tag:blogger.com,1999:blog-47276609706385435662024-03-18T00:39:54.872-07:00जीवन यात्रा , एक दृष्टिकोणदिये की तली में अँधेरा होता है बेशक , मगर ये सच है कि एक दिये से हजारों दिये जल उठते हैं...शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.comBlogger99125tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-74076153922888696072024-02-07T19:34:00.000-08:002024-02-07T19:41:15.485-08:00हैकर्स से सावधान रहिए <p><b>आजकल स्कैम के नये-नये ढंग प्रचलित हो गए हैं ।बाज़ार तो आपको ठगने के लिये पहले ही बैठा था ; वो क्या कम था जो अब ऑनलाइन स्कैम करते हुए ठगी शुरू हो गई ।ख़रीद-फ़रोख़्त ,ए.टी.एम., नक़ली बैंक कॉल्स और अब पहचान छिपा कर आपके इमोशंस के साथ खिलवाड़ करते हुए ब्लैकमेलिंग ।</b></p><p><b>टेक्निकल जानकारी के अभाव में या कहिए कि अगर आप अतिरिक्त सावधान नहीं रहते तो ये ठग या शिकारी आपको निशाना बना सकते हैं ।ये तो ढूँढ ही रहे होते हैं कि कौन कमजोर टारगेट किया जाये ।बड़ी चतुराई से से नये-नये तरीक़े निकालते हैं जैसे कहेंगे कि आपकी बिजली का बिल जमा नहीं हुआ है , अमुक तारीख़ तक आपकी बिजली कट जाएगी , जल्दी पैसे भरिए , आप अगर कहेंगे हमने भर दिया था तो ये कहेंगे कि अपडेट नहीं हुआ बिल ।आप अपने फ़ोन पर चेक करने जाएँगे , आपका अकाउंट खुलते ही उनके सामने आपके सारे डीटेल्स खुल जाते हैं , वो फ़ौरन आपका सारा जमा पैसा विद्ड्रा करने की कोशिश करते हैं ।कभी तो घबरा कर आप ख़ुद ही उनके नम्बर पर पैसे भेज देते हैं ।यहाँ तक कि ये ठग आपके किसी रिश्तेदार की आवाज़ में आपसे बात करके किसी की बीमारी या कोई और किसी भी तरह की मजबूरी बता कर पैसे जमा कराने को कहेंगे ।आजकल वॉइस क्लोनिंग भी होने लगी है । इसलिए कभी भी किसी अपरिचित संदेश या नंबर से आई कॉल पर एकदम से यक़ीन न करें ।सिक्के का दूसरा पहलू भी देखें । </b></p><p><b>पिछले दिनों तो एक पढ़ी-लिखी लड़की को इक्कीस दिनों तक डिजिटली लॉक रखने का मामला प्रकाश में आया था । आपके नाम से कोई इल्लीगल पैकेट पकड़ा गया है , डराते-धमकाते हैं कि पैसे भरिए ।आपके किसी रिश्तेदार की पिटाई या पुलिस केस की बात करेंगे ।यहाँ तक कि पुलिस का सेट अप भी बना कर रखते हैं ।पूरी तैयारियाँ की होती हैं इन लोगों ने अपने इस इल्लीगल धन्धे के लिए ।</b></p><p><b>कितनी ही नक़ली साइट्स कुक्कुरमुत्तों की तरह उग आईं हैं ।इनमें शॉपिंग वाली साइट्स भी हैं और प्रचलित साइट्स के लिए कस्टमर केयर वाली साइट्स भी हैं ।पासपोर्ट लॉगिन के लिए भी नक़ली साइट्स हैं । आप अगर नक़ली साइट्स पर पहुँच जाते हैं तो ये आपका पैसा रिफ़ंड कराने के नाम पर आपका अकाउण्ट नंबर जानने की कोशिश करेंगे ।समय रहते सावधान हो जाइए ।</b></p><p><b>हैकर्स नक़ली पहचान , नक़ली चेहरे और नाम के साथ ग्रुप्स जॉइन करते हैं । फिर आपको दोस्ती की रिक्वेस्ट भेजते हैं ।आपके बारे में बात करके आपकी कमजोर नस जानने की कोशिश करते हैं । फिर फ़ोन नंबर शेयर करते हैं ।कॉन्फ़िडेंस में लेते हैं और एक दिन खेल खेल जाते हैं ।अभी कुछ सालों से ये लोग सेक्स स्कैम कर रहे हैं ।आपके दोस्त बन कर वाट्स एप पर वीडियो रिकॉर्ड करेंगे ।ये वीडियो किसी लेवल का भी हो सकता है यानि जितना आप इमोशनल फूल बने या जितना आप उसके झाँसे में आये । वीडियो कॉल के दूसरी तरफ़ एक दिमाग़ नहीं , कम से कम दो से चार की संख्या तक मेल , फ़ीमेल्स हो सकते हैं ।इनका अगला कदम होता है वीडियो को वायरल करने की धमकी देते हुए आपका बैंक बैलेंस ख़ाली करना ।इनके पास नक़ली इंस्पेक्टर भी होंगे । यहाँ जो डर गया वो मर गया ।क्योंकि आप सामाजिक डर से न तो इनकी शिकायत दर्ज करवा पाते हैं और न ही कोई और एक्शन ले पाते हैं । ऊपर से ये लोग हैं ही फर्जी नाम , पते , नम्बर और चेहरे के साथ ।कमजोर मन और कमजोर चरित्र का युवा या सीनियर कोई भी इनका शिकार हो सकता है ।ये सनक तो बहुत महँगी पड़ सकती है ।सारी युवा पीढ़ी फ़ेसबुक छोड़ चुकी है ; इनस्टा , थ्रेड वग़ैरह दूसरे ऐप्स पर जा रही है ।क्योंकि इस पर अब अधेड़ शौक़ फ़रमा रहे हैं ।इसलिए सोच समझ कर और पारखी नज़र रखते हुए दोस्त बनाइए ।किसी भी अपरिचित को अपनी लिस्ट में शामिल मत करिए भले ही आपकी हॉबीज़ मिलती हों ।</b></p><p><b>शालीनता के साथ ज़िन्दगी जियें ।जिस बात पर किसी से भी नज़र चुरानी पड़े उसे कर के क्या फ़ायदा ।कहते हैं भगवान हर जगह मौजूद है ; आज गूगल बाबा हर जगह देख रहा है , आप क्या साइट्स देख रहे हैं , इसे बखूबी मालूम है । जरा सोचिए ,क्यों आपके सामने वैसे ही वीडियोज़ या रील्स प्रस्तुत होने लगते हैं जैसे लिंक्स आप एक बार खोल लेते हैं ।ये मत समझिए कि आप अपनी सर्च हिस्ट्री डिलीट कर लेते हैं तो अब किसी को पता नहीं चलेगा ।आपका हर एक्ट कहीं मैमोरी में रेकॉर्ड हो रहा है ; इसलिए आप लाख चाहें इसकी नज़र से बच नहीं सकते ।</b></p><p><b>हैकर्स से बचने के लिए कहीं भी अपने बैंक एकाउंट्स की जानकारी शेयर मत कीजिए , OTP मत बताइए , सर्वसुलभ मत होइए ।दूसरों को दोष देने से पहले ख़ुद को सुरक्षित साइड रखिए ।हैकर्स द्वारा टेक्नोलॉजी का ये इस्तेमाल तो विध्वसंक है ।ग़लत तरीक़ा ग़लत ही होता है । बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी ।</b></p>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-70824175762367030692022-11-13T05:13:00.001-08:002022-11-13T05:14:11.845-08:00सासों या ससुराल पक्ष के लिये<p> <span style="color: #2b00fe;"><span style="caret-color: rgb(43, 0, 254);"><b>बहू और सास-ससुर या ससुराल पक्ष के बीच ख़ट-पट अक्सर सुनते आये हैं ।पहले वक्त और था जब बहुएँ काम-काजी नहीं थीं ;आज वो पति के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही हैं । आप उन्हें चूल्हे-चक्की यानि गृहस्थी तक सीमित नहीं कर सकते ।वक़्त बहुत बदल चुका है , आज के बच्चों को एक दूसरे को समझने के लिये , साथ वक़्त बिताने के लिये प्राईवेसी भी चाहिये ।आप खाम-खाँ बीच में टाँग अड़ाये हुए हैं ।</b></span></span></p><p><span style="color: #2b00fe;"><span style="caret-color: rgb(43, 0, 254);"><b>बहू को बेटी ही समझें ।जो उम्मीदें आप बेटी के ससुराल वालों से रखते हैं , खुद भी इन पर पूरा उतरें । धीरे-धीरे नये रिश्ते भी सहज होने लगते हैं ।उम्मीद बिल्कुल न रखें , सिर्फ़ अपने कर्तव्य याद रखें । अपने आचरण से आपने क्या कमाया ? क्या ये परिवार रूपी धन आपके पास है ? यानि जब कभी आप तकलीफ़ में हों , आपके बच्चे आपके पास दौड़े चले आएँ , तब तो समझें कि आपने संस्कार कमाये ।कभी बच्चे दूर चले भी जाएँ तब भी आपके दिये हुए संस्कार उन्हें कभी न कभी वापिस आपके पास ले ही आयेंगे ।</b></span></span></p><p><span style="color: #2b00fe;"><span style="caret-color: rgb(43, 0, 254);"><b>जो बेटियाँ अपने माँ-बाप को भाभी के विरुद्ध भरे रखतीं हैं , उनसे भी मैं ये कहूँगी उन्हें अपने भाई से प्यार है ही नहीं ।अगर होता तो वो हर क़ीमत पर उसका घर बनाये रखने की हर संभव कोशिश करतीं ।अलग कल्चर से आई लड़की आपको भी अजनबी लगेगी और उसके लिये तो पूरा वातावरण ही अजनबी है ।प्यार और सत्कार से वक़्त के साथ सब सहज होने लगता है ।</b></span></span></p><p><b style="color: #2b00fe;"> दहेज जैसी बात तो आज शोभा ही नहीं देती ।अगर अभी भी आप वहीं अटके हैं तो आप पुराना रेकोर्ड हो गये हैं । अब ग्रामोफ़ोन ही नहीं बजते तो रेकोर्ड किस गिनती में ।अब बेटियाँ बेटों से कम नहीं हैं ; कमाने में भी और आपका घर , आपकी पीढ़ियों को सुसंस्कृत बनाने में भी ।</b></p><p><span style="color: #2b00fe;"><b>अहं की लड़ाई को पीछे छोड़ दीजिये।टकरा कर आप खुद तो ख़त्म होंगे ही , परिवार की सुख-शान्ति भी ख़त्म हो जायेगी ।अगर आप अपने बेटे को प्यार करते हैं तो निस्संदेह उसके शुभचिन्तक भी होंगे : फिर आप खुद ही उसकी ख़ुशी को ग्रहण कैसे लगा सकते हैं ! बेटे की हर ख़ुशी , सुख-चैन बहू के साथ है ; आप को हर सम्भव कोशिश करनी चाहिये कि उनके बीच केमिस्ट्री बनी रहे ।तभी आप समझदार कहे जाएँगे ।</b></span></p><p><span style="color: #2b00fe;"><b>जरा सोचिए , ये वही लड़की है जिसे आप बैण्ड-बाजे के साथ झूमते हुए ब्याहने गए थे ।जिसकी माँ ने सोचा था जैसे विष्णु भगवान उसकी बेटी लक्ष्मी को लेने उसके द्वार पर आये हैं ।कहीं कोई सहमा हुआ सा डर भी किसी कोने में बैठा हुआ था , फिर भी वो उसे दर-किनार कर उस अनजान लड़के का , उसके परिवार का दिल से अभिनंदन करती है ।तो क्या आप इस लायक़ नहीं थे ? क्यों कड़वाहट के बीज बो रहे हैं ? वक़्त सिर्फ़ उसका है जो उसे अपना मान कर , अपना बना कर चलता है ।जो वक़्त चला जाता है , लौट कर कभी नहीं आता ।इसलिए वक़्त को यादगार बनाइये । </b></span><b style="caret-color: rgb(43, 0, 254); color: #2b00fe;">आपकी दी हुई ख़ुशी बरसों बाद भी लौट कर आप तक जरुर आयेगी ।</b></p>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-51022124305584800782022-08-15T21:01:00.003-07:002022-08-15T21:01:42.834-07:00पुस्तकें , सच्ची साथी <p><b>बचपन की प्राइमरी क्लास से लेकर ग़ूढ़ विषयों तक की पढ़ाई में पुस्तकें ही हमारा सहारा बनती हैं ।पुस्तकें ही सच्ची साथी साबित होती हैं , क्योंकि ये लगातार आपसे संवाद करती रहतीं हैं ।</b></p><p><b>पुस्तकें ख़ालीपन की , अकेलेपन की साथी होतीं हैं । आप घण्टों पुस्तक में रम सकते हैं। वक्त गुजरने का पता ही नहीं चलेगा।आप जिस तरह की पुस्तकों का चयन करते हैं वो आपके व्यक्तित्व पर प्रकाश डालता है ।उनका असर गहरा व देर तक या यूँ कहिए सारी उम्र रहता है ।आपकी रुचि साहित्यिक , जासूसी ,चरित्र- निर्माण , अभिप्रेरक , आध्यात्मिक इत्यादि पुस्तकों में हो सकती है ।</b></p><p><b>पुस्तकें आपको दर्द की गहराई से वकिफ़ कराती हैं तो करुणामय बनातीं हैं ।सामान्य ज्ञान से ले कर देश-विदेश , ज्ञान-विज्ञान , आदि से अन्त तक सम्भावनाओं से परिचय करातीं हैं ।शब्दावली के विस्तार से बोलचाल का कौशल बढ़ाते हुए आत्मविश्वासी भी बनातीं हैं ।बहुत सारे क्यों , कैसे , कब के उत्तर आपको मिल जाते हैं ।कल्पना से परिचय करातीं हैं , जागरूक बनातीं हैं ।ये आपको तार्किक ,बुद्धिमान ,कल्पना-शील ,रचनात्मक बनाने में सक्षम हैं ।</b></p><p><b>पुस्तकें आपकी विचारधारा को बदलने की ताक़त रखतीं हैं ।चरित्र-निर्माण में इनका महत्व-पूर्ण योगदान होता है । इनके पठन से प्रेरणा मिल सकती है , जीवन का उद्देश्य मिल सकता है और आपका सँसार को देखने का दृष्टिकोण बदल सकता है । बुद्धिजीवी वर्ग की भावनात्मक भूख किताबें हो सकतीं हैं । सकारात्मक सोच के साथ ये व्यक्तित्व निर्माण में अहम भूमिका निभाती हैं व बेहतर इन्सान बनाती हैं ।</b></p><p><b>पुस्तकें यानि साहित्य समाज का आईना होता है ।कवि तो बड़े से बड़ी बात को थोड़े शब्दों में कह लेता है । कहानीकार कहानियों द्वारा समाज के हालात को अभिव्यक्त कर कुरीतियों पर ध्यान दिलवाते हैं ।समाज में जोश और होश भरते हैं ।गीत नहीं लिखे गये होते तो मनोरंजन का साधन कैसे बनते ।</b></p><p><b>पुस्तकें पढ़ने का अहसास अलग ही होता है ।अच्छी पुस्तकें पढ़ने से जीवन बदल जायेगा।जीवन मूल्यों की शिक्षा भी अभिभावकों के अलावा हमें पुस्तकें ही दे सकती हैं ।पुस्तकें ही सुन्दर मानव सभ्यता का आधार हैं ।इसलिए सोच-समझ कर सकारात्मक विचारों वाली पुस्तकें ही पढ़ें ।ये अँधेरे में भी मार्ग दर्शन करेंगी ।जो पुस्तकें उत्तेजना , क्रोध और क्षोभ से भर दें यहाँ तक कि आप स्व-नियंत्रण तक खो दें या जो मानवता के लिए हितकारी न हों उन्हें अपनी सूची में शामिल न करें ।</b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">किताबें गुफ़्तगू करती हैं </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">आ जाती हैं कहीं रोकने ,कहीं टोकने </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">सहेली की तरह कानों में फुसफुसातीं हैं </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">साथ चलतीं हैं उम्र भर </span></b></p><p><br /></p>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-83200457159813266882022-03-09T22:04:00.003-08:002022-09-17T20:04:05.352-07:00शहर की साफ-सफ़ाई <p><b> जनप्रतिनिधि हम में से ही , हमारे द्वारा व हमारे लिए ही चुने जाते हैं ।जो धन-राशि जन कल्याण योजनाओं पर खर्च होती है वो सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है । विभिन्न प्रकार के करों द्वारा सरकार फंड इकट्ठा करती है ।घूम-फिर कर पैसा भी हमारा ही है और खर्च भी हम पर ही होना है ।विडम्बना ये है कि योजना की रूप-रेखा तैयार करते वक्त इतने ज़्यादा बजट का ब्यौरा दिया जाता है कि आधे से ज़्यादा राशि सम्बंधित लोगों की जेबों में जाती है ।ये पूरी एक चेन है ।और फिर वाह-वाही लूटी जाती है ।इस प्रक्रिया में जिसे ज़मीर कहते हैं वो तो नदारद ही है ।ये तो ठीक है कि काम होना चाहिए मगर क्या इस लेवल तक गिर कर ।</b></p><p><b>अब अपने शहर में चारों तरफ नज़र दौड़ाइये।</b><b>प्लास्टिक और कचरे के ढेर हैं चारों तरफ ,</b><b>तरक़्क़ी के नाम पर ये क्या हाल हो गया तेरा , ऐ मेरे शहर</b></p><p><b>रूद्रपुर शहर के ज़्यादातर सभी नालों का यही हाल है ।गन्दगी से अटे पड़े हैं ।जिधर देखो नालों में प्लास्टिक की पन्नियाँ और कचरा भरा हुआ कीचड़ खड़ा है ; जो मच्छरों और बीमारियों को दावत दे रहा है ।सड़कें कितनी भी साफ रख लें , दुकानें आलीशान हों , मगर ये गन्दगी तो अव्यवस्था का सारा कच्चा चिट्ठा खोल रही है ।आप रेलगाड़ी से सफर करिए , घरों के पीछे ट्रैक के आसपास तो हर शहर में यही हाल दिखेगा ।</b></p><p><b>आवश्यकता है इन नालों की अविलम्ब व नियमित सफ़ाई व निरन्तर बहाव को बरकरार रखने के लिए समुचित व्यवस्था की व जन जागरण की भी ।सड़क पर व नालों में प्लास्टिक की थैलियाँ व अन्य कचरा कभी नहीं फेंका जाना चाहिए ।इसके लिए निर्देशित दूरी पर कूड़ेदान रखे जाने चाहिए । स्वच्छता अभियान चलाया जाना चाहिए । बच्चों को स्कूलों में ये शिक्षा देनी चाहिए और घरों में बड़ों को अपने आचरण से सिखाना चाहिए ।विदेशों जैसी चमचमाती साफ-सुथरी सड़कें हमारे यहाँ क्यों नहीं हो सकतीं ? </b></p><p><b>वैसे तो पूरे शहर का हाल ऐसा ही है ।मगर रेलवे-स्टेशन और उस से लगी कालौनी के बीच बने नाले की दुर्गति तो देखते ही बनती है ।सोढी कालौनी की तरफ तो सारा कूड़ा ही इसमें डाला जाता है ।बिना पुल के मिट्टी डाल कर आने जाने का रास्ता बना लेने से बहाव भी रुका हुआ है ।