सफर में साथी , समां और सामाँ सब तय है , सब वही रहेगा ; अब ये समन्दर की मर्जी है के वो भँवर में तुझे गर्क कर दे या ज़िन्दगी के किनारों पर ला पटके। इस सारी छटपटाहट को अर्थपूर्ण बना। किस ओर तेरी मन्जिल और किधर जा रहा है तू। ऐ नादान मुसाफिर , अनमोल तेरा जीवन , कौड़ियों के भाव जा रहा है। इतना भी न कमतर समझना राहगीरों को , जगमगाता हुआ जीवन तेरे साथ चल रहा है। कौन जाने किस-किस पर है क्या-क्या गुज़री ; आधी-अधूरी धूप छाँव में ,किस के हिस्से क्या-क्या आया। मुंदी-मुंदी पलकों में सपने भी थे , बड़े अपने भी थे , ये और बात है मुट्ठी से वक़्त फिसलता ही रहा , सपनों की मानिन्द।
अपनत्व से चमकती निगाहें माहौल में जान फूँक देतीं हैं। दिलासे ,बहाने सब छलावे से लगते हैं। किसी की पीड़ा कोई नहीं बाँट सकता। हाथ पकड़ कर चलता हुआ भी कितना सगा हुआ है। मुसीबत के वक़्त देख लो क्या क्या टूटा हुआ है। बात इतनी सी है कि वक़्त चाहे जितना मिटा डाले ;जीने के लिये बहाना तो चाहिये। अँगारों पे नींद किसे आती है। मुस्करा कर कोई जो साथ चले , पल भर में ज़िन्दगी सँवर जाती है।
अपनत्व से चमकती निगाहें माहौल में जान फूँक देतीं हैं। दिलासे ,बहाने सब छलावे से लगते हैं। किसी की पीड़ा कोई नहीं बाँट सकता। हाथ पकड़ कर चलता हुआ भी कितना सगा हुआ है। मुसीबत के वक़्त देख लो क्या क्या टूटा हुआ है। बात इतनी सी है कि वक़्त चाहे जितना मिटा डाले ;जीने के लिये बहाना तो चाहिये। अँगारों पे नींद किसे आती है। मुस्करा कर कोई जो साथ चले , पल भर में ज़िन्दगी सँवर जाती है।