मंगलवार, 16 सितंबर 2025

इतना कड़ा फैसला

 सारी रात आँखों के आगे से उन दोनों के चेहरे हटे ही नहीं ।मन ने कितने ही सवाल कर डाले ।क्यों वो इतना हार गई कि ज़िन्दगी ही वार दी ।तीन साल पहले किसी मौक़े पर देखा था ।तब उसका बेटा आठ साल का था ।वो उस खूबसूरत बच्चे की बाँह कस के पकड़ी थी मगर वो इधर-उधर भागने की फिराक में था ।किसी की भी प्लेट से खाना उठा कर खा रहा था ।माँ की ये कोशिश कि वो उसे अपने साथ रखे और कुछ ऐसा-वैसा न हो , इज्जत बची रहे ।मगर क्या स्पेशल बच्चे किसी की भी नजर से छुपते हैं ।नजर और मन वहीं रुक जाते हैं  जहाँ कुछ अलग है ।


जब वो पैदा हुआ तो बोला ही नहीं , जल्दी ही पता लग गया कि वो जन्मजात न बोल पाने और न समझ पाने की अपंगता के साथ इस दुनिया में आया है ।न जाने कलेजे पर कितने पत्थर रखे होंगे ।और फिर सिलसिला शुरू हुआ डॉक्टर्स और धार्मिक स्थलों के चक्कर लगाने का मगर कोई फ़र्क पड़ा ही नहीं ।वो इंजीनियर थी जॉब छोड़नी पड़ी , बच्चे की चौबीस घंटे देखभाल के लिए जरूरी हो गया था।दीन-दुनिया तो उसने भुला ही दी थी ।पिछले दो-चार दिन पहले ही वो पंजाब के किसी डॉक्टर से दवाइयां ले कर लौटे थे।अब वो ग्यारह साल का मगर सोलह साल की शारीरिक गठन वाला हो गया था ।उसे संभालना मुश्किल होता जा रहा था , उसकी सक्रियता काबू में रखने लायक थी ही नहीं ;फिर समाज से भी थोड़ी दूरी बना कर चलना , घर पर ही ट्यूशन पढ़ाने के लिए किसी को रखा हुआ था ।दिल की दिल में ही रही , और फिर उम्मीद की आखिरी किरण भी मुरझा गई ।जब सुबह अँधेरे से शुरू हो कर अँधेरे पर ही ख़त्म होती हो तो शायद इन्सान हार जाता है ।ऐसे ही कमजोर पलों में शायद उसने इतना कठोर फैसला ले लिया , उसने एक नोट छोड़ा कि वो अपनी मर्जी से जा रहे हैं , इसका कोई जिम्मेदार नहीं ।इस तरह उसने अपने पति के लिए मुश्किलें कुछ आसान कर दीं । कितने ही सवाल उठ रहे हैं कि क्या कोई हल नहीं था , उनके लिए कोई छाँव न थी ।


कोई नहीं जानता कि कैसी-कैसी मनःस्थिति से गुजरी होगी वो।कितने सपने सँजोता है इंसान , जॉब ,शादी ,बच्चा और ये हश्र …..आँखों के आगे बस एक रील की तरह गुज़र जाता है ।माँ थी वो ; चौबीस घंटे जिसे नज़रों के सामने रखती थी ,उसके लिए दुनिया से लड़ सकती थी मगर अपने ही अंतर्मन में चलते युद्ध से हार गई।वर्तमान तो दुखद था ही भविष्य भी अंधकार-मय था।न जाने मन कितना छलनी था।


जन्मजात स्पेशल बच्चे या यूँ कहो कि जेनेटिक बीमारियों के साथ पैदा हुए बच्चे का पूरी तरह ठीक होना लगभग नामुमकिन ही होता है।इस सच को स्वीकार करना भी उसके अपनों के लिए बहुत मुश्किल होता है।मन लगातार लड़ता है ,उम्मीद करना चाहता है चमत्कार की भी।क्यों न माँ-बाप इसको इस तरह मान लें कि इस बच्चे को कहीं तो पैदा होना था , ये भगवान का बच्चा है और हमें ये अवसर मिला है कि हम उसकी देखभाल करें और उसकी राह आसान ,सुरक्षित और आरामदायक बनायें ।हम ख़ुद को सौभाग्यशाली समझें कि ईश्वर के काम में योगदान दे रहे हैं या फिर ये सोचें कि बच्चा भाग्यशाली है कि उसे आप जैसे पेरेंट्स मिले हैं ।ज़िंदगी तो वैसे भी होम होनी ही होती है , किसी की भी ज़िंदगी आसानियों से भरी नहीं होती ।ये सोच रखना आसान तो नहीं है मगर यही रास्ता वस्तुस्थिति से डिटैचमेंट का भी है और ख़ुद को एक महान उद्देश्य दे कर जी लेने का भी ,साथ ही वास्त्विकता को स्वीकार भाव देने का भी।मगर ये समझ खुलती सिर्फ़ आध्यात्मिकता के पथ पर है।इसके साथ ही ये भी जान लेना चाहिए कि वो आपकी ज़िम्मेदारी ज़रूर है मगर आपको ख़ुद पर भी वक्त देना है अपना अन्तर्मन मजबूत बनाना है , दुनिया वहीं तक सिमट नहीं जानी चाहिए।और मजबूत मन ही तो बच्चे को सही देखभाल दे सकेगा , वरना ख़ुद को भी संभालना मुश्किल हो जाएगा ।समाज को भी इसे स्वीकार करने की जरूरत है ।सहानुभूतिपूर्ण रवैया रखने की जरूरत है । कोई नहीं जानता कौन किस परिस्थिति में जी रहा है और कितना उदास है ; हम सबको जागरूक रहना चाहिए ।हमारा थोड़ा सा आगे बढ़ाया हुआ हाथ उसका बहुत बड़ा सम्बल हो सकता है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. "वो उस खूबसूरत बच्चे की बाँह कस के पकड़ी थी मगर वो इधर-उधर भागने की फिराक में था ।किसी की भी प्लेट से खाना उठा कर खा रहा था ।"
    दिल बैठ गया ये पढ़ते ही| क्या कुछ नहीं किया होगा उस मा ने इन 11 सालों मे अपने बच्चे के लिए.. She was no less than the best in any room.. In any field.. बहुत प्रयास किया होगा पर बस आशा की कोई किरण नही दिखी होगी अब जो उस बच्चे को कभी ठीक कर सके| मुझे नही लगता के वो माँ खुद की कोशिशो से हारी होगी पर अपने बच्चे को जीवन भर इसी तरह से लाचार देखना इस सोच ने हरा दिया| एक बहुत अच्छी बेटी, बहन, दोस्त, scholar, जिस भी रूप मे उन्हें जानती थी, हमेशा गर्व महसूस किया| काश कोई कुछ तो कर पाता| इतनी educated, होनहार और इतनी अच्छी तरह से अपने जीवन को जीने वाली इस परेशानी से कैसे हार गयी| माँ हार गयी अपने बच्चे के दुख के आगे वरना उनका व्यक्तित्व ही नही था जो हार का सोचे भी

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    1. सच कहा उपमा , वो इसी सोच से हारी होगी कि वो कुछ भी कर ले बेटे का भविष्य नहीं बदल सकती और उसके अपने बाद भी उसका क्या होगा , फिर उसकी पूरी दुनिया बेटा ही था , कोई और ख्वाहिश कोई और दिनचर्या थी ही नहीं । काश कोई उसका मौन रुदन देख पाता और समय रहते कोई सहारा ,कोई support बन पाता।

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