इस तरह साथ की दूसरी फ़्रेंड्स कालौनी का बहाव भी रुका हुआ है । खड़ा बदबूदार पानी गन्दगी और मच्छरों का घर बना हुआ है ।आवश्यकता है कि प्रशासन इसकी जल्दी से जल्दी सुधि ले ।</b></p><p><b>हम जगह-जगह प्लास्टिक का कचरा डाल कर इस धरती को कितने सौ सालों के लिए दूषित कर रहे हैं ; ये कई सौ सालों तक मिटाया न जा सकेगा । प्लास्टिक अगर कूड़े में जलेगा तो पर्यावरण दूषित होगा । धुएँ में , हवा में घुल कर हमारे फेफड़ों को संक्रमित करेगा ।</b></p><p><b>आवश्यकता है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि विकास के साथ-साथ इस ओर विशेष ध्यान दें ; क्योंकि ये स्वास्थ्य के साथ-साथ शहर की सुन्दरता का सवाल भी है ।</b></p><p><br /></p>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-36247407268156643212021-09-20T17:42:00.002-07:002021-10-21T22:59:36.166-07:00सोशल मीडिया <p><b> दिल पर मत ले यार , ये सोशल मीडिया है। इंटरनेट की दुनिया आभासी है , आभास तो होता है, मगर कितना सार है इसमें , कितनी वास्तविक है , कह नहीं सकते । कितने कमेंट्स, कितने लाइक्स ! मिलें तो ख़ुश न मिलें तो नाखुश , इस सबमें क्यों उलझें हम , हमने अपना काम किया , उसकी वो जाने। कई बार तो इष्ट-मित्र देख भी नहीं पाते क्योंकि जब उनकी फ़्रेंड लिस्ट लम्बी होती है तो हो सकता है आपका मेसेज स्क्रोल में बहुत नीचे पहुँच जाता हो। कई बार सोशल मीडिया पर आने का वक्त ही नहीं मिलता। अरे भई, और भी ग़म हैं जमाने में इस फेसबुक और वाटस एप के सिवा 😁 ! साथ ही ये भी सच है कि कई बार लोग प्रतिक्रिया देना भी नहीं चाहते ; खुद को ही देख लो अपना मन ही कितनी जल्दी-जल्दी बदलता है । आज कोई बड़ा अपना लगता है तो कल वही बड़ा ग़ैर या बेग़ैरत। क्यों उम्मीद रखनी है दुनिया से ? यहाँ अटकने की जरुरत नहीं है। वैसे फोटो के साथ डाला गया संदेश ज़्यादा असरकारक होता है। सिर्फ़ लिखा हुआ कम लोग पढ़ते हैं ; रुचियाँ भिन्न-भिन्न होने पर भी आपका मेसेज सब लोग नहीं पढ़ेंगे ।</b></p><p><b>वाटस एप और फ़ेसबुक ने प्रोफेशनल्स की ऐसी टीम बनाई हुई है जो धार्मिक अंधविश्वासों , देशप्रेम के नाम पर या खोए बच्चों या बीमार लोगों के नाम पर झूठी-सच्ची ऐसी पोस्ट्स बना कर फ्लो करते रहते हैं कि लोग उस पर कमेंट्स करते रहें या चर्चा करते रहें और लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज़ पर नकारा हो जाएँ और उनकी चाँदी ही चाँदी हो क्योंकि ये वेबसाइट्स तो फलफूल रही हैं। धार्मिक तस्वीर के साथ लिखेंगे जो आज इस पर ‘जय हो’ लिखेगा उसकी मनोकामना पूरी होगी । या कुछ डरावने मेसेज भी होंगे । भला सिर्फ़ लिखने से किसी का भला हो जायेगा या वो व्यक्ति धार्मिक कहलायेगा ? आज धार्मिक स्थल के चक्कर पे चक्कर लगाने वाला या बहुत पूजा पाठ करने वाला भी जरुरी नहीं कि अच्छा इन्सान ही हो। इंसानियत पर जो न पसीजा तो कैसा अच्छा दिल ! ऐसे मैसेजेस से डरने की जरुरत ही नहीं होती ये आपको धर्म- भीरु बनाते हैं , कर्म बुरे नहीं तो क्या डर ? इन पोस्ट्स पर कम्मेंट्स करने पर आप इन्हें लगातार फ्लो में बनाये रखते हैं ।</b></p><p><b>आज सोशलमीडिया ने अभिव्यक्ति के लिए कितने सारे प्लेटफ़ार्मस हमें दिये हैं ; ट्विटर , लिंकड-इन ,टैगड , इंस्टाग्राम ,स्नैपचैट , फ़ेसबुक ,ब्लॉग राइटिंग, यू- ट्यूब आदि। कल तक अख़बार या पत्रिका में छपवाने के लिये भी हमें हील-हुज्जत करनी पड़ती थी पर आज एक क्लिक के साथ हम दुनिया के सामने होते हैं ।अभिव्यक्ति की आज़ादी और सर्व-सुलभता के नाम पर हमें इसका अनुचित उपयोग नहीं करना चाहिये ; इसलिये सिर्फ़ ऐसा परोसें जो सबके हित में हो , जो किसी दिल को उठाये , इंसानियत के लिये हितकारी हो , किसी को राहत दे , उसे लगे उसकी अपनी ही बात है ।</b></p><p><b>आज कोई भी सोशल-मीडिया से अछूता नहीं रह सकता है , ये हमारी दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अँग बन गया है । इसने व्यवसाय , नौकरियों , बुकिंगस , पढ़ाई , बैंकिंग ,शॉपिंग , मीटिंग्स , वीडियो- कालिंग आदि को इतना सुविधाजनक कर दिया है कि इसके बिना रहने की बात सोची भी नहीं जा सकती ।आज कोरोना काल ने तो इसके महत्व को और भी उजागर कर दिया है ।</b></p><p><b>इतने सारे फ़ायदों के बीच इसके नकारात्मक प्रभाव भी आ रहे हैं ,जैसे इसके इस्तेमाल का फोबिया , डिप्रेशन ,कंस्ट्रेशन की कमी , सोशल अलगाव , औरों के साथ खुद की तुलना करना , रोज़मर्रा की गतिविधियों में कमी। कभी-कभी तो फ़ेक लोगों के सम्पर्क में आ कर फँस जाते हैं। तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा करने से जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बड़ी सरलता से ये सब तक पहुँच जाते हैं । फ़ोटो और जानकारी शेयर करने से प्राईवेसी तो भंग होती ही है ।</b></p><p><b>अब ये हम पर है कि हम इसका कितना सही उपयोग करते हैं। कोरोना काल में जहाँ हम बाहरी दुनिया से भौतिक रुप से कटे, नेट ने हमारी दुनिया को ही विस्तार दे दिया। कई लोगों को इसने नई पहचान दी , कितने ही लोगों को रोजी-रोटी दी , क्रियेटिविटी को मंच दिया। कितने ही कुकरी, क्राफ़्ट ,म्यूज़िक बैंड ,टीचिंग क्लासेज़, बुटीक के यू-ट्यूब चैनल्ज़ इसी वक्त की देन हैं। सामाजिक अभियान चलाने के लिये भी सोशल मीडिया से बढ़ कर कोई प्लेटफ़ार्म नहीं है। बस ये हम पर है कि हम कितनी सही दिशा पर हों। रिश्तों को मजबूती देने में भी इसका जवाब नहीं ; दूर बैठे हुए भी आप एक सौहार्द-पूर्ण टिप्पणी देकर या एक फोन कॉल कर रिश्तों में अपनत्व बनाये रख सकते हैं ।</b></p><p><b>इसलिए दिल पर मत लो , आगे बढ़ चलो , इसके बिना काम नहीं चल सकता , मगर इसको उतना ही समय और महत्व दो जिसमें आपकी बाकी दिनचर्या पर असर न पड़े ।😁😁</b></p>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-9493424829653280882021-04-24T21:51:00.000-07:002021-04-24T21:51:46.680-07:00 ज़िन्दगी एक बार , तो क्यों सोचें दो बार <p><br /></p><p>कोविड की लहर उठी है , आपको भी सदभावना की लहर उठानी है । ये भी सच है कि आपको खुद को सुरक्षित साइड रखना है मगर ये भी तय है कि इस लहर में कौन-कौन बच रहेगा और कौन-कौन इसके साथ जायेगा।ज़िन्दगी जो एक बार ही मिली है तो ज़्यादा सोचें मत , जो अच्छा कर सकें , कीजिए।कोई अफ़सोस या किसी अपराध बोध को जगह मत दीजिए। इंसानियत बची तभी इन्सान बचेंगे ।आलोचना में कुछ नहीं रखा । हम आप से ही सरकार बनी है , संसार बना है । हम आप ही व्यवस्था के लिये ज़िम्मेदार हैं ।किसी दिल को बदलना है तो पहले खुद को बदलिए ।ये मुश्किल वक्त है , सहयोग से कटेगा ।</p><div dir="ltr" style="caret-color: rgb(102, 102, 102); color: #666666; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="background-color: rgba(255, 255, 255, 0);"><b><span style="color: #2b00fe;"><br />मेरे देश का इक इक नागरिक लड़ रहा है लम्बी लड़ाई<br />खतरे में है वजूद<br />अदृश्य है दुश्मन<br />बचा रहे इन्सान का नामों-निशाँ<br /><br />आओ सब एक साथ<br />भूल कर सारे भेद , बैर-भरम<br />सिर्फ हौसले की जंग काफी नहीं<br />जुनूने-जोश की भाषा समझता है दिल<br />प्रेरणा ही वो शय है जो जीत का सबब बनती है<br />जीतेंगे हम , मनुष्य की लड़ाई है मनुष्यता के लिए<br />इन्सान बचाओ , इंसानियत बचाओ<br />Save humans , Save humanity</span></b></span></div>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-29968062724486875182020-11-25T22:41:00.002-08:002022-02-28T01:29:15.150-08:00फ्रैंकफर्ट मेरी नजर से <p><b><span style="color: #2b00fe;"> बादलों के झुण्ड .... जैसे रुई के अम्बार लगे हों , जिन्हें चीरता हुआ प्लेन सुबह-सुबह जर्मनी फ्रैंकफर्ट के आसमान से जब नीचे उतर रहा था ; गहरे हरे रँग के जँगल , हलके धानी और पीले रँग के खेत , खिलौनों जैसे घर साफ़ दिखाई देने लगे थे।इमिग्रेशन और सिक्योरिटी की औपचारिकताओं के बाद जब हम एयर-पोर्ट से बाहर आये ,बच्चे दूर से ही इन्तिजार करते दिख गये। एयर-पोर्ट पर कोई मारामारी नहीं ,बहुत कम लोग दिखे ,सामान के लिये भी कोई चैकिंग नहीं। </span></b></p><div><div><b><span style="color: #2b00fe;">मैने अभी तक इतना साफ-सुथरा ,सुनियोजित ,ट्रैफिक रूल्ज फॉलो करने वाला शहर नहीं देखा था। हॉर्न तो बजते ही नहीं थे ,गाड़ियाँ भी एक निश्चित दू</span><span style="color: #2b00fe;">री</span></b> <b><span style="color: #2b00fe;">रख कर चलतीं थीं। सड़कों पर दोनों ओर साईकिल चलाने वालों के लिये और पैदल चलने वालों के लिये दो अलग-अलग सड़कें थीं। सड़क पार करने के लिये क्रॉसिंग पर ग्रीन सिग्नल होते ही सड़क पार करने के लिये टीं-
टीं की आवाज़ भी होती ताकि कोई ब्लाइंड पर्सन भी सड़क पार करना चाहता है तो आराम से कर ले। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">सभी तरफ खुलापन ,ज्यादातर पाँच-मंजिली इमारतें ,हर लाल-बत्ती के पास मेट्रो-स्टेशन्स दिखे। ये देश महँगा जरूर है ,मगर सरकार की तरफ से सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेट्रो स्टेशन पर टिकट देने के लिए कोई है ही नहीं। आपको खुद ही मशीन में जगह का नाम व पैसे भरने हैं और टिकट या मंथली पास नि</span><span style="color: #2b00fe;">का</span><span style="color: #2b00fe;">लना है। मैं हैरान थी कि कहीं कोई मशीन चेक करने के लिये भी नहीं थी। फिर पता चला कि कभी-कभी सरप्राइज चैकिंग होती है , बेटिकट लोगों पर तगड़ा जुर्माना लगता है। इसलिए कोई भी बेटिकट सफर नहीं करता। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">सामान खरीदने जाओ या आसपास जो भी मिलता है अभिवादन में हलो जरूर बोलता है। वैसे वो किसी की भी ज़िन्दगी में दखल नहीं देते। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"> राइन नदी फ्रैंकफर्ट से लगी हुई बहती है
। पूरे तट पर साइक्लिंग के लिए सड़क और घास ऊगा कर मनोरम पार्क विकसित किये हुए हैं। राइन नदी के ब्रिज पर ताले बँधे हुए थे ,पूछने पर पता लगा कि यहाँ विश माँगी जाती है , मान्यता है कि वो पूरी हो जाती है। फोटो देखिये ...दूर से नजर आते हुए आसपास के गाँव और खेत....मनोरम दृश्यों से भरपूर। <br /></span></b></div><div><b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvo8xXDad15HnJORreH4ojgtlYcjrXaF32QWeNWAB4EMBToGutwSx8R3mj88kWsgn9PI5_hBY6GN-Dw6bpO_cBUb1Zn4CxilvaZ-LebgQ7SKm5Ax0sSOoMaeDRf9sD2JMcSuXKP66atgg/s2048/IMG_20190602_211739.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1152" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvo8xXDad15HnJORreH4ojgtlYcjrXaF32QWeNWAB4EMBToGutwSx8R3mj88kWsgn9PI5_hBY6GN-Dw6bpO_cBUb1Zn4CxilvaZ-LebgQ7SKm5Ax0sSOoMaeDRf9sD2JMcSuXKP66atgg/s320/IMG_20190602_211739.jpg" width="320" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsaP1PZ1yz3cCtnAYbeTlk48smiGC4V53RAVW3lN4imKVkI4n7nqr-aXRQmg_lGvZ-5alSh0TbSk3Z0M2-K4DWNn4HdYoSFkebZkLA1un44NmnPZbqBrSu8wpLIEU5scLz0eEFU4I3Ius/s2048/IMG_20190602_201309.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1152" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjsaP1PZ1yz3cCtnAYbeTlk48smiGC4V53RAVW3lN4imKVkI4n7nqr-aXRQmg_lGvZ-5alSh0TbSk3Z0M2-K4DWNn4HdYoSFkebZkLA1un44NmnPZbqBrSu8wpLIEU5scLz0eEFU4I3Ius/s320/IMG_20190602_201309.jpg" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div></b><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0eAF_NM0YqxTMu6ZLplV4NMjFd30xISScKmIa1uZULpShIV6R8ZcB0chVKWn30vWWc8FZA-XNaP1bBpublkkf7DkyB0pmew7C4ZDVAO3O2EEzS1u5wfw86hDtjG0LIaxzhI8BNuEFXMk/s1600/IMG-20190519-WA0006+%25281%2529.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="1200" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0eAF_NM0YqxTMu6ZLplV4NMjFd30xISScKmIa1uZULpShIV6R8ZcB0chVKWn30vWWc8FZA-XNaP1bBpublkkf7DkyB0pmew7C4ZDVAO3O2EEzS1u5wfw86hDtjG0LIaxzhI8BNuEFXMk/s320/IMG-20190519-WA0006+%25281%2529.jpg" /></a></div><br /></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">गर्मियों में सुबह साढ़े पांच बजे सूरज अपनी किरणों के लाव-लश्कर के साथ दस्तक देने लगता। रात होती साढ़े दस बजे। अब घड़ी देख कर सोओ जागो।शाम सात बजे सारे बाजार बंद हो जाते ,मगर उजाला तो दस बजे बाद भी रहता ; मगर सड़कें सूनी होतीं ,रेस्टोरेंट्स खुले रहते। आबो-हवा हमारे नैनीताल वाली और विकास किसी मेट्रोपॉलिटिन सिटी सा। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">फड़ या अतिक्रमण कहीं नहीं। रैस्टौरेंट्स के बाहर खुली जगह में टेबल चेयरस लगीं रहतीं .टी. वी. पर मैच देखते हुए ,बड़े-बड़े बियर और व्हिस्की के ग्लास भर कर बैठे लोग ,ज़िन्दगी को भरपूर जीते हुए लगते। ऐसा नहीं कि एल्कोहल पीने वाले लोग ही ज़िन्दगी को पूरी शिद्दत से जीते हों। यहाँ के लोगों के लिए ये उनके आम खान-पान का हिस्सा है ,शायद आबो-हवा की माँग भी, और ये उनके जीने का अन्दाज़ भी। एक डिश और एक ड्रिंक ऑर्डर करना ही उनका रोज का लन्च या डिनर भी। कहीं कोई हँगामा नहीं करता। सारे स्टोर्स में सभी तरह की एल्कोहल आम ग्रौसरी की तरह ही उपलब्ध रहती। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">इंग्लिश में काम चल जरूर जाता है मगर जर्मन सीखे या जाने बगैर आपकी ज़िन्दगी यहाँ बहुत आसान नहीं हो सकती। स्ट्रीट यहाँ स्ट्राज़ो होती है और यूनिवर्सिटी होती है यूनिवर्सिटैट , मेट्रो बान और रेलवे-स्टेशन हाफबानऑफ। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">बुलेट ट्रेन से पेरिस जाने के लिये जब स्टेशन गये तो मैं हैरान रह गई कि तेइस-चौबीस प्लैटफॉर्म्स के लिये एक ही प्लैटफॉर्म से ब्रांचेज बन गईं हैं। आपको कोई ब्रिज पार नहीं करना। ट्रेन के दोनों तरफ इंजन हैं। एक तरफ से गाड़ी आई और उसी रास्ते पिछले इंजन से वापिस चली जायेगी .आदमी का वक्त कीमती है भई। टिकट पर स्टेशन का प्लेटफार्म लिखा रहता। स्क्रॉल की सुविधा भी हर जगह। लोकल बस ट्रॉम ,मेट्रो हर जगह स्क्रॉल , 6 .14 तो
6 .14 और 5.19 तो
5.19 पर बस स्टॉप पर पहुंचेगी , कोई शोर नहीं , मेट्रो हर तीन मिनट में।फोन में ऐप डाउनलोडेड रहते ट्रान्सपोर्टैशन सुविधाओं की समय सारणी के भी , किसी से पूछने की भी जरुरत नहीं। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">हर स्टोर में प्लास्टिक की बोतलें रिसाईकिल करने की मशीन लगी है। पैसे सामान में रीइम्बर्स हो जाते।पब्लिक जगहों पर कांच की बोतलों को डिस्पोज़ ऑफ़ करने के लिए तीन तरह की मशीनें लगीं हैं ,ब्राउन ,ग्रीन और सफ़ेद। हर जगह कूड़ेदान और सफाई।इतनी जागरूकता सरकार की भी और जनता की भी !</span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"> यहाँ सब तारें अंडरग्राउण्ड ही है ,कहीं कोई खंबे या तारें हवा में नहीं लटकते।
कहीं कोई केबल मरम्मत होनी थी।मैंने देखा कि छः आदमी दो मीडियम से ट्रक ले कर आये.सड़क के पत्थर उखाड़े , मिट्टी निकाली ,उसे एक ट्रक में भर लिया। केबल की तारों को अलग-अलग बाँधा , ट्रक से डिवाइडिंग बार्स निकालीं ,गड्ढे और चौड़े पत्थरों के इर्द-गिर्द पार्टीशन खड़ा कर दिया ताकि गलती से भी कोई दुर्घटना ना हो। अगले दिन ही वो जगह बिल्कुल नार्मल सड़क की तरह थी। सारी फैक्टरीज और फर्नीचर्स की दुकानें शहर से दूर हैं ताकि लोगों को असुविधा न हो। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">दवाइयाँ बिना डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के नहीं बिकतीं। सेहत के लिए कितनी जागरूकता है। ज्यादा लोग साइकिल चलाते मिलते। बच्चों के बड़ों के तरह-तरह के साइकिल ,प्रैम ,और हेल्मेट्स देखने को मिलते हैं। इतने प्यारे बच्चे ,जैसे किसी डॉल हॉउस में आ गए हों। वक्त को भरपूर जीना कोई इनसे सीखे।पार्कों में दरियाँ बिछा कर , धूप सेंकते हुए लोग , पिकनिक मनाते हुए , व्यायाम और खेल-कूद करते हुए अक्सर हर सप्ताहाँत दिख जाते। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><span style="color: #2b00fe;"><b>मैं अचरज से भी देख रही थी और अभिभूत भी थी , सोच रही थी कि ये सब हमारे भारत में क्यों नहीं हो सकता। हमारी जनसँख्या इतनी ज्यादा है कि जगह की कमी ,सुविधाओं की कमी और इसके साथ हमारी नीयत सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ;पब्लिक वाली सुविधाएँ तो हम घर उठा कर ले जाएँ। भ्रष्टाचार की वजह से विकास की सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं।फाइनेंस कैपिटल फ्रैंकफर्ट की जनसख्याँ 2017 के आँकड़ों के हिसाब से सात लाख पन्द्रह </b></span><span style="color: #2b00fe;"><b>हजार</b></span> <b><span style="color: #2b00fe;">और हमारे दिल्ली की 2011 के आँकड़ों के हिसाब से तकरीबन सवा करोड़। </span></b></div><div></div></div>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-45836049739169400982020-10-04T01:36:00.000-07:002020-10-04T01:36:42.639-07:00समाज की उधड़ती परतें : नशा <p><b><span style="color: #2b00fe;"> समाज की पर्तें उधड़ रही हैं , नेपोटिज्म ,पॉलिटिकल कनेक्शन ,ड्रग कनेक्शन और रिश्तों की टूटन । रिश्तों की टूटन अन्ततः डिप्रेशन की तरफ ले जाती है। ये साफ़ होता जा रहा है कि आज की आर्टिफिशयल चमक-दमक भरी दुनिया किस तरह नशे की गिरफ़्त में आ चुकी है। </span></b></p><table class="aoP aoC" id=":oh" style="width: 478px;"><tbody><tr></tr></tbody></table><div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b><b><span style="color: #2b00fe;">ड्रग्स </span></b><b><span style="color: #2b00fe;">पार्टीज करना महज़ मनोरँजन के लिए या शौक नहीं है ;यहाँ तलाशे जाते हैं मौके यानि ऊपर चढ़ने की सीढ़ियाँ ।
वही लोग जो यहाँ किसी उद्देश्य से आते हैं वो खुद कभी किसी के लिए सीढ़ी नहीं बनते ; बल्कि दूसरों के पाँव के नीचे की जमीन तक खींचने के लिए तैय्यार रहते हैं
। पहले-पहल कोई मॉडर्न होने के नाम पर </span></b><b><span style="color: #2b00fe;">ड्रग्स</span></b><b><span style="color: #2b00fe;"> चखता-चखाता है ;फिर धीरे-धीरे ये लत बन जाता है ,जैसे धीमे-धीमे कोई जहर उतारता रहता है अपनी रगों में
।</span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">एक दिन ये भी आता है कि नशा जरुरत बन जाता है शरीर की भी और मन की भी। आदमी भूल जाता है कि जिस दीन-दुनिया की खातिर नशे को गले से लगाया था ,वही दुनिया उसे अब छोड़ने लगती है। हर अप्राकृतिक चीज के साइड इफेक्ट्स होते हैं। नशा शरीर को खोखला कर देता है। ज्यादा दवाइयाँ और हारमोन्ज़ माइकल जैक्सन की हड्डियों तक को खोखला कर गए थे ;सभी जानते हैं कि कितनी कम उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गए। कामयाबी ,शोहरत ,पैसा किसी भी काम न आया। जिस सेहत को आप हजारों रूपये दे कर भी खरीद नहीं सकते ; उसे दाँव पर लगा देना , इससे बड़ी नादानी क्या होगी। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">कैसी विडम्बना है कि नशा जिस मानसिक स्थिति को उठाने के लिए किया जाता है , उसी को घुन की तरह खाने लगता है। ये जितना चुम्बक की तरह लुभाता है ,उतना ही आप ज़िन्दगी से दूर होते जाते हो। धीरे-धीरे नकारा होते जाते हो। जब आँख खुलती है तो ज़िन्दगी का कोई मक्सद ही नजर नहीं आता। खोखली ज़िन्दगी और खोखला मन डिप्रेशन और बीमारियों की तरफ धकेल देता है। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"> तक़रीबन पन्द्रह साल पहले अखबार में छपा था किशोरावस्था के स्कूल जाने वाले बच्चे इंक इरेजर या वाइटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं नशे के लिए। फिर इनकी सेल बैन कर दी गई थी। चिंता का विषय है कि इतने छोटे बच्चों को ये लत किसने लगाई ,किसने उन्हें ये रास्ता दिखाया। ड्रग्स बहुत गहरे अपनी पैठ बनाये हुए हैं। जब दाल बीनने बैठेंगे तो सारी दाल ही कहीं काली न मिले। <br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">ड्रग्स की खोज दवा की तरह की गई थी और लोगों ने इसे कारोबार बना डाला ;अमीरी का सबसे आसान रास्ता। मौज-मस्ती की आड़ में हमें पता ही नहीं चलता कि हम अपने नैतिक मूल्यों से कितनी दूर आ गये हैं। आडम्बर करते-करते अपनी ही दुनिया में आग लगा बैठे है। नींव खोखली हो तो किसी भी समाज का भविष्य दाँव पर लगा होता है। अब जब समाज की पर्तें उधड़ने लगीं हैं। पर्त -दर-पर्त कितने ही लोग नपेंगे। </span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;"><br /></span></b></div><div><b><span style="color: #2b00fe;">आप खोजिये इस नकली चौंधियाती दुनिया में असली रिश्तों को ,किसी छाँव को , किसी आराम को। अब आप बहुत दूर निकल आये हैं। आपके हाथ से बहुत कुछ छूट गया है। दो बूँद ज़िन्दगी की चाहिए थी और आप नशे को , भटकाव को गले से लगा बैठे। </span></b></div></div>शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-28499631431593359822020-04-16T06:31:00.000-07:002020-04-16T10:26:05.803-07:00कैसे गुजारें सोशल डिस्टेंसिंग का वक़्त <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="color: blue;"><b>इक सन्नाटा सा पसरा है सारे शहर में </b></span><br />
<div>
<span style="color: blue;"><b>पत्ते भी हैं सरसराते , हवा भी चल रही है </b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>पक्षी भी हैं चहचहाते </b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>इक इन्सान ही ठहरा है अपनी आरामगाह में </b></span></div>
<div>
<b>१. ये सोशल डिस्टेंसिंग बीमारी से अपने बचाव के लिये हमें स्वेच्छा से खुद ही चुन लेनी चाहिये।निदान उपचार से बेहतर है। यही सर्वोत्तम है। इसे बेशक हमारे प्रधान-मन्त्री जी की मर्जी से लागू किया गया है। मगर ये सच है कि अगर इसे नियम न बनाया गया होता तो हम इसे बहुत हल्के लेते और भयँकर परिणाम झेलने पड़ते। </b></div>
<div>
<b>२. हम में से बहुत लोगों को घर बैठना बहुत कठिन लगेगा ; क्योंकि हम जिस रूटीन के आदी थे वो बदल गई है। वो दिनचर्या पूरी तरह बाहरी आधारों पर आश्रित थी। ये सही वक़्त है अपने ही आँकलन का। आप क्या क्या कर सकते थे और आप क्या कर रहे थे।घर पर रहते हुए अपने रिश्तों में रस घोलिये। घर का काम-काज आपको आत्म-निर्भर बनायेगा। विदेशों में तो सब काम लोग मिल-जुल कर खुद ही करते हैं , इसमें शर्म कैसी। घर के अन्दर आपको सब कुछ हासिल है। सरकार फ़ूड सप्लाई ,दवाइयाँ आदि जरुरत के हर सामान का ध्यान रख रही है। समझ-दारी के साथ बिना घबराये कम सामान के साथ गुजारा भी करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। खाना तो जीने के लिये खाया जाना चाहिये न कि खाना खाने के लिये जिया जाना चाहिये। यही बात पहनने ओढ़ने पर लागू होती है। हमारी जरूरतें जितनी सीमित होगीं हम उतने ही सुखी होंगे। दरअसल इन चीजों में मन को अटका कर नहीं रखना चाहिये। </b></div>
<div>
<b>३. अपना रूटीन बनाइये , जो काम अब तक आप नहीं कर पाये थे , वो करिये। कोई स्किल डेवलप करनी हो , किसी परीक्षा की तैयारी , कुछ छूटे हुये घरेलू काम ,किताबें पढ़ना या लिखना , बागवानी ,मेडिटेशन ,सँगीत प्रैक्टिस , गाना बजाना , पाक कला आदि किसी भी काम में महारथ हासिल करनी हो ;सब कर सकते हैं। ऑन-लाइन हेल्प , फोन-अ-फ्रेंड और आपके पास मौजूद किताबें आदि मदद-गार साबित होंगी। अब आपके पास खूब वक़्त है उसे जैसे चाहें इस्तेमाल करें। लोगों को आप भी मदद सकते हैं। कोई अपने शौक का काम तो जरूर करें। </b></div>
<div>
<b>४.ऐसा वक्त आ सकता है जब ह्रदय-हीनता ,सँवेदन-हीनता ,टकराव और तनाव की स्थितियों का सामना करना पड़े।अज्ञानता , अनभिज्ञता ,अपना बचाव करने वाली मानसिकता ,बुरे अनुभव या स्ट्रेस ऐसा कोई भी कारण हो सकता है। जब कारण देख सकने वाली दृष्टि पैदा कर लेंगे तो नाराज नहीं रह सकेंगे। और सहज रह सकना ही हमारी ताकत होती है; वरना हालात और समय को बर्दाश्त नहीं कर पाते और डिप्रेशन या बम फट पड़ने जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। </b></div>
<div>
<b>५. ये फुर्सत का वक्त आपको मिला है कि आप मनन करें, आप क्या-क्या कर सकते हैं। अपने अन्दर झाँक कर देखें। रिश्तों को एक धागे में पिरोएं , परिवार को वक्त दें। मेडिटेशन ,प्राणायाम को प्राथमिकता दें। यही आपको ठहराव देगा व स्थितियों को स्वीकार कर पाने की क्षमता देगा। </b><b style="background-color: #f6f6f6; font-family: "Trebuchet MS", Trebuchet, Verdana, sans-serif; font-size: 15.47px;">जिसकी नीँव में प्रेम हो वो स्वतः ही आनन्द का फल देगा ...बड़े बड़े कर्मों के पीछे प्रेरणा का स्त्रोत प्रेम ही होता है </b><span style="background-color: #f6f6f6; font-family: "trebuchet ms" , "trebuchet" , "verdana" , sans-serif; font-size: 15.47px;">।</span></div>
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<b>६. अनिश्चितता की स्थिति सता सकती है। नौकरी ,रोजगार सब पर असर पड़ेगा। और ये तो सारे देश क्या पूरी दुनिया के साथ है।और दुनिया ख़त्म नहीं होगी , सब फिर से वैसा ही चलेगा।हाँ हम लोगों को बहुत सारी सीख जरूर दे कर जायेगा। अगर आप समर्थ हैं तो दूसरों की मदद करिये। अगर आप समर्थ नहीं हैं तो सरकार आपके खाने का पूरा इन्तजाम कर रही है , घबराने की कोई बात नहीं है। जब आपदा का समय खत्म होगा , आपकी ज़िन्दगी का नया अध्याय शुरू होगा। अभी अपनी क़ाबलियत ,समझदारी ,सहन-शक्ति , व्यवहारिकता अमल में लाने का समय है। वक्त गुजर जायेगा , ये मायने रखता है कि आपने इसे कैसे गुजारा ! </b></div>
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<b>७. अपनी इम्युनिटी का पूरा ध्यान रखें। अपने शरीर की प्रकृति व ऋतु के अनुसार भोजन करें। साफ़-सफाई का ध्यान रखें। मन खुश रहेगा तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। </b></div>
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<b><br /></b></div>
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<b>घर कैद नहीं है। ये आपके सपनों की आराम-गाह है। आपका घर ही इस वक्त आपके लिए सबसे सुरक्षित स्थान है ; जहाँ आप सहज रह सकते हैं ,खुश रह सकते हैं , मनचाहा कर सकते हैं। तो चलिये इस वक़्त को यादगार बनाइये। </b></div>
<div>
<b><br /></b></div>
<div>
<b><span style="color: blue;">ऐ ज़िन्दगी न मैं चूहा न तू बिल्ली </span></b></div>
<div>
<b><span style="color: blue;">है तेरी ये आँख-मिचोली कैसी </span></b></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>मिलेंगे तुझसे तो पूछेंगे </b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>बता ,है ये हँसी-ठिठोली कैसी </b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b><br /></b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>कहाँ ढलता है सूरज दिन के ढल जाने पर </b></span></div>
<div>
<span style="color: blue;"><b>ढल जाती है जब उम्मीद समझो के शब हुई </b></span></div>
<div>
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
<br />
<div>
</div>
<br />
<div style="-webkit-text-stroke-width: 0px; color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium; font-style: normal; font-variant-caps: normal; font-variant-ligatures: normal; font-weight: 400; letter-spacing: normal; orphans: 2; text-align: left; text-decoration-color: initial; text-decoration-style: initial; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 2; word-spacing: 0px;">
<div style="margin: 0px;">
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
</div>
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शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-32889017576252972162020-04-10T05:17:00.000-07:002020-04-10T09:13:56.478-07:00कोरोना , कुछ मेरी कलम से <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWBILG7AQyLo5HDJ-aNidexjIewbwRlmeh3fBIeSAvKYPxlMgi3cvK3Dh3x8wQbMyqEodGsEwDs70OwTLDx5dmHa2lM0GEZZ-ILdOmbdOAfr_z_A5aQXF0mftfdY5AHrrpFZba_fuCFtU/s1600/1EAD19D2-222D-47F1-80DE-ED280846ED96.jpeg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="767" data-original-width="1024" height="239" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWBILG7AQyLo5HDJ-aNidexjIewbwRlmeh3fBIeSAvKYPxlMgi3cvK3Dh3x8wQbMyqEodGsEwDs70OwTLDx5dmHa2lM0GEZZ-ILdOmbdOAfr_z_A5aQXF0mftfdY5AHrrpFZba_fuCFtU/s320/1EAD19D2-222D-47F1-80DE-ED280846ED96.jpeg" width="320" /></a></div>
Picture credit -Kusha Arora ....my daughter<br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">हम जीते मरते रहते हैं जिन संवेदनाओं की खातिर </span></b><br />
<div>
<b><span style="color: blue;">सर पे लटकी हो तलवार तो सब हो जाती हैं बेमायने </span></b></div>
<div>
<b><span style="color: blue;">माँगते हैं सिर्फ चलने की डगर </span></b><br />
<b><br /></b></div>
<div style="text-align: left;">
<b>एक बार की बात है जब कोरोना की वजह से महामारी ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। once upon a time there was an outbreak of pandemic Corvid-19, a contagious disease etc.etc... ; हो सकता है हममें से बचे हुए लोग दादा-दादी या नाना-नानी की तरह कभी अपने पोते पोतियों को ऐसी ही कहानियाँ सुनाएँ। कोरोना ने हम सबको ऐसे हालात में ला कर खड़ा कर दिया है कि हम अपने-अपने घरों में कैद हो जायें। इस का असर सारी दुनिया , काम-धन्धे ,ऐ टू जेड हर बात पर पड़ेगा।मगर है तो सारी दुनिया पर ही। कभी ऐसा लगता है किसी फिल्म का सीन है , जैसे किसी एक जगह ला कर नजर-बन्द कर दिया गया हो। कभी ऐसा लगता है कि रोबोट या राक्षस की तरह वायरस आता है और जिधर नजर दौड़ाओ ज़िन्दगियाँ ही ज़िन्दगियाँ लील जाता है। </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">मौत का डर सताता है </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मौत आनी है एक दिन तो आयेगी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">वो जनम इक नया पैरहन होगा </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">रिश्ते-नाते रुह का सिँगार हैं </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">रात आयेगी तो सब विदा होगा </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">रुह कभी मरती नहीं </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">अपने ही नूर से तू वाकिफ होगा </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>इससे पहले कि हम कोरोना संक्रमित सँख्या का हिस्सा हो जायें , हमें खुद को आइसोलेट करना है यानि मेल-मिलाप से बचना है। ज़िन्दगी के सामने जात-पात , हिन्दू-मुस्लिम ,अमीर-गरीब सब गौण हैं।प्रगति ज़िन्दगी से बड़ी नहीं होती।प्रगति ज़िन्दगी के एसेन्स को बढ़ाने वाली जरुर होती है। आज अगर कोविड-19 के लिये वेक्सीन खोज ली जाती है तो मानव के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। </b><br />
<b>अभी तो हमें सुरक्षित रहने का , इम्युनिटी बढ़ाने का हर सम्भव प्रयत्न करना है। खान-पान ,साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। अगर आपको गले में जरा भी खराश लगती है तो दो तुरियाँ लहसुन की चबा-चबा कर खा जाएँ , इसकी तीखी गन्ध श्वसन-सँस्थान के सारे माइक्रोब्ज मार देगी ,गला खुल जायेगा। </b><br />
<b><br /></b>
<b>सबसे बड़ी बात है कि आप खुश रहें। ऐसे हालात का भी सकारात्मक पहलू देखें। ये तो एक मौका है अपने रिश्तों को वक्त देने का। अपने सीमित साधनों को सर्वोत्तम ढँग से उपयोग करिये। आराम करिये , घरेलू कामों में जरुरी व्यायाम भी हो जायेगा।मनन कीजिये , अपनी प्राथमिकताएँ तय कीजिये। जरुरत का सामान राशन , दूध ,सब्जियाँ आदि लाने भी बार-बार बाहर न जायें।कोई स्किल डेवलप करें। भीड़ करने से सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य व्यर्थ हो जायेगा। ज्यादा राशन इक्कट्ठा न करें क्यूँकि हो सकता है कि औरों के लिये पर्याप्त राशन न बचे। आप भूखे नहीं रहेंगे ,कुदरत पत्थर के नीचे दबे मेंढक तक के लिये खाने का इन्तज़ाम कर के रखती है। अभी तो हमारी सरकार फ़ूड सप्लाई का भी पूरा ध्यान रख रही है।लो इन्कम ग्रुप के लिये तो भण्डारा या फ्री वितरण भी चल रहा है। अभी वक्त है सँयम का। </b><br />
<b><br /></b>
<b>ये चुनौती-पूर्ण समय है , और समय कब चुनौतियों से भरा नहीं होता ?</b><br />
<b>डॉक्टर्स ,मैडिकल स्टाफ ,सफाई कर्मचारी ,पुलिस महकमा , बैंकर्स , फ़ूड सप्लायर्ज सभी बधाई के पात्र हैं उन्हें मानवता की सेवा करने का मौका मिला है। अपने-अपने स्तर पर हम लोग भी कुछ न कुछ योगदान कर सकते हैं , कभी किसी मन को उठा कर , और कुछ नहीं तो अपना ही ध्यान रखते हुए औरों के लिये समस्या न बन कर। </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">किसको पता था कि इस तरह भी दुनिया थम जायेगी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">छोटा सा कोरोना वायरस ,दहशत की पराकाष्ठा !</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">जैसे यमराज हो बिन आहट के चलता हुआ </span></b><br />
<span style="color: blue;"><b><br /></b>
<b>कभी सोचा है ,वाकये ऐसे भी हुए हैं </b></span><br />
<b><span style="color: blue;">जब छोड़ जाते हैं अपने ही लोग ,मरते हुए जिन्दों को श्मशान में </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">संवेदनाओं की पराकाष्ठा !</span></b><br />
<span style="color: blue;"><b><br /></b>
<b>घबरा मत ऐ इन्साँ </b></span><br />
<b><span style="color: blue;">ये दुनिया चला-चली का है मेला </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">ज़िन्दगी की है तय दासताँ </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>कभी ‘हॅंस ’ पत्रिका में एक कहानी पढ़ी थी शायद फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी ,जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था , किसी गाँव में महामारी फैलने की वजह से जब उल्टी-दस्त से लगातार मौतें हुई जा रहीं थीं ,घर में बाकी बच्चों के मर जाने के बाद छोटी बच्ची भी ग्रस्त हुई , तब ये किरदार अपनी बच्ची को मरने से पहले ही श्मशान पहुँचा देता है कि अब मरना तो तय ही है।</b><b>जरा सोचिये ,लाचारगी और बेबसी ने उसे कितना सँवेदन-हीन बना दिया होगा। बरबस उसी कहानी की याद आ जाती है। ये वक़्त पैनिक होने का है ही नहीं। ठन्डे दिमाग से निदान के हर सँभव उपाय अपनाइये। हो सकता है सँवेदन-हीनता के बहुत सारे किस्से पेश आयें ; मगर ऐसे में ही आपको रास्ता निकालना होगा। </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">साजिश में दुनिया की खुदा भी तो था शामिल </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">शिकायत कैसे करें , हैं उसकी मेहरबानियाँ भी कितनी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b>भारत के लोग असीम प्रतिरोधक क्षमता ,असीम प्राण-शक्ति के मालिक हैं ;हम मिल कर ये जँग जीतेंगे। सकारात्मक रहें ;ज़िन्दगी को ऐसे जियें जैसे कि ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा।सारी कवायदें ज़िन्दगी की ज़िन्दगी के लिये ,</b><b>क्यूँ न फिर गुनगुना ही लें ......</b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">ऐ ज़िन्दगी तेरा ,</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">तीरे-नजर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">जख़्मी-जिगर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">कोरोना का असर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">कुदरत का कहर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">और हाँ ,😁बचे तो सहर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">ऐ खुदा , ले आये हो ये किस मुकाम पर </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">रुक गई है दुनिया की रफ़्तार </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मगर हम दुआओं का असर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">रहमत की लहर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">हाँ शहर-दर-शहर देखेंगे </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<img alt="Image result for emoji with mask images" src="data:image/jpeg;base64,/9j/4AAQSkZJRgABAQAAAQABAAD/2wCEAAkGBwgHBgkIBwgKCgkLDRYPDQwMDRsUFRAWIB0iIiAdHx8kKDQsJCYxJx8fLT0tMTU3Ojo6Iys/RD84QzQ5OjcBCgoKDQwNGg8PGjclHyU3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3Nzc3N//AABEIAH4AewMBEQACEQEDEQH/xAAbAAABBQEBAAAAAAAAAAAAAAAAAQMEBQYCB//EAEMQAAIBAwEEBwQGCAMJAAAAAAECAwAEEQUSITFBBhNRYXGBoSJSkcEUFTJCsdEjM0NTVGJyowckghYlc5OUosLS4f/EABsBAAEFAQEAAAAAAAAAAAAAAAABAwQFBgIH/8QANxEAAgIBAgMEBwcEAwEAAAAAAAECAwQRIQUSMRRBUVITFSIycaGxFiMzU2GB0QZCkcE04fAk/9oADAMBAAIRAxEAPwD3GgAoAKAOZHWNCzkKoGSScAUMDPX3Su1QlLCJrtuG2DsxD/Vz8garcjidFO2urJtWDbZu9kVE2sazeNhZxAp+5bR7/Njk/hVVZxfIs2rROjg0Q3m9Ro6df3G+eS4fP764Y+maZbzrOr0HE8aHRHJ6OZ3mC2z3jPyrns2T5vmddpq8BRok8P6kBP8AgyFD8qVVZkOkvmI7aJdUdifWLHel3dKo5S/pV9c/jXaz82n3tzh4+NZ0J9p0ruIyF1C0Ei/vLY7/ADQ/Imp9HGoS2sWhGt4bJb1vU0Wn6laahHt2cyyAfaHBl8Qd4q4rthZHmg9SunXKt6SRMpw4CgAoAKACgAoArtY1e30uENMS0r/q4U+0/wCQ7+Api/IrojzTY7TTO2WkTHXVxf61MBcksnFbZM9Wvj7x7z5AVmcjOuy5ckNkXdeNVjrV9SxtdIRADOdo+6OFdVYEVvZuxuzKk9ollHGiLsxoqjsAqfGMY+7sRXJvqObNKJqGzQJqGzQLqIRQBDudPt58nY2H95d1RrcSuzu3HoXzh3lNd2FxZyieJ3R1+zPEcEeP5HIqC434b5oPYlKdV65ZIutF6S7ciWuq7KSE7Mc4GEc8gfdPofSr3C4nC/2ZbSK3JwZVe1DdGmzVqQBaACgAoArNc1aPSrUPjrJ5DswxZxtt8gOZqPk5EKK3OQ9RTK6fKjHW8NxqN28079ZPJvkkI3AdgHIdgrKTnbm2bvb6F7pDGhojQ2ttHbxhIx4k8TVpVVGpaRIE5ub1ZIApwb1FxQJqLigTUXFAaiYoDUMUC6nJFAupyyggg76OvUVMotV0xQjPGuYiPbTsqqycV1+3WT6L9fZkTOjWtvFKmnX8hZGOLeZjk/0N8j5eNtwziHpV6OzqQs7D5PvIdDWirorBaAGriZLeF5pmCRxqWZjwAFI2ktWKk3sjz+4uJtX1BrpwdqT2IYz9xOQ8eZ/+CshnZEsq7SPTuNFj1Rx6t+veX9nbpbQiNRv5ntNT6alVHlRBsm5vVklac1G2dcBk7hzNKcthHIkgOw6tjjsnNBzqd0CC0moCUAIaNRdThZY3YqsiEjkGFLoxU0Bo1Ojg76TVHSM7q9isbHZB6qThjdg1UZNTos549CyosVkeWRpei+qtf2bQ3DZurfCyH3x91vPn3g1p8HKWRUn395S5dHobNF0ZeVNIpl+mt4eqt9PQ4649ZLj3FPDzbHkDVVxXI9HTyrqyw4dTz2cz6IrtIiAJmYb+C/OqTCgt5sscmWvsotg9T+YhNHLySNJHb2yq1xLnZDfZUDix7hkeJIHOn6K3bLRdBmyXKiyg0W0GGul+lzc3nG0Af5V4L5D41bQqhDoiG5Nj02k2Ew9u0hDDg6LssPBhgjyrtxT6iasrZo5dOlVJJGltZG2Y5H+0jclY8weAPkc5zVdk46iueI7XPV6MezVfzjw1cT9THkKzuxCoi8WY8BXdcXZJRiI3otSRb6PHKNvUiLmQ/sz+qTuC8/E7/DhVzVRCtbdSNKTZKk0uwkTYeytyo4Dql3eG6ndEznUrL6zfTQZ4GeSzX9bG5LNEPeUneQOYPLhwwYl+MpLWPUertaejGy45VVcxNQxdIs8LRnnwPYabtirIOLHa3ySTRS6ddNp2q29yTsptdVMO1GOPQ4PgDUbhd7pvUX0exJzKlbS2uqPQ61xnjz/WZ/pWuXkufZRhCngvH/uLVk+L28+Rp4GgwIclGviSoJAkaoDwFcQsUYpCTi3LUkLNu40vpkMuJY9HFElxfTke0jpCPAIH/F/QVf8ADkvQKXiVuRrz6EjpTrcHRvQLzV7mN5I7ZNrYTixJwB8SKnjBlv8ADL/ElOm895ayaf8AQ7m3USALJtq6E444GCDQBttRtlvLKe2Y46xCob3TyPkd9I1qtGBR2d0bmzguCADLGrkdmRmsjO5Rk4+BOS2H7ACbWE2t4ghLgfzMdkH4Bh5mrbhLU1KQxdtoi5uZktreWeXIjiQuxAzuAyauRg8z6E/4v2/SjpOujtpb2qT7X0aXrdsnZBOGGN24HgTvoA9QYArv4c80AY6AiBHtwd0EskS9yqxC+gFZrMmq75RLKjWUExHm76j+mRJUCqv0WRpBj2XGD58ahWPS3mROq3jozbaBd/S9GtJpGHWGPZff95dx9Qa2lFinXGXijN3VuNkkYOJi7PI4IaR2kII3+0SfnWNy23dJvxNHSkqkkS4yaiOT8RJD6E9tNuUvEZZbdGrhYb24tnOPpGJUJ5sAFYfAKfj2VqeBZHPS6n1X0KrMhpPmLzUbG21Oymsr6FZradCkkbcGBq+IZVdFehuhdE1nGiWfUtOR1js7OzAcBknhQBYazdm0sJWjI69/0cIPNzw/M9wNM33Rordk+iFitXoilhiWCGOGPOxGoRc9gGBXmUrZSbbLLTQctJha6rBK5xHMphY9jEgp65HiwrRf05lJWSpk+u6/Yj5EdtTSEK6kEAg7iDzrYkQzGg9AOjXR/Vn1TStNWG6YEBjIzCMHjsgnAoA0V1cR2tvJPOwWONdpmPIUjaS1YGIjMhRpJRsySu0rL7pZixHlnHlWBzMh3ZEpp7F3TDkgkcOTTSkySkhpYZbiTYgjaR+xRmnq652vSC1Y45xrWsnoKX1PTCbRUUBCWxt+97XzrT48LqqlCS3RVWuuybnF7MstP1yzurG3i1OxHsoq7Q9rgMeIpiWfjWP0eRDodSw7oe3VImLpNheDb027GfcO/HzFNz4Vj5C5sef+/wDs47ZbXtbEizaZd2324tpR95N4qoyOGZVO7jqv0JEcmufR6DBTrNn2mR1YMrr9pGHMVBpvsx7FZB6NCziprRlra67cxKFvLZpuXW25Az3lWIx5E+VanH49jzj977L/AMorZ4sl0JEmvgjFvZXLsRu29lFHiSc/AGn58bwoR1Utfgn/ALOFRN9xAZprmcXF4ytIMhET7EYPZ2ntJ9OFZXiXFbM18qWkV3fySK6lD4jlVI6cSoksbRyqGRhhlPAiuoTlCSlF6MNNdh211S7s16uZGvIh9l1YCUdxzgN45B7jxrX4X9Q1yXLkLR+K/juIs8d/2kl+kMQXKWd47e7sqPUtj4VYvjOElqp6/szhUWPuKm/urnUHU3ezHEh2kgQ5GeTMcbz2DgD24Bqi4hxl5EfR1LSP1JdGMo7y6iQ2VxdN+giJGftHcPjUHGwr8j3I/wAEqV0IdWTDpljYqJNUulyeCA4z8zV7Xwmihc+TIjPLss2qQxcdIFgjMOl2ixJ77j/xHzNLPitNS5MaJ3DAssfNazD6vquoPqMzNcyknHDA5DupIX22R52+pK9BVD2UXTxGC5uYDu6qd18to49MVW59fJkSX6j+PLmpix1OIPMcDzFQlKUHrF6MWUU9mW1pq17Bj9L1i+7Lv9eNWFPGcmraXtIgWYdcumxPGo2N0P8AOW5jb313/hv9Km9s4dl7Xx5X/wC7yK6bqvdepKTSLd1DJNJsneOFd/Z7GnvGb0fwG3lT70djSIR+1k9KT7N0ed/ITtUhRpUQ/ayelH2bo87+QnaZeAv1XF+8f0o+zVHnfyDtEg+qov3j+lJ9mqPO/kHaJeAn1TF+9k9KX7N0ed/IO0yOTo0P72T0pV/TlHnfyOu1y8CLMNN059mQPPNjITGSPHkPOh4nDsDex6v9f4OlO+7aOyIV3rN3KNmHZto+xN7fHl5DzqLfxycvZpWiJFeFFbz3KiTezMxLM3FmOSfE8aqZ2zses3qywhCMfdQw2Tn411Faj62LLR9ATUNPjunUZkZ+PMBiB6CtZh433EdSlycjS6SF6RWvUa65x7F5GJF/rXcfTZ+NQeLUfeKXj9SRw+3Wvl8PoVyGs/LbYsH0JCGmmNMeU03LoNtGutGAtYf6B+Feh4n4EPgUNnvMe2xUg4DbFABtigA2xQAbYoANsUAZrW2/3jJ4L+FY3jv/AC18EW2H+GVjGqlE1DDmnEOoZmDC2ZoxmSQiOMdrE7vXAqbj1ObS8dgnPl3fcegWFqLOygtYyNmGNUHfgYrawShFR8DNTk5SbIHSjT3vtN2oFJubdutixxJA3jzBPnio2bR6apx7+qH8W70Vib6d5kyyzxJdRb1ce13GsjfB+/8A5+JfQf8AaztDURoGh5TTUkNNGptXxaxf0D8K9CxPwIfAoLffY71lPjYdZQAdZQAdZQAdZQAdZSgZ7V2zfyeC/hWO44v/AKv2LfCX3ZXO1VKRPSGsGRwq8SaehBykkjvotWWeg2YvdXWUZNtp/A8nlI+QOfEitHw3G9rn7l0KzNu0hy976myq9KoTFAGN1yw+qr57lVzp9036QAbopCfwJ9Se0VRcQxeWTtitn1/ktsS/nj6N9V0K6RDC2OKn7LdorPW1cj/QsVLmR0rbqjyQjRq7VM20R/kH4Vv8X8CHwM5b77Hdg1IOA2DQAbBoANg0AGwaADYoAz2sHZv5B3L+FY/je+V+xcYK+6K1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शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-28719195348095295562020-03-20T11:15:00.003-07:002020-03-28T03:59:18.738-07:00कोरोना को हराना है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>सिडनी , ऑस्ट्रेलिया से लौटा ३५ साल का युवक भारत पहुँचता है , स्क्रीनिंग में हल्का बुखार पाये जाने पर टेस्ट के लिए अस्पताल लाया जाता है। अभी तो टेस्ट की रिपोर्ट भी नहीं आती और वो घबरा कर अस्पताल की सातवीं मँजिल से नीचे छलाँग लगा देता है। कोरोना की दहशत ने उसे पहले ही मौत की तरफ धकेल दिया। आज हम ये सोचने पर मजबूर हैं कि अकेले पड़ने पर या किसी भयावह स्थिति का सामना करने पर हम कितने मजबूत रह पाते हैं। शरीर की इम्युनिटी के साथ-साथ हमें मन की मजबूती भी चाहिए। </b><br />
<b><br /></b>
<b>कहते हैं शरीर की ताकत से बड़ी बुद्धि की ताकत होती है और बुद्धि की ताकत से भी बड़ी हमारे मन की ताकत यानि प्राण-शक्ति होती है।इस ऊर्जा को सही दिशा दीजिये। कोरोना वायरस एक हव्वा बन चुका है क्योंकि ये संक्रमण से फैलने वाली बीमारी का कारण है।इस से डरने की बजाय , सावधानियाँ बरतें। सैनिटाइज़्ड रहने का ख़्याल रखें , बाहर आना-जाना बिल्कुल बन्द कर दें। सरकार ने इस महामारी से निबटने के सारे इन्तजाम कर रखे हैं। दवाइयाँ , डॉक्टर ,सैनिटाइज्ड वार्ड्स ,एम्बुलैंस आदि सब तैयार हैं। जिस किसी में भी इसके लक्षण नजर आते हैं ,उसे अलग रखा जाता है तो इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। आप अपनी जरुरत की सारी चीजें अपने साथ रख लें। फोन और सोशल मीडिया तो आपको सारी दुनिया से जोड़े रहता है। आप अलग-थलग हैं ही नहीं। इस वक्त का सही इस्तेमाल करें। नेट पर पसंदीदा पढ़िये।जैसे आप छुट्टी पर आये हों। अपने अन्तर्मन को शान्त रखिये। डॉक्टर की राय से चलिये। दवा अपना काम करेगी। सातवें दिन तक आपकी अपनी प्रतिरोधक क्षमता वायरस को खदेड़ देगी ,और आप स्वस्थ्य होते चले जायेंगे। बिना मौत आये क्यों मरें हम। </b><br />
<b><br /></b>
<b>जरा भी बेचैन न हों। होने वाली बात होगी न होने वाली बात कभी नहीं होगी। इसलिए एक बीमारी के साथ दूसरी बीमारी को आमन्त्रित मत करिये। वैसे भी हो सकता है कि आपको इसका संक्रमण हुआ ही न हो , या बहुत हल्का संक्रमण हो ,आपकी अपनी इम्युनिटी ही उसे समाप्त कर दे। अकेले पड़ने पर उदास न हों। जीवन की भाग-दौड़ में आप अपने साथ तो कभी बैठे ही नहीं।जो सब कुछ आपको मिला है उस सबका धन्यवाद करिये।साथ चलते साथियों के लिए श्रद्धा भाव रखिये। शिकायत करते रहेंगे तो अशान्त रहेंगे।अपनी ही शक्ति से अन्जान रहेंगे। बैठ कर अपनी प्राथमिकताएं तय कीजिये।बीमारी से उबर आने के बाद आप क्या क्या करना चाहेंगे ,ये सोचिये। </b><br />
<b><br /></b>
<b>अपने प्रियजनों से अलग रहना आपके और उनके दोनों के हित में है। फिर आप जितना सहज रहेंगे उतना ही प्राण-शक्ति से भरपूर रहेंगे। रोग को नौ दो ग्यारह होते देर न लगेगी। बिस्तर पर आराम करिये और सभी प्रियजनों के लिए मंगल कामना करिये। वो भी आपके लिए ऐसा ही कर रहे हैं। </b><br />
<b><br /></b>
<b>विचार ही विचार की औषधि है। संवेदनशीलता को अपनी कमजोरी नहीं ताकत बना लें। जो जितना अधिक शुभ विचारों ,शुभ संकल्पों से जुड़ा होता है उतना ही प्राण-शक्ति से भरपूर होता है। उतना ही उसकी ऊर्जा का क्षय कम होता है। बस यही कुँजी है सकारात्मकता की व इम्युनिटी बढ़ाने की। कोरोना को हराना है। हम होंगे कामयाब एक दिन..... बक अप </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-22601324668158522302019-12-15T18:51:00.003-08:002019-12-15T18:51:47.366-08:00रिश्तों की कटुता सँभालिये <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>रिश्ते तभी कटु होने लगते हैं , जब हम सिर्फ अपना हित देखते हैं। एकमात्र पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा है जो कितना भी कटु हो जाये , अगर एक भी साथी प्यार से प्रयत्न करता है तो उसे वापिस सामान्य होने में देर नहीं लगती।कटुता माँ-बाप बच्चे , भाई बहन , पति पत्नी , बहु सास-ससुर या दामाद सास-ससुर किसी के बीच भी पनप सकती है। मतभेद होते ही हम एक दूसरे के बारे में एक राय कायम कर लेते हैं ; फिर हमें उसका कोई भी गुण दिखाई नहीं देता। बात से बात और बढ़ती है।खाई और गहरी होती जाती है। अब बर्दाश्त करना मुश्किल होता जाता है।</b><br />
<b><br /></b>
<b>आज हर कोई स्वछंद रहना चाहता है। टोका-टाकी बर्दाश्त नहीं करता। उसे इस बात का अहसास नहीं होता कि अगर वो रिश्तों की कद्र नहीं करता तो वो अकेला रह जाता है। आज हमारी सोसाइटी की सबसे बड़ी विडंबना अकेलेपन से उपजा फ्रस्ट्रेशन और डिप्रेशन है। ये अकेलापन घर में सबके बीच में रहकर भी घेर लेता है। क्यूँकि हमारे रिश्ते सबके साथ सहज नहीं हैं। हमारा मन दूसरे से उम्मीद तो कर लेता है , पर खुद दूसरे के लिये कुछ नहीं करता। हमारी अपनी ईगो उस घेरे को लाँघने नहीं देती। और इस तरह दूरियाँ बढ़ती जाती हैं , अब रिश्तों को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जाता है ; फिर स्प्रिंग की तरह अंदर दबाया हुआ सब कुछ बाहर उछल पड़ता है। रिश्तों की गरिमा धरी की धरी रह जाती है। साथ रहने के फायदे और झगड़े के बाद क्या क्या नुक्सान होगा , ये हम नहीं देख पाते।</b><br />
<b><br /></b>
<b>इस सबमे सबसे बड़ा नुक्सान छोटे बच्चों का होता है , जो अभी दुनिया को ठीक से समझ भी नहीं पाये होते। उन्हें जरुरत होती है एक सिक्योर्ड (सुरक्षित) बचपन की। ये कन्फ्यूज्ड परस्नैलिटीज जो खुद ही इतने तनाव से गुजर रही होती हैं ,उन्हें क्या देंगी। ऐसे में बच्चों के आत्मविष्वास को गहरी चोट पहुँचती है ,जो उन्हें समाज में घुलने-मिलने नहीं देती। निसंदेह हमारा बचपन हमारे भविष्य की नींव होता है। जाने-अन्जाने में ऐसे माँ-बाप अपनी ही पूँछ कुतर रहे होते हैं।</b><br />
<b><br /></b>
<b>समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो , हमेशा कोई न कोई बीच का रास्ता होता है ,जिसमें दोनों पक्ष सहमत हों। अपनी साथी की उम्मीदों का ख्याल रखिये। रिश्ते हमारी जड़ों में खाद-पानी का काम करते हैं ; किसी भी पौधे को उसकी जमीन से अलग मत करिये वरना वो मुरझा जायेगा। दूसरे का ख्याल आप तब तक नहीं रख सकते जब तक आपके दिल में उसके लिए कटुता खत्म नहीं होती। कटुता खत्म सिर्फ तब होगी जब आपके दिल में उसके लिए स्नेह हो। आप उसकी परेशानी समझते हों।</b><br />
<b><br /></b>
<b>जिस तरह आपकी ज़िन्दगी कीमती है , उसी तरह दूसरे की कीमत आँकिये। कभी किसी अनहोनी का सबब मत बनिये , फिर न दिन का चैन होगा न रात की नींद। ये तो एक कला है जिसमे आप दूसरे को तकलीफ नहीं देते तो आप खुद भी चैन की नींद सोते हैं। मगर अगर दिल में प्यार या जगह नहीं है तो आप किसी को एक ग्लास पानी पिलाना भी गवारा नहीं करेंगे।घर में झगड़ा तन-मन राख कर देता है। ऐसे में आप व्यक्तित्व-विकास , आत्म-विष्वास , संतुलित व्यक्तित्व और सुख-चैन की बड़ी-बड़ी बातें भूल जाइये। हम अपना कितना बड़ा नुक्सान कर बैठते हैं ! कहते हैं कि अगर आप सँवार नहीं सकते तो बिगाड़िये मत। बस इतना सा ही प्रयत्न करना है। मगर क्या ये बातें समझाने से कोई मानेगा ! सिर्फ जब बात अपने दिल से उठेगी , तभी ज़िन्दगी पर लागू होगी। </b><br />
<b><br /></b>
<b>आपका सुकून , आपका स्वर्ग आपके घर में है। जब यहाँ सुखी होंगें , तभी सम्पूर्ण विकास हो पायेगा। पहले घर फिर समाज सेवा। जिम्मेदारियों से भागना जीवन से भागना है। स्वीकार भाव के साथ कर्म करने से सब आसान लगता है। जँग लग कर खत्म होने से अच्छा है , किसी के काम आयें। भले ही दुनिया की नजरों में कुछ हासिल न कर पायें , मगर ये क्या कम है कि आप अपने घर के चार लोगों की ज़िन्दगी को मुस्कान दे पायें या सँवार पायें या कम से कम उसे बिगड़ने से रोक पायें। आपका सुकून आपका आत्म-विष्वास है , आपकी सुन्दरता है।</b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
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शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-2620776963917879662018-10-20T01:20:00.001-07:002021-10-21T23:07:51.282-07:00बुराड़ी काण्ड ,अन्ध-विष्वास की पराकाष्ठा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>बुराड़ी काण्ड , एक साथ ११ लोगों की दिल दहला देने वाली आत्महत्या ; पहली ही नजर में ये तो साफ समझ में आता है कि उनमे से कोई भी ये समझ नहीं पाया था कि इस हादसे में उनकी जान चली जायेगी। अगले दिन के लिये छोले भिगो कर रखना , दही जमा कर रखना और फिर ललित का उसी दिन फोन रिचार्ज कराना ; कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते , सालों बाद भी गढ़े मुर्दे बोल पड़ते हैं। अगर इन आत्म हत्याओं के पीछे उकसाने जैसी कोई साजिश नजर आती है तो ललित के फोन का बैलेंस देख कर समझ आ सकता है कि कितना इस्तेमाल हो चुका था। उनकी किसी डायरी में ये भी लिखा है कि फोन का इस्तेमाल कम से कम करना ; फिर उसी दिन रिचार्ज भी कराया जाता है , हो सकता है कॉल्स डिलीट भी कर दी जाती रही हों। मद्धिम रोशनी तो हिप्नोटिज्म में इस्तेमाल की जाती है। अगर किसी को इन सबकी मौत से फायदा होता हो या हो सकता है कि इसकी तह में कोई रंजिश ही हो। और पूर्व जन्म और आत्मा-परमात्मा में विष्वास को भुना लिया गया हो। </b><br />
<b><br /></b>
<b>प्रथम दृष्टया ये अन्धविष्वास की कहानी ही नजर आती है। मृत पिता को साक्षात देखने और उनके निर्देश मानने में पूरे परिवार का आँख मूँद कर विष्वास था। हैरानी की बात है कि छोटे बड़े सब इस बात को हजम कर गये और इसकी किसी को भनक तक न लगी। एक संभावना ये भी है कि मैडिकल साइंस के अनुसार ऐसी बीमारियाँ होती हैं ; जैसे कि हैल्युसिनेशन में मरीज जिसके बारे में सोचता है उसे भ्रम होता है कि वो उसके सामने है। अब यहाँ तो पूरा परिवार ही उसके साथ हो लिया। शायद कहानी बदल जाती अगर एक भी व्यक्ति इसमें विष्वास न करके उसे डॉक्टर के पास ले जाता ,फिर मोक्ष पाने की नाटकीयता उन्हें ले डूबी। कोई सही मार्ग-दर्शक उन्हें मिलता तो समझाता कि कि स्वर्ग-नर्क इसी दुनिया में हैं </b><b>और</b><b> मुक्ति भी इसी दुनिया में पाई जा सकती है। मुक्ति शरीर त्याग है ही नहीं। मुक्ति मिलती है आसक्ति त्याग से। आसक्ति त्याग से सुख में अहँकार नहीं आता और दुख में दुख का अहसास नहीं होता। अपनी समझ खोलने का ये परिश्रम शरीर रहते ही सम्भव है। इतना अनमोल जीवन और कौड़ियों के भाव खो दिया। </b><br />
<b><br /></b>
<b>ऐसी कैसी वट-पूजा होती है कि सब के सब बरगद की जटाओं सा लटक गये। आँखों पर पट्टी ,हाथ बँधे हुए और गले में फन्दे , कौन मूर्ख इस खेल का अन्जाम नहीं जानता। ये तो अन्ध-विष्वास की पराकाष्ठा हो गई ;पहले मृतात्मा से लगातार साक्षात्कार फिर अन्ध-भक्ति के साथ ऐसी क्रियाएँ करना। </b><br />
<b><br /></b>
<b>बुराड़ी काण्ड जैसे काण्डों से हमें सीख लेनी चाहिये कि किसी भी काली या मैली विद्या का फल सकारात्मक हो ही नहीं सकता। इसलिए किसी भी भेड़-चाल में मत आइये। तान्त्रिक बाबाओं , टोने-टोटके वालों का मकसद आपके विष्वास और भावनाओं को उकसा कर अपने जेबें भरना है बस। होने वाली बात होगी , नहीं होने वाली बात नहीं होगी ; दिया आपकी अपनी आस्था ने जलाया होता है। कोई शरीर रहते किसी अशरीरी आत्मा को नहीं देख सकता। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हुए हैं जब लोग भगवान देखने से लेकर भगवान बन जाने तक की बात करते हैं ; और वो भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं निकले। प्रेरणा हमेशा शुभ संकल्पों से जुड़ी होती है। ईश्वर तो है ही अदृश्य न्याय-सत्ता का नाम। आपने जाने-अन्जाने जो भी दुनिया को दिया , लौट कर आयेगा। इसलिये विवेक बुद्धि से चलिए , अपनी तरफ से गल्ती न करिये ,अपनी आँखें खुली रखिये। कर्म-काण्डों , नकारात्मक ऊर्जा के नाम पर किसी की भी चाल में मत आइये। ये लोग उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लेंगे। आत्मिक उन्नति का रास्ता और मैली विद्याओं का रास्ता पृथक-पृथक होता है। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-27922813737146119672017-10-10T01:46:00.001-07:002018-07-31T01:00:16.507-07:00लगातार बढ़ती हुईं रोड रेज की समस्याएँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b> आज मामूली सी कहासुनी भी वाद-विवाद में बदल जाती है। राह चलते जरा सी झड़प भी कब हिंसा में तब्दील हो जाती है कि अन्जाम काबू से बाहर हो जाता है , कह नहीं सकते। इस भागती-दौड़ती दुनिया में हर कोई व्यस्त भी है और कई तरह की समस्याओं से जूझ रहा है। लगातार बढ़ते हुए ट्रैफिक और पार्किंग की समस्या भी मुँह बायें खड़ी है। व्यक्ति पहले से ही तनाव में है। न तो वो खुद को तनाव-रहित कर पाता है न ही और ज्यादा तनाव बर्दाश्त करने की क्षमता उसके पास बचती है। ऐसे लगता है कि जैसे वो बारूद के ढेर पर बैठा है ; बस चिन्गारी दिखाने भर की देर है कि बम सा फट पड़ता है। दूसरी बात वो किसी और को स्वीकार ही नहीं कर पाता। अहम इतना ज्यादा है कि अपना हाथ ऊपर ही रखना चाहता है। अपने तरीके से दुनिया को चलाना चाहता है। दुनिया के बीच ही नहीं घर में चार जनों के बीच भी टकराव ही मिलेगा। </b><br />
<b><br /></b>
