हमेशा से बहुत संवेदन-शील थी , पचास साल की उम्र में अचानक कलम उठाई और लिखना शुरू कर दिया |
पहली कविता यही थी
रे मन तू क्यों भूल गया
हर ओर उसी की छाया है
हर ओर उसी का आनँद है
आशाओं ने हैं जाल बुने
निराशा के भँवर में फँसाया है
अन्धकार में मन भरमाया है
रे मन , तू क्यों भूल गया
सौगातें तुझे बिन माँगे मिलीं
उपलब्धियों से तेरी झोली भरी
पर तुझे सदा खाली ही दिखी
रे मन , तू क्यों भूल गया
सीमाओं को न आड़ बना
निर्मल मन से देना सीख जरा
इसमें भी मैं , उसमें भी मैं ,
इसमें भी वो , उसमें भी वो
रे मन , तू क्यों भूल गया
उम्दा रचना ... बधाई
जवाब देंहटाएंसीमाओं को न आड़ बना
जवाब देंहटाएंनिर्मल मन से देना सीख जरा
इसमें भी मैं , उसमें भी मैं ,
इसमें भी वो , उसमें भी वो
रे मन , तू क्यों भूल गया
सुंदर अतिसुन्दर .....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के लिए बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - मेरे लिए उपहार - फिर से मिल जाये संयुक्त परिवार - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
शारदा जी ,
जवाब देंहटाएंमन की मनमानी, कब किसने जानी ?
बहुत ही सुंदर कविता लिखी है |
सौगातें तुझे बिन माँगे मिलीं
जवाब देंहटाएंउपलब्धियों से तेरी झोली भरी
पर तुझे सदा खाली ही दिखी
रे मन , तू क्यों भूल गया
har bar ki tarah adhyatmik vicharon se paripuran ek achhi kavita...
लिखना शुरू करने के लिए उम्र की कोई बंधन नहीं..
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता लिखी है...ऐसे ही लिखती रहिये....शुभकामनाएं
जीवन न जिया हो तो रचे में आत्मा नहीं आ पाती। अनुभव रचने में निस्संदेह काम आता है। जब भी शुरु हो जाये, मानव के लिये रचनात्मक अभिव्यक्त्ति एक बेहद उम्दा कृत्य है।
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें