सोमवार, 3 अगस्त 2009

पहली बार मँच पर

३१ जुलाई , हमारे बैंक का स्थापना दिवस मनाया गया , इस अवसर पर बैंक के परिवार के लोग अपनी अपनी प्रस्तुति भी पेश कर सकते हैं , मुझे भी कहा गया कि कुछ कवितायें पढ़ कर सुनाई जायें | मेरे लिए यह पहला बड़ा मँच था अपनी रचना प्रस्तुत करने का , कुछ बार ईनाम देने के लिए तो मँच पर गई थी , मगर रचनाकार की तरह इतने सारे लोगों के सामने , सचमुच खून सिर की तरफ़ दौड़ने लगता है | मेरे कविता लेखन की उम्र ही ढाई साल की है , हाँ अनुभव की परिपक्वता मेरी उम्र से आँकी जा सकती है |

मैनें किसी से कुछ कहा , मगर एक अनुभव सम्पन्न दोस्त ने कहा , किसी से आँख मिलाना , बस | मेरे एक रिश्तेदार ने एक बार मुझे किसी से मिलवाया था जो व्यक्तित्व विकास पर व्याख्यान देते थे और उनकी किताबें भी बहुत प्रचलित हैं , उनका कहा याद आया कि हम तो जब मँच पर जाते हैं , किसी को कुछ नहीं समझते , ये सोचते हैं कि ये सब लोग हमें ही तो सुनने आए हैं | उन्हों ने कुछ और कठोर शब्द प्रयोग किए थे जो मैं लिखूँगी नहीं | मैंने सोचा ये तो ख़ुद को धोखा देना है , आत्मविश्वास तो सहज रहने में है , किसी को कुछ समझने से अहंकार बढ़ेगा , वो परम -पिता जिसने मुझे लेखनी का उपहार दिया है वो जरुर नाराज हो जाएगा | और फ़िर मैंने सोचा कि सारे उपस्थित जन मेरे पिता यानि खुदा के बच्चे हैं , वही नूर जो मुझमें है , वही सबमें जगमगा रहा है | जो सामने हैं वो मुझसे अलग नहीं हैं | मेरे पिता ने आज मुझे मँच पर भेजा है , ये उसकी इच्छा है , इसे आत्म-विष्वास के साथ सहजता से पूरा करूँ | बस दो-चार पंक्तियाँ लरजती आवाज में , फ़िर कोई बेगाना-पन नहीं लगा |

हमारे बैंक वालों की प्रस्तुति के बाद एक व्यवसायिक ग्रुप को भी बुलाया हुआ था , उनकी प्रस्तुति देखकर मैं सोच रही थी , वो किसी की तरफ़ भी देख नहीं रहे , माइक पकड़े कभी पीछे मुड़ते हैं , कभी किसी वाद्य वाले की तरफ़ निर्देश देते हुए ताल ठोकते हैं , जबकि उनका संगीत तो पहले से ही तय रहता है , ये उनकी शारीरिक हाव-भाव, यानि भाषा आत्म-विष्वास झलकाने के लिए होती है | किसी किसी को देख कर ऐसा लगा , जो गाना वो गा रहे हैं , उसमें उन्होंने कुछ ऐसा काल्पनिक माहौल गढ़ लिया है , जिसमें वो डूब कर गा रहें हैं | जोर-जोर का संगीत और खुले गले से गाना…..

'तुझे देखा तो ये जाना सनम , प्यार होता है दीवाना सनम '

'कोई जगह नई बातों के लिए रखता है

कोई दिल में यादों के दिए रखता है '

माहौल में एक ऊर्जा भर गई | मेरा ध्यान तो गीत गाने वालों के हाव-भाव और गीत के बोल यानि रचनाकार पर था , कितनी सुन्दर बातें कह जाते हैं गीत के माध्यम से !

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