बुधवार, 25 नवंबर 2020

फ्रैंकफर्ट मेरी नजर से

 बादलों के झुण्ड .... जैसे रुई के अम्बार लगे हों , जिन्हें चीरता हुआ प्लेन सुबह-सुबह जर्मनी फ्रैंकफर्ट के आसमान से जब नीचे उतर रहा था ; गहरे हरे रँग के जँगल , हलके धानी और पीले रँग के खेत , खिलौनों जैसे घर साफ़ दिखाई देने लगे थे।इमिग्रेशन और सिक्योरिटी की औपचारिकताओं के बाद जब हम एयर-पोर्ट से बाहर आये ,बच्चे दूर से ही इन्तिजार करते दिख गये। एयर-पोर्ट पर कोई मारामारी नहीं ,बहुत कम लोग दिखे ,सामान के लिये भी कोई चैकिंग नहीं। 

मैने अभी तक इतना साफ-सुथरा ,सुनियोजित ,ट्रैफिक रूल्ज फॉलो करने वाला शहर नहीं देखा था। हॉर्न तो बजते ही नहीं थे ,गाड़ियाँ भी एक निश्चित दूरी रख कर चलतीं थीं। सड़कों पर दोनों ओर साईकिल चलाने वालों के लिये और पैदल चलने वालों के लिये दो अलग-अलग सड़कें थीं। सड़क पार करने के लिये क्रॉसिंग पर ग्रीन सिग्नल होते ही सड़क पार करने के लिये टीं- टीं की आवाज़ भी होती ताकि कोई ब्लाइंड पर्सन भी सड़क पार करना चाहता है तो आराम से कर ले। 

सभी तरफ खुलापन ,ज्यादातर पाँच-मंजिली इमारतें ,हर लाल-बत्ती के पास मेट्रो-स्टेशन्स दिखे। ये देश महँगा जरूर है ,मगर सरकार की तरफ से सुविधाओं की कोई कमी नहीं है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट और मेट्रो स्टेशन पर टिकट देने के लिए कोई है ही नहीं। आपको खुद ही मशीन में जगह का नाम व पैसे भरने हैं और टिकट या मंथली पास निकालना है। मैं हैरान थी कि कहीं कोई मशीन चेक करने के लिये भी नहीं थी। फिर पता चला कि कभी-कभी सरप्राइज चैकिंग होती है , बेटिकट लोगों पर तगड़ा जुर्माना लगता है। इसलिए कोई भी बेटिकट सफर नहीं करता। 
सामान खरीदने जाओ या आसपास जो भी मिलता है अभिवादन में हलो जरूर बोलता है। वैसे वो किसी की भी ज़िन्दगी में दखल नहीं देते। 

  राइन नदी फ्रैंकफर्ट से लगी हुई बहती है । पूरे तट पर साइक्लिंग के लिए सड़क और घास ऊगा कर मनोरम पार्क विकसित किये हुए हैं। राइन नदी के ब्रिज पर ताले बँधे हुए थे ,पूछने पर पता लगा कि यहाँ विश माँगी जाती है , मान्यता है कि वो पूरी हो जाती है। फोटो देखिये ...दूर से नजर आते हुए आसपास के गाँव और खेत....मनोरम दृश्यों से भरपूर। 





गर्मियों में सुबह साढ़े पांच बजे सूरज अपनी किरणों के लाव-लश्कर के साथ दस्तक देने लगता।  रात होती साढ़े दस बजे। अब घड़ी देख कर  सोओ जागो।शाम सात बजे सारे बाजार बंद हो जाते ,मगर उजाला तो दस बजे बाद भी रहता ; मगर सड़कें सूनी होतीं ,रेस्टोरेंट्स खुले रहते। आबो-हवा हमारे नैनीताल वाली और विकास किसी मेट्रोपॉलिटिन सिटी सा। 

फड़ या अतिक्रमण कहीं नहीं। रैस्टौरेंट्स के बाहर खुली जगह में टेबल चेयरस लगीं रहतीं .टी. वी. पर मैच देखते हुए ,बड़े-बड़े बियर और व्हिस्की के ग्लास भर कर बैठे लोग ,ज़िन्दगी को भरपूर जीते हुए लगते। ऐसा नहीं कि एल्कोहल पीने वाले लोग ही ज़िन्दगी को पूरी शिद्दत से जीते हों।  यहाँ के लोगों के लिए ये उनके आम खान-पान का हिस्सा है ,शायद आबो-हवा की माँग भी, और ये उनके जीने का अन्दाज़ भी। एक डिश और एक ड्रिंक ऑर्डर करना ही उनका रोज का लन्च या डिनर भी। कहीं कोई हँगामा नहीं करता। सारे स्टोर्स में सभी तरह की एल्कोहल आम ग्रौसरी की तरह ही उपलब्ध रहती। 

