बुधवार, 25 अगस्त 2010

मन पर दुख का लवलेश भी न हो


आप शक्तिमान आत्मा हैंआत्मा , मन बुद्धि से अलग होती है , आत्मा शान्त सत्य चित्त आनँद स्वरूप होती है , इसी लिये उसे तनाव रहित रहना अच्छा लगता है , दुःख उसे भारी कर देते हैंभावनायें मन का काम है और उनका नियंत्रण बुद्धि के जिम्मे हैसिर्फ बुद्धि से काम लें तो यान्त्रिक बन जायेंगे और सिर्फ मन से चलेंगे तो भी काम नहीं चलेगा , इसलिए मन बुद्धि का संतुलन बहुत आवश्यक हैविवेक और प्रेम से भरा मन आपको मर्यादा के साथ साथ आत्मा की राह पर चलना सिखाएगा , जिससे अंतर्मन तनाव रहित रहेगा

परिस्थितियों से मन हिलता है , जिसे हम गहरे आत्मा तक उतार लेते हैं , जबकि दुख तो बाहर हैशरीर को भी तकलीफ है तो बाहर है कि आत्मा को है , समय के साथ ख़त्म हो जाने वाली हैसुख-दुख का संयोग वियोग मौसम की तरह हैफिर सर्वशक्तिमान की यही मर्जी है तो हम उसे सर आँखों पर लें , उसमें जरुर कोई भेद छुपा है ...परीक्षा , सबक या फिर कर्म कट रहे हैंअब मन ये कैसे मान ले कि दुख अच्छा है ! स्वीकार तो करना ही पड़ेगा , हँस कर करेंगे तो उसे काटना आसान हो जाएगा । दुख को जैसे ही स्वीकार कर लिया जाता है , है तो है , ये सोचते ही दुख की तीव्रता कम हो जाती है । परिवर्तन तो आयेंगे ही , क्योंकि ये प्रकृति का नियम है , वरना जीवन नीरस हो जायेगा , उनसे डरना कैसा ! उनमें धैर्य , संतोष , विवेक बुद्धि , योग्यता की परीक्षा होगी और जीवनी शक्ति होगी आपका उपहार

दंभ और आत्मग्लानि दोनों से हटना होगाआत्मग्लानि क्यों ? आत्मा तो नूर से भरी हुई हैअगर आप शुभ शुभ सोचते हैं , चेहरा दमकने लगता हैहमारी अभी की सोच अगले पलों की किस्मत बन जाती है , वैसा ही हम महसूस करने लग जाते हैं , एक विचार एक श्रृंखला लेकर आता है कितने ही विचारों कीजब हमारे विचार इतना मायने रखते हैं तो आत्मा कितनी बलशाली हुईदंभ से भी बचना है , अभिमान करना है तो सर्व होने का करेंइसे एक वृहद् रूप दें ...सर्वशक्तिमान से अलग होकर आई हुई मेरी आत्मा और सारी आत्माएँ , हमारा गहरा रिश्ता है , प्रेम का ...तो भय कैसा और फर्क कैसा !

अब दूसरे के व्यवहार के पीछे कारण देख सकने वाली दृष्टि भी आप पा लेंगे किसी से नाराज होंगे तनाव होगाअपने आप को देखें कि आप क्या सोच रहे हैं ...मन को भारी करने वाले विचार , दूसरों के साथ द्वेष वाले विचार , कचरे से कम नहीं हैं , फ़ौरन अपने आप को समझाएं ..ये मेरा ही रूप है , कैसा विद्वेष ? उसको समझाने के लिये हमारी सीमाएँ हैं मगर हम अपनी नकेल तो अपने हाथ में रखें । हमारी भरसक कोशिश रहे कि जो उसके हित में है हम करें । कीर्ति की चाह भी न करें , क्योंकि ये चाह फिर दुख को जन्म दे सकती है । मन को मोड़ मोड़ कर सही रास्ते पर लायें । अब आप अपनी भावनाओं को टूट जाने की कगार पर ले कर ही नहीं जायेंगे तो अवसाद की क्या मजाल जो आपके पास भी फटक सके ।
जीवन तो प्रसाद रूप है , खुश रहें और खुशियाँ ही बाँटें । जब प्रकृति की मर्जी से लय मिला लेते हैं तभी इस गुण का अनुभव कर सकते हैं । जब हम जान बूझ कर कुछ गलत नहीं करेंगे , न ही सोचेंगे , अंतर्मन में ये विश्वास रखेंगे कि परम पिता हर हाल में हमारे साथ है तो न तो अकेलेपन का डर लगेगा और न ही किसी विषम परिस्थिति के नकारात्मक प्रभाव का ।
जब आप भाव बदल लेंगे तो कोई नकारात्मक भाव आप पर असर ही नहीं करेगा । आप पायेंगे कि जीवन आसान हो गया है । हर दिन नया दिन है , मुस्करा कर स्वागत कीजिये । अध्यात्म जीवन का मजबूत आधार स्तम्भ है । मन बुद्धि को नियंत्रित करते हुए कर्म के साथ जुड़िये । बेशक बाहरी आँखें आपको बार बार विचलित करेंगी , हर बार मन को मोड़ मोड़ कर अपने असली स्वरूप में लौट आयेंगे तो जीवन गुजरता हुआ नाटक सा दिखेगा । हमारे विचार ही तो हम हैं । अंतर्मन और कर्म का संतुलन ही तो है संतुलित व्यक्तित्व ।
खुद प्रेम का रूप हैं और बाहर तलाश रहे हैं , कितनों का मन हम उठा सकते हैं , जीवनी शक्ति से भर सकते हैं ; इसलिए प्रेम छलकाएं , तभी भरे होने का अहसास होगा । हाँ , याद रखें प्रेम करने में आपको एक जगह अटक कर नहीं रहना है , लें दें और आगे बढ़ चलें । आपका सफ़र , आपकी पटरी तय है , आपको तो सिर्फ मर्यादा सहित कुशलता से अपना काम करते चलना है ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. ek bar phir nishabd kar diya aapki lekhni ne....mujhe is lekh ko bahut baar padhne ki jaroorat hai...

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  2. अध्यात्म जीवन का मजबूत आधार स्तम्भ है ।
    Ham darasal 'adhyatm' kaa sahi matlab hi bhool gaye hain..atm+adhyayan...khud kaa adhyayan. Hamare liye duniyabhar ke karmkaand 'adhyatmik'ban jate hain!
    Aaapka aalekh maa ko padhke sunane ja rahi hun.

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  3. एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
    आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !

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