अपने एक ब्लॉग का अवलोकन कर रही थी कि ट्रैफिक स्त्रोत देखा , कि किस किस जरिये से कोई उस ब्लॉग तक पहुँचा था ; गूगल सर्च पर की-वर्ड ' आत्महत्या कैसे करूँ ' लिख कर कोई मेरे उस ब्लॉग तक पहुँचा था , हालाँकि मेरे ब्लॉग पर उसे मन को उठाने वाली सामाग्री ही मिली होगी। बहुत दुख हुआ कि इस प्रवृत्ति पर अँकुश कैसे लगेगा। दुनिया से छुपा कर जो उसने नेट से शेयर किया था , अगर किसी साथी से पूछता तो वो शायद उसे ज़िन्दगी का महत्व समझाता , उसके दुख को हल्का करता। नेट और इन्सान में बहुत फर्क होता है। नेट आपके खाली वक्त का साथी जरुर है , गूगल पर विषय से सम्बन्धित सारे ऑप्शन्स आ जायेंगे ;मगर सही गलत का निर्णय वो आपको नहीं करा सकेगा , वहाँ गर्मजोशी नहीं मिलेगी , वो जो दुनिया मिलेगी वो आभासी दुनिया है , आँख मूँद कर आप विष्वास नहीं कर सकते। और हम अपनी जीती-जागती दुनिया से मुँह मोड़ कर सिर्फ वहीँ तक सीमित रह गये , तो क्या पायेंगे ?
आत्महत्या का निर्णय लेना क्या आसान है ? ये तो अपनी परिस्थितियों से भागने का निर्णय है। दुख में आकण्ठ डूबा हुआ मन ये नहीं देख पाता कि किन कारणों से वो इस स्थिति तक पहुँचा है। आकाक्षाएँ या अपनी छवि से मोह हम छोड़ नहीं पाते हैं ; वही मोह जब ज़ख्मी होता है तो मन बगावत कर देता है। जबकि जान है तो जहान है , न वक्त बदलते देर लगती है न ही मन की स्थिति बदलते देर लगती है। इतना शक्ति-शाली शरीर मिला है , उस पर मस्तिष्क जो नेट पर बैठ कर सब कुछ खोज लेता है , उसे सिर्फ सही दिशा देने की जरुरत है। वो अपनी ही शक्तियों से अन्जान है। अपना रिमोट उसने हालात के हवाले कर दिया है ; वो चाहे उसे जैसे चाहे नचा लें।
एक खुला दिल लेकर ही वह अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी हो सकता है। खुले मन से सबका स्वागत ,दिनचर्या का अनुसरण करते हुए , सबको स्वीकार करते हुए , माहौल का हिस्सा बन कर रहने से.…… धीरे से मन उसी सब में वापिस रम जाएगा।
कब ढलता है सूरज , दिन के ढल जाने पर
ढल जाती है जब उम्मीद , समझो के शब हुई
माना कि दुख की रात बहुत लम्बी होती है। मगर सबेरा तो हर रात का होता है। अगर तुम सूरज के खो जाने पर आँसू बहाओगे तो अपने चाँद-तारों को भी खो बैठोगे। इसलिये झिलमिलाते हुए अपने चाँद तारों को सहेजिये। बहुत कुछ होगा जो आपकी तरफ आस से निहार रहा होगा , उसे ज़िन्दगी से भरपूर कर दीजिये।
हो सकता है आप अपने गंतव्य तक पहुँचने में विफल रहे हों , या कुछ भी कैसा भी गम हो , सारी दुनिया वीरान सी नज़र आती हो ; ऐसे पलों में आपने जान लिया होगा कि ज़िन्दगी से भरपूर रहने के मायने क्या होते हैं। कितनी भी विषम परिस्थितियों से गुजरे हों ,एक बार फिर से अपने शौक , अपनी प्राथमिकताएँ अपनी खासयितें तय कीजिये। अपनी सौ प्रतिशत कोशिश इनमें लगा दीजिये।भटके हुए मन को दिशा मिलते ही दशा सुधर जायेगी।
दरअसल ये तो अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी होने की कोशिश है। अगर आप फिर कभी ऐसी निराशाजनक स्थिति से गुजरना नहीं चाहते तो धीरे से अध्यात्मिक बदलाव से जुड़ जाइये ; जो आपको आपके अन्तर्मन और बाहरी दुनिया के बीच सामन्जस्य पैदा करना सिखा देगा।
हर ज़र्रा चमकता है अनवारे-इलाही से
हर साँस ये कहती है के हम हैं तो खुदा भी है
कुछ पंक्तियाँ पेश हैं........
ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये
मन का दीप जला , रात के सँग-सँग बहिये
हौसला , ज़िन्दादिली ,उम्मीद का रँग देखो
उग आता है सूरज , इनकी बदौलत कहिये
आत्महत्या का निर्णय लेना क्या आसान है ? ये तो अपनी परिस्थितियों से भागने का निर्णय है। दुख में आकण्ठ डूबा हुआ मन ये नहीं देख पाता कि किन कारणों से वो इस स्थिति तक पहुँचा है। आकाक्षाएँ या अपनी छवि से मोह हम छोड़ नहीं पाते हैं ; वही मोह जब ज़ख्मी होता है तो मन बगावत कर देता है। जबकि जान है तो जहान है , न वक्त बदलते देर लगती है न ही मन की स्थिति बदलते देर लगती है। इतना शक्ति-शाली शरीर मिला है , उस पर मस्तिष्क जो नेट पर बैठ कर सब कुछ खोज लेता है , उसे सिर्फ सही दिशा देने की जरुरत है। वो अपनी ही शक्तियों से अन्जान है। अपना रिमोट उसने हालात के हवाले कर दिया है ; वो चाहे उसे जैसे चाहे नचा लें।
एक खुला दिल लेकर ही वह अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी हो सकता है। खुले मन से सबका स्वागत ,दिनचर्या का अनुसरण करते हुए , सबको स्वीकार करते हुए , माहौल का हिस्सा बन कर रहने से.…… धीरे से मन उसी सब में वापिस रम जाएगा।
कब ढलता है सूरज , दिन के ढल जाने पर
ढल जाती है जब उम्मीद , समझो के शब हुई
माना कि दुख की रात बहुत लम्बी होती है। मगर सबेरा तो हर रात का होता है। अगर तुम सूरज के खो जाने पर आँसू बहाओगे तो अपने चाँद-तारों को भी खो बैठोगे। इसलिये झिलमिलाते हुए अपने चाँद तारों को सहेजिये। बहुत कुछ होगा जो आपकी तरफ आस से निहार रहा होगा , उसे ज़िन्दगी से भरपूर कर दीजिये।
हो सकता है आप अपने गंतव्य तक पहुँचने में विफल रहे हों , या कुछ भी कैसा भी गम हो , सारी दुनिया वीरान सी नज़र आती हो ; ऐसे पलों में आपने जान लिया होगा कि ज़िन्दगी से भरपूर रहने के मायने क्या होते हैं। कितनी भी विषम परिस्थितियों से गुजरे हों ,एक बार फिर से अपने शौक , अपनी प्राथमिकताएँ अपनी खासयितें तय कीजिये। अपनी सौ प्रतिशत कोशिश इनमें लगा दीजिये।भटके हुए मन को दिशा मिलते ही दशा सुधर जायेगी।
दरअसल ये तो अन्तर्मुखी से बहिर्मुखी होने की कोशिश है। अगर आप फिर कभी ऐसी निराशाजनक स्थिति से गुजरना नहीं चाहते तो धीरे से अध्यात्मिक बदलाव से जुड़ जाइये ; जो आपको आपके अन्तर्मन और बाहरी दुनिया के बीच सामन्जस्य पैदा करना सिखा देगा।
हर ज़र्रा चमकता है अनवारे-इलाही से
हर साँस ये कहती है के हम हैं तो खुदा भी है
कुछ पंक्तियाँ पेश हैं........
ज़िन्दगी भोर है , सूरज सा निकलते रहिये
मन का दीप जला , रात के सँग-सँग बहिये
हौसला , ज़िन्दादिली ,उम्मीद का रँग देखो
उग आता है सूरज , इनकी बदौलत कहिये
Bade dino baad aapke blogpe aayi hun..hameshaki tarah behad rochak aur sundar.
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