बुधवार, 25 नवंबर 2020

फ्रैंकफर्ट मेरी नजर से

 बादलों के झुण्ड .... जैसे रुई के अम्बार लगे हों , जिन्हें चीरता हुआ प्लेन सुबह-सुबह जर्मनी फ्रैंकफर्ट के आसमान से जब नीचे उतर रहा था ; गहरे हरे रँग के जँगल , हलके धानी और पीले रँग के खेत , खिलौनों जैसे घर साफ़ दिखाई देने लगे थे।इमिग्रेशन और सिक्योरिटी की औपचारिकताओं के बाद जब हम एयर-पोर्ट से बाहर आये ,बच्चे दूर से ही इन्तिजार करते दिख गये। एयर-पोर्ट पर कोई मारामारी नहीं ,बहुत कम लोग दिखे ,सामान के लिये भी कोई चैकिंग नहीं। 

मैने अभी तक इतना साफ-सुथरा ,सुनियोजित ,ट्रैफिक रूल्ज फॉलो करने वाला शहर नहीं देखा था। हॉर्न तो बजते ही नहीं थे ,गाड़ियाँ भी एक निश्चित दूरी रख कर चलतीं थीं। सड़कों पर दोनों ओर साईकिल चलाने वालों के लिये और पैदल चलने वालों के लिये दो अलग-अलग सड़कें थीं। सड़क पार करने के लिये क्रॉसिंग पर ग्रीन सिग्नल होते ही सड़क पार करने के लिये टीं- टीं की आवाज़ भी होती ताकि कोई ब्लाइंड पर्सन भी सड़क पार करना चाहता है तो आराम से कर ले। 

सभी तरफ खुलापन ,ज्यादातर पाँच-मंजिली इमारतें ,हर लाल-बत्ती के पास मेट्रो-स्टेशन्स दिखे। ये देश महँगा जरूर है ,मगर सरकार की तरफ से सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेट्रो स्टेशन पर टिकट देने के लिए कोई है ही नहीं। आपको खुद ही मशीन में जगह का नाम व पैसे भरने हैं और टिकट या मंथली पास निकालना है। मैं हैरान थी कि कहीं कोई मशीन चेक करने के लिये भी नहीं थी। फिर पता चला कि कभी-कभी सरप्राइज चैकिंग होती है , बेटिकट लोगों पर तगड़ा जुर्माना लगता है। इसलिए कोई भी बेटिकट सफर नहीं करता। 
सामान खरीदने जाओ या आसपास जो भी मिलता है अभिवादन में हलो जरूर बोलता है। वैसे वो किसी की भी ज़िन्दगी में दखल नहीं देते। 

  राइन नदी फ्रैंकफर्ट से लगी हुई बहती है । पूरे तट पर साइक्लिंग के लिए सड़क और घास ऊगा कर मनोरम पार्क विकसित किये हुए हैं। राइन नदी के ब्रिज पर ताले बँधे हुए थे ,पूछने पर पता लगा कि यहाँ विश माँगी जाती है , मान्यता है कि वो पूरी हो जाती है। फोटो देखिये ...दूर से नजर आते हुए आसपास के गाँव और खेत....मनोरम दृश्यों से भरपूर। 





गर्मियों में सुबह साढ़े पांच बजे सूरज अपनी किरणों के लाव-लश्कर के साथ दस्तक देने लगता।  रात होती साढ़े दस बजे। अब घड़ी देख कर  सोओ जागो।शाम सात बजे सारे बाजार बंद हो जाते ,मगर उजाला तो दस बजे बाद भी रहता ; मगर सड़कें सूनी होतीं ,रेस्टोरेंट्स खुले रहते। आबो-हवा हमारे नैनीताल वाली और विकास किसी मेट्रोपॉलिटिन सिटी सा। 

