भौतिकता की अँधी दौड़ में हम दिलों को क़दमों तले मसलते जा रहे हैं । हमारे जीवन मूल्य लगातार गिरते जा रहे हैं । किसी को परवाह ही नहीं है कि नैतिकता भी कोई चीज है । एक छलाँग लगा कर सबसे ऊपर पहुँचने की चाह , बिना मेहनत सारी सुख -सुविधाएँ पा लेने के जुगाड़ और इस सब में नैतिक मूल्य किनारे रख दिए जाते हैं । आदमी ये भूल गया है कि जो दूसरों को दे रहा है वही पलट कर , शायद दुगना हो कर उसके पास वापिस आना है । आदर देंगे तो आदर पायेंगे झूठ-फरेब देंगे तो वही पायेंगे । फिर इस झूठ के सँसार में मन बोझ से लदा तनाव तनाव चिल्लाता है । जो ऊर्जा जोड़-तोड़ करने में लगाई वो अगर सृजन में लगाते तो कहाँ पहुँचते । जितना होशियार दिमाग हो उतनी ही तीव्र गति से प्रगति कर सकता है । जितना ज्यादा अपवित्र , अनैतिक , झूठ से भरे होंगे उतना ही ऊर्जा रहित होते जायेंगे । परिस्थितियों का सामना न कर सकेंगे । छोटी छोटी बात पर गुस्से , क्षोभ और दुःख से असंतुलित हो कर तीव्र प्रतिक्रियाएँ देंगे ।
हम अपने बच्चों को क्या देंगे अगर हम ही प्राण-शक्ति में कमजोर हैं । अपने बच्चों को विरासत में प्राण-शक्ति संरक्षित करने का तोहफा दीजिये । कोई भी बच्चा बड़े बड़े व्याख्यान या पाठ सुनना नहीं चाहेगा , हम खुद भी कहाँ सुनते हैं ; हाँ तगड़ी ठोकर लगे तो सीधे रास्ते पर चल कर सब कुछ करने को तैय्यार हो जाते हैं । अपने आचरण और व्यवहार से अपने बच्चों के शिक्षक या रोल-मॉडल बनिए । कहने की जरुरत नहीं है , आपकी प्रतिक्रियाएँ न चाहते हुए भी न जाने कब बच्चों में उतर आती हैं । आप हर वक्त अपने बच्चों के साथ साया बन कर नहीं चल सकते , उन्हें अपने क़दमों चल कर ये दुनिया देखनी हैं । अगर एक मजबूत बचपन उन्हें दिया जाए तो समझो कि उनकी नींव मजबूत है । आंधी पानी तूफ़ान वो हौसले से जीत लेंगे । जमीन जायदाद बनाते बनाते असली धन को नजर अंदाज़ न करें । प्राण-शक्ति है तो सब सार्थक है वर्ना क्या करेंगे जो भोक्ता ही तड़प रहा हो ।
आज छोटे छोटे बच्चों की भी तीव्र प्रतिक्रियाएँ देखने सुनने में आ रही हैं । जिसका सारा श्रेय हमारे सभ्य समाज को जाता है । जब हम ही अपने जीवन का मूल्य नहीं समझते तो नई पीढी के सामने क्या उदाहरण छोड़ेंगे । सारी उम्र एक कंधा तलाशते रहते हैं जिस पर सर रख कर सुकून पाने की ख्वाहिश रखते हैं ; पर खुद किसी के लिये भी कभी ऐसा कन्धा नहीं बन पाते । क्योंकि जो खोज रहा है वो अधूरा है , तो सभी खोज रहे हैं , सभी अपनी क्षमताओं से अनभिज्ञ । भौतिक जगत में इतने उलझे हैं कि हर छोटी बात पर अहम् सर उठा लेता है । न झगड़ा होते देर लगती है न ही सब्र का बाँध टूटते देर लगती है । तीव्र प्रतिक्रिया फल-स्वरूप दिल-दिमाग का कांच भरभरा कर ढह जाता है । जैसे कोई भूत सवार हो कर सब तहस-नहस कर गया हो , फिर हाथ कुछ नहीं आता । लाख चाहें , कई बार उस हानि की भरपाई नहीं हो पाती । दुनिया की सारी पढाई व्यवहारिक और अध्यात्मिक ज्ञान के सामने गौण है , क्योंकि अगर आप दूसरों की परवाह नहीं करते तो किसी मजबूरी वश भले ही कोई आपको सहन कर ले , वरना उसके दिल से ...नजर से उतरते कुछ मिनट भी नहीं लगते . .. .
हम जो यूँ ही चले जा रहे हैं ढेरों सामान इक्कट्ठा करते हुए , भौतिक जगत का भी और मन प्राण पर दुःख क्षोभ की जटिल गुत्थियों का भी ; साथ तो एक सुई भी नहीं जायेगी ; हाँ ये मन प्राण के सारे बोझ हमारे साथ जरुर जायेंगे । कई बार हम कहते हैं कि छोटे छोटे बच्चे क्यों अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं । ये आत्माएं तो पिछले जन्मों से ही ऊर्जा रहित हो कर आई हैं । कभी न कभी ये ख्याल जरुर उठता है कि हमारा जन्म किस कारण हुआ है और हम किस दौड़ में शामिल हैं । शुद्ध विचार , नैतिकता का पालन ही जीवन को सही दिशा , सही गति और सही उद्देश्य दे सकता है । हमें मन वचन और कर्म से सदा सच्चे रहना चाहिए , भले ही कोई हमें जाने या न जाने , ये संतुलन हमारी दुनियावी प्रगति में भी सहायक होगा ।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा , पूजा जप-तप कर्म काण्ड से थोड़ी देर तक आस्था का दिया जगमगा जरुर सकता है मगर स्थाई शांति , स्थाई ख़ुशी वहां भी नहीं मिलेगी । हर धर्म हमें मानवता ही सिखाना चाहता है मगर हम ही बाहरी ताने-बाने में उलझ कर रह जाते हैं और असली तत्व नजर से ओझल हो जाता है ।
मन का प्याला तो सदा रहेगा प्यासा
इसलिए तू सदा बस छलक ही छलक
प्यासे रहने से होता है अधूरेपन का अहसास
भरा ही तो छलकता है ये खुद ही परख
बाँटता ही जो रहता है चारों तरफ
वो खुद ही उगा लेता है प्यार का इक चमन
तली में हो जो छेद मन की गागर के
पा कर भी नहीं भरता फिर कैसा अमन
जो बोता है बीज सब्र के मन की धरती में
वही काटे फसल तू छलक ही छलक