<b>दृश्य की दूसरी साइड वो देख ही नहीं पाता। कोई जान-बूझ कर हादसा नहीं करता। जल्दबाजी , कम एक्सपर्टाइज ( अनुभवहीनता ) या फिर वही तनाव और उम्मीद टकराहट का कारण बनते हैं। फिर न कोई उम्र देखता है न इज्ज़त ; गलत हमेशा दूसरा ही होता है।अब लड़ाई में , अनर्गल गाली-गलौच में ,मार-कुटाई में वक़्त का कितना भी नुक्सान हो जाता है। और उस से बढ़ कर भी जो तनाव उसके मस्तिष्क की नसों ने झेला ; वो रात-दिन उसे सोने नहीं देगा। ये किसी को नहीं पता होता कि मामूली सी झगड़ा भी कत्ले-आम की वजह तक बन सकता है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>बात को सँभाल ले जाना या बर्दाश्त कर लेना , ये तो समझ-दारी की बात है न कि कमजोरी की। अपने स्वाभिमान को सबके सम्मान के साथ जोड़ लें तो टकराव होगा ही नहीं ; या फिर कम से कम होगा। जरुरत है तो बस तनाव-रहित रहने की। जिस तरह आप ट्रैफिक में गाड़ी बचा-बचा कर निकालते हैं ; उसी तरह अनावश्यक रूप से उलझने की बजाय अपने आपको बचा कर निकालिये। क्योंकि जिनसे आप उलझते हैं वो कम या ज्यादा आपकी सी ही मनो-दशा से गुजर रहे होते हैं। कोई भी भौतिक नुक्सान पैसे का या वक़्त का,आपकी मानसिक शान्ति या ज़िन्दगी से बढ़ कर नहीं होता। रुक कर जरा सोचें कि उलझ कर जो नुक्सान होगा ; उसकी भरपाई वक़्त भी न कर सकेगा। आप सारी दुनिया को सिखा नहीं सकते। सिर्फ वही बदलेगा जो आपकी बात सुनना चाहेगा। जोर-जबर्दस्ती या डण्डे के बल पर कोई बात अगर मनवा भी ली जाये तब भी दूरगामी परिणाम कभी अच्छे नहीं आते। इतिहास गवाह है कि दबाने के साथ विद्रोह या बगावत के स्वर भी साथ ही उठते हैं। आवेश और उत्तेजना में कोई भी निर्णय सही नहीं लिया जा सकता। और ज़रा अपना चेहरा देखें कि क्या हाल हुआ है। क्रोध पर नियन्त्रण रखें तभी आप दूसरी तरफ के हालात देख पायेंगे यानि दूसरे के दृष्टि-कोण से भी सोच पायेंगे और रोड-रेज के कारण हुई क्षति पर लगाम लग पायेगी। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-27535637608314636922017-08-15T00:45:00.002-07:002017-09-20T08:35:43.626-07:00नशा , ड्रग्स और एडिक्शन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>वो बज़ आने तलक ग्लास पर ग्लास चढ़ाता जा रहा था। आज की युवा पीढ़ी या किशोरावस्था के बच्चे एल्कोहल , ड्रग्स या नशे के लिए प्रयोग की जाने वाली दूसरी वस्तुओं को बड़ी आसानी से ग्रहण कर लेते हैं। उसे सब्जबाग दिखाये जाते हैं कि पार्टी करना , मौज-मस्ती करना ही जीवन का ध्येय है। और इस तरह वो इनके चँगुल फँसता है। गम गलत करने को यानि दुनिया से भागने को भी उसे यही इलाज दिखता है। दो चार बार लेकर ये जरुरत बनने लगता है और फिर इन्सान को एडिक्ट कर देता है यानि नकारा बना देता है। जैसे उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लिया हो उसने। अब वो किसी भी कीमत पर उसे पाना चाहता है। नशे के लिए चोरी ,सीना-जोरी सब सीखता है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>ड्रग्स यानि नशा शारीरिक सेहत , मानसिक सेहत ही नहीं सोशल आस्पेक्ट्स पर भी असर करते हैं। शरीर के पोषक तत्व नष्ट होते जाते हैं। इम्युनिटी कम होती जाती है। गर्म तासीर की वजह से बिलरुबिन काउन्ट बढ़ता है तो लिवर को नुक्सान पहुंचने लगता है। मानसिक तौर पर शुरुआत में कन्सन्ट्रेशन की कमी होती है , सर दर्द ,पढ़ने में या किसी भी काम में मन नहीं लगता ; हर वक़्त वही धुन समाई रहती है। अपनों से , सामाजिक कृत्यों से वो जी चुराने लगता है। जिनके साथ ड्रग्स लेता है बस उनकी ही सँगत करता है। समाज में लोग ड्रग्स लेने वालों का बहिष्कार करते हैं। बात-बात पर गुस्सा आता है , चिड़चिड़ाहट होने लगती है। स्वाभाविक तौर पर अपनी जिम्मेदारियों से भागता है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>युवा पीढ़ी की दलील होगी कि उसे इसमें ही ख़ुशी मिलती है। इस भ्रम से निकालना आसान तो नहीं , मगर नामुमकिन भी नहीं। जिस पार्टी मौजमस्ती की बात वो करते हैं वो तो कोई जूस पार्टी , फ्रूट पार्टी , भुट्टा पार्टी या पूल लन्च या डिनर मना कर भी पाई जा सकती है। ख़ुशी तो हमारे ख्यालों में होती है एल्कोहल या नशे में नहीं। इससे पहले कि बहुत देर हो जाये अपनी सेहत , अपने मन-प्राण सँरक्षित कर लो। अपने लिये नहीं तो अपने परिवार , अपने साथी और समाज के लिये खुद को और खुद की इमेज को बचा लो। दिल में कोई उदासी , फ्रस्ट्रेशन , नाउम्मीदी है तो उसे अपने परिवार के साथ शेयर करो। हर डर का सामना करो वो भाग जायेगा। ड्रग्स की खोज बीमारी में दवा की तरह प्रयोग करने के लिये हुई थी। ड्रग्स का व्यापार करने वालों ने अपने नफे की खातिर युवा पीढ़ी और कमजोर मानसिकता वालों को निशाना बनाया , क्योंकि वो ही आसानी से फँस सकते हैं। यानि आपका इस्तेमाल किया जा रहा है। ये जानलेवा भी हो सकता है।</b><br />
<br />
<b>जागो युवा पीढ़ी , इस भ्रम से बाहर निकलो। होशो-हवास खो कर भी कोई खुश कैसे रह सकता है। ऐसी हालत में कुछ भी उन्नीस इक्कीस हो सकता है ; जिसका बाद में पछतावा हो और जीवन भर शर्म आये। अपनी क्षमता को पहचानो। अच्छे </b><b>आचरण की मिसाल बनो। भविष्य इन्तिज़ार कर रहा है , अपनी नींव खोखली मत करो। </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">इक अदद सूरज की तलाश है </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">कर दे उजियारा जो मलिन बस्ती में भी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-9269921360585908722017-06-26T09:58:00.003-07:002017-07-05T03:59:01.480-07:00छूटते जा रहे दादी-नानी के घर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>सभी लोग छुट्टियों का भरपूर लुत्फ़ उठाते हैं। पहाड़ों की हसीन वादियों का सफर हो या गोवा , महाराष्ट्रा , दक्षिण भारत या देश-विदेश के समुद्री तटों की सैर हो ; हर बार किसी नई जगह को नापने की इच्छा मन में जागती है। तरह-तरह के लज़ीज व्यँजन और रैस्टोरेन्ट्स का स्वाद मन को लुभाता है। पर्यटन को बढ़ावा देना व अपने विभिन्न प्रान्तों की सँस्कृति से परिचय देशाटन के जरिये जरूर सम्भव है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>इंटरनेट ने घूमने-फिरने की सम्भावनाओं को सर्व-सुलभ और सुविधा-जनक कर दिया है। मगर इस सब में छुट्टियों में नानी-दादी के यहाँ जा कर लम्बी छुट्टियां मना कर आना बंद सा होता जा रहा है। छुट्टियों में बुआ , मामा , मासी , चाची , सबके बच्चों का जमावड़ा , साथ मिल-बाँट कर खाना , खेलना , काम करना और चौपाल जमाना , इस सब का मजा ही कुछ और था। दादी नानी के किस्से-कहानियों के साथ कब अच्छे सँस्कार बच्चों के दिल में उतर जाते ; पता ही नहीं चलता था। आज नेट और मोबाइल की दुनिया में डूबे बच्चे आभासी रिश्तों में जी रहे हैं। अपने आस-पास की जीती-जागती दुनिया से मुँह मोड़ कर कई बार हम अपने जरुरी काम भी पूरे नहीं कर पाते। शारीरिक खेल-कूद अब छूटते जा रहे हैं। वो अपनत्व , मजबूत भावनात्मक जुड़ाव ,जीवन मूल्य और प्रगाढ़ रिश्ते जैसे हम खोते जा रहे हैं। </b><br />
<b><br /></b>
<b>किताबें पढ़ने का वक़्त किसी के पास नहीं है। कोई भी देश अपने कविओं और साहित्यकारों की रचनाओं से समृद्ध माना जाता है।न तो आज किसी के पास पढ़ने का समय है न ही लिखने का। किण्डल , नेट और टी. वी. पर आँखें गढ़ाये बच्चों की आँखों पर चश्मा भी कम उम्र में ही चढ़ जाता है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>गाँवों के चबूतरे अब सूने पड़े हैं। पार्टी करना आज भी सब बच्चों को पसन्द है ; मगर औपचारिकताएं ( फॉर्मेलिटी ) सबको आसानी से मिलने नहीं देतीं। बचपन उस अपनत्व और उन जीवन मूल्यों के बिना अधूरा है। कुल मिला कर हमने खोया ज्यादा और जो पाया वो ज्यादा सुकून नहीं पहुँचा सका। </b><br />
<br />
<span style="background-color: white;"><strong style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: #000099;"><span class=" transl_class" id="79" title="Click to correct">नई</span> पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा</span></strong><br style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><strong style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: #000099;">धूप के रँगों को साँझ में घुलते हुए<br />हो गये हैं प्रकृति से दूर<br />खुद में उलझे हुए</span></strong></span><br />
<strong style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="background-color: white; color: #000099;"><br />कैसी होती है सुबह<br />नहीं देखा पूरब में सूरज को उगते हुए<br />नहीं देखा हवाओं को ,<br />चिड़ियों सा चहकते हुए</span></strong><br />
<strong style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="background-color: white; color: #000099;"><br />तुम्हारे घर में है भैंस , पेड़ ,<br />बिल्ली और बच्चे खेलते हुए<br />नहीं देखा शहरी पीढ़ी ने<br />जिन्दगी की खनक को गीत में ढलते हुए<br />नहीं देखा मिट्टी की सनक को ,<br /><span class=" transl_class" id="80" title="Click to correct">रूह</span> में मचलते हुए<br />नई पीढ़ी के बच्चों ने नहीं देखा</span></strong><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-44023354233967537282017-06-21T01:51:00.003-07:002023-08-20T09:44:33.855-07:00हर कोई अपनी-अपनी मनःस्थिति में जीता है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>हम सभी लोग ज्यादातर अपनी अपनी परिस्थितियों के गुलाम हैं। ऐसा क्यों होता है कि कई बार किसी से बात करते हैं तो वो अचानक ऐसी प्रतिक्रिया देता है जो हमारी आशा के विपरीत होती है। हमें हैरान कर देने वाले नतीजों का सामना करना पड़ता है। किसी के दिल में क्या चल रहा है , कोई नहीं जानता।</b><br />
<b><br /></b>
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<div>
<b>हमारी अपनी पूर्व-निर्धारित धारणाएँ , सँस्कार ,आस्थाएँ और विष्वास हमें चलाते हैं। हमने धोखे खाये हैं तो सारी दुनिया के लिये एक ही दृष्टिकोण बना लेते हैं। अचानक विस्फोट जैसी प्रतिक्रिया ये बताती है कि उसका मन विक्षोभ से भरा हुआ है , और ये किसी एक दिन की सोच का नतीजा नहीं होता। किसी के बारे में हम एक बार कोई राय कायम कर लेते हैं तो फिर टस से मस नहीं होते। जबकि हमारा अपना मन पल-पल बदल रहा है। परिस्थितियाँ बदलते देर नहीं लगती , मगर हम पर कैसे-कैसे प्रभाव छोड़ कर जाती हैं।मकड़ी की तरह अपने ही ख्यालों के बुने हुए जाल में फँसना नहीं चाहिए। </b><br />
<b><br /></b></div>
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<b>हमारी सकारात्मक भावनाएँ (इमोशन्स ) ख़ुशी , अपनत्व , प्रेरणा और प्रफुल्लता लाते हैं।नकारात्मक भावनाएँ द्वेष , झगड़ा , तुलना ,आत्म-हीनता का बोध हमेशा गुस्सा और उदासी लाते हैं। हर भावना एक केमिकल रिएक्शन करती है। हमारे शरीर में ऐसे केमिकल सिकरीट करती है जो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करते हैं। नकारात्मक भावों के साथ सिर दर्द ,ब्लड-प्रेशर , डायबिटीज , मोटापा, गैस ,अल्सर , डिप्रेशन आदि तनाव जनित बीमारियाँ हो सकती हैं। कोई भी रोग हो नकारात्मकता के साथ तेजी से बढ़ता है। यदि भावनाएँ सकारात्मक हों तो बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है। सकारात्मक सोच रखने वाले को बीमारी जल्दी पकड़ती ही नहीं। </b><br />
<b><br /></b></div>
<div>
<b>जब तक हम परिस्थितिओं , व्यक्तिओं , वस्तुओं के प्रति जैसी वो हैं , वैसा ही स्वीकार भाव नहीं रखते ; हम सहज हो ही नहीं सकते। जो सहज और सरल नहीं है वो खुश नहीं रह सकता क्योंकि वो बनावटी है ,उसका व्यवहार आडम्बर-पूर्ण है। सहजता ही तनाव-मुक्त रखती है। तनाव के कारण ही भूलने की बीमारी भी होने लगती है। मस्तिष्क में तनाव ने जगह घेर रखी है तो रचनात्मकता कैसे आयेगी।तनाव-रहित बुद्धि ही नये आइडियाज ,नई खोजें और क्रिएटिव काम कर सकती है। काम में परफेक्शन ला सकती है। ये वैसे ही है जैसे आपको यात्रा पर जाना हो और यदि आपकी हर वस्तु यथास्थान रखी है तो आप सूटकेस खोल कर अपनी वस्तुएँ उठा कर सूटकेस में रखेंगे और चल पड़ेंगे अपने गन्तव्य की ओर , कोई टेन्शन नहीं। मगर अगर सब गड्ड-मड्ड है तो आप घबरायेंगे। दरअसल ऐसा ही हमारे मस्तिष्क का हाल है , बहुत ज्यादा चीजें अपने-अपने खाने में नहीं हैं और हम घबरा रहे हैं। जो स्मृतियाँ आपको नकारात्मकता दे रही हैं , उन्हें दिल से निकाल दीजिये , भूल जाइये , माफ़ कर दीजिये । लोगों की मजबूरियां होती हैं , बेबसी भी हो सकती है वो अपने अपने दृष्टिकोण से देखते हैं। उनकी भी कड़वी यादें हैं , वो भी भटके हुए हैं। उनके अपने सँस्कार हैं। इसलिए अपने मन की डेस्क को साफ़-सुथरा रखें ,तभी मन शान्त रहेगा।जहाँ तक परिस्थितियों की बात है वो भी बदलती रहती हैं ; समझदारी से वस्तु-स्थिति को सुलझाइये। खुद को अशान्त रखना बीमारियों को दावत देना है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>जिसे तुम आज दुश्मन मान कर बैठे हो , वो कल तुम्हारा दोस्त भी हो सकता है। ठीक वैसे ही जैसे जो कल तुम्हारा दोस्त था आज दुश्मन है। स्वीकार भाव से विचारों का मतभेद मिटाया जा सकता है। इस बात पर भरोसा रखो कि आदमी का मन बदलने में देर नहीं लगती। ऐतबार के दरवाजे खुले रखो। ऐतबार ही मन की खुराक है। अपनी ज़ुबान से सुकून ही बाँटो।ज़िन्दगी अनमोल है। कभी भी किसी अनहोनी का सबब न बनो। इस जन्म को ,अपने होने को सार्थक करें। </b><br />
<b><br /></b>
<b><br /></b>
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</div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-29800005786051244432017-05-25T23:07:00.001-07:002018-07-02T02:03:53.741-07:00क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: blue;">साथ न चलने के सौ बहाने करने वाले </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं ?</span></b><br />
<b><br /></b>
<b>जब रिश्ते में दरारें पड़ने लगतीं हैं तो ऐसा ही होता है। प्यार का पौधा भी पानी माँगता है। वही रिश्ता जो सबसे हसीन था वही कब चुभने लगता है कि नश्तर बन जाता है , पता ही नहीं चलता। वही साथी जिसके बिना रहा नहीं जाता था आज साथ रहा नहीं जाता ; सौ कमियाँ दिखती हैं। कितने ही कारण परिस्थिति-जन्य होते हैं जिनमें हम अपनी अज्ञानता से बढ़ोत्तरी कर लेते हैं। बात उतनी बड़ी नहीं होती, जितनी बहस से बड़ी हो जाती है , और फिर शब्द पकड़ लिए जाते हैं। किसी ने कुछ कहा और हम उसका एक्स-रे निकाल लेते हैं। हर बात में उसका कोई उद्देश्य ढूँढ लेते हैं , और फिर शुरू हो जाते हैं उसे गलत सिद्ध करने में। </b><br />
<b><br /></b>
<b>घर जब टूटने की कगार पर पहुँच जाते हैं , हम कितनी ही ज़िन्दगियों के साथ नाइन्साफी कर बैठते हैं। सिर्फ साथी नहीं , हमसे जुड़े सारे रिश्ते उसे भोगते हैं। अपनी आज़ादी ,अपनी ज़िन्दगी के नाम पर बड़ी-बड़ी बातें करने से कुछ नहीं होता। अगर आप अपना सँसार ही न सँभाल पाये तो आपके पास कुछ भी नहीं बचता। आप अपने ही दुश्मन बने हुए हैं ,ये वक़्त निकल जाने के बाद समझ आएगा। आप किसी भूचाल से गुजर रहे हैं , ये कहाँ जाकर थमेगा ,कह नहीं सकते। शादी के बाद बच्चे भी हैं और आप अलग होना चाहते हैं तो जरा सोचें कि उस बच्चे की क्या गलती थी जो आपके यहाँ पैदा हो गया। बचपन की हर बात गम की या ख़ुशी की , ताउम्र अपनी छाप छोड़ती है ; वही व्यक्तित्व बन कर उभरती है। एक फूल को आपने रेगिस्तान में किसके सहारे छोड़ दिया। जिसे एक समृद्ध बचपन देना था , उसके सारे हक़ ,अधिकार छीन लिये। बच्चा हमेशा अपने पेरेन्ट्स के साथ सुरक्षित महसूस करता है। कुण्ठित व्यक्तित्व अपने परिवार को क्या देगा , समाज को क्या देगा। वैसे भी अतीत सारी उम्र हावी रहेगा ,आप चाह कर भी ये सब भुला न पायेंगे। हम अपनी ज़िन्दगी के खुदा हो सकते हैं , बशर्ते परिस्थितियों का शिकार न बनें ,अपनी बागडोर अपने हाथ रखें। </b><br />
<b><br /></b>
