जब कभी देखती हूँ पीपल के पेड़ से लिपटे धागे ,आस्था और विश्वास की डोरियों सरीखे मन्दिरों में बंधीं अनगिनत चुन्नियाँ , सोचती हूँ , कि कितने ही लोगों की है ये चलने की डगर , सपने के सच होने का यकीन ... उँगलियों में पन्ने , माणिक , गोमेद , मोती …लिखी किस्मत को भी बदल पाने का यकीन ... किसने देखा वक़्त से पहले , टटोल किस्मत को …हर्ज़ कोई नहीं , गर जमीन मिले हौसले को …इन्सान जी जाये । डर ये लगता है , कहीं आँखें खुली न हों और ये आस्था जमीर को ही छल जाये ।
अँधविश्वास दुर्बल मन का मजहब है .......एडमण्ड बर्क
जब मन कमजोर होता है , सहारा तलाशता है , आस्थाओं में , कहीं से आराम आ जाये या कोई सपना यानि आशा हो तो चलने के लिए क़दमों में दम आ जाये । ऐसी आस्थाओं में बुद्धि के कान-आँख बंद हो जाते हैं , बस आस्था ही विश्वास का पानी पीती है , इन्सान भूल जाता है कि ऐसी स्थितियों का कोई दूसरा फायदा भी उठा सकता है । याद रखें आप शिकार बन कर उसके जाल में फँस भी सकते हैं । पैसा , कीर्ति या कोई और स्वार्थ उद्देश्य हो सकता है । ये देखने के लिए भी अपनी आँख पर पड़े दुख सुख के परदे से बाहर आना पड़ेगा ।
ये भी सच है कि कई बार हम कोई अँगूठी पहनते हैं या कोई व्रत-पूजा करते हैं तो बड़ी सकारात्मक सी ऊर्जा महसूस करते हैं ! ये हमारे अन्दर का विश्वास ही जगमगा रहा होता है । यहाँ तक तो कोई हर्ज़ नहीं , जहाँ कुछ बुरा हुआ वहीं नकारात्मकता किस कगार पर ला कर छोड़ देती है ? इसीलिये कहा गया है कि अन्धविश्वास दुर्बल मन का मजहब है । यानि कमजोर मन जो अपनी ताकत को पहचानता ही नहीं है , मजहब का नाम देकर अँधविश्वासों की गली में भटकता रहता है । मकड़ी के जाले से बाहर नहीं आ पाता, हमेशा अपने दिल के साथ खिलवाड़ करता हुआ डोलता रहता है ।
विचार ही विचार की औषधि है । अपने विचारों को देखना सीखिए । कौन से विचार आ रहे हैं और किधर ले कर जा रहे हैं । नीचे लुढ़कना बहुत आसान होता है , मन को ढलान से ऊपर लाने में दम लगाना पड़ता है । तूफ़ान या मन में उठती लहरों के विरुद्ध ...तन और मन दोनों का दम लगाना पड़ता है । बस मन को ऊपर उठाने वाले विचार दो , अपनी नकेल अपने हाथ में रखो । जिस गली जाना न हो उसका विचार भी मत दो , यानि उस गली का पता भी मत पूछो । उस गली जा कर हालत बद से बदतर हो सकती है । किसी भी झाँसे में मत आओ । अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की कोशिश करें , शुभ विचार , मानव मात्र की भलाई के लिए किये हुए कर्म मन का तापमान नियन्त्रित रखेंगे । शुभ भाव तो सुन्दर हैं कर्म , सुन्दर हैं कर्म तो जीवन सुन्दर ! और मन ठँडा ....
Kitni achhee soch hai aapki...kamzor man kubdi leta hai...
जवाब देंहटाएंPeepal ke ped ke atraaf maine dhage kabhi nahi dekhe! Haan,Wat poornima ke din mahilayen bargad ke atraaf me dhage baandh detin hain!
बस कभी कभी आस्था मन कि कमजोरी का संबल बन जाती है...अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंविचार ही विचार की औषधि है । अपने विचारों को देखना सीखिए । कौन से विचार आ रहे हैं और किधर ले कर जा रहे हैं । नीचे लुढ़कना बहुत आसान होता है , मन को ढलान से ऊपर लाने में दम लगाना पड़ता है ।
जवाब देंहटाएंkitna sahi likha hai aapne ,aapko manav man ke manovigyan ki achhi samajh hai..apki soch bhi badi hi sakaratmak hai...jo hamesha doosro ko prerna degi...
क्षमा जी , पीपल के पेड़ से शायद शनि से सम्बंधित पूजा में धागे बांधते हैं , आप ने देखा होगा कि मंदिर मस्जिद या धर्मगुरुओं के पास हुजूम ...किस कदर लोग तकलीफों से घबराए हुए , शांति पाने के लिए दर-ब-दर भटकते हुए ...कितनी ही तरह के अंध-विश्वासों में जकड़े हुए । संगीता जी ..जब तक भाव निश्छल है हमारी ताकत बना रहता है ...हर्ज़ कोई नहीं ...बस उस अंधेरी गली में जाने में भी तो देर नहीं लगती । जैसा कि स्वाति जी ने लिखा ये दूसरों को प्रेरणा दे सकता है , है तो महज ये एक दृष्टिकोण , पर अगर ये एक चेक अलार्म की तरह किसी को चेतावनी देकर वक्त रहते सही राह पर ले आए , तो ये लिखने वाले का सौभाग्य होगा ।
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञान वर्धक और सचेत करने वाली पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआभार.