आदमी आदमी को क्या देगा
जो भी देगा मेरा खुदा देगा
इस सोच के साथ कडुवाहट को पी सकते हैं कि उम्मीद सिर्फ खुदा से रख सकते हैं , आदमी से नहीं | जबकि खुदा भी आदमी के जरिये ही हमारी मदद करता है | अगर ये कहें कि
' वो बन सकता था खुदा , अपनी कीमत उसने खुद ही , कमतर आँक ली होगी'
तो कैसा रहे ? मन में मची हुई उथल-पुथल , धडकनें हर वक़्त ऊपर-नीचे होती हुईं , कहीं लगता है पीछे रह गए , कहीं लगता है शिकार ( विक्टिम ) बन गए .......अशांत मन के लक्षण हैं ये | दिल के साथ भावनायें तो होंगी ही | भावनाओं को अगर सही दिशा दे दी जाये तो वो एक जगह इकट्ठी होकर न तो हमें तंग करेंगी न ही हमारे आगे बढ़ने के रास्ते में बाधा बनेंगी | जैसे प्रेम को सीमित दायरे में रखने की बजाय सर्व से जोड़ दिया जाए तो विस्तृत दायरे की भलाई की बात सोचते हुए आप अपनी तकलीफें तो भूल ही जायेंगे | अपना उद्देश्य तो जिन्दगी को सुचारू रूप से चलाना है , ताकि जिन्दगी एक उत्सव की तरह बीते | जिन्दगी का उद्देश्य ऐसा होना चाहिए कि हम आराम की नींद सो सकें | झूठ-फरेब के सहारे चलती जिन्दगी , सुकून नहीं देगी , यहाँ तक कि नींद भी हराम कर देगी | सच हमेशा हरा-भरा रहता है , कहीं कोई दुराव-छिपाव नहीं , जब आडम्बर नहीं तो अशांति भी कैसी ! बहुत सारी बातें तंग करती हैं असली नकली चेहरे , काम के वक़्त बाप बना लेने वैसे कुछ भी न समझने वाली मानसिकता , ओहदे और क़द से तोलती चाटुकारिता ,धनाड्य अहंकारिता , गुम हो गई आदमीयत |
आह , कितने कंकड़ फेंकें कि लहरों में तूफ़ान उठेगा ,
चैन तो दूर की बात है , आँखों में दिन-रात कटेगा |
ऐसे हालात में मन शांत कैसे हो , जो बात-बात पर भड़के भी न , वो कला तलाशनी है | वो कला तो प्रेम ही है , जब सर्व से प्रेम करते हुए , दूसरों के अवांछनीय व्यवहार के पीछे छिपे हुए कारण को समझ लेते हैं तो खुद ही करुणामय हो जाते हैं | अगर हम अपने कर्तव्य न भूलें , अपनी पहुँच के अन्दर की हर संभव मदद दूसरों को दें , और दे पायें या न दे पायें ऐसा जज्बा ही रखें तो एक सकारात्मक सोच दूसरे तक पहुँचती है | इतना ही काफी है मन को शाँत रखने के लिए , जिन्दगी की जँग जीतने के लिए |