गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

कैसे गुजारें सोशल डिस्टेंसिंग का वक़्त

इक सन्नाटा सा पसरा है सारे शहर में 
पत्ते भी हैं सरसराते , हवा भी चल रही है 
पक्षी भी हैं चहचहाते 
इक इन्सान ही ठहरा है अपनी आरामगाह में 
१. ये सोशल डिस्टेंसिंग बीमारी से अपने बचाव के लिये हमें स्वेच्छा से खुद ही चुन लेनी चाहिये।निदान उपचार से बेहतर है। यही सर्वोत्तम है। इसे बेशक हमारे प्रधान-मन्त्री जी की मर्जी से लागू किया गया है। मगर ये सच है कि अगर इसे नियम न बनाया गया होता तो हम इसे बहुत हल्के लेते और भयँकर परिणाम झेलने पड़ते। 
२. हम में से बहुत लोगों को घर बैठना बहुत कठिन लगेगा ; क्योंकि हम जिस रूटीन के आदी थे वो  बदल गई है। वो दिनचर्या पूरी तरह बाहरी आधारों पर आश्रित थी। ये सही वक़्त है अपने ही आँकलन का। आप क्या क्या कर सकते थे और आप क्या कर रहे थे।घर पर रहते हुए अपने रिश्तों में रस घोलिये। घर का काम-काज आपको आत्म-निर्भर बनायेगा। विदेशों में तो सब काम लोग मिल-जुल कर खुद ही करते हैं , इसमें शर्म कैसी। घर के अन्दर आपको सब कुछ हासिल है। सरकार फ़ूड सप्लाई ,दवाइयाँ आदि जरुरत के हर सामान का ध्यान रख रही है। समझ-दारी के साथ बिना घबराये कम सामान के साथ गुजारा भी करना पड़े तो कोई हर्ज नहीं। खाना तो जीने के लिये खाया जाना चाहिये न कि खाना खाने के लिये जिया जाना चाहिये। यही बात पहनने ओढ़ने पर लागू होती है। हमारी जरूरतें जितनी सीमित होगीं हम उतने ही सुखी होंगे। दरअसल इन चीजों में मन को अटका कर नहीं रखना चाहिये। 
३. अपना रूटीन बनाइये , जो काम अब तक आप नहीं कर पाये थे , वो करिये। कोई स्किल डेवलप करनी हो , किसी परीक्षा की तैयारी , कुछ छूटे हुये घरेलू काम ,किताबें पढ़ना या लिखना , बागवानी ,मेडिटेशन ,सँगीत प्रैक्टिस , गाना बजाना , पाक कला आदि किसी भी काम में महारथ हासिल करनी हो ;सब कर सकते हैं। ऑन-लाइन हेल्प , फोन-अ-फ्रेंड  और आपके पास मौजूद किताबें आदि मदद-गार साबित होंगी। अब आपके पास खूब वक़्त है उसे जैसे चाहें इस्तेमाल करें। लोगों को आप भी मदद  सकते हैं। कोई अपने शौक का काम तो जरूर करें। 
४.ऐसा वक्त आ सकता है जब ह्रदय-हीनता ,सँवेदन-हीनता ,टकराव और तनाव की स्थितियों का सामना करना पड़े।अज्ञानता , अनभिज्ञता ,अपना बचाव करने वाली मानसिकता ,बुरे अनुभव या स्ट्रेस ऐसा कोई भी कारण हो सकता है। जब कारण देख सकने वाली दृष्टि पैदा कर लेंगे तो नाराज नहीं रह सकेंगे। और सहज रह सकना ही हमारी ताकत होती है; वरना हालात और समय को बर्दाश्त नहीं कर पाते और डिप्रेशन या बम फट पड़ने जैसी स्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। 
५. ये फुर्सत का वक्त आपको मिला है कि आप मनन करें, आप क्या-क्या कर सकते हैं। अपने अन्दर झाँक कर देखें। रिश्तों को एक धागे में पिरोएं , परिवार को वक्त दें। मेडिटेशन ,प्राणायाम को प्राथमिकता दें। यही आपको ठहराव देगा व स्थितियों को स्वीकार कर पाने की क्षमता देगा। जिसकी नीँव में प्रेम हो वो स्वतः ही आनन्द का फल देगा ...बड़े बड़े कर्मों के पीछे प्रेरणा का स्त्रोत प्रेम ही होता है 
६. अनिश्चितता की स्थिति सता सकती है। नौकरी ,रोजगार सब पर असर पड़ेगा। और ये तो सारे देश क्या पूरी दुनिया के साथ है।और दुनिया ख़त्म नहीं होगी , सब फिर से वैसा ही चलेगा।हाँ हम लोगों को बहुत सारी सीख जरूर दे कर जायेगा। अगर आप समर्थ हैं तो दूसरों की मदद करिये।  अगर आप समर्थ नहीं हैं तो सरकार आपके खाने का पूरा इन्तजाम कर रही है , घबराने की कोई बात नहीं है। जब आपदा का समय खत्म होगा , आपकी ज़िन्दगी का नया अध्याय शुरू होगा। अभी अपनी क़ाबलियत ,समझदारी ,सहन-शक्ति , व्यवहारिकता अमल में लाने का समय है। वक्त गुजर जायेगा , ये मायने रखता है कि आपने इसे कैसे गुजारा ! 
७. अपनी इम्युनिटी का पूरा ध्यान रखें। अपने शरीर की प्रकृति व ऋतु के अनुसार भोजन करें। साफ़-सफाई का ध्यान रखें। मन खुश रहेगा तो प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। 

घर कैद नहीं है। ये आपके सपनों की आराम-गाह है। आपका घर ही इस वक्त आपके लिए सबसे सुरक्षित स्थान है ; जहाँ आप सहज रह सकते हैं ,खुश रह सकते हैं , मनचाहा कर सकते हैं। तो चलिये इस वक़्त को यादगार बनाइये। 

ऐ ज़िन्दगी न मैं चूहा न तू बिल्ली 
है तेरी ये आँख-मिचोली कैसी 
मिलेंगे तुझसे तो पूछेंगे 
बता ,है ये हँसी-ठिठोली कैसी 

कहाँ ढलता है सूरज दिन के ढल जाने पर 
ढल जाती है जब उम्मीद समझो के शब हुई 




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