दिल पर मत ले यार , ये सोशल मीडिया है। इंटरनेट की दुनिया आभासी है , आभास तो होता है, मगर कितना सार है इसमें , कितनी वास्तविक है , कह नहीं सकते । कितने कमेंट्स, कितने लाइक्स ! मिलें तो ख़ुश न मिलें तो नाखुश , इस सबमें क्यों उलझें हम , हमने अपना काम किया , उसकी वो जाने। कई बार तो इष्ट-मित्र देख भी नहीं पाते क्योंकि जब उनकी फ़्रेंड लिस्ट लम्बी होती है तो हो सकता है आपका मेसेज स्क्रोल में बहुत नीचे पहुँच जाता हो। कई बार सोशल मीडिया पर आने का वक्त ही नहीं मिलता। अरे भई, और भी ग़म हैं जमाने में इस फेसबुक और वाटस एप के सिवा 😁 ! साथ ही ये भी सच है कि कई बार लोग प्रतिक्रिया देना भी नहीं चाहते ; खुद को ही देख लो अपना मन ही कितनी जल्दी-जल्दी बदलता है । आज कोई बड़ा अपना लगता है तो कल वही बड़ा ग़ैर या बेग़ैरत। क्यों उम्मीद रखनी है दुनिया से ? यहाँ अटकने की जरुरत नहीं है। वैसे फोटो के साथ डाला गया संदेश ज़्यादा असरकारक होता है। सिर्फ़ लिखा हुआ कम लोग पढ़ते हैं ; रुचियाँ भिन्न-भिन्न होने पर भी आपका मेसेज सब लोग नहीं पढ़ेंगे ।
वाटस एप और फ़ेसबुक ने प्रोफेशनल्स की ऐसी टीम बनाई हुई है जो धार्मिक अंधविश्वासों , देशप्रेम के नाम पर या खोए बच्चों या बीमार लोगों के नाम पर झूठी-सच्ची ऐसी पोस्ट्स बना कर फ्लो करते रहते हैं कि लोग उस पर कमेंट्स करते रहें या चर्चा करते रहें और लगे रहो मुन्ना भाई की तर्ज़ पर नकारा हो जाएँ और उनकी चाँदी ही चाँदी हो क्योंकि ये वेबसाइट्स तो फलफूल रही हैं। धार्मिक तस्वीर के साथ लिखेंगे जो आज इस पर ‘जय हो’ लिखेगा उसकी मनोकामना पूरी होगी । या कुछ डरावने मेसेज भी होंगे । भला सिर्फ़ लिखने से किसी का भला हो जायेगा या वो व्यक्ति धार्मिक कहलायेगा ? आज धार्मिक स्थल के चक्कर पे चक्कर लगाने वाला या बहुत पूजा पाठ करने वाला भी जरुरी नहीं कि अच्छा इन्सान ही हो। इंसानियत पर जो न पसीजा तो कैसा अच्छा दिल ! ऐसे मैसेजेस से डरने की जरुरत ही नहीं होती ये आपको धर्म- भीरु बनाते हैं , कर्म बुरे नहीं तो क्या डर ? इन पोस्ट्स पर कम्मेंट्स करने पर आप इन्हें लगातार फ्लो में बनाये रखते हैं ।
आज सोशलमीडिया ने अभिव्यक्ति के लिए कितने सारे प्लेटफ़ार्मस हमें दिये हैं ; ट्विटर , लिंकड-इन ,टैगड , इंस्टाग्राम ,स्नैपचैट , फ़ेसबुक ,ब्लॉग राइटिंग, यू- ट्यूब आदि। कल तक अख़बार या पत्रिका में छपवाने के लिये भी हमें हील-हुज्जत करनी पड़ती थी पर आज एक क्लिक के साथ हम दुनिया के सामने होते हैं ।अभिव्यक्ति की आज़ादी और सर्व-सुलभता के नाम पर हमें इसका अनुचित उपयोग नहीं करना चाहिये ; इसलिये सिर्फ़ ऐसा परोसें जो सबके हित में हो , जो किसी दिल को उठाये , इंसानियत के लिये हितकारी हो , किसी को राहत दे , उसे लगे उसकी अपनी ही बात है ।
आज कोई भी सोशल-मीडिया से अछूता नहीं रह सकता है , ये हमारी दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अँग बन गया है । इसने व्यवसाय , नौकरियों , बुकिंगस , पढ़ाई , बैंकिंग ,शॉपिंग , मीटिंग्स , वीडियो- कालिंग आदि को इतना सुविधाजनक कर दिया है कि इसके बिना रहने की बात सोची भी नहीं जा सकती ।आज कोरोना काल ने तो इसके महत्व को और भी उजागर कर दिया है ।
इतने सारे फ़ायदों के बीच इसके नकारात्मक प्रभाव भी आ रहे हैं ,जैसे इसके इस्तेमाल का फोबिया , डिप्रेशन ,कंस्ट्रेशन की कमी , सोशल अलगाव , औरों के साथ खुद की तुलना करना , रोज़मर्रा की गतिविधियों में कमी। कभी-कभी तो फ़ेक लोगों के सम्पर्क में आ कर फँस जाते हैं। तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर, भ्रामक और नकारात्मक जानकारी साझा करने से जनमानस पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बड़ी सरलता से ये सब तक पहुँच जाते हैं । फ़ोटो और जानकारी शेयर करने से प्राईवेसी तो भंग होती ही है ।
अब ये हम पर है कि हम इसका कितना सही उपयोग करते हैं। कोरोना काल में जहाँ हम बाहरी दुनिया से भौतिक रुप से कटे, नेट ने हमारी दुनिया को ही विस्तार दे दिया। कई लोगों को इसने नई पहचान दी , कितने ही लोगों को रोजी-रोटी दी , क्रियेटिविटी को मंच दिया। कितने ही कुकरी, क्राफ़्ट ,म्यूज़िक बैंड ,टीचिंग क्लासेज़, बुटीक के यू-ट्यूब चैनल्ज़ इसी वक्त की देन हैं। सामाजिक अभियान चलाने के लिये भी सोशल मीडिया से बढ़ कर कोई प्लेटफ़ार्म नहीं है। बस ये हम पर है कि हम कितनी सही दिशा पर हों। रिश्तों को मजबूती देने में भी इसका जवाब नहीं ; दूर बैठे हुए भी आप एक सौहार्द-पूर्ण टिप्पणी देकर या एक फोन कॉल कर रिश्तों में अपनत्व बनाये रख सकते हैं ।
इसलिए दिल पर मत लो , आगे बढ़ चलो , इसके बिना काम नहीं चल सकता , मगर इसको उतना ही समय और महत्व दो जिसमें आपकी बाकी दिनचर्या पर असर न पड़े ।😁😁
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