गुरुवार, 27 मार्च 2014

आदमी का नट शैल

वो दोनों प्रिन्टर्स बुक-फेयर में एक ही स्टॉल शेयर कर रहे थे , मगर एक-दूसरे को कितना सहयोग दे रहे थे , इस बात से जाहिर है कि जब एक को दूसरे की किताब के विमोचन के अवसर पर किसी एक मेहमान के आने पर हॉल न. बताने के लिये कहा गया तो उसने साफ़ इन्कार कर दिया कि उसे याद नहीं रहेगा।  और ये दूसरे महाशय जिनसे किताब छपवाने का खर्च पूछा गया तो कहते हैं कि वे ऐसी वैसी कवितायें नहीं छापते ; जबकि पूछने वाले की कवितायेँ हाल में ही उन्हों ने ही छापीं थीं। अकेले तो कोई भी नहीं चल सकता , स्वार्थ-परता की हद है , जब अपना काम होगा तो दुनिया गधे को भी बाप बना लेने से नहीं हिचकती।  काम निकल जाने के बाद तू कौन मैं कौन हो जाता है। पहली ही नजर में अविष्वास , आदमी अपने नट शैल से बाहर ही नहीं आना चाहता। ऐसी कोरी-करारी दुनिया में कैसे चलिए।

जब भी हम किसी विषय-वस्तु पर बात करने से बचते हैं या कहते हैं कि अमुक विषय पर बात न की जाए ; दरअसल तभी हम दूसरे व्यक्ति से एक दूरी बना लेते हैं।  समस्या या सवाल जो अन्दर उबाल खा  रहे हैं , उन्हें रोकने का  मतलब अपने और उसके बीच एक दीवार खड़ी कर लेना है।  अब कोई भी सँवाद किसी भी नतीजे पर पहुँच नहीं सकता। दोनों के बीच रिश्ते अपना अर्थ खोने लगते हैं।  पता नहीं लोग कैसे कहते हैं कि we can agree to disagree . जबकि असहमति पर सहमति रख कर साथ चलना सम्भव ही नहीं हो पाता।  वो तो बस मजबूरी को ढोना मात्र होता है।  सँवाद-हीनता से भ्रम पनपते हैं… समस्याएँ खड़ी होती हैं।  फिर एक दिन ज्वालामुखी फूटता है।  

वो बात कर लेता तो…वो ऐसा न कहता तो........ जब हमारा रिश्ता इन बातों का मोहताज हो जाता है तो स्नेह-बेल पल्ल्वित होने से पहले ही अपने अस्तित्व के लिए हालात से जूझने लग जाती है।  रिश्ते की मजबूती के लिए स्नेह , विष्वास , स्वीकार-भाव और शौक का होना जरुरी है ; या यूँ कहिये कि प्यार और प्रेरणा ही रिश्तों का सम्बल है।