जनप्रतिनिधि हम में से ही , हमारे द्वारा व हमारे लिए ही चुने जाते हैं ।जो धन-राशि जन कल्याण योजनाओं पर खर्च होती है वो सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है । विभिन्न प्रकार के करों द्वारा सरकार फंड इकट्ठा करती है ।घूम-फिर कर पैसा भी हमारा ही है और खर्च भी हम पर ही होना है ।विडम्बना ये है कि योजना की रूप-रेखा तैयार करते वक्त इतने ज़्यादा बजट का ब्यौरा दिया जाता है कि आधे से ज़्यादा राशि सम्बंधित लोगों की जेबों में जाती है ।ये पूरी एक चेन है ।और फिर वाह-वाही लूटी जाती है ।इस प्रक्रिया में जिसे ज़मीर कहते हैं वो तो नदारद ही है ।ये तो ठीक है कि काम होना चाहिए मगर क्या इस लेवल तक गिर कर ।
अब अपने शहर में चारों तरफ नज़र दौड़ाइये।प्लास्टिक और कचरे के ढेर हैं चारों तरफ ,तरक़्क़ी के नाम पर ये क्या हाल हो गया तेरा , ऐ मेरे शहर
रूद्रपुर शहर के ज़्यादातर सभी नालों का यही हाल है ।गन्दगी से अटे पड़े हैं ।जिधर देखो नालों में प्लास्टिक की पन्नियाँ और कचरा भरा हुआ कीचड़ खड़ा है ; जो मच्छरों और बीमारियों को दावत दे रहा है ।सड़कें कितनी भी साफ रख लें , दुकानें आलीशान हों , मगर ये गन्दगी तो अव्यवस्था का सारा कच्चा चिट्ठा खोल रही है ।आप रेलगाड़ी से सफर करिए , घरों के पीछे ट्रैक के आसपास तो हर शहर में यही हाल दिखेगा ।
आवश्यकता है इन नालों की अविलम्ब व नियमित सफ़ाई व निरन्तर बहाव को बरकरार रखने के लिए समुचित व्यवस्था की व जन जागरण की भी ।सड़क पर व नालों में प्लास्टिक की थैलियाँ व अन्य कचरा कभी नहीं फेंका जाना चाहिए ।इसके लिए निर्देशित दूरी पर कूड़ेदान रखे जाने चाहिए । स्वच्छता अभियान चलाया जाना चाहिए । बच्चों को स्कूलों में ये शिक्षा देनी चाहिए और घरों में बड़ों को अपने आचरण से सिखाना चाहिए ।विदेशों जैसी चमचमाती साफ-सुथरी सड़कें हमारे यहाँ क्यों नहीं हो सकतीं ?
वैसे तो पूरे शहर का हाल ऐसा ही है ।मगर रेलवे-स्टेशन और उस से लगी कालौनी के बीच बने नाले की दुर्गति तो देखते ही बनती है ।सोढी कालौनी की तरफ तो सारा कूड़ा ही इसमें डाला जाता है ।बिना पुल के मिट्टी डाल कर आने जाने का रास्ता बना लेने से बहाव भी रुका हुआ है ।इस तरह साथ की दूसरी फ़्रेंड्स कालौनी का बहाव भी रुका हुआ है । खड़ा बदबूदार पानी गन्दगी और मच्छरों का घर बना हुआ है ।आवश्यकता है कि प्रशासन इसकी जल्दी से जल्दी सुधि ले ।
हम जगह-जगह प्लास्टिक का कचरा डाल कर इस धरती को कितने सौ सालों के लिए दूषित कर रहे हैं ; ये कई सौ सालों तक मिटाया न जा सकेगा । प्लास्टिक अगर कूड़े में जलेगा तो पर्यावरण दूषित होगा । धुएँ में , हवा में घुल कर हमारे फेफड़ों को संक्रमित करेगा ।
आवश्यकता है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि विकास के साथ-साथ इस ओर विशेष ध्यान दें ; क्योंकि ये स्वास्थ्य के साथ-साथ शहर की सुन्दरता का सवाल भी है ।