फड़ या अतिक्रमण कहीं नहीं। रैस्टौरेंट्स के बाहर खुली जगह में टेबल चेयरस लगीं रहतीं .टी. वी. पर मैच देखते हुए ,बड़े-बड़े बियर और व्हिस्की के ग्लास भर कर बैठे लोग ,ज़िन्दगी को भरपूर जीते हुए लगते। ऐसा नहीं कि एल्कोहल पीने वाले लोग ही ज़िन्दगी को पूरी शिद्दत से जीते हों।  यहाँ के लोगों के लिए ये उनके आम खान-पान का हिस्सा है ,शायद आबो-हवा की माँग भी, और ये उनके जीने का अन्दाज़ भी। एक डिश और एक ड्रिंक ऑर्डर करना ही उनका रोज का लन्च या डिनर भी। कहीं कोई हँगामा नहीं करता। सारे स्टोर्स में सभी तरह की एल्कोहल आम ग्रौसरी की तरह ही उपलब्ध रहती। 

इंग्लिश में काम चल जरूर जाता है मगर जर्मन सीखे या जाने बगैर आपकी ज़िन्दगी यहाँ बहुत आसान नहीं हो सकती। स्ट्रीट यहाँ स्ट्राज़ो होती है और यूनिवर्सिटी होती है यूनिवर्सिटैट , मेट्रो बान और रेलवे-स्टेशन हाफबानऑफ। 
बुलेट ट्रेन से पेरिस जाने के लिये जब स्टेशन गये तो मैं हैरान रह गई कि तेइस-चौबीस प्लैटफॉर्म्स के लिये एक ही प्लैटफॉर्म से ब्रांचेज बन गईं हैं। आपको कोई ब्रिज पार नहीं करना। ट्रेन के दोनों तरफ इंजन हैं। एक तरफ से गाड़ी आई और उसी रास्ते पिछले इंजन से वापिस चली जायेगी .आदमी का वक्त कीमती है भई। टिकट पर स्टेशन का प्लेटफार्म लिखा रहता। स्क्रॉल की सुविधा भी हर जगह। लोकल बस ट्रॉम ,मेट्रो हर जगह स्क्रॉल , 6 .14 तो  6 .14 और 5.19 तो  5.19 पर बस स्टॉप पर पहुंचेगी , कोई शोर नहीं , मेट्रो हर तीन मिनट में।फोन में ऐप डाउनलोडेड रहते ट्रान्सपोर्टैशन सुविधाओं की समय सारणी के भी , किसी से पूछने की भी जरुरत नहीं। 

हर स्टोर में प्लास्टिक की बोतलें रिसाईकिल करने की मशीन लगी है। पैसे सामान में रीइम्बर्स हो जाते।पब्लिक जगहों पर कांच की बोतलों को डिस्पोज़ ऑफ़ करने के लिए तीन तरह की मशीनें लगीं हैं ,ब्राउन ,ग्रीन और सफ़ेद। हर जगह कूड़ेदान और सफाई।इतनी जागरूकता सरकार की भी और जनता की भी !

 यहाँ सब तारें अंडरग्राउण्ड ही है ,कहीं कोई खंबे या तारें हवा में नहीं लटकते। कहीं कोई केबल मरम्मत होनी थी।मैंने देखा कि छः आदमी दो मीडियम से ट्रक ले कर आये.सड़क के पत्थर उखाड़े , मिट्टी निकाली ,उसे एक ट्रक में भर लिया। केबल की तारों को अलग-अलग बाँधा , ट्रक से डिवाइडिंग बार्स निकालीं ,गड्ढे और चौड़े पत्थरों के इर्द-गिर्द पार्टीशन खड़ा कर दिया ताकि गलती से भी कोई दुर्घटना ना हो। अगले दिन ही वो जगह बिल्कुल नार्मल सड़क की तरह थी। सारी फैक्टरीज और फर्नीचर्स की दुकानें शहर से दूर हैं ताकि लोगों को असुविधा न हो। 

