आज फिर अख़बार के साथ साईं बाबा के पर्चे बांटने पर महिमा व पर्चे न बाँटने पर होने वाले नुक्सान के बारे में लिखे हुए पर्चे बाँटे गये । ये उनकी महिमा का प्रचार प्रसार नहीं है , ये तो एक झूठी आस्था का प्रचार है , निसन्देह ये किसी एक के ऐसा ही परचा पाने पर पैदा हुए डर का प्रतिफल है । बहुत पहले भी ऐसे ही पर्चे किसी न किसी भगवान के नाम पर बाँटे जाते थे ।
हमारा मन कितना कमज़ोर और कितना ताकतवर होता है कि छोटी छोटी आस्थाओं में कितने बड़े बड़े विष्वास पैदा कर लेता है और उनकी छाँव में ही महफूज़ महसूस करता है । यहाँ तक भी ठीक ही है मगर जब नकारात्मक ऊर्जा पैदा करने लगता है तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है । डर भ्रम की कोई सीमा नहीं होती ।
ये तय है कि होने वाली बात होगी न होने वाली बात नहीं होगी । आप अपने विचारों को बदल लें , सारी दुनिया बदली हुई नजर आयेगी । खुद साईंबाबा का जीवन सेवा भाव को समर्पित था । उन्होंने कभी कीर्ति की परवाह नहीं की थी , फिर सिर्फ ये पर्चे बाँट कर किसी पर भगवान कैसे मेहरबान हो सकता है । जब तक कर्म और भाव न सुधरे , प्रकृति मेहरबान नहीं हो सकती । बेवजह डर पाल कर हम अपनी ही ताकत को भुला देते हैं ।
भगवान को महसूस करने के लिए दुनिया से आँखें फेरनी पड़ती हैं यानि भौतिक जगत की हलचल , अहं भाव जब तक मन में रहता है , हम उस सत्ता को महसूस ही नहीं कर सकते । एक पतली सी लकीर ' मैं ' भाव की भी ज्ञान चक्षु खुलने नहीं देती । जो सिद्ध पुरुष होगा वो कभी बाहरी जगत में उलझेगा नहीं । वो किसी और ही मक्सद के लिए जीता है । इसलिए किसी तरह के बहकावे में नहीं आना चाहिए ।
ज्योतिष विद्या सच है , मगर सब पढ़ने की कोशिश ही करते हैं , अन्तर्यामी कोई नहीं है , इसलिए कह नहीं सकते कि कौन ग्रहों के फल को कितना सही पढ़ पाता है । ज्योतिष विद्या का भी ये नियम है कि किसी को भी आयु या आयु जैसे किसी भी संवेदन शील मुद्दे पर सटीक भविष्य वाणी नहीं करनी चाहिए । सच भी है , किसी का मन गिरा कर उसे जीवित ही मुर्दा कर देने का हक़ किसी को नहीं ; वैसे भी गोचर के ग्रह ,दशा ,अन्तर्दशा , महादशा आदि सही विवेचना को भ्रमित करने के लिए काफी हैं । क्योंकि ज्योतिष वैसे भी बहुत विस्तार वाला विषय है जितना भी अध्ययन कर लो कम है । ग्रहों को ठीक करने के लिए भी तो कर्म का सहारा लिया जाना चाहिए , बनावटी कर्म कांडों से कुछ होने हवाने वाला नहीं ।
बात छोटी सी हो या बड़े भारी दुख वाली , नकारात्मक रहस्यात्मक शक्तियों के प्रभाव का यकीन नहीं रखना चाहिए ; हम खुद एक शक्तिशाली ऊर्जा हैं , जिसे हमें इतना शुद्ध बनाना चाहिए कि और कोई ऐसा विचार टिक ही न सके । दुःख तो वैसे भी समय के साथ गुजर जाने वाला है , हम भ्रम को भूत बना कर न बैठ जाएँ ।
मन इतना शक्तिशाली होता है कि विष्वास के दियों से रौशनी कर लेता है
ये आस्था का सैलाब है या झूठे दियों की रौशनी से सपने का विस्तार
दिया जल तो सकता है , आँधियों में मगर बुझते देर न लगेगी
समय साधन समझ की बर्बादी है ये
