ये तय है कि कवि मन एक दिन तो जरूर रोया होगा , तभी जा कर संवेदन-शील मन ने कुछ पंक्तियाँ रची होंगी । कवि हृदय शापित हृदय ही तो होता है , पिघलते हुए अहसास जब लाइलाज हो जाते हैं तो लावे की तरह बह निकलते हैं ।ये अंगारे हमारे ढाँचे को ध्वस्त भी कर सकते थे ; मगर अचानक ये क्या होता है कि सारा लावा गीत नज़्मों में ढलने लगता है ।शापित हृदय हो कर भी कवि अपने उद्गारों को दिशा देता है , साथ ही अपने जीवन को एक उद्देश्य दे लेता है ।जो न जाने कितनी मौतें मर कर जिया हो वो मिलन , श्रृंगार , बहार , ख़ुशी के रंगों की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति भी उतनी ही संजीदगी से कर सकता है ।
रोया होगा पहला कवि भी
आह से निकला होगा गान
क्रंदन मन की गाथा है
अपने-अपने हिस्से आई , थोड़ी कम कुछ ज़्यादा है
लरजते लफ्ज़ों ने पकड़ी होगी जब स्याही
भँवर समेटे दिल ने तब
तिनके का ही सहारा ले कर
उँड़ेली होगी अपनी व्यथा
पीड़ा भी सार्थक होती
जन-जन का मन झंकृत होता
उपजे गर जो मधुर मनोहर गान


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