दवाइयाँ बिना डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के नहीं बिकतीं। सेहत के लिए कितनी जागरूकता है। ज्यादा लोग साइकिल चलाते मिलते। बच्चों के बड़ों के तरह-तरह के साइकिल ,प्रैम ,और हेल्मेट्स देखने को मिलते हैं। इतने प्यारे बच्चे ,जैसे किसी डॉल हॉउस में आ गए हों। वक्त को भरपूर जीना कोई इनसे सीखे।पार्कों में दरियाँ बिछा कर , धूप सेंकते हुए लोग , पिकनिक मनाते हुए , व्यायाम और खेल-कूद करते हुए अक्सर हर सप्ताहाँत दिख जाते। 

मैं अचरज से भी देख रही थी और अभिभूत भी थी , सोच रही थी कि ये सब हमारे भारत में क्यों नहीं हो सकता। हमारी जनसँख्या इतनी ज्यादा है कि जगह की कमी ,सुविधाओं की कमी और इसके साथ हमारी नीयत सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ;पब्लिक वाली सुविधाएँ तो हम घर उठा कर ले जाएँ। भ्रष्टाचार की वजह से विकास की सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं।फाइनेंस कैपिटल फ्रैंकफर्ट की जनसख्याँ 2017 के आँकड़ों के हिसाब से सात लाख पन्द्रह हजार और हमारे दिल्ली की 2011 के आँकड़ों के हिसाब से तकरीबन सवा करोड़। 

रविवार, 4 अक्तूबर 2020

समाज की उधड़ती परतें : नशा

 समाज की पर्तें उधड़ रही हैं , नेपोटिज्म ,पॉलिटिकल कनेक्शन ,ड्रग कनेक्शन और रिश्तों की टूटन । रिश्तों की टूटन अन्ततः डिप्रेशन की तरफ ले जाती है। ये साफ़ होता जा रहा है कि आज की आर्टिफिशयल चमक-दमक भरी दुनिया किस तरह नशे की गिरफ़्त में आ चुकी है। 


ड्रग्स पार्टीज करना महज़ मनोरँजन के लिए या शौक नहीं है ;यहाँ तलाशे जाते हैं मौके यानि ऊपर चढ़ने की सीढ़ियाँ । वही लोग जो यहाँ किसी उद्देश्य से आते हैं वो खुद कभी किसी के लिए सीढ़ी नहीं बनते ; बल्कि दूसरों के पाँव के नीचे की जमीन तक खींचने के लिए तैय्यार रहते हैं । पहले-पहल कोई मॉडर्न होने के नाम पर ड्रग्स चखता-चखाता है ;फिर धीरे-धीरे ये लत बन जाता है ,जैसे धीमे-धीमे कोई जहर उतारता रहता है अपनी रगों में ।

एक दिन ये भी आता है कि नशा जरुरत बन जाता है शरीर की भी और मन की भी। आदमी भूल जाता है कि जिस दीन-दुनिया की खातिर नशे को गले से लगाया था ,वही दुनिया उसे अब छोड़ने लगती है। हर अप्राकृतिक चीज के साइड इफेक्ट्स होते हैं। नशा शरीर को खोखला कर देता है। ज्यादा दवाइयाँ और हारमोन्ज़ माइकल जैक्सन की हड्डियों तक को खोखला कर गए थे ;सभी जानते हैं कि कितनी कम उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गए। कामयाबी ,शोहरत ,पैसा किसी भी काम न आया। जिस सेहत को आप हजारों रूपये दे कर भी खरीद नहीं सकते ; उसे दाँव पर लगा देना , इससे बड़ी नादानी क्या होगी। 

कैसी विडम्बना है कि नशा जिस मानसिक स्थिति को उठाने के लिए किया जाता है , उसी को घुन की तरह खाने लगता है। ये जितना चुम्बक की तरह लुभाता है ,उतना ही आप ज़िन्दगी से दूर होते जाते हो।  धीरे-धीरे नकारा होते जाते हो। जब आँख खुलती है तो ज़िन्दगी का कोई मक्सद ही नजर नहीं आता। खोखली ज़िन्दगी और खोखला मन डिप्रेशन और बीमारियों की तरफ धकेल देता है। 