<b>हम सब सॉरी बोलने से बचते हैं। छोटी-छोटी बातों में तो एटिकेट्स निभाते हैं , और रिश्ते बचाने में ' सॉरी ' बोलने से बचने के लिये सौ बहाने खोज लेते हैं।और हाँ , अब पहली-पहली सी कोई बात नहीं होगी। उम्मीदें और ईगो की वजह से ही क्लैश ( टकराव ) होते हैं। ईगो को ' न ' सुनना बिलकुल पसंद नहीं होता।जिसे हम स्वाभिमान समझते हैं , वो ईगो होती है। ये सिर्फ तब जायेगी जब हम बड़ी ईगो से जुड़ेगें ,साथी भी अपना आप ही है , अपने जीवन का हिस्सा। ऐसा समझेंगे तभी प्यार कर सकेंगे , माफ़ कर सकेंगे। </b><b>क्या उस मीठे वक़्त की मीठी यादों का एक भी बहाना ऐसा नहीं है जो आपको साथ चला सके ? दूर जाने के सौ बहाने करने वाले , क्या साथ चलने का एक भी बहाना नहीं बचा है ? </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">एक खता पर ज़िन्दगी वारी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">होते न लम्हें इतने भारी </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">हार जाओगे नसीब से लड़ते हुए </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">ज़िन्दगी तुम्हें बख़्शेगी नहीं </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">माज़ी तुम्हें कभी चैन से सोने नहीं देगा </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">और तुम कितने सहिष्णु हो </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">ये तय होगा ,जब सहेज रखोगे रिश्तों को </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>किसी की भी राह में गुलाब नहीं बिछे होते , आपको अपनी राह खुद बनानी होती है। कई बार दोनों पक्ष एक पहल का इन्तिज़ार करते रहते हैं। एक पहल और बाँध टूट सकता है। कोई छोटा नहीं होता , इसे तो समझदारी कहेंगे। जो भरा होता है वही छलकता है। ज़िन्दगी को गले लगाना सीखें। प्रगति कभी जिन्दगी से बड़ी नहीं हो सकती। संभालें अपने सफर को , अपने हालात को , जो आपको मिला है सहेजें उसको।</b><br />
<b style="color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" title="Click to correct"><br /></span></span></b>
<b><span style="color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="53" title="Click to correct">इश्क</span> <span class=" transl_class" id="54" title="Click to correct">की</span> <span class=" transl_class" id="55" title="Click to correct">आग</span> <span class=" transl_class" id="56" title="Click to correct">से</span> <span class=" transl_class" id="57" title="Click to correct">सबेरा</span> <span class=" transl_class" id="58" title="Click to correct">कर</span> <span class=" transl_class" id="59" title="Click to correct">लेना</span></span></span></b><br />
<b><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="60" title="Click to correct">ये</span> <span class=" transl_class" id="61" title="Click to correct">सूरज</span> <span class=" transl_class" id="62" title="Click to correct">सी</span> <span class=" transl_class" id="63" title="Click to correct">आब</span> <span class=" transl_class" id="64" title="Click to correct">रखता</span> <span class=" transl_class" id="65" title="Click to correct">है</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="66" title="Click to correct">इसकी</span> <span class=" transl_class" id="67" title="Click to correct">तपिश</span> <span class=" transl_class" id="68" title="Click to correct">से</span> <span class=" transl_class" id="69" title="Click to correct">है</span> <span class=" transl_class" id="70" title="Click to correct">दुनिया</span> <span class=" transl_class" id="71" title="Click to correct">का</span> <span class=" transl_class" id="72" title="Click to correct">चलन</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="73" title="Click to correct">इस</span> <span class=" transl_class" id="74" title="Click to correct">पर</span> <span class=" transl_class" id="75" title="Click to correct">भरोसा</span> <span class=" transl_class" id="76" title="Click to correct">कर</span> <span class=" transl_class" id="77" title="Click to correct">लेना</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="78" title="Click to correct">ख्वाब</span> <span class=" transl_class" id="79" title="Click to correct">सी</span> <span class=" transl_class" id="80" title="Click to correct">है</span> <span class=" transl_class" id="81" title="Click to correct">जमीन</span> ,<span class=" transl_class" id="82" title="Click to correct">ख्वाब</span> <span class=" transl_class" id="83" title="Click to correct">सा</span> <span class=" transl_class" id="84" title="Click to correct">है</span> <span class=" transl_class" id="85" title="Click to correct">आसमान</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="86" title="Click to correct">रेशमी</span> <span class=" transl_class" id="87" title="Click to correct">से</span> <span class=" transl_class" id="88" title="Click to correct">ख्वाब</span> <span class=" transl_class" id="89" title="Click to correct">बुन</span> <span class=" transl_class" id="90" title="Click to correct">लेना</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="91" title="Click to correct">चलना</span> <span class=" transl_class" id="92" title="Click to correct">वैसे</span> <span class=" transl_class" id="93" title="Click to correct">भी</span> <span class=" transl_class" id="96" title="Click to correct">है</span>,<span class=" transl_class" id="97" title="Click to correct">चाहत</span> <span class=" transl_class" id="98" title="Click to correct">का</span> <span class=" transl_class" id="99" title="Click to correct">मोड़</span> <span class=" transl_class" id="100" title="Click to correct">देकर</span></span></span><br style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "Trebuchet MS", Verdana, Arial, sans-serif; font-size: 13.7449px;" /><span style="background-color: #eeeecc; color: #333333; font-family: "trebuchet ms" , "verdana" , "arial" , sans-serif; font-size: 13.7449px;"><span style="color: blue;"><span class=" transl_class" id="101" title="Click to correct">इक</span> हसीन मंज़र <span class=" transl_class" id="106" title="Click to correct">देना</span></span></span></b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-82226876647416873822017-02-16T01:30:00.000-08:002017-02-16T01:30:35.364-08:00अपनत्व से चमकती निगाहें<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>सफर में साथी , समां और सामाँ सब तय है , सब वही रहेगा ; अब ये समन्दर की मर्जी है के वो भँवर में तुझे गर्क कर दे या ज़िन्दगी के किनारों पर ला पटके। इस सारी छटपटाहट को अर्थपूर्ण बना। किस ओर तेरी मन्जिल और किधर जा रहा है तू। ऐ नादान मुसाफिर , अनमोल तेरा जीवन , कौड़ियों के भाव जा रहा है। इतना भी न कमतर समझना राहगीरों को , जगमगाता हुआ जीवन तेरे साथ चल रहा है। कौन जाने किस-किस पर है क्या-क्या गुज़री ; आधी-अधूरी धूप छाँव में ,किस के हिस्से क्या-क्या आया। मुंदी-मुंदी पलकों में सपने भी थे , बड़े अपने भी थे , ये और बात है मुट्ठी से वक़्त फिसलता ही रहा , सपनों की मानिन्द। </b><br />
<b><br /></b>
<b>अपनत्व से चमकती निगाहें माहौल में जान फूँक देतीं हैं। दिलासे ,बहाने सब छलावे से लगते हैं। किसी की पीड़ा कोई नहीं बाँट सकता। हाथ पकड़ कर चलता हुआ भी कितना सगा हुआ है। मुसीबत के वक़्त देख लो क्या क्या टूटा हुआ है। बात इतनी सी है कि वक़्त चाहे जितना मिटा डाले ;जीने के लिये बहाना तो चाहिये। अँगारों पे नींद किसे आती है। मुस्करा कर कोई जो साथ चले , पल भर में ज़िन्दगी सँवर जाती है। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-85938614459752418192015-03-25T18:44:00.001-07:002015-03-25T18:50:19.321-07:00अपनत्व का दायरा बड़ा कीजिये <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>समाज में अपराधों का बढ़ता ग्राफ लगातार ये कह रहा है कि आदमी मन के तल पर बीमार है। उपचार भी मन के तल पर ही करना होगा। प्राण-शक्ति की कमी या तो उसे भरमा कर , भटका कर अपराध की दुनिया में सुकून या कहो मजा तलाशने धकेल देती है या अवसाद की तरफ धकेल देती है। लगातार बदलती हुई इस दुनिया में मन भी लगातार ऊपर नीचे हुए जा रहा है , इसीलिये बेचैन है , उद्विग्न है , असहज है। कुछ है जो इस सब को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है , कभी लड़ना चाहता है , कभी सामना करना चाहता है तो कभी भागना चाहता है। गहरी परतों में कुछ ऐसा भी है जो बदला नहीं है , सब कुछ देख रहा है पर उसका जोर कोई नहीं चलता।</b><br />
<b><br /></b>
<b>सुखी और सन्तुलित मन का मूल-मन्त्र है आत्मीयता का दायरा बढ़ा कर रखना। जैसा भाव होगा वैसा ही मन होगा और वैसी ही मानसिक स्थिति बन जायेगी। अपनत्व दिखाने की चीज नहीं है , ये खुद ही आँखों से टपक पड़ेगा। आपको किसी के भी आगे बिछने की जरुरत नहीं है , ना ही पैसा-धेला खर्चने की जरुरत है ; बस उसे अपना समझना है। अपना मानते ही आप उसके साथ नाइन्साफ़ी नहीं कर पायेंगे। जिस तरह आप अपने साथ सहज-सरल हैं वैसे ही रहना है। कहा जाता है कि आप बिना प्यार के भी किसी को कुछ भी दे सकते हैं मगर जिसे आप प्यार करते हैं उसे बिना कुछ दिये रह नहीं पाते हैं । प्यार का रास्ता इकतरफा होता है , हमें सिर्फ अपना पता होना चाहिये कि हमें क्या करना है। अपनत्व ही वो शय है जो हम अपने लिये दूसरों से खोजते </b><b>फिर रहे हैं और हमें नहीं मिलती। इस दुर्लभ चीज का अभ्यास अगर हम सुलभ कर लेते हैं तो एक दूसरी ही बत्ती जल उठेगी ; जिसके प्रकाश में हम सारी दुनिया को एक छत के नीचे एक समग्र दृष्टिकोण से देख सकेंगे।</b><br />
<b><br /></b>
<b>सबको अपना मान चलने वाला व्यक्ति , समाज सभ्यता नैतिकता के नियम नहीं तोड़ता। हालाँकि एक बारीक लाइन ही होती है मन को इधर या उधर ले जाने वाली , फिर भी मन अगर सजग है तो ऐड़ी चोटी का जोर लगा कर भी सन्तुलित रहने वाली बाउण्ड्री लाइन क्रॉस नहीं करेगा। ये बिल्कुल तीसरी आँख खुलने जैसा है। जितने भी पहुँचे हुये पीर पैगम्बर हुये हैं सबके पास ये जादू की छड़ी थी। अपनत्व का ये भाव गहरा विष्वास और आस्था ले आता है और व्यक्ति की प्राण-शक्ति असीम होने लगती है। प्राण-शक्ति बढ़ते ही मन तनाव रहित हो जाता है। रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ जाती है। उस चेतना से जब तक परिचय नहीं हो जाता , हम सन्तुलित रह ही नहीं सकते। वही चेतनता हमें नश्वरता के बीच भी स्थिर और अटूट रख सकती है।</b><br />
<b><br /></b>
<b>जब भी मन विध्वंस की तरफ जाता है या भागना चाहता है ,रुक कर जरा सोचें कि हालात बदलते रहेंगे तो क्या आप झूले की तरह हिलते हुये अपने आपको इतना कष्ट देते रहेंगे। सोचें कि रोज ऐसा नहीं होगा , बुरा आपके अहम को लगता है , वो भी इसलिये क्योंकि आप सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं , कारणों को नहीं देख पाते। अवसाद है तो क्यूँ है , मन के कपड़े बदलवा दीजिये , इसे कोई और सोच दीजिये , रोज वही कमीज थोड़ी न पहनेंगे। अपनी छोटी सोच से ऊपर उठें । अपनी बीमार सोच को स्वस्थ्य करें। अपनत्व का दायरा बड़ा कीजिये। ये काम हमारे अध्यापक लोग , बच्चों के माँ-बाप बखूबी कर सकते हैं ; ताकि हमारी नई फसलें यानि हमारे बच्चे इसको जीवन में उतार सकें ; मगर शिक्षा देने से पहले ये उन्हें अपने जीवन में उतारना होगा। तभी शायद हमारे हालात बेहतर हो सकेंगे। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-2672400085450308642015-01-09T23:54:00.003-08:002022-06-29T22:59:51.571-07:00सँस्कार-शीलता<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>दिल दिमाग बुद्धि के लिये अंग्रेजी के शब्द-कोष में शब्द हैं , मगर मन के लिये कोई शब्द नहीं है। इसी तरह सँस्कार व सँस्कार-शीलता के लिये अंग्रेजी में कोई सटीक शब्द नहीं है। हर भाषा की अपनी विशेषता होती है , बात कहने का अपना अन्दाज़ होता है ;दूसरी भाषा में अनुवाद करते समय अनुवादक को विशेष ख्याल रखना होता है कि वो कही गई बात का हू-ब-हू चित्रण सटीक शब्दों के माध्यम से कर सके। </b><br />
<b><br /></b>
<b>सँस्कार मायने आदत....... सँस्कार-शीलता को अच्छी आदतों व इन्सानियत से जुड़ा माना जाता है। अंग्रेजियत को बढ़ावा देते आज के सभ्य समाज में सँस्कार-शीलता पुरानी व आउट-डेटेड चीज हो गई है , जिसे हर कोई जल्द से जल्द घर से बाहर बुहार देना चाहता है। हर धर्म ने हमें एक ही चीज सिखाई , हालांकि आदमी बाहरी आडंबरों में उलझ कर धर्म के नाम पर भी आपस में लड़ लेता है। कहते हैं दूसरा धर्म अपनाने से अच्छा होता है कि अपना धर्म निबाहें , मानें , जो हमें जन्म से मिला है।ऐसा इसलिये भी कहते हैं कि जो बात हमारे बचपन से चली आ रही हो या हमने तब से सीखी हो वो हम पर .... हमारे अवचेतन पर ताउम्र प्रभावी रहती है। उसे समझना आसान होता है ,अनुसरण करना भी आसान होता है। इसका असर पूरी उम्र रहता है और इस तरह आस्था पक्की होती है। हर धर्म के किस्से-कहानियाँ अलग-अलग होते हैं मगर इशारा या सार एक ही होता है। एक खुदा और एक ही आधार , इन्सानियत और आत्म-उन्नति। </b><br />
<b><br /></b>
