शनिवार, 20 अक्टूबर 2018

बुराड़ी काण्ड ,अन्ध-विष्वास की पराकाष्ठा

बुराड़ी काण्ड , एक साथ ११ लोगों की दिल दहला देने वाली आत्महत्या ; पहली ही नजर में ये तो साफ समझ में आता है कि उनमे से कोई भी ये समझ नहीं पाया था कि इस हादसे में उनकी जान चली जायेगी।  अगले दिन के लिये छोले भिगो कर रखना , दही जमा कर रखना और फिर ललित का उसी दिन फोन रिचार्ज कराना ; कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते , सालों बाद भी गढ़े मुर्दे बोल पड़ते हैं। अगर इन आत्म हत्याओं के पीछे उकसाने जैसी कोई साजिश नजर आती है तो ललित के फोन का बैलेंस देख कर समझ आ सकता है कि कितना इस्तेमाल हो चुका था।  उनकी किसी डायरी में ये भी लिखा है कि फोन का इस्तेमाल कम से कम करना ; फिर उसी दिन रिचार्ज भी कराया जाता है , हो सकता है कॉल्स डिलीट भी कर दी जाती रही हों। मद्धिम रोशनी तो हिप्नोटिज्म में इस्तेमाल की जाती है। अगर किसी को इन सबकी मौत से फायदा होता हो या हो सकता है कि  इसकी तह में कोई रंजिश ही हो। और पूर्व जन्म और आत्मा-परमात्मा में विष्वास को भुना लिया गया हो। 

प्रथम दृष्टया ये अन्धविष्वास की कहानी ही नजर आती है। मृत पिता को साक्षात देखने और उनके निर्देश मानने में पूरे परिवार का आँख मूँद कर विष्वास था। हैरानी की बात है कि छोटे बड़े सब इस बात को हजम कर गये  और इसकी किसी को भनक तक न लगी। एक संभावना ये भी है कि मैडिकल साइंस के अनुसार ऐसी बीमारियाँ होती हैं ; जैसे कि हैल्युसिनेशन में मरीज जिसके बारे में सोचता है उसे भ्रम होता है कि वो उसके सामने है। अब यहाँ तो पूरा परिवार ही उसके साथ हो लिया। शायद कहानी बदल जाती अगर एक भी व्यक्ति इसमें विष्वास न करके उसे डॉक्टर के पास ले जाता ,फिर मोक्ष पाने की नाटकीयता उन्हें ले डूबी। कोई सही मार्ग-दर्शक उन्हें मिलता तो समझाता कि कि स्वर्ग-नर्क इसी दुनिया में हैं और मुक्ति भी इसी दुनिया में पाई जा सकती है। मुक्ति शरीर त्याग है ही नहीं। मुक्ति मिलती है आसक्ति त्याग से। आसक्ति त्याग से सुख में अहँकार नहीं आता और दुख में दुख का अहसास नहीं होता। अपनी समझ खोलने का ये परिश्रम शरीर रहते ही सम्भव है। इतना अनमोल जीवन और कौड़ियों के भाव खो दिया। 

ऐसी कैसी वट-पूजा होती है कि सब के सब बरगद की जटाओं सा लटक गये। आँखों पर पट्टी ,हाथ बँधे हुए और गले में फन्दे , कौन मूर्ख इस खेल का अन्जाम नहीं जानता। ये तो अन्ध-विष्वास की पराकाष्ठा हो गई ;पहले मृतात्मा से लगातार साक्षात्कार फिर अन्ध-भक्ति के साथ ऐसी क्रियाएँ करना। 

बुराड़ी काण्ड जैसे काण्डों से हमें सीख लेनी चाहिये कि किसी भी काली या मैली विद्या का फल सकारात्मक हो ही नहीं सकता। इसलिए किसी भी भेड़-चाल में मत आइये।  तान्त्रिक बाबाओं , टोने-टोटके वालों का मकसद आपके विष्वास और भावनाओं को उकसा कर अपने जेबें भरना है बस। होने वाली बात होगी , नहीं होने वाली बात नहीं होगी ; दिया आपकी अपनी आस्था ने जलाया होता है। कोई शरीर रहते किसी अशरीरी आत्मा को नहीं देख सकता।  ऐसे बहुत सारे उदाहरण हुए हैं जब लोग भगवान देखने से लेकर भगवान बन जाने तक की बात करते हैं ; और वो भ्रम से ज्यादा कुछ नहीं निकले। प्रेरणा हमेशा शुभ संकल्पों से जुड़ी होती है। ईश्वर तो है ही अदृश्य न्याय-सत्ता का नाम। आपने जाने-अन्जाने जो भी दुनिया को दिया , लौट कर आयेगा। इसलिये विवेक बुद्धि से चलिए , अपनी तरफ से गल्ती न करिये ,अपनी आँखें खुली रखिये। कर्म-काण्डों , नकारात्मक ऊर्जा के नाम पर किसी की भी चाल में मत  आइये।  ये लोग उँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लेंगे। आत्मिक उन्नति का रास्ता और मैली विद्याओं का रास्ता पृथक-पृथक होता है। 

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