 तक़रीबन पन्द्रह साल पहले अखबार में छपा था किशोरावस्था के स्कूल जाने वाले बच्चे इंक इरेजर या वाइटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं नशे के लिए। फिर इनकी सेल बैन कर दी गई थी। चिंता का विषय है कि इतने छोटे बच्चों को ये लत किसने लगाई ,किसने उन्हें ये रास्ता दिखाया। ड्रग्स बहुत गहरे अपनी पैठ बनाये हुए हैं। जब दाल बीनने बैठेंगे तो सारी दाल ही कहीं काली न मिले।  

ड्रग्स की खोज दवा की तरह की गई थी और लोगों ने इसे कारोबार बना डाला ;अमीरी का सबसे आसान रास्ता। मौज-मस्ती की आड़ में हमें पता ही नहीं चलता कि हम अपने नैतिक मूल्यों से कितनी दूर आ गये हैं। आडम्बर करते-करते अपनी ही दुनिया में आग लगा बैठे है। नींव खोखली हो तो किसी भी समाज का भविष्य दाँव पर लगा होता है।  अब जब समाज की पर्तें उधड़ने लगीं हैं। पर्त -दर-पर्त कितने ही लोग नपेंगे। 

आप खोजिये इस नकली चौंधियाती दुनिया में असली रिश्तों को ,किसी छाँव को , किसी आराम को। अब आप बहुत दूर निकल आये हैं। आपके हाथ से बहुत कुछ छूट गया है। दो बूँद ज़िन्दगी की चाहिए थी और आप नशे को , भटकाव को गले से लगा बैठे। 

