Picture credit -Kusha Arora ....my daughter
हम जीते मरते रहते हैं जिन संवेदनाओं की खातिर
हम जीते मरते रहते हैं जिन संवेदनाओं की खातिर
सर पे लटकी हो तलवार तो सब हो जाती हैं बेमायने
माँगते हैं सिर्फ चलने की डगर
एक बार की बात है जब कोरोना की वजह से महामारी ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था। once upon a time there was an outbreak of pandemic Corvid-19, a contagious disease etc.etc... ; हो सकता है हममें से बचे हुए लोग दादा-दादी या नाना-नानी की तरह कभी अपने पोते पोतियों को ऐसी ही कहानियाँ सुनाएँ। कोरोना ने हम सबको ऐसे हालात में ला कर खड़ा कर दिया है कि हम अपने-अपने घरों में कैद हो जायें। इस का असर सारी दुनिया , काम-धन्धे ,ऐ टू जेड हर बात पर पड़ेगा।मगर है तो सारी दुनिया पर ही। कभी ऐसा लगता है किसी फिल्म का सीन है , जैसे किसी एक जगह ला कर नजर-बन्द कर दिया गया हो। कभी ऐसा लगता है कि रोबोट या राक्षस की तरह वायरस आता है और जिधर नजर दौड़ाओ ज़िन्दगियाँ ही ज़िन्दगियाँ लील जाता है।
मौत का डर सताता है
मौत आनी है एक दिन तो आयेगी
वो जनम इक नया पैरहन होगा
रिश्ते-नाते रुह का सिँगार हैं
रात आयेगी तो सब विदा होगा
रुह कभी मरती नहीं
अपने ही नूर से तू वाकिफ होगा
इससे पहले कि हम कोरोना संक्रमित सँख्या का हिस्सा हो जायें , हमें खुद को आइसोलेट करना है यानि मेल-मिलाप से बचना है। ज़िन्दगी के सामने जात-पात , हिन्दू-मुस्लिम ,अमीर-गरीब सब गौण हैं।प्रगति ज़िन्दगी से बड़ी नहीं होती।प्रगति ज़िन्दगी के एसेन्स को बढ़ाने वाली जरुर होती है। आज अगर कोविड-19 के लिये वेक्सीन खोज ली जाती है तो मानव के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
अभी तो हमें सुरक्षित रहने का , इम्युनिटी बढ़ाने का हर सम्भव प्रयत्न करना है। खान-पान ,साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। अगर आपको गले में जरा भी खराश लगती है तो दो तुरियाँ लहसुन की चबा-चबा कर खा जाएँ , इसकी तीखी गन्ध श्वसन-सँस्थान के सारे माइक्रोब्ज मार देगी ,गला खुल जायेगा।
सबसे बड़ी बात है कि आप खुश रहें। ऐसे हालात का भी सकारात्मक पहलू देखें। ये तो एक मौका है अपने रिश्तों को वक्त देने का। अपने सीमित साधनों को सर्वोत्तम ढँग से उपयोग करिये। आराम करिये , घरेलू कामों में जरुरी व्यायाम भी हो जायेगा।मनन कीजिये , अपनी प्राथमिकताएँ तय कीजिये। जरुरत का सामान राशन , दूध ,सब्जियाँ आदि लाने भी बार-बार बाहर न जायें।कोई स्किल डेवलप करें। भीड़ करने से सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य व्यर्थ हो जायेगा। ज्यादा राशन इक्कट्ठा न करें क्यूँकि हो सकता है कि औरों के लिये पर्याप्त राशन न बचे। आप भूखे नहीं रहेंगे ,कुदरत पत्थर के नीचे दबे मेंढक तक के लिये खाने का इन्तज़ाम कर के रखती है। अभी तो हमारी सरकार फ़ूड सप्लाई का भी पूरा ध्यान रख रही है।लो इन्कम ग्रुप के लिये तो भण्डारा या फ्री वितरण भी चल रहा है। अभी वक्त है सँयम का।
ये चुनौती-पूर्ण समय है , और समय कब चुनौतियों से भरा नहीं होता ?
डॉक्टर्स ,मैडिकल स्टाफ ,सफाई कर्मचारी ,पुलिस महकमा , बैंकर्स , फ़ूड सप्लायर्ज सभी बधाई के पात्र हैं उन्हें मानवता की सेवा करने का मौका मिला है। अपने-अपने स्तर पर हम लोग भी कुछ न कुछ योगदान कर सकते हैं , कभी किसी मन को उठा कर , और कुछ नहीं तो अपना ही ध्यान रखते हुए औरों के लिये समस्या न बन कर।
किसको पता था कि इस तरह भी दुनिया थम जायेगी
छोटा सा कोरोना वायरस ,दहशत की पराकाष्ठा !