<b>धर्म की जरुरत हमें उस वक़्त पड़ती है जब सँसार की ठोकरें या नश्वरता हमें डाँवाडोल कर देती है। आह कोई चीज , कोई बात हमें इस कष्ट से निकाल ले। धर्म पंगु नहीं बनाता वरन आधार देता है। सँस्कार-शीलता , in long term pays .,कोई भी विचार ,कोई भी भाव खाली नहीं जाता , हम तक वापस लौट कर आता है। रिश्तों की गरिमा निभाना , इंसानियत कोई यूँ ही नहीं सीख जाता। सँस्कार-शीलता झाड़ू से बाहर बुहारने वाली चीज नहीं होनी चाहिये ,जिस तरह घर में एन्टीक पीस सजाये जाते हैं ,उसी तरह सँस्कार-शीलता हमारे व्यक्तित्व में सजाने लायक एन्टीक पीस होना चाहिये जिसे दुर्लभ होने पर भी हमने सुलभ कर लिया हो। भले ही उसके लिये हमें कितने ही महँगे सौदे करने पड़े हों , सार्थक हैं। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-49440856337469099552014-12-13T01:11:00.002-08:002020-01-27T08:32:45.944-08:00जितनी ज्यादा नकारात्मकता ,उतनी ज्यादा सकरात्मकता <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: blue;">क़ैद में है बुलबुल , सैय्याद मुस्कुराये </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">फँसी है जान पिंजरे में , हाय कोई तो बचाये </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>कोई तो हाथ-पैर छोड़ कर दुबक कर बैठ जाता है और कोई सारी रात टुक-टुक कर पिंजरे की तारों को या हाथ आई हुई लकड़ी की सतह या कपड़े को सारी रात कुतर-कुतर कर काटता रहता है ;जिस रोटी के टुकड़े के लिये वो इस पिंजरे में फँसा था , वो अब यूँ ही लटका मुँह चिढ़ाता हुआ नजर आता है। जाहिर है अब चूहे की सारी कवायदें इस मुसीबत से स्वतन्त्र होने के लिये हैं। ठीक ऐसा ही तो आदमी का हाल है। कोई तो मुश्किलों से हार मान कर हथियार डाल देता है और कोई सारी ताकत उससे लड़ने में लगा देता है। जितनी ज्यादा नकारात्मकता हो उतने ज्यादा सकारात्मक बनो , तभी नकारात्मकता अपना असर खो देगी। ये सच है कि मन शरीर से भी ज्यादा शक्तिवान है और मन से भी ज्यादा शक्ति बुद्धि के पास है। बुद्धि यानि विवेक , विवेक-पूर्ण मन क्या नहीं कर सकता , बाहरी उपद्रव हमारे मन का सन्तुलन भंग नहीं कर सकते , इतनी शक्ति हमारे अन्दर ही विद्यमान है। </b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">अगर जीवन में संघर्ष नहीं होगा तो यकीन मानिये विकास का कार्य भी रुक जायेगा। ......फ्रेडरिक डकलस </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">यदि आप विफल हो रहे हों , तो समझिये कि सफलता के बीज बोने का सर्वश्रेष्ठ समय आ गया है</span></b><b><span style="color: blue;">।</span></b><b><span style="color: blue;">...... परमहँस योगानंद </span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">दबाव और चुनौतियाँ आगे बढ़ने के अवसर की तरह होते हैं। इन्हें रूकावट मानने की भूल न करें।... कोबे ब्रायंट </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>बहुत सारे तरीके हैं मन को समझाने के , मेरे साथ कुछ भी नया नहीं हुआ है , Nothing is new under the sun.असफलताएँ ही आदमी को माँजती हैं। बेशक तुम्हारी उमंगें टुकड़ा-टुकड़ा हो जायें , जीने के सारे मक्सद खो जायें , खुद को चुनौती दें कि मैं अन्दर से नहीं हिलूँगा। ये मुझ पर है कि अपने हाथों की लकीरों में मैं कौन सा रँग भरता हूँ। मुझे तो खुश होना चाहिये कि तनाव मेरी बर्दाश्त के अन्दर ही है। ये अनुभव बहुत कुछ सिखा के जायेगा। अपनी कामनाओं की नकेल अपने हाथ रखें। ज़िन्दगी का उद्देश्य शान्ति प्राप्त करना है , पैसे या दुख में अटकना नहीं। इसीलिये हमें अपने कर्तव्य प्रसन्नता-पूर्वक निभाने चाहिये , ये पृथ्वी स्वर्ग नजर आयेगी। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-59844030089367608142014-10-29T02:00:00.002-07:002014-10-29T02:00:20.130-07:00विष्वास करना कला है , साथ ही विज्ञानं भी...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>बड़ी कोशिशों से पासपोर्ट रिन्यू करवाने के लिए अपोइन्टमेंट मिला था। सारी औपचारिकताएँ पूरी हुईं तो एक एफ़िडेबिट बनवाने की क्वैरी निकल ही आई। टीना काउन्टर से एफ़िडेबिट कहाँ से और कैसे बनेगा पूछ कर जैसे ही मुड़ी , ऑफिसर पास ही खड़ी दूसरी लड़की के लिए कह रहा था कि इन मैडम को भी एफ़िडेबिट बनवाना है। जिसे सुनकर वो लड़की मायूस हो गयी थी ,कि अब फिर लटक गया , दुबारा से अपोइन्टमेंट लेना पड़ेगा। टीना ने उसका उतरा चेहरा देख कर बात करने की पहल की। कहा " टेन्शन मत लो ,मुझे भी बनवाना है , मैं यहाँ नई हूँ , चलो दोनों साथ चलते हैं ,एक ऑटो करते हैं , इससे पहले कि ऑफिस बन्द होने का वक्त हो जाए ? जल्दी करते हैं। " खैर दोनों जल्दी-जल्दी काम करवा कर लाये। अब इस ऑफिस में आखिरी काउन्टर पर दो हजार रूपये देने थे। रूबी ने पैसे गिनने शुरू किये , अरे ये क्या १९०० रूपये यानि १०० रूपये कम.... अब क्या करे ,यहाँ तो कोई उसे जानता भी न था। और आसपास कहीं A.T.M.भी नहीं था। एक बार फिर उसका मुहँ उतर गया। टीना ने दूर से उसे पशो-पेश में देखा , पास जा कर पूछा कि क्या बात है। टीना को १०० रूपये का नोट निकाल कर रूबी को देने में देर नहीं लगी। रूबी का काम हो गया और वो रसीद ले कर बाहर चली गई। टीना अभी क्लीयरेंस का इन्तज़ार कर रही थी , सोच रही थी कि सौ रूपये तो यूँ ही खर्च हो जाते हैं , कितना तो हम अपने खाने-पीने पर मौज-मस्ती पर खर्च करते हैं ,कपड़ों पर न जाने कितना प्रॉफिट दुकानदार हमसे ऐंठते हैं। रूबी को सिर्फ सौ रूपये की वजह से वो सारी औपचारिकताएँ दुबारा करनी पड़तीं। पैसे वापिस आयेँ या न आयेँ ,क्या फर्क पड़ता है। छह बजते न बजते टीना का काम भी हो चुका था। जैसे ही वो ऑफिस से बाहर निकली , रूबी उसका इन्तज़ार कर रही थी , रूबी दोनों बाहें बढ़ा कर उसके गले लगी। उसके दिल की नमी उसकी आँखों से ज़ाहिर हो रही थी। उसने बताया कि तीन महीने पहले ही उसकी शादी हुई है और उसका नौशा दुबई में उसका इन्तज़ार कर रहा है। पासपोर्ट बनने के बाद ही वीज़ा की औपचारिकताएँ पूरी हो सकेंगी। उस वक्त सौ रूपये की कमी से काम रुक जाना था। दोनों ने एक दूसरे के फोन नम्बर एक्सचेंज किये। टीना को रात की ट्रेन से अपने शहर वापिस जाना था। अब उसे अपना काम पूरा होने के साथ-साथ रूबी के काम पूरा करने में थोड़ी सी मदद-गार बन पाने की भी ख़ुशी थी। </b><br />
<b><br /></b>
<b>विष्वास करना एक कला है। हम अपने आपको किस तरह समझाते हैं कि आँखें खुली रखते हुए हमें दूसरे पर विष्वास करना है।बिना ऐतबार के आप दो कदम भी नहीं चल सकते। ये दुनिया आपको काँटों की बाड़ी ही नजर आयेगी। लोगों की आँखों में सन्देह और अविष्वास ही तैरता नजर आयेगा। काँटों पर चल कर भी आपको फूल उगाने हैं। विष्वास ही वो शय है जो हर विपरीत परिस्थिति में भी फल-फूल सकती है , आश्चर्य जनक नतीजे ला कर असम्भव को सम्भव कर सकती है। सभी लोग अगर स्वार्थी हो जायेंगे तो सामाजिकता के सारे दावे खोखले साबित हो जायेंगे। किसी की भी आँखें अविष्वास को बड़ी आसानी से पढ़ लेती हैं। हमें अपने मन को समझाने का आर्ट आना चाहिए ताकि हम थोड़े बहुत नुक्सान पर भी किसी बड़ी चीज को कमा सकें। </b><br />
<b><br /></b>
<b>हम इसे साइन्स इस लिए कह सकते हैं कि साइन्स तो प्रयोग का नाम है। विष्वास का प्रयोग कर के देखें ,अपना मन ठण्डा ,रिश्तों में प्रगाढ़ता और अपने आस पास खुशिओं का वातावरण इसी का नतीजा है। सहजता , सरलता ,सरसता इसी का नाम है। हाँ , सजगता अपने आप आ जाएगी। दुनिया चाहे इसे भावनात्मक बेवकूफी कहे मगर मेरी नजर में इसे भावनात्मक समझदारी या अक्लमन्दी कहा जाना चाहिये। </b><br />
<b><br /></b>
<b>बेशक आदमी ही आदमी की काट करता है और उसका दिमाग इस राह पर इतनी तेज चलता है कि वो हर मुमकिन तरीके से दूसरे को छलता नजर आता है मगर ....</b><br />
<b><span style="color: blue;">वो बन सकता था खुदा </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">अपनी कीमत उसने खुद ही कमतर आँक ली होगी ....</span></b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-16772401438637586492014-09-07T21:59:00.001-07:002014-09-07T22:03:05.800-07:00सबला है नारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b>नारी अबला नहीं है। वहशी दिमागों का जोर किसी पर भी उतना ही कारगर है , चाहे वो नर हो या नारी हो ; क्योंकि वो तो उनका सुनियोजित मकड़जाल होता है , बिना तैय्यारी जिसमें कोई भी फंस सकता है। नारी उपभोग की वस्तु नहीं है। पुरुष अपने अहम पर चोट बर्दाश्त नहीं करता , इसे ताकत नहीं कमजोरी कहेंगे। नारी अगर पुरुष के अहम को सन्तुष्ट करती नजर आती है तो ये नारी की सहनशक्ति है। नारी की सहन-शीलता को गलत अर्थों में उठा लिया गया। उसने अपने घर की शान्ति को बरकरार रखना चाहा , इसे तो समझ-दारी कहना चाहिए। वो भी हाड़-माँस की बनी है , दिल-दिमाग रखती है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>जहाँ-तहाँ नारी को अश्लील सामाग्री की तरह परोस दिया गया , जबकि नारी के सम्मोहक रूप से इन्कार नहीं किया जा सकता। ज़िन्दगी को , परिवार को पूरा करने के साथ-साथ ,परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने में नारी की अहम भूमिका होती है। परिवार के सदस्य अगर तृप्त नहीं हैं तो उनके व्यक्तित्व पर उसका असर दिखता है। ये कुण्ठाएँ आदमी को अवन्नति की ओर धकेलतीं हैं। यौन-शोषण ,किशोरों की अपराधिक मानसिकता ,धोखा-धड़ी ,आँखों में तिरते अविष्वास के उदाहरण हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं। ये अतृप्त भटके हुए मन और कमजोर जड़ों के नतीजे हैं। पौधे की जड़ें जितनी मजबूत होतीं है वो उतना ही ज्यादा फलता-फूलता है। व्यक्ति का मन जितना सुन्दर होता है व्यक्ति उतना ही सहज,सरल और दमदार होता है। अन्तर्मन की खूबसूरती के बिना बाहरी सुन्दरता ज्यादा देर टिकती नहीं। और ये खूबसूरती तो अर्जित की जा सकती है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>बुद्धि-बल के सामने शरीर-बल गौण है। आज बुद्धि-जीवी ही बड़े ओहदों पर बैठे हैं ,बड़ी-बड़ी नौकरियां कर रहे हैं। नारी भी पुरुष से कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है। नारी तो दोहरी जिम्मेदारी निभाती है। गृहस्थी की गाड़ी को ढोने में नारी की महत्त्व-पूर्ण भूमिका होती है। </b><br />
<b><br /></b>
<b>बाहरी उपद्रव जब आक्रमण करेंगे तो आँच सीने तक तो पहुँचेगी ही , मगर नारी के पास वो कला है जो उस आँच को ऊर्जा में तब्दील कर लेती है जो उसे हर हाल में कभी मुड़ना-तुड़ना सिखाती है , कभी बिखरती इकाइयों को अपने पँखों में समेट लेना सिखाती है तो कभी टूटते विष्वास को श्रद्धा का पानी पिला कर सर का ताज बना लेने की ताकत देती है। अपने घर की सारी व्यवस्था की देख-रेख नारी के हाथ है , वो चाहे तो अपने परिवार के सदस्यों के दिलों पर राज करे , यहाँ तक कि वो तो सारी उम्र अपने बच्चों के व्यक्तित्व के जरिये दुनिया से सँवाद करती रहती है , उदाहरण बन सकती है , तो फिर नारी अबला कैसे हुई। नारी तो सबला है। </b></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4727660970638543566.post-79592443570161851212014-07-09T04:12:00.001-07:002017-06-19T06:55:19.767-07:00ये बन्दूकें क्यूँ बोते हैं '<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="font-weight: bold;">किसी शायर ने </span><span style="font-weight: bold;">सटीक कहा है। </span><br />
<span style="font-weight: bold;"><br /></span>
<b><span style="color: blue;">' हम अपने-अपने खेतों में ,</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">गेहूँ की जगह , चावल की जगह ,</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">ये बन्दूकें क्यूँ बोते हैं '</span></b><br />
<b><br /></b>
<b>नफ़रत की चिन्गारी को हवा देते ही शोले भड़क उठते हैं। चन्द लोगों के सीने की नफ़रत व्यवसाय का रूप क्यों ले लेती है ? कम उम्र का युवा मन जिसे कच्ची मिट्टी की तरह जिधर चाहे मोड़ लो , चोट खाये हुए दिल को और उकसा कर विध्वंसक गतिविधियों में उलझा दिया जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि उसका इस्तेमाल किया जा रहा है। उसका रिमोट तो आकाओं के पास है , जिन्होंने उस चिन्गारी को बारूद में ढाला है।</b><br />
<b>इन्सान का दिल हमेशा पुरानी चीजों को याद करता है। बचपन , माँ , सँगी-साथी क्या कभी भूले से भूलते हैं। अतीत क्या कभी यादों से मिटाया जा सका है। उनसे आँख चुराने का मतलब ही यादें कड़वी हैं। जिस दिन 'कसाब' को उसके गाँव के लोगों ने पहचानने से इन्कार कर दिया था , उसके माँ-बाप भी वो गाँव छोड़ कर कहीं चले गये थे।कलम ने लिखा था.…… </b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">वो गलियाँ , वो दीवारें</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">बेज़ुबान बोलें कैसे</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">पहचानतीं हैं तेरी आहटें</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मगर भेद खोलें कैसे</span></b><br />
<b><br /></b>
<b><span style="color: blue;">नक़्शे में है तेरा वतन</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">जैसे है वो तेरी यादों में</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">लाख कर ले तू जतन</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">वक़्त के मोहरे को वो अपना बोलें कैसे</span></b><br />
<b><span style="color: blue;"><br /></span></b>
<b><span style="color: blue;">तेरे वतन के लोग</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">जिनके लिये तूने दाँव खेले</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">साथ देती नहीं परछाईं भी</span></b><br />
<b><span style="color: blue;">मुसीबत में ,वो ये बात खोलें कैसे</span></b><br />
<b><br /></b>
<b>आतँक-वाद की दुनिया ही अलग होती है। जिस काम को दुनिया से छिपा कर किया जाये , निसन्देह वो गलत होता है। अपने ही वतन से जैसे जला वतन कर दिये गये हों। दुखद बात ये है कि फिर लौटा नहीं जा सकता।न जमीं बचती है पैरों तले , न आसमाँ ही शेष रहता है। जमीं मतलब ज़मीर , इन्सान का खून देख कर भी जो न पसीजे, उसे क्या कहेंगे। उसने ज़मीर के मायने ही गलत उठा लिये हैं। आसमाँ मायने स्वछन्दता , निडरता ... जहाँ तू आराम से उड़ सके। निश्छलता के बिना ये आसमान तेरा नहीं। खौफ के साथ निडर कभी रहा ही नहीं जा सकता। </b><br />
<b><br /></b>
<b>हम दुनिया में ये सब तो नहीं करने आये थे।</b><br />
<b><span style="color: blue;">हर ज़र्रा चमकता है नूरे-इलाही से </span></b><br />
<b><span style="color: blue;">हर साँस ये कहती है के हम हैं तो खुदा भी है </span></b><br />
<b><br /></b>
<b>बस कोई नूर वाली आँख ही उसे देख सकेगी , महसूस कर सकेगी। जो किसान हमें गेहूँ चावल देता है , आम आदमी जो कपड़ा छत मुहैय्या कराता है , जिसके दम पर हमारा जीवन और वैभव आश्रित है , हम उस पर ही अन्याय कर बैठते हैं। जैसे अपनी ही जड़ें खोद रहे हों। बन्दूकें बोयेंगे तो बन्दूकों की फसल ही काटेंगे। जिस तकलीफ ने उकसाया हो , रुक कर जरा सोचें कि इस तड़प को…इस उनींदी को सार्थक कर लें। कोई सुबह होने को है। मन को भी वो दिशा दें कि फिर ये हादसे न घट पाएं। अपने जैसों को भी उबार लाएं। </b><br />
<br /></div>
शारदा अरोराhttp://www.blogger.com/profile/06240128734388267371noreply@blogger.com8