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

कैसे गुजारें सोशल डिस्टेंसिंग का वक़्त

इक सन्नाटा सा पसरा है सारे शहर में 
पत्ते भी हैं सरसराते , हवा भी चल रही है 
पक्षी भी हैं चहचहाते 
इक इन्सान ही ठहरा है अपनी आरामगाह में 
१. ये सोशल डिस्टेंसिंग बीमारी से अपने बचाव के लिये हमें स्वेच्छा से खुद ही चुन लेनी चाहिये।निदान उपचार से बेहतर है। यही सर्वोत्तम है। इसे बेशक हमारे प्रधान-मन्त्री जी की मर्जी से लागू किया गया है। मगर ये सच है कि अगर इसे नियम न बनाया गया होता तो हम इसे बहुत हल्के लेते और भयँकर परिणाम झेलने पड़ते। 
२. हम में से बहुत लोगों को घर बैठना बहुत कठिन लगेगा ; क्योंकि हम जिस रूटीन के आदी थे वो  बदल गई है। वो दिनचर्या पूरी तरह बाहरी आधारों पर आश्रित थी। ये सही वक़्त है अपने ही आँकलन का। आप क्या क्या कर सकते थे और आप क्या कर रहे थे।घर पर रहते हुए अपने रिश्तों में रस घोलिये। घर का काम-काज आपको आत्म-निर्भर बनायेगा। विदेशों में तो सब काम लोग मिल-जुल कर खुद ही करते हैं , इसमें शर्म कैसी। घर के अन्दर आपको सब कुछ हासिल है। सरकार फ़ूड सप्लाई ,दवाइयाँ आदि जरुरत के हर सामान का ध्यान रख रही है। समझ-दारी के साथ बिना घबराये कम सामान के साथ गुजारा भी करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। खाना तो जीने के लिये खाया जाना चाहिये न कि खाना खाने के लिये जिया जाना चाहिये। यही बात पहनने ओढ़ने पर लागू होती है। हमारी जरूरतें जितनी सीमित होगीं हम उतने ही सुखी होंगे। दरअसल इन चीजों में मन को अटका कर नहीं रखना चाहिये। 
३. अपना रूटीन बनाइये , जो काम अब तक आप नहीं कर पाये थे , वो करिये। कोई स्किल डेवलप करनी हो , किसी परीक्षा की तैयारी , कुछ छूटे हुये घरेलू काम ,किताबें पढ़ना या लिखना , बागवानी ,मेडिटेशन ,सँगीत प्रैक्टिस , गाना बजाना , पाक कला आदि किसी भी काम में महारथ हासिल करनी हो ;सब कर सकते हैं। ऑन-लाइन हेल्प , फोन-अ-फ्रेंड  और आपके पास मौजूद किताबें आदि मदद-गार साबित होंगी। अब आपके पास खूब वक़्त है उसे जैसे चाहें इस्तेमाल करें। लोगों को आप भी मदद  सकते हैं। कोई अपने शौक का काम तो जरूर करें। 
४.ऐसा वक्त आ सकता है जब ह्रदय-हीनता ,सँवेदन-हीनता ,टकराव और तनाव की स्थितियों का सामना करना पड़े।अज्ञानता , अनभिज्ञता ,अपना बचाव करने वाली मानसिकता ,बुरे अनुभव या स्ट्रेस ऐसा कोई भी कारण हो सकता है। जब कारण देख सकने वाली दृष्टि पैदा कर लेंगे तो नाराज नहीं रह सकेंगे। और सहज रह सकना ही हमारी ताकत होती है; वरना हालात और समय को बर्दाश्त नहीं कर पाते और डिप्रेशन या बम फट पड़ने जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। 
५. ये फुर्सत का वक्त आपको मिला है कि आप मनन करें, आप क्या-क्या कर सकते हैं। अपने अन्दर झाँक कर देखें। रिश्तों को एक धागे में पिरोएं , परिवार को वक्त दें। मेडिटेशन ,प्राणायाम को प्राथमिकता दें। यही आपको ठहराव देगा व स्थितियों को स्वीकार कर पाने की क्षमता देगा। जिसकी नीँव में प्रेम हो वो स्वतः ही आनन्द का फल देगा ...बड़े बड़े कर्मों के पीछे प्रेरणा का स्त्रोत प्रेम ही होता है 
६. अनिश्चितता की स्थिति सता सकती है। नौकरी ,रोजगार सब पर असर पड़ेगा। और ये तो सारे देश क्या पूरी दुनिया के साथ है।और दुनिया ख़त्म नहीं होगी , सब फिर से वैसा ही चलेगा।हाँ हम लोगों को बहुत सारी सीख जरूर दे कर जायेगा। अगर आप समर्थ हैं तो दूसरों की मदद करिये।  अगर आप समर्थ नहीं हैं तो सरकार आपके खाने का पूरा इन्तजाम कर रही है , घबराने की कोई बात नहीं है। जब आपदा का समय खत्म होगा , आपकी ज़िन्दगी का नया अध्याय शुरू होगा। अभी अपनी क़ाबलियत ,समझदारी ,सहन-शक्ति , व्यवहारिकता अमल में लाने का समय है। वक्त गुजर जायेगा , ये मायने रखता है कि आपने इसे कैसे गुजारा ! 
७. अपनी इम्युनिटी का पूरा ध्यान रखें। अपने शरीर की प्रकृति व ऋतु के अनुसार भोजन करें। साफ़-सफाई का ध्यान रखें। मन खुश रहेगा तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। 

घर कैद नहीं है। ये आपके सपनों की आराम-गाह है। आपका घर ही इस वक्त आपके लिए सबसे सुरक्षित स्थान है ; जहाँ आप सहज रह सकते हैं ,खुश रह सकते हैं , मनचाहा कर सकते हैं। तो चलिये इस वक़्त को यादगार बनाइये। 

ऐ ज़िन्दगी न मैं चूहा न तू बिल्ली 
है तेरी ये आँख-मिचोली कैसी 
मिलेंगे तुझसे तो पूछेंगे 
बता ,है ये हँसी-ठिठोली कैसी 

