गुरु सँभाल के कीजिये। हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु के बिना गति नहीं होती है। ऐसा इसलिये कहा गया है कि गुरु हमारा हमारे अपने ही असली स्वरूप यानि एक अदृश्य सत्ता से जुड़े होने का परिचय करवाता है। राम-रहीम तो माध्यम भर हैं ; क्योंकि साकार में मन टिकता है ,इसलिये शुरुआत वहीँ से की जाती है , अदृश्य का भान इतनी आसानी से नहीं हो सकता।
आज आदमी घबराया हुआ , भरमाया हुआ पहुँचता है गुरुओं के पास ; जो दिया उसकी आस्था ने जलाया होता है वो उसे गुरु का चमत्कार समझ लेता है। उसे समझ ही नहीं आता कि दुख में आकण्ठ डूबे हुए उसकी आँखों पर पर्दा पड़ गया है और उसकी इसी हालत का फायदा उठाया जा रहा है। टी. वी. चैनलों पर आई हुई धर्म-गुरुओं , बाबाओं , तान्त्रिकों और ज्योतिषिओं की बाढ़ ने आग में घी का काम किया है। आदमी भूल जाता है कि अन्तर्मन का दिया जलाने के लिये जो तीली वो बाहर तलाश रहा है वो तो उसकी अपनी चेतना के पास मौजूद है।
सदिओं से अतृप्त मन से उपजी विकृतियाँ समाज में समस्या पैदा करती रही हैं। इसी सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है कि एक धर्म-स्थान के अधेड़ उम्र के गुरु हारमोनियम सिखाते थे , मैं छठी-सातवीं क्लास में पढ़ती थी ,वो एक एक कर लड़कियों को अन्दर बुलाते , बाहर बरामदे में बाकी बच्चे कतार में बैठे रहते। सिखाते-सिखाते वो चिकोटी काट लेते , एक एक कर बच्चों ने सीखना बन्द कर दिया। क्या पता वो उँगली पकड़ के पहुँचा पकड़ने की फिराक में हों। उस उम्र में नासमझी के साथ-साथ न जाने कैसी दहशत सी भी होती है , और वो तो बीमारों को भभूत की पुड़ियाँ भी बाँटते थे , फिर बच्चों की बात का यकीन भी कौन करता। आज हाथ में कलम भी है , दिल में निडरता भी और समय की माँग भी। बच्चों और किशोरों का यौन-शोषण ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग ही करते हैं। आसाराम का नाम इस प्रकरण से जुड़ने के बाद मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ , मगर इस मामले में कभी किसी निरअपराधी को नपना नहीं चाहिए।
भगवान न करे कि आदमी भगवान के नाम पर , दुख दूर होने के लिए , आकांक्षाएँ पूरी करने के लिए किसी भी रास्ते पर चल पड़े। एक बार इनके शिकंजे में फँस गया तो ये उसे पूरी तरह लूट कर भी शायद न छोड़ें।
गुरु का चयन ठोक-बजा कर कीजिये। जहाँ बहुत पैसे का लेन -देन है , कर्म-काण्ड है , वहाँ भी ज्ञान नहीं लगेगा। जो ज्ञान आपको अपने घर में अपनी प्रारब्ध से ताल-मेल बैठाना सिखाये , जो सबको अपना समझना सिखाये , सुख-दुख में सम रहना सिखाये , वही धीरे से आपको मन के चलायमान रहने से परे ले जा सकता है। है न ये अतीन्द्रिय अनुभव ! भगवान है ही एक अदृश्य न्याय-प्रिय सत्ता का नाम , जो हमारे अन्दर ही विद्यमान है। जो गुरु खुद से जोड़ कर अपनी छत्र-छाया में रखना चाहे , वो आदमी को पंगु बना देगा। जो गुरु ,जो धर्म अपने वचनों पर चलना सिखलाये , आपको आपके अपने क़दमों का आधार दे ; वही हृदय में सहजता , शान्ति एवं निडरता ला सकता है। सच्चे अर्थों में जीना इसी को कहते हैं।
गुरु सँभाल के कीजिये
गुरु ही तारण-हार रे
एक गुरु आके निकट
कर डाले है वार रे
एक गुरु उँगली पकड़
भव से लगा दे पार रे
दुख की मण्डी में सदा
होता है व्यापार रे
दाँव पर दिल है लगा
उसके चाकू में धार रे
आँखें खोल के रख जरा
सुख-दुख जीवन सार रे
अपने स्वरूप के ज्ञान से
होंगीं आँखें चार रे
मिल जायेगी दिशा तुझे
बैसाखी पर न रखना भार रे
सच्चा गुरू देगा तुझे
तेरा ही आधार रे
