मन के पास वो ताकत है जिससे वो सामने वाले की आँखों का भावः समझ लेता है | कितना तेज चलता है मन नकारात्मक उठाने में | मन जब उदास होता है तो भी निकृष्टतम परिणाम सोच लेता है |जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता , पर इतना तो समझ आता है कि मन पर बोझ न हो तो ये खुश रहता है , तो एक ऐसा रास्ता निकालें कि व्यवहार और मन का तालमेल सहज हो | मन को दुनिया से आँखें न चुरानी पड़ें | छिपाव , आडंबर , स्वार्थी वृत्ति ये दुनिया को ठगने के लिए व्यवहार में उतरता है ; पर क्या ये अपने ही मन के सहज स्वभाव के प्रतिकूल जाना नहीं है , ये तो अपने आप को ठगना है यानि अपने ही मन पर हमारा नियंत्रण नहीं है | जो शक्ति हमें मन को गलत दिशा में भटकने से रोकने में लगानी लगानी थी , उसे हमने विध्वंस की तरफ लगा दिया | निश्छल मुस्कुराहट की जगह हमने कुटिल मुस्कुराहट चुनी | पलट कर क्या मिलेगा ?
अगर हम सामने वाले में भगवान का अंश देखें या उसमें भी अपनी जैसी ही आत्मा देखें तो फिर उसका बुरा कैसे चाह सकेंगे , उसका बुरा चाहने तक का मतलब है अपना बुरा करना | सामने वाले का भला समझते हुए सही व्यवहार करने से सन्तुलन भी बना रहेगा और मन भी शांत रहेगा |मन ऐसे शांत नहीं होगा , मन के अन्दर तह में जो बात आती है , उसे शांत करें , युक्ति से समझाओ | बहुत सारे तरीके हैं मन को शांत करने के | मन को आधार चाहिए , चलने के लिए ज्ञान की जूती चाहिए | अपने अपने पैर का नाप भी अलग है , मेहनत भी अपनी अपनी करनी होगी , उधारी मेहनत से न काम चलेगा न ही संतुष्टि होगी |
sachchi aur sahaj abhivyakti. bahut achchha!
जवाब देंहटाएंमन की ताकत बड़ी मान कर, मन के पीछे मत चलना।
जवाब देंहटाएंअपनी बुद्धि लगा लेना, जब चाहे मन तन को छलना।।
बहिन जी।
शब्द-पुष्टिकरण हटा दें।
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