कहाँ ढलता है सूरज दिन के ढल जाने पर 
ढल जाती है जब उम्मीद समझो के शब हुई 




शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

कोरोना , कुछ मेरी कलम से

Picture credit -Kusha Arora ....my daughter

हम जीते मरते रहते हैं जिन संवेदनाओं की खातिर 
सर पे लटकी हो तलवार तो सब हो जाती हैं बेमायने 
माँगते हैं सिर्फ चलने की डगर 

एक बार की बात है जब कोरोना की वजह से महामारी ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। once upon a time there was an outbreak of pandemic Corvid-19, a contagious disease etc.etc... ; हो सकता है हममें से बचे हुए लोग दादा-दादी या नाना-नानी की तरह कभी अपने पोते पोतियों को ऐसी ही कहानियाँ सुनाएँ। कोरोना ने हम सबको ऐसे हालात में ला कर खड़ा कर दिया है कि हम अपने-अपने घरों में कैद हो जायें। इस का असर सारी दुनिया , काम-धन्धे ,ऐ टू जेड हर बात पर पड़ेगा।मगर है तो सारी दुनिया पर ही। कभी ऐसा लगता है किसी फिल्म का सीन है , जैसे किसी एक जगह ला कर नजर-बन्द कर दिया गया हो। कभी ऐसा लगता है कि रोबोट या राक्षस की तरह वायरस आता है और जिधर नजर दौड़ाओ ज़िन्दगियाँ ही ज़िन्दगियाँ लील जाता है। 

मौत का डर सताता है 
मौत आनी है एक दिन तो आयेगी 
वो जनम इक नया पैरहन होगा 
रिश्ते-नाते रुह का सिँगार हैं 
रात आयेगी तो सब विदा होगा 
रुह कभी मरती नहीं 
अपने ही नूर से तू वाकिफ होगा 

इससे पहले कि हम कोरोना संक्रमित सँख्या का हिस्सा हो जायें , हमें खुद को आइसोलेट करना है यानि मेल-मिलाप से बचना है। ज़िन्दगी के सामने जात-पात , हिन्दू-मुस्लिम ,अमीर-गरीब सब गौण हैं।प्रगति ज़िन्दगी से बड़ी नहीं होती।प्रगति ज़िन्दगी के एसेन्स को बढ़ाने वाली जरुर होती है। आज अगर कोविड-19 के लिये वेक्सीन खोज ली जाती है तो मानव के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। 
अभी तो हमें सुरक्षित रहने का , इम्युनिटी बढ़ाने का हर सम्भव प्रयत्न करना है। खान-पान ,साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। अगर आपको गले में जरा भी खराश लगती है तो दो तुरियाँ लहसुन की चबा-चबा कर खा जाएँ , इसकी तीखी गन्ध श्वसन-सँस्थान के सारे माइक्रोब्ज मार देगी ,गला खुल जायेगा। 

सबसे बड़ी बात है कि आप खुश रहें। ऐसे हालात का भी सकारात्मक पहलू देखें। ये तो एक मौका है अपने रिश्तों को वक्त देने का। अपने सीमित साधनों को सर्वोत्तम ढँग से उपयोग करिये। आराम करिये , घरेलू कामों में जरुरी व्यायाम भी हो जायेगा।मनन कीजिये , अपनी प्राथमिकताएँ तय कीजिये। जरुरत का सामान राशन , दूध ,सब्जियाँ आदि लाने भी बार-बार बाहर न जायें।कोई स्किल डेवलप करें। भीड़ करने से सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य व्यर्थ हो जायेगा। ज्यादा राशन इक्कट्ठा न करें क्यूँकि हो सकता है कि औरों के लिये पर्याप्त राशन न बचे। आप भूखे नहीं रहेंगे ,कुदरत पत्थर के नीचे दबे मेंढक तक के लिये खाने का इन्तज़ाम कर के रखती है। अभी तो हमारी सरकार फ़ूड सप्लाई का भी पूरा ध्यान रख रही है।लो इन्कम ग्रुप के लिये तो भण्डारा या फ्री वितरण भी चल रहा है। अभी वक्त है सँयम का। 

