जल प्रलय से उपजी स्थितियाँ बड़ी विकट हैं। जान-माल की हानि के साथ समस्या सिर्फ पुनर्वास की नहीं है , बल्कि पीछे बचे लोगों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की भी है। त्रासदी में जान गँवा चुके लोगों की लाशों के ढेर किसी महामारी का रूप भी ले सकते हैं। जो लोग इस त्रासदी के मूक गवाह हैं , बहुत अवसाद में हैं , ऐसा डॉकटर्स की जाँचों में आ रहा है। जिनके क़दमों के नीचे जमीन ही नहीं , सर पर आसमान भी नहीं है , वो सहज कैसे रह सकते हैं। आपदा ने घर-बार , रोजी-रोटी ,अपने-सपने ,सब कुछ तो ले लिया। जैसे एक स्याही पुती हो आने वाले कल और बीते हुए कल के मुँह पर।
इनका हाथ पकड़ना और इन्हें इनके क़दमों के बल पर चलाना ही इन्हें वर्तमान या भविष्य से जोड़ पायेगा। ये बहुत मुश्किल काम है , मगर असम्भव नहीं। इस वक्त इन्हें उठ कर अपने जैसे लोगों की मदद के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये। जब ये दूसरों की उँगली पकड़ेंगे , सँगठित होकर टीम-वर्क करेंगे ,इनके आज को दिशा मिलेगी। मन बगावत करते हुए भी आखिर-कार धीरे से पटरी पर आ जायेगा। इस वक्त आत्मा-परमात्मा की कोई भी बात इन्हें नहीं सुहायेगी। ये लोग गुमसुम रह सकते हैं ,अनर्गल प्रलाप करते हुए पगला सकते हैं या फिर झगड़ालू ,विध्वंसक ,आत्मघाती या लालची प्रवृति के भी हो सकते हैं। दुख का वेग इन्हें किसी भी तरफ धकेल सकता है। इसलिए इन्हें सिर्फ हिफाज़त या सहानुभूति की ही जरुरत नहीं है , बल्कि इन्हें इनका खोया हुआ मानसिक आत्मिक बल लौटा पाने की युक्तिओं में व्यस्त रखते हुए ज़िन्दगी की तरफ लौटाने की भी जरुरत है।
आवश्कता है कि इनकी प्रतिभा व सामर्थ्य के अनुसार भरण-पोषण , आवासीय , स्वास्थ्य , साफ़-सफाई व मार्ग-निर्माण जैसे कार्यों में इनसे मदद ली जाये। दिन की शुरुआत या शाम प्रार्थना व भजन से हो , कुछ देर इन्हें अपने अनुभव बाँटने के लिये साथ रहने की सुविधा दी जाए। ताकि ये मन बाँट कर अपना दुःख हल्का कर सकें। खुशवन्त सिंह के 'मनोमाजरा ' के वृतान्त की तरह ही लाशों का अम्बार और सामूहिक दाह-संस्कार भला किस का मन विचलित न कर देगा। जब आम आदमी अपने छोटे-छोटे दुखों में ही हिलता रहता है , तब ये तो इस सदी की भयानक त्रासदी है। ऐसे वक्त में जब निराशा इन्हें पल-पल निगल रही है ,सिर्फ ग्रुप में किया गया काम इन्हें आशा की किरण दे सकता है , संगठित कर सकता है। मदद के लिये उठने वाला हाथ , सहारा देने वाला हाथ कभी कमजोर नहीं होता। दिशा पकड़ते ही दशा सुधरने लगेगी।
साथी हाथ बढ़ाना ,साथी रे
एक अकेला थक जायेगा
मिल कर भार उठाना
कितना दम है इन पंक्तिओं में ...
उठो , बाँटो ख़ुशी
चेहरे जो हैं मुरझाये हुए
कुछ इन पे करम कर लो
फूलों की कहानी देखो तो
काँटों पे ठिकाना
बाँहों में इन्हें भर लो
अँधेरे का सितम ,टूटा दिल है
ठहरा है गुज़रा जमाना
आज़ाद इन्हें कर दो
इन आँखों में दहशत के सिवा कुछ भी नहीं
बेरौनक है फ़साना
जीवन से इन्हें भर दो ....
इनका हाथ पकड़ना और इन्हें इनके क़दमों के बल पर चलाना ही इन्हें वर्तमान या भविष्य से जोड़ पायेगा। ये बहुत मुश्किल काम है , मगर असम्भव नहीं। इस वक्त इन्हें उठ कर अपने जैसे लोगों की मदद के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये। जब ये दूसरों की उँगली पकड़ेंगे , सँगठित होकर टीम-वर्क करेंगे ,इनके आज को दिशा मिलेगी। मन बगावत करते हुए भी आखिर-कार धीरे से पटरी पर आ जायेगा। इस वक्त आत्मा-परमात्मा की कोई भी बात इन्हें नहीं सुहायेगी। ये लोग गुमसुम रह सकते हैं ,अनर्गल प्रलाप करते हुए पगला सकते हैं या फिर झगड़ालू ,विध्वंसक ,आत्मघाती या लालची प्रवृति के भी हो सकते हैं। दुख का वेग इन्हें किसी भी तरफ धकेल सकता है। इसलिए इन्हें सिर्फ हिफाज़त या सहानुभूति की ही जरुरत नहीं है , बल्कि इन्हें इनका खोया हुआ मानसिक आत्मिक बल लौटा पाने की युक्तिओं में व्यस्त रखते हुए ज़िन्दगी की तरफ लौटाने की भी जरुरत है।
आवश्कता है कि इनकी प्रतिभा व सामर्थ्य के अनुसार भरण-पोषण , आवासीय , स्वास्थ्य , साफ़-सफाई व मार्ग-निर्माण जैसे कार्यों में इनसे मदद ली जाये। दिन की शुरुआत या शाम प्रार्थना व भजन से हो , कुछ देर इन्हें अपने अनुभव बाँटने के लिये साथ रहने की सुविधा दी जाए। ताकि ये मन बाँट कर अपना दुःख हल्का कर सकें। खुशवन्त सिंह के 'मनोमाजरा ' के वृतान्त की तरह ही लाशों का अम्बार और सामूहिक दाह-संस्कार भला किस का मन विचलित न कर देगा। जब आम आदमी अपने छोटे-छोटे दुखों में ही हिलता रहता है , तब ये तो इस सदी की भयानक त्रासदी है। ऐसे वक्त में जब निराशा इन्हें पल-पल निगल रही है ,सिर्फ ग्रुप में किया गया काम इन्हें आशा की किरण दे सकता है , संगठित कर सकता है। मदद के लिये उठने वाला हाथ , सहारा देने वाला हाथ कभी कमजोर नहीं होता। दिशा पकड़ते ही दशा सुधरने लगेगी।
साथी हाथ बढ़ाना ,साथी रे
एक अकेला थक जायेगा
मिल कर भार उठाना
कितना दम है इन पंक्तिओं में ...
उठो , बाँटो ख़ुशी
चेहरे जो हैं मुरझाये हुए
कुछ इन पे करम कर लो
फूलों की कहानी देखो तो
काँटों पे ठिकाना
बाँहों में इन्हें भर लो
अँधेरे का सितम ,टूटा दिल है
ठहरा है गुज़रा जमाना
आज़ाद इन्हें कर दो
इन आँखों में दहशत के सिवा कुछ भी नहीं
बेरौनक है फ़साना
जीवन से इन्हें भर दो ....
Very true.....
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