जो शान्त भाव से सहन करता है , वही गंभीर रूप से आहत होता है ।
_रवीन्द्र नाथ टैगोर
भला क्यों , शायद इसलिए कि वो प्रतिक्रिया नहीं देता , उसका गुस्सा उसके अन्दर ही उबाल मारता रहता है , उसे कोई रास्ता नहीं मिलता । इसलिए भी कि वो मूक हो कर ( ऊपरी तौर पर ) ध्यान से वस्तुस्थिति को पढ़ रहा होता है । अगर मन शान्त होता तो आहत नहीं होता ; और ये टूटन कहीं न कहीं तो प्रतिक्रिया स्वरूप जरूर निकलेगी । मन की संवेदन-शीलता को हमेशा सृजन का रास्ता दिखाना चाहिए । हर विषमता को सबक की तरह लेकर , उस से निबटने में अपना पुरुषार्थ करना चाहिए । कहते हैं चोर से नहीं चोरी से घृणा करो । चोर को सुधारने के लिये उसके दिल को बदलना होगा , जहाँ चोरी करने का विचार पैदा हुआ । उसके परिस्थिति जन्य कारणों को खुली आँख से देख कर शायद हम उसे माफ़ कर सकें , और खुद आहत होने से बच पायें ।
हमारी संवेदन-शीलता किस कदर भटक गई है कि आदमी अपने ही बच्चों तक को नहीं बख्शता । कल अखबार में पढ़ा कि एक पिता ने अपने तीन-चार साल के बच्चे को इतना पीटा कि वो मर गया ; सिर्फ इसलिए कि बच्चे ने उसके मोबाइल पर पानी डाल दिया था । मोबाइल शायद बच्चे से ज्यादा जरुरी था ! आज भौतिकता नैतिकता से ज्यादा आगे हो गई है , इसी लिये मानवीय मूल्य गिर गए हैं । हमें बच्चों से कहना चाहिए कि पैसे को हमेशा रिश्तों से सेकेंडरी रक्खें ; क्योंकि पैसा तो हमारी किस्मत का कोई हमसे छीन ही नहीं सकता और रिश्ते हमारी कमाई हैं , न बना सकें तो बिगाड़ें भी मत । जब दूसरों को अपना समझेंगे तभी माफ़ भी कर सकेंगे और तभी अंतर्मन भी स्वस्थ्य रहेगा ।
बातों में नमी रखना
बातों में नमी रखना
आहों में दुआ रखना
तेरे मेरे चलने को
इक ऐसा जहाँ रखना
जूते तो मखमली हैं
चुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले न पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना
चलना है धरती पर
हो जायेगी मूक जुबाँ
मुस्कानों पे फूल लगा
पँखों में दम भरके
सबकी ही जगह रखना
बच्चों सा निश्छल हो
पुकारों में वो चाहत हो
आसमानों में बैठा जो
उतरने को आतुर हो
अन्तस को सजा रखना
wah wah
जवाब देंहटाएंबच्चों सा निश्छल हो
जवाब देंहटाएंपुकारों में वो चाहत हो
आसमानों में बैठा जो
उतरने को आतुर हो
अन्तस को सजा रखना
Waise to harek pankti,karek shabd behtareen hai,par ye panktiyon kee jod nahee...'hota hai wo aaspaas hee kaheen,manki aankhen hain jo dekhtee naheen..'aapko padha to ye panktiyan zehan me aa gayeen..
गज़ब की भावभीनी भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजूते तो मखमली हैं
जवाब देंहटाएंचुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले न पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना
यह कविता मन को स्फूर्तिमय बना गई। मन को मार्गदर्शन व उत्साहवर्धन करने में सहायक है।
देसिल बयना-खाने को लाई नहीं, मुँह पोछने को मिठाई!, “मनोज” पर, ... रोचक, मज़ेदार,...!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
काव्य प्रयोजन (भाग-७)कला कला के लिए, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
चलना है धरती पर
जवाब देंहटाएंहो जायेगी मूक जुबाँ
मुस्कानों पे फूल लगा
पँखों में दम भरके
सबकी ही जगह रखना
ek bar phir dil ko choo gayi aapki lekhni...
बहुत सुन्दर रचना ...प्रेरणादायक
जवाब देंहटाएंvery nice poem...........
जवाब देंहटाएंupndra (www.srijanshikhar.blogspot.com )
जूते तो मखमली हैं
जवाब देंहटाएंचुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले न पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना
....bahut sundar aalekh ke saath pyari rachna...
एक पिता ने अपने तीन-चार साल के बच्चे को इतना पीटा कि वो मर गया ; सिर्फ इसलिए कि बच्चे ने उसके मोबाइल पर पानी डाल दिया था । मोबाइल शायद बच्चे से ज्यादा जरुरी था ! आज भौतिकता नैतिकता से ज्यादा आगे हो गई है , इसी लिये मानवीय मूल्य गिर गए हैं ।
जवाब देंहटाएंजूते तो मखमली हैं
चुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले न पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना
????
इस विडम्बना पर क्या कहें ?
आपने कविता में सब कुछ दिया है।