रविवार, 15 दिसंबर 2019

रिश्तों की कटुता सँभालिये

रिश्ते तभी कटु होने लगते हैं , जब हम सिर्फ अपना हित देखते हैं। एकमात्र पति-पत्नी का रिश्ता ऐसा है जो कितना भी कटु हो जाये , अगर एक भी साथी प्यार से प्रयत्न करता है तो उसे वापिस सामान्य होने में देर नहीं लगती।कटुता माँ-बाप बच्चे , भाई बहन , पति पत्नी , बहु सास-ससुर या दामाद सास-ससुर किसी के बीच भी पनप सकती है।  मतभेद होते ही हम एक दूसरे के बारे में एक राय कायम कर लेते हैं ; फिर हमें उसका कोई भी गुण दिखाई नहीं देता। बात से बात और बढ़ती है।खाई और गहरी होती जाती है। अब बर्दाश्त करना मुश्किल होता जाता है।

आज हर कोई स्वछंद रहना चाहता है। टोका-टाकी बर्दाश्त नहीं करता। उसे इस बात का अहसास नहीं होता कि अगर वो रिश्तों की कद्र नहीं करता तो वो अकेला रह जाता है। आज हमारी सोसाइटी की सबसे बड़ी विडंबना अकेलेपन से उपजा फ्रस्ट्रेशन और डिप्रेशन है। ये अकेलापन घर में सबके बीच में रहकर भी घेर लेता है। क्यूँकि हमारे रिश्ते सबके साथ सहज नहीं हैं। हमारा मन दूसरे से उम्मीद तो कर लेता है , पर खुद दूसरे के लिये कुछ नहीं करता। हमारी अपनी ईगो उस घेरे को लाँघने नहीं देती। और इस तरह दूरियाँ बढ़ती जाती हैं , अब रिश्तों को बर्दाश्त करना मुश्किल होता जाता है ; फिर स्प्रिंग की तरह अंदर दबाया हुआ सब कुछ बाहर उछल पड़ता है। रिश्तों की गरिमा धरी की धरी रह जाती है। साथ रहने के फायदे और झगड़े के बाद क्या क्या नुक्सान होगा , ये हम नहीं देख पाते।

इस सबमे सबसे बड़ा नुक्सान छोटे बच्चों का होता है , जो अभी दुनिया को ठीक से समझ भी नहीं पाये होते। उन्हें जरुरत होती है एक सिक्योर्ड (सुरक्षित) बचपन की। ये कन्फ्यूज्ड परस्नैलिटीज जो खुद ही इतने तनाव से गुजर रही होती हैं ,उन्हें क्या देंगी। ऐसे में बच्चों के आत्मविष्वास को गहरी चोट पहुँचती है ,जो उन्हें समाज में घुलने-मिलने नहीं देती। निसंदेह हमारा बचपन हमारे भविष्य की नींव होता है। जाने-अन्जाने में ऐसे माँ-बाप अपनी ही पूँछ कुतर रहे होते हैं।

समस्या चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो , हमेशा कोई न कोई बीच का रास्ता होता है ,जिसमें दोनों पक्ष सहमत हों। अपनी साथी की उम्मीदों का ख्याल रखिये। रिश्ते हमारी जड़ों में खाद-पानी का काम करते हैं ; किसी भी पौधे को उसकी जमीन से अलग मत करिये वरना वो मुरझा जायेगा। दूसरे का ख्याल आप तब तक नहीं रख सकते जब तक आपके दिल में उसके लिए कटुता खत्म नहीं होती। कटुता खत्म सिर्फ तब होगी जब आपके दिल में उसके लिए स्नेह हो। आप उसकी परेशानी समझते हों।

जिस तरह आपकी ज़िन्दगी कीमती है , उसी तरह दूसरे की कीमत आँकिये। कभी किसी अनहोनी का सबब मत बनिये , फिर न दिन का चैन होगा न रात की नींद। ये तो एक कला है जिसमे आप दूसरे को तकलीफ नहीं देते तो आप खुद भी चैन की नींद सोते हैं। मगर अगर दिल में प्यार या जगह नहीं है तो आप किसी को एक ग्लास पानी पिलाना भी गवारा नहीं करेंगे।घर में झगड़ा तन-मन राख कर देता है। ऐसे में आप व्यक्तित्व-विकास , आत्म-विष्वास , संतुलित व्यक्तित्व और सुख-चैन की बड़ी-बड़ी बातें भूल जाइये। हम अपना कितना बड़ा नुक्सान कर बैठते हैं ! कहते हैं कि अगर आप सँवार नहीं सकते तो बिगाड़िये मत। बस इतना सा ही प्रयत्न करना है। मगर क्या ये बातें समझाने से कोई मानेगा ! सिर्फ जब बात अपने दिल से उठेगी , तभी ज़िन्दगी पर लागू होगी।

आपका सुकून , आपका स्वर्ग आपके घर में है। जब यहाँ सुखी होंगें , तभी सम्पूर्ण विकास हो पायेगा। पहले घर फिर समाज सेवा। जिम्मेदारियों से भागना जीवन से भागना है। स्वीकार भाव के साथ कर्म करने से सब आसान लगता है।  जँग लग कर खत्म होने से अच्छा है , किसी के काम आयें। भले ही दुनिया की नजरों में कुछ हासिल न कर पायें , मगर ये क्या कम है कि आप अपने घर के चार लोगों की ज़िन्दगी को मुस्कान दे पायें या सँवार पायें या कम से कम उसे बिगड़ने से रोक पायें। आपका सुकून आपका आत्म-विष्वास है , आपकी सुन्दरता है।