भटक के रेगिस्तानों में प्यास का ही दीदार करोगे
सुकूने-दिल के लिए किसी का पेट भरो
किसी की चोट का मरहम बनो
किस्मत लिखनी है तो ऐसे लिखो
साईंबाबा के क़दमों के निशानों पे चलो
हमारा मन कितना कमज़ोर और कितना ताकतवर होता है कि छोटी छोटी आस्थाओं में कितने बड़े बड़े विष्वास पैदा कर लेता है और उनकी छाँव में ही महफूज़ महसूस करता है । यहाँ तक भी ठीक ही है मगर जब नकारात्मक ऊर्जा पैदा करने लगता है तो बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है । डर भ्रम की कोई सीमा नहीं होती ।
ये तय है कि होने वाली बात होगी न होने वाली बात नहीं होगी । आप अपने विचारों को बदल लें , सारी दुनिया बदली हुई नजर आयेगी । खुद साईंबाबा का जीवन सेवा भाव को समर्पित था । उन्होंने कभी कीर्ति की परवाह नहीं की थी , फिर सिर्फ ये पर्चे बाँट कर किसी पर भगवान कैसे मेहरबान हो सकता है । जब तक कर्म और भाव न सुधरे , प्रकृति मेहरबान नहीं हो सकती । बेवजह डर पाल कर हम अपनी ही ताकत को भुला देते हैं ।
भगवान को महसूस करने के लिए दुनिया से आँखें फेरनी पड़ती हैं यानि भौतिक जगत की हलचल , अहं भाव जब तक मन में रहता है , हम उस सत्ता को महसूस ही नहीं कर सकते । एक पतली सी लकीर ' मैं ' भाव की भी ज्ञान चक्षु खुलने नहीं देती । जो सिद्ध पुरुष होगा वो कभी बाहरी जगत में उलझेगा नहीं । वो किसी और ही मक्सद के लिए जीता है । इसलिए किसी तरह के बहकावे में नहीं आना चाहिए ।
ज्योतिष विद्या सच है , मगर सब पढ़ने की कोशिश ही करते हैं , अन्तर्यामी कोई नहीं है , इसलिए कह नहीं सकते कि कौन ग्रहों के फल को कितना सही पढ़ पाता है । ज्योतिष विद्या का भी ये नियम है कि किसी को भी आयु या आयु जैसे किसी भी संवेदन शील मुद्दे पर सटीक भविष्य वाणी नहीं करनी चाहिए । सच भी है , किसी का मन गिरा कर उसे जीवित ही मुर्दा कर देने का हक़ किसी को नहीं ; वैसे भी गोचर के ग्रह ,दशा ,अन्तर्दशा , महादशा आदि सही विवेचना को भ्रमित करने के लिए काफी हैं । क्योंकि ज्योतिष वैसे भी बहुत विस्तार वाला विषय है जितना भी अध्ययन कर लो कम है । ग्रहों को ठीक करने के लिए भी तो कर्म का सहारा लिया जाना चाहिए , बनावटी कर्म कांडों से कुछ होने हवाने वाला नहीं ।
बात छोटी सी हो या बड़े भारी दुख वाली , नकारात्मक रहस्यात्मक शक्तियों के प्रभाव का यकीन नहीं रखना चाहिए ; हम खुद एक शक्तिशाली ऊर्जा हैं , जिसे हमें इतना शुद्ध बनाना चाहिए कि और कोई ऐसा विचार टिक ही न सके । दुःख तो वैसे भी समय के साथ गुजर जाने वाला है , हम भ्रम को भूत बना कर न बैठ जाएँ ।
मन इतना शक्तिशाली होता है कि विष्वास के दियों से रौशनी कर लेता है
ये आस्था का सैलाब है या झूठे दियों की रौशनी से सपने का विस्तार
दिया जल तो सकता है , आँधियों में मगर बुझते देर न लगेगी
समय साधन समझ की बर्बादी है ये
भटक के रेगिस्तानों में प्यास का ही दीदार करोगे
सुकूने-दिल के लिए किसी का पेट भरो
किसी की चोट का मरहम बनो
किस्मत लिखनी है तो ऐसे लिखो
साईंबाबा के क़दमों के निशानों पे चलो
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