जैसे यमराज हो बिन आहट के चलता हुआ
कभी सोचा है ,वाकये ऐसे भी हुए हैं
जब छोड़ जाते हैं अपने ही लोग ,मरते हुए जिन्दों को श्मशान में
संवेदनाओं की पराकाष्ठा !
घबरा मत ऐ इन्साँ
ये दुनिया चला-चली का है मेला
ज़िन्दगी की है तय दासताँ
कभी ‘हॅंस ’ पत्रिका में एक कहानी पढ़ी थी शायद फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी ,जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था , किसी गाँव में महामारी फैलने की वजह से जब उल्टी-दस्त से लगातार मौतें हुई जा रहीं थीं ,घर में बाकी बच्चों के मर जाने के बाद छोटी बच्ची भी ग्रस्त हुई , तब ये किरदार अपनी बच्ची को मरने से पहले ही श्मशान पहुँचा देता है कि अब मरना तो तय ही है।जरा सोचिये ,लाचारगी और बेबसी ने उसे कितना सँवेदन-हीन बना दिया होगा। बरबस उसी कहानी की याद आ जाती है। ये वक़्त पैनिक होने का है ही नहीं। ठन्डे दिमाग से निदान के हर सँभव उपाय अपनाइये। हो सकता है सँवेदन-हीनता के बहुत सारे किस्से पेश आयें ; मगर ऐसे में ही आपको रास्ता निकालना होगा।
साजिश में दुनिया की खुदा भी तो था शामिल
शिकायत कैसे करें , हैं उसकी मेहरबानियाँ भी कितनी
भारत के लोग असीम प्रतिरोधक क्षमता ,असीम प्राण-शक्ति के मालिक हैं ;हम मिल कर ये जँग जीतेंगे। सकारात्मक रहें ;ज़िन्दगी को ऐसे जियें जैसे कि ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा।सारी कवायदें ज़िन्दगी की ज़िन्दगी के लिये ,क्यूँ न फिर गुनगुना ही लें ......
ऐ ज़िन्दगी तेरा ,
तीरे-नजर देखेंगे
जख़्मी-जिगर देखेंगे
कोरोना का असर देखेंगे
कुदरत का कहर देखेंगे
और हाँ ,😁बचे तो सहर देखेंगे
ऐ खुदा , ले आये हो ये किस मुकाम पर
रुक गई है दुनिया की रफ़्तार
मगर हम दुआओं का असर देखेंगे
रहमत की लहर देखेंगे
हाँ शहर-दर-शहर देखेंगे
मौत का डर सताता है
मौत आनी है एक दिन तो आयेगी
वो जनम इक नया पैरहन होगा
रिश्ते-नाते रुह का सिँगार हैं
रात आयेगी तो सब विदा होगा
रुह कभी मरती नहीं
अपने ही नूर से तू वाकिफ होगा
इससे पहले कि हम कोरोना संक्रमित सँख्या का हिस्सा हो जायें , हमें खुद को आइसोलेट करना है यानि मेल-मिलाप से बचना है। ज़िन्दगी के सामने जात-पात , हिन्दू-मुस्लिम ,अमीर-गरीब सब गौण हैं।प्रगति ज़िन्दगी से बड़ी नहीं होती।प्रगति ज़िन्दगी के एसेन्स को बढ़ाने वाली जरुर होती है। आज अगर कोविड-19 के लिये वेक्सीन खोज ली जाती है तो मानव के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
अभी तो हमें सुरक्षित रहने का , इम्युनिटी बढ़ाने का हर सम्भव प्रयत्न करना है। खान-पान ,साफ-सफाई का पूरा ध्यान रखें। अगर आपको गले में जरा भी खराश लगती है तो दो तुरियाँ लहसुन की चबा-चबा कर खा जाएँ , इसकी तीखी गन्ध श्वसन-सँस्थान के सारे माइक्रोब्ज मार देगी ,गला खुल जायेगा।
सबसे बड़ी बात है कि आप खुश रहें। ऐसे हालात का भी सकारात्मक पहलू देखें। ये तो एक मौका है अपने रिश्तों को वक्त देने का। अपने सीमित साधनों को सर्वोत्तम ढँग से उपयोग करिये। आराम करिये , घरेलू कामों में जरुरी व्यायाम भी हो जायेगा।मनन कीजिये , अपनी प्राथमिकताएँ तय कीजिये। जरुरत का सामान राशन , दूध ,सब्जियाँ आदि लाने भी बार-बार बाहर न जायें।कोई स्किल डेवलप करें। भीड़ करने से सोशल डिस्टेंसिंग का उद्देश्य व्यर्थ हो जायेगा। ज्यादा राशन इक्कट्ठा न करें क्यूँकि हो सकता है कि औरों के लिये पर्याप्त राशन न बचे। आप भूखे नहीं रहेंगे ,कुदरत पत्थर के नीचे दबे मेंढक तक के लिये खाने का इन्तज़ाम कर के रखती है। अभी तो हमारी सरकार फ़ूड सप्लाई का भी पूरा ध्यान रख रही है।लो इन्कम ग्रुप के लिये तो भण्डारा या फ्री वितरण भी चल रहा है। अभी वक्त है सँयम का।
ये चुनौती-पूर्ण समय है , और समय कब चुनौतियों से भरा नहीं होता ?
