पन्द्रह मई २०११
एक मुट्ठी में गोटियों को शफल करके डिस्पर्स कर देगा खुदा ...यानि ये पच्चीस तीस दिन मिले हैं हमें न्यामत से , हम सब साथ हैं । बड़ी बेटी ने कहा कि हम सबको एक साथ जैसे मुट्ठी में ले कर बस अब डिस्पर्स कर देगा ऊपर वाला । एक बैंगलोर , एक मुम्बई , एक दिल्ली और हम नैनीताल में ...छोटी बेटी ऍम.ए.इकोनोमिक्स के एग्जाम दे चुकी है , बेंगलोर पहली पोस्टिंग मिली है , इस बीच एक महीने की छुट्टियाँ हैं ..बेटा भी मुम्बई से इन्डसट्रिअल ट्रेनिंग के दौरान बी कॉम ऑनर्स के इम्तिहान देने दिल्ली आया हुआ है । मेरे पति भी एक महीने के लिये डेप्युटेशन पर दिल्ली में हैं ...इस तरह हम सब इक्कठे हुए और अलग होंगे तो दिल्ली में बड़ी बेटी अकेली रह जायेगी । पहले दिन ही उसने इस मिलन से परे होकर कुछ सूँघ लिया है । मुझे मालूम है , इक दिन उसे भी लेखनी चलानी है ...वरना वो इस गन्ध को शब्द न दे पाती ।
मेरे बच्चों , संजों लें ये यादें
इक दिन ये उग आयेंगी
मन की मिट्टी में नज्मों की तरह
मुझे मालूम है , खुदा इक हाथ से लेता है तो
दूसरी मुट्ठी में न्यामत सी कोई रख देता है
आगे चलने को बहाने चाहियें
उम्मीद पे दुनिया कायम है
हम भी कोई अपवाद नहीं हैं
कोई सूरज है , कोई तारा है
आसमाँ पे चमका अपना भी सितारा है
मेरे घर के जुगनू बड़े हो गए हैं
इनकी रौशनी से आँखें चौंधियाने लगी हैं
मेरे घर का आँगन छोटा पड़ गया है
इन्हें अब खुला आसमान चाहिए
खुला आसमान चाहिए
घर का आंगन छोटा नहीं पड़ा है खुशियाँ बढ़
जवाब देंहटाएंगयीं खुबसूरत अहसास, सोंच अच्छी, बधाई .......
बच्चे बड़े होते हैं...अपने अपने मुकाम पर बढ़ते हैं..फिर बीच बीच में एकत्रित होना....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता अपनी बात कह रही है..
सुंदर भाव, मन को दू जाने वाले।
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हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
मेरे घर के जुगनू बड़े हो गए हैं
जवाब देंहटाएंइनकी रौशनी से आँखें चौंधियाने लगी हैं
मेरे घर का आँगन छोटा पड़ गया है
इन्हें अब खुला आसमान चाहिए
भावपूर्ण....