नारी अबला नहीं है। वहशी दिमागों का जोर किसी पर भी उतना ही कारगर है , चाहे वो नर हो या नारी हो ; क्योंकि वो तो उनका सुनियोजित मकड़जाल होता है , बिना तैय्यारी जिसमें कोई भी फंस सकता है। नारी उपभोग की वस्तु नहीं है। पुरुष अपने अहम पर चोट बर्दाश्त नहीं करता , इसे ताकत नहीं कमजोरी कहेंगे। नारी अगर पुरुष के अहम को सन्तुष्ट करती नजर आती है तो ये नारी की सहनशक्ति है। नारी की सहन-शीलता को गलत अर्थों में उठा लिया गया। उसने अपने घर की शान्ति को बरकरार रखना चाहा , इसे तो समझ-दारी कहना चाहिए। वो भी हाड़-माँस की बनी है , दिल-दिमाग रखती है।
जहाँ-तहाँ नारी को अश्लील सामाग्री की तरह परोस दिया गया , जबकि नारी के सम्मोहक रूप से इन्कार नहीं किया जा सकता। ज़िन्दगी को , परिवार को पूरा करने के साथ-साथ ,परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने में नारी की अहम भूमिका होती है। परिवार के सदस्य अगर तृप्त नहीं हैं तो उनके व्यक्तित्व पर उसका असर दिखता है। ये कुण्ठाएँ आदमी को अवन्नति की ओर धकेलतीं हैं। यौन-शोषण ,किशोरों की अपराधिक मानसिकता ,धोखा-धड़ी ,आँखों में तिरते अविष्वास के उदाहरण हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं। ये अतृप्त भटके हुए मन और कमजोर जड़ों के नतीजे हैं। पौधे की जड़ें जितनी मजबूत होतीं है वो उतना ही ज्यादा फलता-फूलता है। व्यक्ति का मन जितना सुन्दर होता है व्यक्ति उतना ही सहज,सरल और दमदार होता है। अन्तर्मन की खूबसूरती के बिना बाहरी सुन्दरता ज्यादा देर टिकती नहीं। और ये खूबसूरती तो अर्जित की जा सकती है।
बुद्धि-बल के सामने शरीर-बल गौण है। आज बुद्धि-जीवी ही बड़े ओहदों पर बैठे हैं ,बड़ी-बड़ी नौकरियां कर रहे हैं। नारी भी पुरुष से कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है। नारी तो दोहरी जिम्मेदारी निभाती है। गृहस्थी की गाड़ी को ढोने में नारी की महत्त्व-पूर्ण भूमिका होती है।
बाहरी उपद्रव जब आक्रमण करेंगे तो आँच सीने तक तो पहुँचेगी ही , मगर नारी के पास वो कला है जो उस आँच को ऊर्जा में तब्दील कर लेती है जो उसे हर हाल में कभी मुड़ना-तुड़ना सिखाती है , कभी बिखरती इकाइयों को अपने पँखों में समेट लेना सिखाती है तो कभी टूटते विष्वास को श्रद्धा का पानी पिला कर सर का ताज बना लेने की ताकत देती है। अपने घर की सारी व्यवस्था की देख-रेख नारी के हाथ है , वो चाहे तो अपने परिवार के सदस्यों के दिलों पर राज करे , यहाँ तक कि वो तो सारी उम्र अपने बच्चों के व्यक्तित्व के जरिये दुनिया से सँवाद करती रहती है , उदाहरण बन सकती है , तो फिर नारी अबला कैसे हुई। नारी तो सबला है।
जहाँ-तहाँ नारी को अश्लील सामाग्री की तरह परोस दिया गया , जबकि नारी के सम्मोहक रूप से इन्कार नहीं किया जा सकता। ज़िन्दगी को , परिवार को पूरा करने के साथ-साथ ,परिवार को एक सूत्र में बाँधे रखने में नारी की अहम भूमिका होती है। परिवार के सदस्य अगर तृप्त नहीं हैं तो उनके व्यक्तित्व पर उसका असर दिखता है। ये कुण्ठाएँ आदमी को अवन्नति की ओर धकेलतीं हैं। यौन-शोषण ,किशोरों की अपराधिक मानसिकता ,धोखा-धड़ी ,आँखों में तिरते अविष्वास के उदाहरण हमारे आस-पास बिखरे पड़े हैं। ये अतृप्त भटके हुए मन और कमजोर जड़ों के नतीजे हैं। पौधे की जड़ें जितनी मजबूत होतीं है वो उतना ही ज्यादा फलता-फूलता है। व्यक्ति का मन जितना सुन्दर होता है व्यक्ति उतना ही सहज,सरल और दमदार होता है। अन्तर्मन की खूबसूरती के बिना बाहरी सुन्दरता ज्यादा देर टिकती नहीं। और ये खूबसूरती तो अर्जित की जा सकती है।
बुद्धि-बल के सामने शरीर-बल गौण है। आज बुद्धि-जीवी ही बड़े ओहदों पर बैठे हैं ,बड़ी-बड़ी नौकरियां कर रहे हैं। नारी भी पुरुष से कन्धे से कन्धा मिला कर चल रही है। नारी तो दोहरी जिम्मेदारी निभाती है। गृहस्थी की गाड़ी को ढोने में नारी की महत्त्व-पूर्ण भूमिका होती है।
बाहरी उपद्रव जब आक्रमण करेंगे तो आँच सीने तक तो पहुँचेगी ही , मगर नारी के पास वो कला है जो उस आँच को ऊर्जा में तब्दील कर लेती है जो उसे हर हाल में कभी मुड़ना-तुड़ना सिखाती है , कभी बिखरती इकाइयों को अपने पँखों में समेट लेना सिखाती है तो कभी टूटते विष्वास को श्रद्धा का पानी पिला कर सर का ताज बना लेने की ताकत देती है। अपने घर की सारी व्यवस्था की देख-रेख नारी के हाथ है , वो चाहे तो अपने परिवार के सदस्यों के दिलों पर राज करे , यहाँ तक कि वो तो सारी उम्र अपने बच्चों के व्यक्तित्व के जरिये दुनिया से सँवाद करती रहती है , उदाहरण बन सकती है , तो फिर नारी अबला कैसे हुई। नारी तो सबला है।
naari shkti hai ... ye sab ko pata hai tabhi mil kar purush samaaj use ablaa banana chaahta hai ...
जवाब देंहटाएंvery strong post that high lights the strength of women.
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