डॉक्टर्स ,मैडिकल स्टाफ ,सफाई कर्मचारी ,पुलिस महकमा , बैंकर्स , फ़ूड सप्लायर्ज सभी बधाई के पात्र हैं उन्हें मानवता की सेवा करने का मौका मिला है। अपने-अपने स्तर पर हम लोग भी कुछ न कुछ योगदान कर सकते हैं , कभी किसी मन को उठा कर , और कुछ नहीं तो अपना ही ध्यान रखते हुए औरों के लिये समस्या न बन कर।
किसको पता था कि इस तरह भी दुनिया थम जायेगी
छोटा सा कोरोना वायरस ,दहशत की पराकाष्ठा !
जैसे यमराज हो बिन आहट के चलता हुआ
कभी सोचा है ,वाकये ऐसे भी हुए हैं
जब छोड़ जाते हैं अपने ही लोग ,मरते हुए जिन्दों को श्मशान में
संवेदनाओं की पराकाष्ठा !
घबरा मत ऐ इन्साँ
ये दुनिया चला-चली का है मेला
ज़िन्दगी की है तय दासताँ
कभी ‘हॅंस ’ पत्रिका में एक कहानी पढ़ी थी शायद फणीश्वर नाथ रेणु की लिखी ,जिसमें उन्होंने उल्लेख किया था , किसी गाँव में महामारी फैलने की वजह से जब उल्टी-दस्त से लगातार मौतें हुई जा रहीं थीं ,घर में बाकी बच्चों के मर जाने के बाद छोटी बच्ची भी ग्रस्त हुई , तब ये किरदार अपनी बच्ची को मरने से पहले ही श्मशान पहुँचा देता है कि अब मरना तो तय ही है।जरा सोचिये ,लाचारगी और बेबसी ने उसे कितना सँवेदन-हीन बना दिया होगा। बरबस उसी कहानी की याद आ जाती है। ये वक़्त पैनिक होने का है ही नहीं। ठन्डे दिमाग से निदान के हर सँभव उपाय अपनाइये। हो सकता है सँवेदन-हीनता के बहुत सारे किस्से पेश आयें ; मगर ऐसे में ही आपको रास्ता निकालना होगा।
साजिश में दुनिया की खुदा भी तो था शामिल
शिकायत कैसे करें , हैं उसकी मेहरबानियाँ भी कितनी
भारत के लोग असीम प्रतिरोधक क्षमता ,असीम प्राण-शक्ति के मालिक हैं ;हम मिल कर ये जँग जीतेंगे। सकारात्मक रहें ;ज़िन्दगी को ऐसे जियें जैसे कि ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा।सारी कवायदें ज़िन्दगी की ज़िन्दगी के लिये ,क्यूँ न फिर गुनगुना ही लें ......
ऐ ज़िन्दगी तेरा ,
तीरे-नजर देखेंगे
जख़्मी-जिगर देखेंगे
कोरोना का असर देखेंगे
कुदरत का कहर देखेंगे
और हाँ ,😁बचे तो सहर देखेंगे
ऐ खुदा , ले आये हो ये किस मुकाम पर
रुक गई है दुनिया की रफ़्तार
मगर हम दुआओं का असर देखेंगे
रहमत की लहर देखेंगे
हाँ शहर-दर-शहर देखेंगे