बुधवार, 16 नवंबर 2011

हमारे विष्वास , हमारी आस्थाएँ हमें चलाती हैं ....




ज़िन्दगी को गति देने के लिये मन को कोई न कोई बात चाहिए होती है । हमारी परवरिश , माहौल , हमारे सम्पर्क में आने वाले लोग , हमारी प्रतिक्रियाएँ लगातार हमें गढ़ते जाते हैं । बचपन तो कच्ची मिट्टी की तरह होता है , कोई रँग डालो या किसी भी आकार में ढाल लो । मन के साफ़ सफ्हे पर कुछ भी लिखने की गुँजाइश रहती है , बहुत कुछ लिखा हो तो सब गड्ड मड्ड हो जाता है । अगर हर बात व्यवस्थित रखी हो तो मन तनाव रहित हो कर नये को ...हर गुजरते बदलाव को बड़े प्यार से स्वीकार कर लेता है ।




इक आशा की किरण झाड़ पर खड़ा कर देती है और इक छोटी सी निराशा ढहा देती है । मन कहाँ दुख में रहना चाहता है , फिर भी दुख का ही सौदा कर लेता है । मैं अपनी एक अजीज दोस्त के साथ मन्दिर में देवी जी के दर्शन करने गई , वहाँ पास की ही दुकानों से हमने नारियल व चढ़ावे की अन्य सामाग्री खरीदी । प्रशाद चढ़ाया , पहले पण्डित जी नारियल माँ को छुआ कर वापिस हमें दे दिया करते थे । इस बार उन्हों ने वापिस नहीं दिया और वहाँ पर कई सारे चढ़े हुए नारियल रखे हुए थे। मेरी दोस्त ने नारियल वापिस माँग लिया कि हम प्रशाद में चाहते हैं , मैंने भी माँग लिया । घर जा कर फोड़ने पर दोनों के नारियल खराब निकले । मेरी दोस्त ने फोन पर बताया कि शायद माँ ने मेरा नारियल स्वीकार नहीं किया । हम ऐसी बातों से भी परेशान हो जाते हैं , जबकि ऐसा समझ में आ रहा है कि पूरी संभावना है कि पण्डित जी चढ़ावे के नारियलों को वापिस पास की दुकानों में बेच देते होंगे । और वही नारियल रोटेट हो कर चढ़ रहे होंगे । बहुत पुराने होने पर खराब तो निकलेंगे ही । अब भगवान के बन्दे ही जब यही कुछ करेंगे तो आस्था कहाँ बची ? हमारे यहाँ जब मेड ने नारियल तोड़ा तो कहने लगी कि जब नारियल खराब निकलता है तो समझो कि भगवान ने स्वीकार कर लिया । मैंने अपनी दोस्त से कहा कि अब मन तगड़ा कर लो , हमारी कामना पूरी हो जायेगी । मन टके टके की बात में हिलने लग जाता है । मन को विष्वास का पानी चाहिए होता है बस । बिल्ली का रास्ता काटना , तेल गिरना , आँख फड़कना , ऐसे कितने ही शकुनों अपशकुनों में हमारे विष्वास जड़ पकड़ लेते हैं और हम डोलते ही रहते हैं ।




ब्रह्मा कुमारी सिस्टर शिवानी ने कहा कि हमारा विष्वास का ताना-बाना बिलकुल वैसा ही है जैसे कि कम्प्युटर पर प्रोग्राम का होना । जैसी प्रोग्रामिंग होती है वैसे ही हमारा सिस्टम ऑपरेट करता है । और अगर प्रोग्राम ही न किया गया हो तो फिर क्या काम करेंगे , आप जान ही न पायेंगे कि और क्या क्या काम हो सकता था । और उँगलियाँ चला चला कर यानि बेवजह टक्करें मार मार कर आप सिस्टम को ही क्रैश कर लेंगे ।




ये बहुत बड़ा सच है कि मन ही अगुआ है हमारी प्रवृत्तियों का । हमारे विचार ही एक सृष्टि रच लेते हैं , हर सम्भव बुराई को हर आयाम से देख लेते हैं । यहीं से हमारे विष्वासों और आस्थाओं का जन्म होना शुरू होता है । अब ये हमारी मर्जी होती है कि हम उस प्रबल विचार को कितना पानी पिलाते हैं या उसको महज़ गुजरता हुआ देखते हैं और अपनी स्वयम की अडोल स्थिति को कायम रखते हैं ।




आस्था विष्वास ...मानवता को बल देने वाले होने चाहियें । जैसा कि श्री श्री रवि शंकर जी भी कहते हैं कि हम स्वयम एक बड़ी ताकत हैं तो किसी भी नकारात्मकता का हम पर असर क्यों पडेगा ; पर इसे महसूस किये बिना हम जान नहीं पायेंगे । सारी मैली विद्याएँ उस आदमी के लिये बेअसर हैं जो अपनी ऊर्जा को भगवान से जुड़ी पाता है । सिर्फ यही रास्ता है जो हमारे अंतर्मन को शांत स्थिति में रख सकता है , आनन्द की अनुभूति दे सकता हैआस्था , विष्वास पालो तो ऐसा पालो , ऐसा नहीं कि ज़र्रे ज़र्रे में तिनके की तरह हिलते रहो

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपके विचारों से सहमत हूँ ....आभार

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  2. आस्था विष्वास ...मानवता को बल देने वाले होने चाहियें ।
    Bilkul sahee kaha aapne! Log bahut jald andh wishwason ko maan lete hain!

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  3. जो हिल जाता है वो ना तो आस्था है ना विश्वास्……………और जहाँ आस्था होगी , विश्वास होगी वहाँ समर्पण भी होगा तो सम्बन्ध अपने आप बन जायेगा फिर वहाँ विश्वास नही हिला करता बल्कि अटल हो जाता है।

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  4. बेहतरीन प्रस्तुति। बहुत विस्‍तार से समझाया है आपने।
    शानदार अभिव्यक्ति,

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