आज आदमी घबराया हुआ , भरमाया हुआ पहुँचता है गुरुओं के पास ; जो दिया उसकी आस्था ने जलाया होता है वो उसे गुरु का चमत्कार समझ लेता है। उसे समझ ही नहीं आता कि दुख में आकण्ठ डूबे हुए उसकी आँखों पर पर्दा पड़ गया है और उसकी इसी हालत का फायदा उठाया जा रहा है। टी. वी. चैनलों पर आई हुई धर्म-गुरुओं , बाबाओं , तान्त्रिकों और ज्योतिषिओं की बाढ़ ने आग में घी का काम किया है। आदमी भूल जाता है कि अन्तर्मन का दिया जलाने के लिये जो तीली वो बाहर तलाश रहा है वो तो उसकी अपनी चेतना के पास मौजूद है।
सदिओं से अतृप्त मन से उपजी विकृतियाँ समाज में समस्या पैदा करती रही हैं। इसी सिलसिले में मुझे एक किस्सा याद आता है कि एक धर्म-स्थान के अधेड़ उम्र के गुरु हारमोनियम सिखाते थे , मैं छठी-सातवीं क्लास में पढ़ती थी ,वो एक एक कर लड़कियों को अन्दर बुलाते , बाहर बरामदे में बाकी बच्चे कतार में बैठे रहते। सिखाते-सिखाते वो चिकोटी काट लेते , एक एक कर बच्चों ने सीखना बन्द कर दिया। क्या पता वो उँगली पकड़ के पहुँचा पकड़ने की फिराक में हों। उस उम्र में नासमझी के साथ-साथ न जाने कैसी दहशत सी भी होती है , और वो तो बीमारों को भभूत की पुड़ियाँ भी बाँटते थे , फिर बच्चों की बात का यकीन भी कौन करता। आज हाथ में कलम भी है , दिल में निडरता भी और समय की माँग भी। बच्चों और किशोरों का यौन-शोषण ज्यादातर अधेड़ उम्र के लोग ही करते हैं। आसाराम का नाम इस प्रकरण से जुड़ने के बाद मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ , मगर इस मामले में कभी किसी निरअपराधी को नपना नहीं चाहिए।
भगवान न करे कि आदमी भगवान के नाम पर , दुख दूर होने के लिए , आकांक्षाएँ पूरी करने के लिए किसी भी रास्ते पर चल पड़े। एक बार इनके शिकंजे में फँस गया तो ये उसे पूरी तरह लूट कर भी शायद न छोड़ें।
गुरु का चयन ठोक-बजा कर कीजिये। जहाँ बहुत पैसे का लेन -देन है , कर्म-काण्ड है , वहाँ भी ज्ञान नहीं लगेगा। जो ज्ञान आपको अपने घर में अपनी प्रारब्ध से ताल-मेल बैठाना सिखाये , जो सबको अपना समझना सिखाये , सुख-दुख में सम रहना सिखाये , वही धीरे से आपको मन के चलायमान रहने से परे ले जा सकता है। है न ये अतीन्द्रिय अनुभव ! भगवान है ही एक अदृश्य न्याय-प्रिय सत्ता का नाम , जो हमारे अन्दर ही विद्यमान है। जो गुरु खुद से जोड़ कर अपनी छत्र-छाया में रखना चाहे , वो आदमी को पंगु बना देगा। जो गुरु ,जो धर्म अपने वचनों पर चलना सिखलाये , आपको आपके अपने क़दमों का आधार दे ; वही हृदय में सहजता , शान्ति एवं निडरता ला सकता है। सच्चे अर्थों में जीना इसी को कहते हैं।
गुरु सँभाल के कीजिये
गुरु ही तारण-हार रे
एक गुरु आके निकट
कर डाले है वार रे
एक गुरु उँगली पकड़
भव से लगा दे पार रे
दुख की मण्डी में सदा
होता है व्यापार रे
दाँव पर दिल है लगा
उसके चाकू में धार रे
आँखें खोल के रख जरा
सुख-दुख जीवन सार रे
अपने स्वरूप के ज्ञान से
होंगीं आँखें चार रे
मिल जायेगी दिशा तुझे
बैसाखी पर न रखना भार रे
सच्चा गुरू देगा तुझे
तेरा ही आधार रे
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन एक था टाइगर - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति!
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गुरु वह होता है जो आपके मन की गुत्थी को सुलझाने में सक्षम हो। इसलिए बड़े नामों में गुरु खोजना व्यर्थ है क्योंकि वे आपको समय नहीं दे सकते। इसलिए ऐसे लोग गुरु नहीं है बस आप उनके भक्त बन सकते हैं और इसी भक्ति के चक्कर में आप ठगे भी जाते हैं।
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