हम सोचते हैं ये कर के या वो पा कर हम खुशी पायेंगे | और उसके बाद क्या खुशी टिक रहती है ? फ़िर कुछ दूसरा , कुछ नया , कुछ बड़ा करने या पाने की चाह सिर उठाये खड़ी हो जाती है | रहते हम अतृप्त ही हैं | जब तक इच्छा रहती है , तब भी खुशी नहीं रहती और इच्छा पूरी होने के बाद भी तृप्ति नहीं है |
खुशी है किस चिड़िया का नाम , ये एक मुंडेर पर बैठी क्यों नहीं रहती ? खुशी तो मन की अवस्था है , जिसे हम बाहरी चीजों और कर्मों से जोड़ लेते हैं | ज्यादा चीजें या पैसा पाने से खुशी नहीं मिलती , खुशी मिलती है ख़ुद को पहचान कर अपनी जरूरतों के अनुरूप लक्ष्यों को पाने से | इसलिए हमें ये समझ लेना चाहिए कि हमारा शरीर , शरीर मात्र नहीं है , शरीर को चलाने वाला प्रकाश भी है। जो ख़ुद ऊर्जा है , दूसरों को भी ऊर्जा से भर सकता है | इस सँसार में हम जहाँ हैं उस परिवार में , समाज में जो हमारे कर्तव्य हैं , उत्तरदायित्व हैं उन्हें पूरा करने में खुशी जरुर मिलती है | खुशी बांटने से खुशी बढ़ती है | सिकुड़ कर बैठ जाने से खुशी आने जाने के सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं , और हम अपनी ताकत भी भुला बैठते हैं | खुशी है तो हमारे अन्दर ही , बस उसका फव्वारा फूटने की देर होती है , वो ऊर्जा आयेगी तो बाहर ही न ...
कीर्तन कभी अकेले बैठ कर करो , कभी सबके साथ
उम्र त्यौहार है और खुशी सौगात
आओ ले लें इसे हाथों -हाथ
...
उम्र त्यौहार है और खुशी सौगात
जवाब देंहटाएंबेहतरीन नज़रिये की रचना