ये चुनौती-पूर्ण समय है , और समय कब चुनौतियों से भरा नहीं होता ?
डॉक्टर्स ,मैडिकल स्टाफ ,सफाई कर्मचारी ,पुलिस महकमा , बैंकर्स , फ़ूड सप्लायर्ज सभी बधाई के पात्र हैं उन्हें मानवता की सेवा करने का मौका मिला है। अपने-अपने स्तर पर हम लोग भी कुछ न कुछ योगदान कर सकते हैं , कभी किसी मन को उठा कर , और कुछ नहीं तो अपना ही ध्यान रखते हुए औरों के लिये समस्या न बन कर। 

किसको पता था कि इस तरह भी दुनिया थम जायेगी 
छोटा सा कोरोना वायरस ,दहशत की पराकाष्ठा !
जैसे यमराज हो बिन आहट के चलता हुआ 

कभी सोचा है ,वाकये ऐसे भी हुए हैं 

जब छोड़ जाते हैं अपने ही लोग ,मरते हुए जिन्दों को श्मशान में 
संवेदनाओं की पराकाष्ठा !

घबरा मत ऐ इन्साँ 

ये दुनिया चला-चली का है मेला 
ज़िन्दगी की है तय दासताँ 

कभी ‘हॅंस ’ पत्रिका में एक कहानी पढ़ी थी शायद फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी ,जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था , किसी गाँव में महामारी फैलने की वजह से जब उल्टी-दस्त से लगातार मौतें हुई जा रहीं थीं ,घर में बाकी बच्चों के मर जाने के बाद छोटी बच्ची भी ग्रस्त हुई , तब ये किरदार अपनी बच्ची को मरने से पहले ही श्मशान पहुँचा देता है कि अब मरना तो तय ही है।जरा सोचिये ,लाचारगी और बेबसी ने उसे कितना सँवेदन-हीन बना दिया होगा। बरबस उसी कहानी की याद आ जाती है। ये वक़्त पैनिक होने का है ही नहीं। ठन्डे दिमाग से निदान के हर सँभव उपाय अपनाइये। हो सकता है सँवेदन-हीनता के बहुत सारे किस्से पेश आयें ; मगर ऐसे में ही आपको रास्ता निकालना होगा। 

साजिश में दुनिया की खुदा भी तो था शामिल 
शिकायत कैसे करें , हैं उसकी मेहरबानियाँ भी कितनी 

भारत के लोग असीम प्रतिरोधक क्षमता ,असीम प्राण-शक्ति के मालिक हैं ;हम मिल कर ये जँग जीतेंगे। सकारात्मक रहें ;ज़िन्दगी को ऐसे जियें जैसे कि ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा।सारी कवायदें ज़िन्दगी की ज़िन्दगी के लिये ,क्यूँ न फिर गुनगुना ही लें ......

ऐ ज़िन्दगी तेरा ,
तीरे-नजर देखेंगे 
जख़्मी-जिगर देखेंगे 
कोरोना का असर देखेंगे 
कुदरत का कहर देखेंगे 
और हाँ ,😁बचे तो सहर देखेंगे 

ऐ खुदा , ले आये हो ये किस मुकाम पर 
रुक गई है दुनिया की रफ़्तार 
मगर हम दुआओं का असर देखेंगे 
रहमत की लहर देखेंगे 
हाँ शहर-दर-शहर देखेंगे 

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शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कोरोना को हराना है

सिडनी , ऑस्ट्रेलिया से लौटा ३५ साल का युवक भारत पहुँचता है , स्क्रीनिंग में हल्का बुखार पाये जाने पर टेस्ट के लिए अस्पताल लाया जाता है। अभी तो टेस्ट की रिपोर्ट भी नहीं आती और वो घबरा कर अस्पताल की सातवीं मँजिल से नीचे छलाँग लगा देता है। कोरोना की दहशत ने उसे पहले ही मौत की तरफ धकेल दिया। आज हम ये सोचने पर मजबूर हैं कि अकेले पड़ने पर या किसी भयावह स्थिति का सामना करने पर हम कितने मजबूत रह पाते हैं। शरीर की इम्युनिटी के साथ-साथ हमें मन की मजबूती भी चाहिए। 

