रविवार, 13 नवंबर 2022

सासों या ससुराल पक्ष के लिये

 बहू और सास-ससुर या ससुराल पक्ष के बीच ख़ट-पट अक्सर सुनते आये हैं ।पहले वक्त और था जब बहुएँ काम-काजी नहीं थीं ;आज वो पति के साथ कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही हैं । आप उन्हें चूल्हे-चक्की यानि गृहस्थी तक सीमित नहीं कर सकते ।वक़्त बहुत बदल चुका है , आज के बच्चों को एक दूसरे को समझने के लिये , साथ वक़्त बिताने के लिये प्राईवेसी भी चाहिये ।आप खाम-खाँ बीच में टाँग अड़ाये हुए हैं ।

बहू को बेटी ही समझें ।जो उम्मीदें आप बेटी के ससुराल वालों से रखते हैं , खुद भी इन पर पूरा उतरें । धीरे-धीरे नये रिश्ते भी सहज होने लगते हैं ।उम्मीद बिल्कुल न रखें , सिर्फ़ अपने कर्तव्य याद रखें । अपने आचरण से आपने क्या कमाया ? क्या ये परिवार रूपी धन आपके पास है ? यानि जब कभी आप तकलीफ़ में हों , आपके बच्चे आपके पास दौड़े चले आएँ , तब तो समझें कि आपने संस्कार कमाये ।कभी बच्चे दूर चले भी जाएँ तब भी आपके दिये हुए संस्कार उन्हें कभी न कभी वापिस आपके पास ले ही आयेंगे ।

जो बेटियाँ अपने माँ-बाप को भाभी के विरुद्ध भरे रखतीं हैं , उनसे भी मैं ये कहूँगी उन्हें अपने भाई से प्यार है ही नहीं ।अगर होता तो वो हर क़ीमत पर उसका घर बनाये रखने की हर संभव कोशिश करतीं ।अलग कल्चर से आई लड़की आपको भी अजनबी लगेगी और उसके लिये तो पूरा वातावरण ही अजनबी है ।प्यार और सत्कार से वक़्त के साथ सब सहज होने लगता है ।

 दहेज जैसी बात तो आज शोभा ही नहीं देती ।अगर अभी भी आप वहीं अटके हैं तो आप पुराना रेकोर्ड हो गये हैं । अब ग्रामोफ़ोन ही नहीं बजते तो रेकोर्ड किस गिनती में ।अब बेटियाँ बेटों से कम नहीं हैं ; कमाने में भी और आपका घर , आपकी पीढ़ियों को सुसंस्कृत बनाने में भी ।

अहं की लड़ाई को पीछे छोड़ दीजिये।टकरा कर आप खुद तो ख़त्म होंगे ही , परिवार की सुख-शान्ति भी ख़त्म हो जायेगी ।अगर आप अपने बेटे को प्यार करते हैं तो निस्संदेह उसके शुभचिन्तक भी होंगे : फिर आप खुद ही उसकी ख़ुशी को ग्रहण कैसे लगा सकते हैं ! बेटे की हर ख़ुशी , सुख-चैन बहू के साथ है ; आप को हर सम्भव कोशिश करनी चाहिये कि उनके बीच केमिस्ट्री बनी रहे ।तभी आप समझदार कहे जाएँगे ।

जरा सोचिए , ये वही लड़की है जिसे आप बैण्ड-बाजे के साथ झूमते हुए ब्याहने गए थे ।जिसकी माँ ने सोचा था जैसे विष्णु भगवान उसकी बेटी लक्ष्मी को लेने उसके द्वार पर आये हैं ।कहीं कोई सहमा हुआ सा डर भी किसी कोने में बैठा हुआ था , फिर भी वो उसे दर-किनार कर उस अनजान लड़के का , उसके परिवार का दिल से अभिनंदन करती है ।तो क्या आप इस लायक़ नहीं थे ? क्यों कड़वाहट के बीज बो रहे हैं ? वक़्त सिर्फ़ उसका है जो उसे अपना मान कर , अपना बना कर चलता है ।जो वक़्त चला जाता है , लौट कर कभी नहीं आता ।इसलिए वक़्त को यादगार बनाइये । आपकी दी हुई ख़ुशी बरसों बाद भी लौट कर आप तक जरुर आयेगी ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (16-11-2022) को   "दोहा छन्द प्रसिद्ध"   (चर्चा अंक-4613)  पर भी होगी।--
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  2. सास की छवि को लेकर नकारात्मक धारणा सी बन गई है, पता नहीं क्यों.....! ताली एक हाथ से तो नहीं बजती, समझाइश दोनों पक्षों को मिलनी चाहिए !

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    1. गगन शर्मा जी , ये सही है कि ताली दोनों हाथों से बजती है , पर एक पक्ष भी समझदारी दिखाए तो बात कुछ संभल जाती है ।इसमें सासों को दायरे में रख कर कहा है , जब बहुओं को लिखूँगी तो ये लिखूँगी कि उन्हें जिन माओं ने अपने बेटे पाल-पोस कर उनके सुपुर्द कर दिए , उन्हें उनका
      आजीवन ऋणी रहना चाहिये । उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि उन्हें इन्सिक्युर भी महसूस हो सकता है कि अचानक वो अपने प्यारे बेटे या कहिए प्यार से दूर दूर रहेंगी ।
      समझाते वक्त ,हम जो भी रोल कर रहे हैं समझाना हमें खुद को ही है ।
      शारदा अरोरा

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