पहले ' ज़र , जोरू और जमीन ' इन तीनों को गुनाह के लिये जिम्मेदार ठहराया जाता था । मगर आज आन और शान और जुड़ गए हैं इन कारणों में । ज़र यानि धन , जोरू यानि पत्नी और जमीन यानि जायदाद ; अवैध सम्बंधों और इश्क को पत्नी से सम्बंधित कारणों में गिना जाएगा । कितने शातिराना ढंग से गुनाह को अन्जाम दिया जाता है । मुझे याद आ रहा है जब एक लड़की गाँव से दूर रेलवे स्टेशन छोड़ने आए अपने माता पिता के सामने तो ट्रेन में बैठ कर चली गई । मगर जब वो रात में ही गाँव वापिस जा रहे थे , अपने प्रेमी के साथ वापिस आई , रास्ते में ही उन्हें मार डाला और एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की । दूसरे या तीसरे स्टेशन पर जहाँ गाड़ी ज्यादा देर रूकती थी , मोटर साइकिल से अपने प्रेमी के साथ जाकर उसी ट्रेन में बैठ कर चली गई , अगली सुबह हॉस्टल पहुँच गई । कितनी भी होशियारी बरती जाए , गुनाह एक न एक निशान जरुर छोड़ता है ।
इसी तरह उत्तर प्रदेश का ही कोई क़स्बा था जहाँ शबनम नाम की लड़की रात को अपने परिवार के आठ
आन और शान के लिये जान लेने वाले , समाज में (संकुचित सोच वाले ) खुद को हीरो समझ लेते हैं , ये झूठी शान हुई । जब बच्चे बड़े हो रहे थे तो बड़े उनके साथी हमराज नहीं बन पाते । बच्चों की कच्ची उम्र में विपरीत सैक्स के प्रति एक स्वाभाविक आकर्षण होता है , इसे समझ कर जब उन्हें उचित मार्गदर्शन दिया जाए , दबाया न जाए तो वो खुद ही सही रास्ता पकड़ेंगे ।
मुहब्बत को तो इबादत से जोड़ा जाता है , क्योंकि इसमें दूसरा अपने से अलग नहीं नजर आता । बस उसका मतलब गलत न उठाया जाए । मुहब्बत अगर गुनाह है तो क्या क़त्ल करना उस से भी बड़ा गुनाह नहीं है । खून सने हाथों से लोग सोते कैसे हैं ?
डॉक्टर तलवार और उनकी पत्नी पर ये इल्जाम है कि उन्हों ने अपनी बेटी के क़त्ल के साक्ष्यों को मिटाया । इस से सीधा सीधा इल्जाम उन पर ही लगता है । हाँ ये सवाल भी उठता है कि क्यों उनकी आँखों में वो तड़प नजर नहीं आती जो जानना चाहे कि उनकी बेटी का कातिल कौन है । न जाने कौन सा कारण निकल कर आए इस डबल मर्डर की मिस्ट्री का ।
इतनी बेरहमी की फसलें न बो
कि तेरे चलने को पगडण्डी भी न बचे
तेरे सीने की गुपचुप , चौराहे पर नीलाम हो जाए
तू चला है किसको मजा चखाने , कि अपनी दुनिया ही उजाड़ हो जाए
उसने अपना न समझा , तो क्या तुम खुद को समझा पाए ?
अपना-पराया मिटा , पराई दुनिया में पहुँचा आए
साजिश बुनने में तू माहिर है , किस्मत की साजिश न पहचान पाये
अपने ही अतीत के हिस्से थे , खन्जर से जिनको अलग कर आए
न्यामतें संभालीं न गईं , ये क्या अन्जाम दे आए
ये क्या लिख डाला जिन्दा मुर्दा रूहों पर ,
रिश्ते जख्मीं हैं , विष्वास कहाँ खो आए