कहते हैं शरीर की ताकत से बड़ी बुद्धि की ताकत होती है और बुद्धि की ताकत से भी बड़ी हमारे मन की ताकत यानि प्राण-शक्ति होती है।इस ऊर्जा को सही दिशा दीजिये। कोरोना वायरस एक हव्वा बन चुका है क्योंकि ये संक्रमण से फैलने वाली बीमारी का कारण है।इस से डरने की बजाय , सावधानियाँ बरतें। सैनिटाइज़्ड रहने का ख़्याल रखें , बाहर आना-जाना  बिल्कुल बन्द कर दें। सरकार ने इस महामारी से निबटने के सारे इन्तजाम कर रखे हैं।  दवाइयाँ , डॉक्टर ,सैनिटाइज्ड वार्ड्स ,एम्बुलैंस आदि सब तैयार हैं। जिस किसी में भी इसके लक्षण नजर आते हैं ,उसे अलग रखा जाता है तो इसमें घबराने वाली कोई बात नहीं है। आप अपनी जरुरत की सारी चीजें अपने साथ रख लें। फोन और सोशल मीडिया तो आपको सारी दुनिया से जोड़े रहता है। आप अलग-थलग हैं ही नहीं। इस वक्त का सही इस्तेमाल करें। नेट पर पसंदीदा पढ़िये।जैसे आप छुट्टी पर आये हों। अपने अन्तर्मन को शान्त रखिये। डॉक्टर की राय से चलिये। दवा अपना काम करेगी। सातवें दिन तक आपकी अपनी प्रतिरोधक क्षमता वायरस को खदेड़ देगी ,और आप स्वस्थ्य होते चले जायेंगे। बिना मौत आये क्यों मरें हम। 

जरा भी बेचैन न हों। होने वाली बात होगी न होने वाली बात कभी नहीं होगी। इसलिए एक बीमारी के साथ दूसरी बीमारी को आमन्त्रित मत करिये। वैसे भी हो सकता है कि आपको इसका संक्रमण हुआ ही न हो , या बहुत हल्का संक्रमण हो ,आपकी अपनी इम्युनिटी ही उसे समाप्त कर दे। अकेले पड़ने पर उदास न हों। जीवन की भाग-दौड़ में आप अपने साथ तो कभी बैठे ही नहीं।जो सब कुछ आपको मिला है उस सबका धन्यवाद करिये।साथ चलते साथियों के लिए श्रद्धा भाव रखिये। शिकायत करते रहेंगे तो अशान्त रहेंगे।अपनी ही शक्ति से अन्जान रहेंगे। बैठ कर अपनी प्राथमिकताएं तय कीजिये।बीमारी से उबर आने के बाद आप क्या क्या करना चाहेंगे ,ये सोचिये। 

अपने प्रियजनों से अलग रहना आपके और उनके दोनों के हित में है। फिर आप जितना सहज रहेंगे उतना ही प्राण-शक्ति से भरपूर रहेंगे। रोग को नौ दो ग्यारह होते देर न लगेगी। बिस्तर पर आराम करिये और सभी प्रियजनों के लिए मंगल कामना करिये। वो भी आपके लिए ऐसा ही कर रहे हैं। 

विचार ही विचार की औषधि है। संवेदनशीलता को अपनी कमजोरी नहीं ताकत बना लें। जो जितना अधिक शुभ विचारों ,शुभ संकल्पों से जुड़ा होता है उतना ही प्राण-शक्ति से भरपूर होता है। उतना ही उसकी ऊर्जा का क्षय कम होता है। बस यही कुँजी है सकारात्मकता की व इम्युनिटी बढ़ाने की। कोरोना को हराना है। हम होंगे कामयाब एक दिन..... बक अप