शनिवार, 24 अप्रैल 2010

जिन्दगी को एक साधक की तरह जिएँ


अब जो बात मैं कहने जा रही हूँ वो जिन्दगी में कभी अवसाद को आने ही नहीं देगी | आप सिर्फ ये शरीर नहीं हैं , बल्कि एक बड़ी शक्ति से अलग होकर आई हुई प्रकाश पुँज आत्मा हैं | जिस तरह हम प्रार्थना करके सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करते हैं , उसी तरह हम ऊर्जा को दूसरी आत्माओं को भी वितरित कर सकते हैं | मन के अन्दर इतनी ताकत है कि किसी भी गिरते हुए मन को सँभाल ले | बाहर जो गुजर रहें हैं वो हालात हैं , गुजर जायेंगे , आप अपने अन्दर उन्हें गहरा न उतारें , आपको तो सिर्फ ये देखना है कि ऐसे में आप कितने विवेक-पूर्ण निर्णय लेकर अपने आप को जीतते हैं |


कहते हैं कि प्रकृति न्याय करती है जो कभी-कभी इन खुली आँखों से नहीं भी नजर आता ; मगर आप ख्याल करें कि जब-जब आपने गुस्सा किया तो गुस्सा करने से पहले और बाद में आप कितना कुढ़े ? आपने कितनी ऊर्जा गँवाई , कितनी शांति खोई और कितने दिन दुश्मन सोते जागते आपकी आँखों के सामने रहा ? ये न्याय तो ' इस हाथ दे और इस हाथ ले ' वाला हो गया | सोचें तो जरा , कोई खोट तो होती है ऐसे विचारों और क्रियाओं में जो हमें शांति से दूर ले जाती है | अच्छा होता अगर हम शान्तिपूर्ण हल ढूँढ़ते | दूसरे को परिस्थिति वश जान कर अगर हम उसे तहे-दिल से माफ़ कर सकें तो उससे बड़ी करुणा नहीं है |


परेशानियों को हमेशा सबक की तरह लें , प्रकृति आपको सिखाना चाहती है , परीक्षा लेती है , कितने खरे उतरते हो , कितने अडोल हो ? इस रोल के लिए आपको चुना गया है | आप चाहें तो टूट कर बिखर जाएँ , आप चाहें तो निखर जाएँ |


अपनी ऊर्जा को सही दिशा दें |जब आप इस अहसास से भरे होंगे कि आपके आस-पास इतने सारे लोग , सब उस सर्व-शक्तिमान के अंश हैं , सिर्फ शरीर रूपी आवरण की वजह से भटके हुए हैं ; तब आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर पायेंगे | ' सकल ते मध्य सकल ते उदास ' जब आप अकेले हैं तब भी आपको अकेले नहीं लगेगा , दूर उसी शक्ति से लय जुड़ जायेगी ; और जब भीड़ में इतने लोगों के बीच में होंगे तब भी आप अकेले हैं क्योंकि मन की ये यात्रा तो आपको अकेले ही तय करनी है ना | अच्छा है इस यात्रा को हम सहज बनाएं , अपनी तरफ से जटिलताएं न जोड़ें | यदि हम सबको अपना समझते हुए किसी का दिल नहीं दुखाते हैं ( मजबूरी वश किसी के भले के लिए हमें कभी-कभी सख्त रवैय्या अपनाना पड़ता है , वो एक अलग बात है क्योंकि उसमें भी दूसरे की भलाई छिपी है ) , तो प्रकृति भी न्याय करती है , वो आपको शांति सब्र जैसे गुणों से भी बढ़ कर कैसे भी उपहार से नवाज सकती है | सबसे बड़ी अदालत है प्रकृति , जिस ऊर्जा को व्यर्थ गँवा रहे थे , हो सकता है उसका रुख मोड़ते ही , वही आपकी ताकत या पहचान बन कर उभरे | और हम सारी प्यासी आत्माएं अपना वजूद ही तो तलाश रहीं हैं | अब इस वजूद की तलाश में एक-दूसरे से टकराना नहीं है , सबको गले लगाना है | मैं रूहानी प्रेम की बात कर रही हूँ , साथ ही सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें अपनी मर्यादाओं को नहीं भूलना है , बस यही कला सीखनी है कि मन पर दुःख का लवलेश भी न हो |


हाँ , तो अगर हम किसी का दिल नहीं दुखाते हैं ( आपका मन हर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर बात समझता है कि कितने ही तरीकों से किसी को भी दुखाया जा सकता है ) , दुनिया की सबसे बड़ी अदालत जो आपके मन के अन्दर भी लगती है , कहिये कि आप कहाँ खड़े हैं , कटघरे में या मुस्कराते हुए इस गुजरते हुए मँच के साक्षी बन कर .....इसी का हिस्सा बने हुए ? इस अहसास के साथ ही आप जीवन जीने की कला सीख जायेंगे |


मन की नकेल अपने हाथ रखिये , चिंता और डर को हावी न होने दें | भाव और बुद्धि का सामंजस्य बिठाते हुए चलें | भाव के बिना सब नीरस है , बुद्धि के बिना सब आफत है | जो छूट गया है , जिसका आप दुख मना रहे हैं , चाहे वह महत्वाकांक्षाएं थीं या इच्छाएं , सुख-सुविधाएं या बड़े प्रिय अपने या मान-सम्मान या फिर सपने ; वो तो महज़ बैसाखियाँ थीं जो आप ने अपने जीने के लिए सहारे या कहिये बहाने की तरह खोज लिए थे , आप अपने सहारे या अपने नूर के साथ चले ही कहाँ ? आपने अपनी दुनिया भी इतनी सीमित कर ली थी , ज़रा अपनी दुनिया का दायरा बड़ा कीजिये , दूसरों का दुःख नजर आएगा तो अपना दुख छोटा नजर आएगा | सकारात्मक चिंतन ही सही दिशा दे सकता है |


दूर कहीं उस सर्व-शक्तिमान की मर्जी से लय मिला कर , मार्ग को सुगम बना कर , तकलीफों को प्रसाद समझ , कुछ कर दिखाने का अवसर समझ , हर दिन को उत्सव समझ चलना चाहिए , यही तो साधना है | आपने मस्त फ़कीर को देखा है , जब गाता है तो कायनात गाती है , जब छोड़ के चल देता है तो कुछ भी नहीं अपना | ऐसे ही हम दुखों को छोड़ दें , बोझ की तरह ढोएँ नहीं , और गायें तो ऐसे कि रोम-रोम गाये | जिन्दगी एक तपस्या है , जीवन को साध कर एक साधक की तरह जियें , बच्चे की तरह नहीं कह सकती क्योंकि हम सब बड़े हो गए हैं |


जब मन पर बोझ नहीं होगा तो ग्लानि भी नहीं होगी | पिछली गल्तियों को भूल जाइए , ' जब जागे तभी सबेरा चरितार्थ ' हो जायेगा | ये सफ़र , ये जीवन-यात्रा ही सब कुछ है , इसे सरल बना कर , इसी के सजदे में सिर झुकाइये |


उम्र के त्यौहार में रोना मना है
जाग , गले लग हँस कर कि सोना मना है
छूट गया जो , छोड़ो यारों , अपना नहीं था
सजदे में सफ़र के , आज को सँवारा नहीं था
पकड़ते हैं उँगली बड़े-बड़े सपने
हमने तो खुद को पुकारा नहीं था