराई नहीं है | ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने की चाह को प्रर्दशित करता है , ये तय है | रुक कर सोचें , हम जीती-जागती सकारात्मक ऊर्जा की तो अवहेलना करते रहते हैं | जो शरीर रूपी आत्माएँ हमारे आस-पास हैं , हमारी प्रारब्ध या यूं कहिये कर्मों के लेखानुसार हमसे सम्बन्ध बनाती हैं ; चतुराई कर-कर के हम उनसे नकारात्मकता प्राप्त करते रहते हैं | यहीं अगर हम उन्हें उनकी आशा के अनुरूप आदर देते या तृप्त करते तो क्या आशीर्वाद न पाते ? ईश्वर ने इतनी सकारात्मक ऊर्जा हमारे आस-पास बिखेरी है कि उनके दो शब्द भी जादू का असर रखते हैं | ये तो प्रत्यक्ष प्रभाव है और स्वीकार भाव व आशीर्वाद तो जिन्दगी में अप्रत्यक्ष रूप से मीलों दूर तक चलने का प्रभाव रखते हैं |


अगर हम ईश्वर की सत्ता को उसकी बनाई दुनिया में देखते हैं और उससे संतुलन बना कर चलते हैं , तो पाते हैं कि मन बेहद शांत है | ईश्वर की मर्जी में अपनी चाह मिला लेने से , सुख दुःख आने पर हलचल होती तो है , पर साथ ही शान्त करने वाले विचार भी आते जाते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का पलड़ा भारी होता जाता है | अपने साथ ईमानदार रहना ही अपनी आत्मा को बल प्रदान कर सकता है | यही ईश्वर से लय मिलाना है जो एक स्थाई आनन्द दे सकता है |


शनिवार, 7 मार्च 2009

आत्म-उन्नति के रास्ते के गड्ढे

हर किसी के मन को एक गड्ढे में जाकर बैठने की आदत होती है , जैसे कुत्ता एक गड्ढा खोद लेता है और बार-बार जाकर उसमें बैठ जाता है | ये गड्ढा होता है जिसमें मन को मजा आता है | उदहारण के लिए बुराई करने में , किसी की टांग खींचने में , अपनी बढ़ाई करने में , लालच करने में , दूसरों को छोटा समझने में या फिर व्यंग-बाण मारने में | ये आत्म-उन्नति के रास्ते के गड्ढे हैं अगर हम इन्हें देखना सीख जायेंगे तो अपनी कमियों को दूर करने का प्रयत्न भी करेंगे | अंतर्मन में सूक्ष्म रूप में भी ये मौजूद रहते हैं जैसे प्रत्यक्ष रूप में हम भी लिप्त हों मगर मन सूँघ कर भी रस ले लेता है , जैसे खाना नहीं भी खाया तो भी खुशबू से आनंद लेना चाहता है |


मुश्किल समय में हमारी आत्म-उन्नति या कहिये सत्कर्म ही हमारी रक्षा कर सकते हैं | खुली आँखों से तो हम कभी-कभी ही इस न्याय का परिचय पाते हैं , पर बंद आँखों से जब प्रकृति की इस कचहरी का दीदार कर लेते हैं ; तो पाते हैं कि ये कचहरी तो बड़ी न्यारी है , कानून-कायदे बेहद आसान | सबको प्रेम ही तो करना है , सबमें अपना आप ही तो देखना है , जब खुद को व्यंग-बाण से तकलीफ होती है तो दूसरे को यानि खुद को ही कैसे सताओगे | किसी दुखते दिल को मीठे बोल से उठाएंगे तो जैसे सारी कायनात मेहरबान हो उठेगी | सबसे पहले अपने ही मन में बजती हुई बांसुरी की आवाज सुनाई देगी | समाज की बनाई मर्यादाएं एक व्यवस्था को बनाये रखने में मदद-गार होती हैं | वैसे आत्म-उन्नति के पथ पर अग्रसर होते हुए हमारा मन खूब जानता है कि उसे किस वक़्त क्या करना है | जब आपके अन्दर प्रकृति से तालमेल बैठाने का गुण जाता है तो फिर कोई शक्ति आपका चैन नहीं छीन सकती , किसी से रोष है तकलीफ है , एक अजीब तरह का आनंद है , संतुलन है |


हम कुछ भी क्यों मांगे
जब तुम हो पिता हमारे
जानते हैं हर हाल में
हमारी राह तू सँवारे
क्यों फैलाएं हाथ हम
बन कर के भिखारी
जब पाना है सब कुछ
बन तेरा उत्तराधिकारी
भेद है हर मुश्किल में
तू दूर खड़ा निहारे
देता है कितनी न्यामतें
कमजोर को सहारे
तेरे नक्शे कदम पर चल सकें
ऐसी हो तकदीर हमारी
तू हाथ पकड़ चलाना
हम हैं औलाद तुम्हारी