मंगलवार, 20 जनवरी 2009

गुलाब बन जाइये


तनाव चाहे खालीपन के कारण हो या व्यस्तता वश हो , धकेलता अन्ततः अवसाद की तरफ़ ही है | तनाव के कारण एक तो आप वर्तमान में ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते , दूसरा नए विचार या योजनायें आपके मस्तिष्क में प्रवेश नहीं कर पाते | दिमाग की तनी हुई नसें आपको वर्तमान में ध्यान केंद्रित रखने से वंचित रखती हैं | आपसे अगर कोई कुछ पूछता है आप थोड़ी देर लगाते हैं प्रश्न को समझने में और सही उत्तर देने में ; अगर आप वर्तमान में होते तो सही सटीक उत्तर देने में देरी नहीं लगाते | नये विचार , नई योजनायें , सृजन की संभावनाएँ तो तभी बनेंगीं , जब आप मस्तिष्क में इनके लिए जगह रखेंगे | नई संभावनाओं की बात छोडिये , ऐसे में तो कई बार आवश्यक कार्य भी करने से छूट जाते हैं | आप व्यवस्थित तभी रह सकेंगे जब आप तनावमुक्त होकर वर्तमान में रहेंगे |


मानव मस्तिष्क जिसने कंप्यूटर बनाया है , कंप्यूटर से भी ज्यादा तेज है | वैज्ञानिक कहते हैं कि हम मस्तिष्क का कुछ ही हिस्सा इस्तेमाल करते हैं , अगर कुछ और प्रतिशत इस्तेमाल करें तो कितना आगे निकल जाएँ | अगर हम अपनी शक्तियों का सही मूल्यांकन न करके , तनावग्रस्त होकर अपने आप को नुक्सान पहुँचा रहे हैं तो ये बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे एक बिच्छू अपनी ही पूँछ काट काट कर अपने आप को नुक्सान पहुँचाता रहता है | विध्वंस की तरफ़ मत जाइये , संरचनात्मक बनिये | अपने आप से प्यार कीजिये , मानवता से प्रेम कीजिये | भौतिक उन्नति बहुत कुछ अवसर व भाग्य पर निर्भर करती है , पर आत्मिक उन्नति पूरी तरह आपकी है व आपके प्रयत्नों पर निर्भर करती है | मानवता से प्रेम आपको तनावग्रस्त होने ही नहीं देगा |


किसी से ईर्ष्या-द्वेष या प्रेम पहले आपके मन में पैदा होता है , फ़िर वो प्रत्युत्तर में आपको मिलता है | जब एक दिल में पैदा हुआ , नजरों से संवादित हुआ , तभी तो वापिस होकर मिला | जब हमारे दिल में नाराजगी पैदा हो हम उसे उसी वक्त रोक दें , कहें कि ये इतनी बड़ी बात नहीं है कि मेरा चैन ख़त्म कर दे | ईशवर जब सब में मौजूद है , बस इन्सान अहंकार का आवरण चढ़ने की वजह से इन्सान इंसान में फर्क करता है ; फ़िर ईशवर की ये कृति इसी में खुश है तो ठीक है ना | जब ईशवर उसे सच्ची खुशी देना चाहेंगें तब देंगे न | मुझे अपने अन्दर आनन्द को ही महसूस करना है और वही बांटना है | गुलाब बन जाइये , खुशबू अपने आप आयेगी |