इंग्लिश में काम चल जरूर जाता है मगर जर्मन सीखे या जाने बगैर आपकी ज़िन्दगी यहाँ बहुत आसान नहीं हो सकती। स्ट्रीट यहाँ स्ट्राज़ो होती है और यूनिवर्सिटी होती है यूनिवर्सिटैट , मेट्रो बान और रेलवे-स्टेशन हाफबानऑफ। 
बुलेट ट्रेन से पेरिस जाने के लिये जब स्टेशन गये तो मैं हैरान रह गई कि तेइस-चौबीस प्लैटफॉर्म्स के लिये एक ही प्लैटफॉर्म से ब्रांचेज बन गईं हैं। आपको कोई ब्रिज पार नहीं करना। ट्रेन के दोनों तरफ इंजन हैं। एक तरफ से गाड़ी आई और उसी रास्ते पिछले इंजन से वापिस चली जायेगी .आदमी का वक्त कीमती है भई। टिकट पर स्टेशन का प्लेटफार्म लिखा रहता। स्क्रॉल की सुविधा भी हर जगह। लोकल बस ट्रॉम ,मेट्रो हर जगह स्क्रॉल , 6 .14 तो  6 .14 और 5.19 तो  5.19 पर बस स्टॉप पर पहुंचेगी , कोई शोर नहीं , मेट्रो हर तीन मिनट में।फोन में ऐप डाउनलोडेड रहते ट्रान्सपोर्टैशन सुविधाओं की समय सारणी के भी , किसी से पूछने की भी जरुरत नहीं। 

हर स्टोर में प्लास्टिक की बोतलें रिसाईकिल करने की मशीन लगी है। पैसे सामान में रीइम्बर्स हो जाते।पब्लिक जगहों पर कांच की बोतलों को डिस्पोज़ ऑफ़ करने के लिए तीन तरह की मशीनें लगीं हैं ,ब्राउन ,ग्रीन और सफ़ेद। हर जगह कूड़ेदान और सफाई।इतनी जागरूकता सरकार की भी और जनता की भी !

 यहाँ सब तारें अंडरग्राउण्ड ही है ,कहीं कोई खंबे या तारें हवा में नहीं लटकते। कहीं कोई केबल मरम्मत होनी थी।मैंने देखा कि छः आदमी दो मीडियम से ट्रक ले कर आये.सड़क के पत्थर उखाड़े , मिट्टी निकाली ,उसे एक ट्रक में भर लिया। केबल की तारों को अलग-अलग बाँधा , ट्रक से डिवाइडिंग बार्स निकालीं ,गड्ढे और चौड़े पत्थरों के इर्द-गिर्द पार्टीशन खड़ा कर दिया ताकि गलती से भी कोई दुर्घटना ना हो। अगले दिन ही वो जगह बिल्कुल नार्मल सड़क की तरह थी। सारी फैक्टरीज और फर्नीचर्स की दुकानें शहर से दूर हैं ताकि लोगों को असुविधा न हो। 

दवाइयाँ बिना डॉक्टर के प्रिसक्रिप्शन के नहीं बिकतीं। सेहत के लिए कितनी जागरूकता है। ज्यादा लोग साइकिल चलाते मिलते। बच्चों के बड़ों के तरह-तरह के साइकिल ,प्रैम ,और हेल्मेट्स देखने को मिलते हैं। इतने प्यारे बच्चे ,जैसे किसी डॉल हॉउस में आ गए हों। वक्त को भरपूर जीना कोई इनसे सीखे।पार्कों में दरियाँ बिछा कर , धूप सेंकते हुए लोग , पिकनिक मनाते हुए , व्यायाम और खेल-कूद करते हुए अक्सर हर सप्ताहाँत दिख जाते। 

मैं अचरज से भी देख रही थी और अभिभूत भी थी , सोच रही थी कि ये सब हमारे भारत में क्यों नहीं हो सकता। हमारी जनसँख्या इतनी ज्यादा है कि जगह की कमी ,सुविधाओं की कमी और इसके साथ हमारी नीयत सबसे ज्यादा जिम्मेदार है ;पब्लिक वाली सुविधाएँ तो हम घर उठा कर ले जाएँ। भ्रष्टाचार की वजह से विकास की सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती हैं।फाइनेंस कैपिटल फ्रैंकफर्ट की जनसख्याँ 2017 के आँकड़ों के हिसाब से सात लाख पन्द्रह हजार और हमारे दिल्ली की 2011 के आँकड़ों के हिसाब से तकरीबन सवा करोड़। 

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