हीरें भी कैसे-कैसे भरम पाल लिया करती हैं कि उनका महबूब राँझा ही होगा ।आदमी मुहब्बतें भी वक्ती जरूरतों की तरह तय करता है और जरूरतें तो वक्त के साथ बदल जाया करती हैं ।हीर कहती मेरी वफ़ा तो मर कर तय होती , उसकी बेवफ़ाई ने रोज मर-मर के जीने के लिए छोड़ दिया ।ऐ ज़िन्दगी, तुम भी सहरा से शुरू कर के सहरा पर ही ले आती हो ।
ये कौन कदमों के नीचे अंगारे रख जाया करता है वरना चलना तो सब फूलों पर ही चाहते हैं । सात जन्मों तक साथ चलने की बातें करते थे , कहाँ तो एक जनम भी दिल से साथ तय न था ।वो कोई और ही जमीं होती होगी , कोई और ही वतन होता होगा । ज़न्नत ज़रूर इसी धरती पर उतर आती बस उसकी आँखों में नमी नहीं थी ।
वे ज़िंद-जाँ वार दित्ती, तूँ समझेआ ना
किस थाँ जाँवा, मेरे लई ते हुण वा कोई ना
रावी पार जाण वालियाँ धीयाँ
निक्खड़ियाँ मापेयाँ तों
अम्बरा ने बाँ ना फड़ी
तलियाँ थल्ले थाँ कोई ना
राँझे मुक्क गये दुनिया तों
हीराँ दी क़िस्मत माड़ी
बदनाम होया ऐ वी रिश्ता
प्रीत निगोड़ी दा नाँ कोई ना
वे ज़िन्द-जाँ वार दित्ती, तूँ मुड़या ना
मेरे वेड़े धुप्प ही धुप्प ,तेरे नेड़े छाँ कोई ना
इसी गीत का हिंदी अनुवाद ….
दिलों-जाँ वार दी , तू समझा ही नहीं
किधर जाऊँ , मेरा तो कोई हाल ही नहीं
रावी पार जाने वाली बेटियाँ
बिछुड़ीं माँ-बाप से
आसमाँ ने बाँह न थामी
तलुवों नीचे जमीं ही नहीं
राँझें ख़त्म हुए दुनिया से
हीरों की क़िस्मत है बुरी
बदनाम हुआ ये रिश्ता भी
प्रीत निगोड़ी का नाम ही नहीं
दिलों-जाँ वार दी , तू समझा ही नहीं
मेरे अँगना धूप ही धूप , तेरे अँगना छाँव ही नहीं
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